भारतीय संविधान में अधिकार अध्याय 2 कक्षा 11 राजनीतिक विज्ञान। Political science class 11.

Political science class 11: भारतीय संविधान में अधिकार: मनुष्यों को अपने विकास के लिए ये आवश्यक की उनके स्वयं के कुछ अधिकार होना चाहिए। इस पाठ में हम भारतीय संविधान में नागरिकों के लिए लिखित अधिकार के बारें में जानेंगे ओर साथ ही इस पाठ से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर देखेगें जो आपके वार्षिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

भारतीय संविधान में अधिकार महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य: Political science class 11

अधिकार: एक आम आदमी जीवन जीने के लिए जिस हक़ की बात करता है या मांग करता है, उसे अधिकार कहते है।

अधिकारों का घोषणा पत्र: जब नागरिकों के अधिकारों को संविधान में सुचिबंध किया जाता है जो ऐसे सूचि को ‘अधिकारों का घोषणा पत्र’ कहते है। इसकी माँग नेहरु जी ने 1928 में की थी।

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार: नागरिकों के बहुमुखी विकास के लिए जिन अधिकारों का होना आवश्यक होती है उसे मूलभूत या मौलिक अधिकार कहते है। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान क्रांतिकारियों ने समय-समय पर नागरिकों के अधिकारों की माँग उठती रही है। 1928 में मोतीलाल नेहरु समिति ने अधिकारों के एक घोषणा पत्र की माँग की थी। स्वतंत्रता के पश्चात् इन अधिकारों में से अधिकांश को भारतीय संविधान में सूची बंद कर दिया गया।

सामान्य अधिकार: वैसे अधिकार जिन्हें सामान्य कानूनों के मदद से लागु किये जाते है तथा जिन अधिकारों में संसद कानून बनाकर परिवर्तन कर सकती है, वे सामान्य अधिकार कहलाते है।

मौलिक अधिकार: नागरिकों के लिए जिन अधिकारों को संविधान में सूचीबद्ध किये गए है और जिन्हें लागु करने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान है, उसे मौलिक अधिकार कहते है। मौलिक अधिकारों की सुरक्षा स्वयं सविधान करता है। सरकार का कोई भी अंग इन मौलिक अधिकारों के विरुद्ध काम नहीं कर सकता है। भारत के संविधान के भाग-3 में 6 मौलिक अधिकारों का वर्णन है, जो निम्नलिखित है:

  1. समानता का अधिकार ( अनुच्छेद 14 से 18 )
  2. स्वतंत्रता का अधिकार ( अनुच्छेद 19 से 22 )
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार ( अनुच्छेद 23 से 24 )
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ( अनुच्छेद 25 से 28 )
  5. संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार ( अनुच्छेद 29 से 30 )
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनुच्छेद 32 )

समानता का अधिकार: अनुच्छेद 14 से 18 : Political science class 11

अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष सभी नागरिको को एक समान दर्जा दी गयी है। बिना भेद-भाव के सभी नागरिको को एक समान दर्जा प्राप्त है।
अनुच्छेद 15: एक ऐसी समाज का गठन जो धर्म, जाती, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेद-भाव न हो।
अनुच्छेद 16: सार्वजनिक नियुक्तियों में सभी को एक समान अवसर।
अनुच्छेद 17: समाज में छुआछुत का उन्मूलन।
अनुच्छेद 18: सैनिक एवं शैक्षिक उपाधियों के अलावा उपाधियों पर रोक।

स्वतंत्रता का अधिकार: अनुच्छेद 19 से 22

अनुच्छेद 19: इस अनुच्छेद में नागरिको को विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रता दी गयी है जैसे- भाषण एवं अभिव्यक्ति, संघ बनाने, सभा करने, भारत के किसी भी भाग में बसने और भ्रमण करने ओर स्वतंत्रता पूर्वक कोई भी व्यवसाय करने की आजादी है।
अनुच्छेद 20: यह अनुच्छेद अभियुक्त या अपराधी को संरक्षण प्रदान करती है।
अनुच्छेद 21: कानूनी प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति से उसके जीने की स्वतंत्रता को छिना नहीं जा सकता है।
अनुच्छेद 21 (क) के अनुसार RTE, 2002, 86वाँ संविधान संसोधन द्वारा शिक्षा के मौलिक अधिकार को जोड़ा गया। इसके अनुसार 6 से 14 वर्ष के आयु के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा अनिवार्य किया गया।
Note: 93वें संसोधन, 2022 द्वारा शिक्षा के अधिकार को अनुच्छेद 211 ‘ए’ में जोड़ा गया है।
अनुच्छेद 22: या किस भी नागरिक को विशेष मामलों में गिरफ़्तारी एवं हिरासत से सुरक्षा प्रदान करती है।

