झारखण्ड के प्रमुख राजवंश || JHARKHAND KE PRAMUKH RAJVANSH

Jharkhand Pathshala

इसमें झारखण्ड के विभिन्न क्षेत्रीय राजवंशों के बारे में जानकारिया दी गयी है।

मुंडा राज

झारखण्ड में राज्य निर्माण का श्रेय मुंडाओं को जाता है। रिसा मुंडा पहला व्यक्ति था जिसने झारखण्ड में राज्य निर्माण की प्रक्रिया सुरु की। उसने सुतिया पहन को मुंडाओं का शासक चुना। उसने अपने ही नाम पर अपने राज्य का नाम ‘सुतिया नागखण्ड’ रखा। इसका शासन क्षेत्र 7 गढ़ों में बटा था- 
1 . लोहागढ़ (लोहरदगा), 
2. मानगढ़ (मानभूम), 
3. हजारीबाग,
4. पलुनगढ़ (पलामू),
5. सिंहगढ़ (सिंहभूम),
6. केसालगढ़ 
7. सुरगुमगढ़ (सुरगुज्जा)। 
     सुव्यवस्थित शासन के लिए इन सात गढ़ों को 21 परगनो में बटा गया था-
1. डोइसा             12. सोनपुर
2. खुखरा             13. बेलखदार
3. ओमदंगा         14. बेलसिंग
4. सुरगुजा           15. तमाड़
5. जसपुर            16. लोहारडीह
6. गंगपुर             17. खरसिंग
7. पोरहट              18. उदयपुर
8. गिरगा              19. बोनाई
9. बिरुआ              20. कोरिया
10. लचरा             21. चंगमंगकर
11. बिरना
 उपरोक्त सभी क्षेत्रों में सुतिया नागखण्ड का अधिकार था। ये राजवंश झारखण्ड के एक बड़े भूभाग में फैला था। इस वंश में झारखण्ड के अधिकाधिक भू-भाग पर राज किया लेकिन ये वंश ज्यादा समय तक नहीं चल पाया। मदरा मुंडा इस राजवश का अंतिम शासक था।

नाग वंश 

छोटानागपुर खास के नाग वंश का संस्थापक फणिमुकुट राय था। इस वंश का स्थापना 10 वीं सदी ई। में हुयी थी। लौकिक कथाओं के अनुसार फनी मुकुट के पता का नाम पुंडरीक नाग तथा माता का नाम पार्वती था।
इसके शासन कल में 66 परगने थे। इसने अपना राजधानी सुतियाम्बे में स्थापित किया था। फनी मुकुट ने गैर-आदिवसियों को अपने  राज्य में बसाया तथा उन्हें राज्य प्रशासन के कई महत्वपूर्ण पदों में नियुक्त भी किया था। फनी मुकुट राय के बाद क्रमश: मुकुट राय, मदन राय तथा प्रताप राय नागवशि राज्य के शासक बने। चौथा नाग वंशी राजा प्रताप राय ने सुतियाम्बे से राजधानी बदलकर चुटिया ले गया। इस वंश का अति प्रतापी राजा भीम कर्ण (1095 -1184 ) था। वह पहला नाग वंशी था जिसने ‘राय’ के स्थान पर ‘कर्ण ‘ की उपाधि धारण की थी। भीम कर्ण ने मुस्लिमो के आक्रमण से बचने के लिए 1122 ई। में इसकी राजधानी चुटिया से खुकरा स्थान्तरित कर लिया। 
इस प्रकार समय-समय पर अवसक्ताओँ के अनुसार कई बार राजधानी को बदला गया था, ये निम्लिखित है –

 संस्थापक                    राजधानी 

फनी मुकुट राय  –                   सुतियाम्बे 
प्रताप राय-                               चुटिया 
भीम कर्ण  –                              खुखरा 
दुर्जन शाह –                             डोइसा 
यदुनाथ –                               पालकोट
जगन्नाथ शाहदेव-               पालकोट भैरों 
प्रताप उदयनाथ शाहदेव-        रातूगढ़ 

रक्सेल वंश  

रक्सेल वंश झारखण्ड के पलामू जिला में राज करता था। पलामू के दक्षिण-पूर्वी भाग रक्सेल वंश का केंद्र था। ये स्वयं को राजपूत कहते थे। रक्सेल वंश दो दलों में बाँटे थे। एक दाल देवन में शासन करते थे  और दूसरा कुंडेलवा।  16 वीं सताब्दी में चेरो ने इनका पद छीनकर इनका शासन ख़तम कर दिया।
    दोस्तों रक्सेल वंश परीक्षा के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हे। इसमें एक प्रश्न पहुत महत्वपूर्ण हे की ये लोग खुद को राजपूत कहते थे।

सिंह वंश 

झारखण्ड के सभी राजवंशों में सिंह वंश एक महतपूर्ण स्थान रखता है। ‘वंश प्रभा’ लेखन के अनुसार सिंह वंश के दो शाखाएं स्थापित हुयी थी, पहली शाखा 8 वीं सदी में और दूसरी 13 वीं सदी में।
          पहली शाखा : सिंह वंश की स्थापना 8 सदी में सिंहभूम में हुयी थी। यह पहली शाखा थी जिसकी स्थापना काशीनाथ सिंह ने की थी। इसमें 13 शासक हुए और यह वंश 13 शादी तक ही चली। पहली शाखा के गतिविधियों के बारे में ज्यादा कोई प्रमाण नहीं मिला है।
         
          दूसरी शाखा: इस शाखा की स्थापना 1205 ई। में दर्प नारायण सिंह ( 1205 – 62 ई।) ने की थी। इन्होने लम्बे समय थक शासन किया। इनके मरणोपरांत युधिष्ठिर (1262-71 ई.) शासक बना , मगर ये ज्यादा समय तक शासन नहीं कर पाए। युधिष्ठिर के बाद उसका पुत्र कशी राम सिंह सिंहासन को संभाले। इसी ने पोरहट क्षेत्र की स्थापना कर इसे अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद इसका पुत्र अच्युत सिंह शासन संभाले। इसी के शासन कल में सिंह राज्य की कुल-देवी के रूप में पूरी देवी की प्राण-प्रतिष्ठा की गयी। इसके बाद त्रिलोचन सिंह, सिंह वंश का शासक बना।  इसका उत्तराधिकारी अर्जुन सिंह प्रथम था। इसके बाद 13 वां  जगन्नाथ सिंह शासक बना। इसी के शासन कल में भुईयाँ लोगों ने विद्रोह किया था। इसके बाद जितने भी शासक आए उनके शासन काल में कोई विशेष घटना नहीं घाटी, इन शासको का क्रम इस प्रकार है-  कृष्णा सिंह, अजय सिंह, शिकार सिंह, दयार सिंह, मान सिंह, अजय सिंह द्वितीय, शिव नारायण सिंह, लक्ष्मी नारायण सिंह एवं चित्रा सिंह।
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