औद्योगीकरण का युग (Audyogikaran ka yug) : इस अध्याय में आप कक्षा 10 के इतिहास के अध्याय 5 के महत्वपूर्ण प्रश्न तथा उत्तर पढ़ेंगे। ये सभी प्रश्न उत्तर झारखंड बोर्ड के कक्षा दसवीं की वार्षिक परीक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। इन सब को तैयार करते समय बहुत सावधानी बरती गई है फिर भी पुस्तक का सहारा अवश्य लें क्योंकि यहां पर उपलब्ध जानकारी से किसी भी प्रकार की हानी के लिए इस वेबसाइट के कर्ता-धर्ता जिम्मेदार नहीं होंगे।
औद्योगीकरण का युग अति लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. ‘स्पिननिग जेनी’ क्या है?
Ans: जेम्स हरग्रीव्स द्वारा 1764 में बनाई गई इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी और मजदूरों की मांग घटा दी। एक ही पहिया घुमाने वाला एक मजदूर बहुत सारी तकलियों को घुमा देता था और एक साथ कई धागे बनने लगते थे।
Q.2. अंग्रेजी कंपनी द्वारा बुनकरों को ऋण देने की प्रथा को क्यों अपनाया गया?
Ans: बुनकरों को ऋण इसलिए दिए गए ताकि वह मंडी से रुई आसानी से खरीद सके। ऋण लेने वाले बुनकर किसी अन्य को अपना बना हुआ माल बेच नहीं सकते थे, यह अंग्रेजी कंपनी के लिए बड़ी अच्छी बातें थी।
Q.3. 19वीं सदी के उन व्यवसायियों के नाम लिखें जिनका भारतीय उद्योग और व्यापार जगत में बोलबाला था?
Ans: 19वीं सदी के उन व्यवसायियों के नाम जिनका भारतीय उद्योग और व्यापार जगत में बोलबाला था वे निम्नलिखित है:
- द्वारकानाथ
- डीनशो पेटिट और जमशेदजी टाटा जैसे पारसी,
- मारवाड़ी सैठ हुकूमचंद
Q.4. 19 वी सदी में एकाएक किस तरह से शहरी हस्त उद्योग बुरी तरह से समाप्त हो गए?
Ans: अंग्रेज लोग बहुत सी मशीनों द्वारा निर्मित माल भारत लाए थे। ब्रिटिश माल गुणवत्ता में अच्छा था साथ ही आकर्षक तथा सस्ता भी था भारतीय हस्तकला उसके आगे नहीं ठहर सकती थी इसी कारण से भारतीय हस्तकला उद्योग पतन के मार्ग पर चल पड़ा।
Q.5. फ्लाई शटल क्या है?
Ans: यह रस्सियों और पुलियों के जरिए चलने वाला एक यांत्रिक औजार है जिसका बुनाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह क्षेतीज धागे को लम्बवत धागे में पिरो देती है फ्लाई शटल के आविष्कार से बुनकरों को बड़े करघे चलाना और चौड़े अरज का कपड़ा बनाने में काफी मदद मिली।
औद्योगीकरण का युग लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. औद्योगिक क्रांति का अर्थ समझाएं।
Ans: औद्योगिक क्रांति हम उस क्रांति को कहते हैं जिसमें 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उत्पादन की तकनीक और संगठन में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए। यह परिवर्तन इतनी तेज रफ्तार से आए हैं और इतने प्रभावशाली सिद्ध हुए कि उन्हें क्रांति का नाम दे दिया गया इस क्रांति में घरेलू उद्योग धंधे के स्थान पर फैक्ट्री सीस्टम को जन्म दिया, कार्य हाथों के स्थान पर मशीनों से होने लगा और छोटे कारीगरों संस्थान पूंजीपति श्रेणी ने ले लिया।
Q.2. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्तों को नियुक्त किया था। वर्णन करे।
Ans: ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीय व्यापारियों और दलालों की भूमिका को समाप्त करने तथा बुनकरो पर अधिक नियंत्रित स्थापित करने के विचार से वेतन भोगी कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें ‘गुमाशता’ कहा जाता था इन बातों को अनेक प्रकार से काम सौंपा गए जैसे:
- बुनकरों को कर्ज देते थे ताकि वे किसी और व्यापारियों को अपना माल तैयार करके ना दे सके।
- वही बुनकरों से तैयार किए हुए माल को इकट्ठा करते थे।
- वे बने हुए सामान विशेषकर बने हुए कपड़ों की गुणवत्ता की जांच करते थे।
Q.3. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़ों कि नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया?