शोषण के विरुद्ध अधिकार: अनुच्छेद 23 से 24

अनुच्छेद 23: यह अनुच्छेद मानव तस्करी, बेगार और बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाती है।
अनुच्छेद 24: खदानों, कारखानों और खतरनाक कामों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम करने पर प्रतिबन्ध लगाती है।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार: अनुच्छेद 25 से 28

अनुच्छेद 25: सभी नागरिक किसी भी धर्म का पालन एवं प्रचार-प्रसार कर सकता है।
अनुच्छेद 26: परोपकारी कार्य करने वाले धार्मिक संस्थाओं को स्थापित करने का अधिकार।
अनुच्छेद 27: धार्मिक सम्प्रदाय की देख-भाल एवं धर्म प्रचार के लिए कर देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 28: किसी भी सरकारी शिक्षण संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी सकती है।

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार: अनुच्छेद 29 से 30

अनुच्छेद 29: भारत के प्रत्येक राज्य के नागरिकों को अपनी भाषा लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार है।
अनुच्छेद 30: यह भाषा तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों को शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करने और उनके प्रशासन को चलाने अधिकार देता है।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार: अनुच्छेद 32

डॉ. अम्बेडकर ने इसे “संविधान का हृदय और आत्मा” कहा है। इसके अंतर्गत न्यायलय विशेष आदेश जरी करते है जिसे रिट कहा जाता है। ये निम्नलिखित है:

  • बंदी प्रत्येक्षिकरण
  • परमादेश
  • प्रतिषेद
  • अधिकार पृच्छा
  • उत्प्रेषण
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार

दक्षिण अफ्रीका का संविधान दुसान दिसम्बर 1996 में लागु हुआ। जब रंगभेद वाली सरकार हटाने के बाद देश गृह युद्ध के खतरे से जूझ रहा था तब दक्षिण अफ्रीका में अधिकारों का घोषणा पत्र प्रजातंत्र की आधारशिला बनी।

दक्षिण अफ्रीका के संविधान में सूचीबद्ध प्रमुख अधिकार: Political science class 11

  • गरिमा का अधिकार।
  • निजिता का अधिकार।
  • श्रम-संबंधी समुचित व्यवहार का अधिकार।
  • स्वास्थ्य पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण का अधिकार।
  • समुचित आवास का अधिकार।
  • स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार।
  • बाल अधिकार।
  • बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार।
  • सूचना प्राप्त करने का अधिकार।
  • सांस्कृतिक, धार्मिक, और भाषाई समुदायों का अधिकार।

राज्य के नीति-निर्देशक तत्व:

स्वतन्त्र भारत में समानता को बहाल करने और सबका कल्याण करने के लिए मौलिक अधिकारों के आलावा बहुत से नियमों की जरुरत थी। नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत ऐसे ही नीतिगत निर्देश सरकारों को दिए गए है, जिनको न्यायलय में चुनोती नहीं दी जा सकती है, परन्तु इन्हें लागु करने के लिए निवेदन किया जा सकता है। अब सरकार का दायित्व है की जहाँ तक संभव हो इन्हें लागु करें।नीति निर्देशक तत्वों की सूचि में तीन प्रमुख बातें निम्नलिखित है:

  • वे लक्ष्य और उद्देश्य जो एक समाज के रूप में हमें स्वीकार करने चाहिए।
  • वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के आलावा मिलाने चाहिए।
  • वे नीतियाँ जो सरकार को स्वीकार करना चाहिए।

मौलिक कर्त्तव्य:

42वें संविधान संसोधन 1976 में मौलिक कर्तव्यों को अनुच्छेद 51(क) में जोड़ा गया है। नागरिकों के 10 मौलिक कर्तव्य निम्नलिखित है:

  1. संविधान का पालन करना, राष्ट्रध्वज राष्ट्रगान का सम्मान करना।
  2. राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखना और उनका पालन करना।
  3. भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता की रक्षा करना।
  4. राष्ट्र रक्षा एवं सेवा के लिए तत्पर रहना।
  5. नागरिकों में भाईचारे का निर्माण करना।
  6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा के महत्व को समझने उसको बनाये रखें।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण करें।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और सुधार की भावना का विकास करें।
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़े।

भारतीय संविधान में अधिकार: महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर: Political science class 11

