kabir das ji ka jivan parichay: कबीर दास के जन्म को लेकर पूराविदो में मतभेद है। कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीरदास का जन्म 1998 ई में जगतगुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। विधवा ब्राह्मणी लोक लाज कि भय से नवजात शिशु को लहरतारा तालाब के पास फेंक आई। उसके बाद कबीर को वहां से एक नीरू नाम का जुलाहा अपने घर लेकर चले गये। कबीर का पालन पोषण नीरू और नीमा ने किया। कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीर जन्म से ही मुसलमान थे। कबीर युवावस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से हिंदू धर्म की बातें मामूल हुए। कबीरदास एक दिन, रात के समय पंचगंगा घाट की सीढ़ियों गिर पड़े। रामानंद जी पंचगंगा की सीढ़ियों से उतर रहे थे, गंगा स्नान करने के लिए तभी अचानक रामानंद जी का पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया और तभी अचानक रामानंद जी के मुख से राम राम शब्द निकल पड़ा।
कबीर ने उसी समय राम को अपना दीक्षा मंत्र मान लिया तथा रामानंद जी को अपना गुक स्वीकार कर लिये,तो कुछ विद्वानों का कहना है कि कबीर रामानंद को युवावस्था में ही गुरु स्वीकार कर लिए थे, परंतु रामानंद कबीर को अपना शिष्य नहीं मानते थे। जिस कारण कबीर ने एक दिन रात के पंचगंगा घाट की सभी रास्तों को बांस से बंद कर दिए बस एक ही रास्ता को खुला छोड़े थे, ताकि रामानंद जी इसी रास्ता से गंगा स्नान करने जाएं। कबीर यह जानते थे कि रामानंद रोज गंगा स्नान करते थे इसलिए कबीर ने एक मुख्य मार्ग को छोड़कर सारे रास्ते बंद कर दिये थे। रामानंद जी कबीर जी के लगन तथा चतुराई को देखकर रामानंद जी ने इन्हें अपना शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिए थे। नीरू और नीमा ने कबीर का पालन पोषण किया था, भले ही इन्होंने कबीर को जन्म नहीं दिए थे, परंतु कबीर का पालन पोषण करने के कारण कबीर का माता-पिता नीरू और नीमा को ही माना जाता है। कबीर गरीब परिवार से थे। जिस कारण कबीर अपने सारे ख्वाहिश को पूरा नहीं कर सके थे।
कबीर दास का वैवाहिक जीवन kabir das ji ka jivan parichay
कबीर जी का विवाह वनखेड़ी बैरागी की पालिता कन्या ‘लोई’ के साथ संपन्न हुआ था। कबीरदास के दो संतान हुए थे। एक पुत्र तथा एक पुत्री। कबीर जी के पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री का नाम कमाली थी। कबीर जी को कबीर पंथ में बाल ब्रह्माचारी माना जाता है, कबीर जी के इस पंथ के अनुसार कमाल कबीर जी का शिष्य था तथा कमाली और लोई इनके शिष्य थी। कबीर जी ने एक जगह लोई शब्द का प्रयोग कबल के रूप में भी किये हैं। कबीर जी के पत्नी और संतान दोनों थे।
कबीर दास जी का शैक्षिक जीवन
कबीर दास की पढ़ाई बाकी बच्चों की तरह नहीं हो पाया था। कबीर जब धीरे-धीरे बड़े होने लगे तो कबीर जी को इस बात का अब अभासा होने लगा कि वह ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं। कबीर जी अपने अवस्था के बालको से पूरी तरह भिन्न थे। कबीर जी के माता पिता इन्हें कभी मदरसा नहीं भेज पाए क्योंकि इनके माता-पिता के पास इन्हें मदरसा भेजने लायक साधन नहीं थे। कबीर के पिता को हर दिन भोजन के लिए ही चिंता रहती थी, तो वे कबीर को पढ़ाने के बारे में विचार भी कहां से आए। कबीर इन्हीं सब कारणों के कारण किताबी विद्या का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सके थे।