Ans: ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए की महत्वपूर्ण कार्य किए जो निम्न है:
- निर्यात व्यापार में बहुत सारे भारतीय व्यापारी और बैंकर की भूमिका सराहनीय थी।
- कंपनी ने बुनकरों से माल तैयार करवाने, बुनकरों को माल उपलब्ध करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त किए जिन्हे गुमाश्ता कहा जाता है।
- कंपनी बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्ज उपलब्ध कराने लागी।
- कंपनी को माल बेचने वाले बुनकर को अन्य खरीदारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी। इसके लिए उन्हे पेशगी की रकम दी जाती थी।
- महीन कपड़ों की मांग बढ़ने के साथ साथ बुनकरों को अधिक कर्ज दिया जाने लगा ज्यादा कमाई की आस में बुनकर पेशगी स्वीकार कर लेते थे।
Q.4. गांव के बुनकरों और गुमाश्तों के बीच झगड़े क्या हो रहे थे?
Ans: गाँव में बुनकर और गुमाश्तों के बीच टकराव की खबरें आने लगी। इससे पहले आपूर्ति सौदगर अक्सर बुनकर गाँव में ही रहते थे और बुनकरों से उनके नजदीक तालुकात होते थे वे बुनकरों की जरूरतों का ख्याल रखते थे और संकट के समय उनकी मदद करते थे नए गुमाश्ता बाहर के लोग थे उनका गाँव के लोगों से पुराना सामाजिक संबंध नहीं था। वे दंभपूर्वक व्यवहार करते थे। सिपाहियों व चपरासियों की लेकर आते थे और माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को सजा देते थे और सजा के तौर पर बुनकरों को अक्सर पिटा जाता था और कौड़े बरसाए जाते थे अब बुनकर न तो दाम पर मौलभव कर सकते थे और न ही किसी और को माल को बेच सकते थे। उन्हे कंपनी से जो कीमत मिलती थी वह बहुत काम थी पर वे कर्जों की वजह से कंपनी से बंधे हुए थे।
Q.5. सूरत बंदरगाह 18 वी सदी के अंत तक हाशिये पर पहुँच गए थे व्याख्या करे।
Ans: सूरत बंदरगाह 18 वी सदी के अंत तक हाशिये पर पहुँच गए थे, इसके विवरण इस प्रकार है:
- औपनिवेशिक काल में सूरत एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था जहां से पश्चिमी एशिया के साथ होने वाला व्यापार काफी समृद्ध था। तेजी से बदलती परिस्थितियों में कलकत्ता और बंबई नए औद्योगिक केंद्र के रूप में उभरेजबकि सूरत जैसा विकसित केंद्र हाशिये पर पहुँच गया।
- इससे सूरत व हुगली दोनों पुराने बंदरगाह कमजोर पड़ गए। यहाँ से होने वाले निर्यात में नाटकीय कमी आई नए बंदरगहों के जरिए होने वाला व्यापार यूरोपीय कंपनियों के नियंत्रण मे था।
- 18वीं सदी के अंत तक यूरोपीय कंपनियों की ताकत बढ़ती जा रही थी। पहले उन्होंने स्थानीय दरबारों से कई तरह की रियायते हासिल की और उसके बाद उन्होंने व्यापार पर इजारेदारी अधिकार प्राप्त कर लिए।
- बहुत सारे पुराने बंदरगाहों की जगह नए बंदरगाहों ( बंबई और कलकत्ता) का बढ़ता महत्व औपनिवेशिक सत्ता की बढ़ती ताकत का संकेत था।
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