प्रश्न.1: नीति निर्देशक तत्त्व और मौलिक अधिकार में क्या संबंध है?
उत्तर: नीति निर्देशक तत्त्व और मौलिक अधिकार दोनों ही एक दुसरे के पूरक है। जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाती है, वहीं नीति निर्देशक तत्त्व उसे कुछ कार्यों को करने में प्रेरणा देती है। मौलिक अधिकार मुख्य रूप से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करता है, वहीं नीति निर्देशक तत्त्व पुरे समाज की हित की बात करता है।

प्रश्न.2: नीति निर्देशक तत्त्व और मौलिक अधिकार में क्या अंतर है?
उत्तर: मौलिक अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है, जबकि नीति निदेशक तत्त्व को कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है। अर्थात मौलिक अधिकारों के उलंघन पर आप न्यायलय में जा सकते है परन्तु नीति निर्देशक तत्वों के उलंघन पर आप न्यायलय में नहीं जा सकते है।

प्रश्न.3: अधिकारों का घोषणा पत्र क्या है?
उत्तर: संविधान द्वारा प्रदत और संरक्षित अधिकारों की सूचि को अधिकारों का घोषणा पत्र कहलाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के एक कथन के अनुसार कुछ ऐसे मानवाधिकार होते है जो कभी छिना नहीं जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा अंगीकार किया। भारत में भी स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानीयों भी अधिकारों की माँग समय-समय पर उठती रही है। मोतीलाल नेहरु समिति ने भी 1928 में इसकी की। स्वतंत्रता के बाद इन्हीं अधिकारों सुचिबंद्ध किया गया जो मौलिक अधिकार कहलाया।

प्रश्न.3: सामान्य अधिकार क्या है?
उत्तर: सामान्य अधिकार का तात्पर्य उन अधिकारों से है जो मानवों के जीवन के लिए अनिवार्य माना गया है। इन अधिकारों के बिना सामान्य जीवन इंसानों के लिए संभव नहीं है। संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों के आलावा भी नागरिको को कुछ अधिकार की आवश्यकता होती जो उनके जीवन का अभिन्न अंग है।

प्रश्न.4: मौलिक अधिकारों को किस परिस्थिति में निलम्बित किया जा सकता है?
उत्तर: मौलिक अधिकारों को हमसे कोई छीन नहीं सकता है क्योकिं इसकी सुरक्षा स्वयं देश की सर्वोच्च न्यायलय करती है। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में मौलिक अधिकारों को निलम्बित किया जा सकता है। राष्ट्रीय आपातकाल या देश युद्केध के दौरान आये संकट के समय जीवन रक्षा को छोड़ कर शेष मैलिक अधिकार को निलम्बित किया जा सकता है।

प्रश्न.5: हमें मौलिक अधिकारों की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर: मौलिक अधिकार व्यक्तियों के बहुमुखी विकाश के लिए आवश्यक है। यह समाज में समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, आर्थिक और सामाजिक विकास लाने में सहयोग प्रदान करता है। मौलिक अधिकार किसी देश की नागरिकों के स्वतंत्रता का परिचायक है।

प्रश्न.6: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग क्या है?
उत्तर: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन 2000 में हुआ था। सर्वोच्च न्यायलय और उच्च नयायालय का एक -एक भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश, मानवाधिकार के संबंध में ज्ञान रखने वाले या व्यवाहरिक अनुभव रखने वाले दो लोग इसके सदस्य होते है। इनका प्रमुख कार्य है- शिकायते सुनना, जाँच करना तथा पीड़ितों को राहत पहुँचाना आदि।

प्रश्न.7: संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: मौलिक अधिकारों की चार विशेषताएँ निम्नलिखित है:
(1) यह विस्तृत और व्यापक है जो संविधान के भाग-3 की 24 धाराओं में वर्णित है।
(2) मौलिक अधिकार बिना किसी भेद-भाव के सभी नागरिकों को प्राप्त है।
(3) मौलिक अधिकारों का संरक्षण सर्वोच्च न्यायलय करती है।
(4) आपातकाल के दौरान इसमें प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।

प्रश्न.7: नीति निर्देशक तत्वों के उदेश्यों एवं नीतियों को सविस्तार समझायें
उत्तर: मौलिक अधिकारों के अलावा लोक कल्याण और राज्य के उत्थान के लिए आवश्यक नियमों को ‘राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त’ के नाम से जाना जाता है। इसके संबंध में 3 प्रमुख बातें:
(1) यह उन लक्ष्यों और उद्देशों को निर्देशित करती है जो एक समाज के रूप में हमें स्वीकार करने चाहिए।
(2) ये उन अधिकारों का मार्ग दर्शन कराती है जो नागरिको को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलना चाहिए।
(3) इनमें आदर्श समाज की वे नीतियाँ है जो सरकार को स्वीकार करनी चाहिए।

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