कबीर दास जी का व्यक्तित्व
कबीर दास जी का व्यक्तित्व बहुत ही सरल और आकर्षक था। कबीर जी के वाणी में मृदुलता देखने को मिलती है। कबीर जी ने ऐसी बहुत सी बातें कही है, जिनसे समाज सुधार में सहायता भी मिलती थी। कबीर जी की वाणी का अनुकरण नहीं हो सकता। कबीर जी के वाणियो का अनुकरण करने वाली सभी चेस्टाएं व्यर्थ सिद्ध हुई है। कबीरदास के स्वभाव अत्यंत ही आकर्षक था। कबीर जी ने ऐसी किसी बंदिश को मानने से इंकार कर दिया और साथ ही कर्मकांड को महत्व देने वाली उपासना पद्धति से अपनी असहमति जताई। कबीर जी ने योग तथा प्रेम को महत्व दिया था।
कबीरदास जी के रचनाएं: kabir das ji ka jivan parichay
कबीर दास जी हिंदी साहित्य के एक प्रमुख विद्वान, महान कवि एवं एक अच्छे समाज सुधारक भी थे। कबीर जी हिंदी साहित्य को अपनी अनूठी कृतियों तथा रचनाओं के माध्यम से एक नई दिशा दी। कबीर जी की गिनती भारत के महानतम कवियों में होती है। कबीर दास जी ने अपने रचनाओं में न केवल मानव जीवन के मूल्यों की व्याख्या ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति, भाषा, धर्म आदि का भी कबीर जी ने बेहद अच्छे तरीके से वर्णन किया है। कबीर जी के विचार लोगों के मन में न केवल जीवन के प्रति सकारात्मकता का भाव उत्पन्न करता है, बल्कि उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देते हैं। कबीर जी अपने दोहे के माध्यम से समाज में फैली तमाम तरह की कुर्तियों को भी दूर करने की कोशिश की है। कबीर जी के कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में कबीर बीजक, होली, अगम, शब्द, सुखनिधन, बसंत साखी और रक्त शामिल है। कबीर जी रचनाओं में इनकी सहजता का भाव स्पष्ट दिखाई देता है।
कबीर दास के काव्य संग्रह: kabir das ji ka jivan parichay
- कबीर की साखियां
- मोको कहां
- साधो देखो जग बौराना
- रहना नहीं देस बिराना है
- घुंघट के पट, विरह का अंग
- सहज मिले अविनाशी
- रस का अंग
- साघ-असाघ का अंक
- निरंजन धन तुम्हरा दरबार
- अंखियों तो छाई परी
- सपने में साईं मिले
- कथनी- करने का अंग
- जीवन-मृतक का अंग
- कबीर के पद
- मन मस्त हुआ तब क्यों बोते
- राम बिनु तन को ताप न जाई
- करम मती और टारे नाहीं टरी
- रहना नहीं देस बिराना है
कबीर दास जी के भाषा शैली
कबीर दास जी की भाषा शैली मैं कबीर जी ने अपनी आम बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है। कबीर जी अपने जिस बात को जिस रूप में प्रकट करना चाहते थे कबीर जी उसे उसी रूप में प्रकट करने की क्षमता रखते थे। कबीर जी की भाषा शैली बहुत ही सरल और सहज थी। जिस कारण कबीर जी के रचनाएं लोगों को बहुत ही सरलता के साथ समझ में आ जाते हैं। कबीर के रचनाएं आज भी अत्यंत लोकप्रिय है।
कबीर दास का निधन
कबीर दास जी ने काशी के समीप मगहर पे अपने प्राण त्याग दिए थे। ऐसा माना जाता है कि कबीर जी के निधन के पश्चात इसके सव को लेकर भी बहुत विवाद उत्पन्न हो गया था। हिंदू का कहना है कि कबीर जी के अंतिम संस्कार हिंदू नीति रिवाजों के अनुसार होगा तथा मुस्लिम का कहना है कि इनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति से होगा। दोनों में इसी बात को लेकर विवाद हो रहा था। इसी विवाद के चलते जब कबीर जी के सव से चादर हट गया तब लोगों ने वहां फूलों का देर पड़ा देखा और बाद में वहां से वही फूल आधा हिंदुओं ने और आधा मुसलमानों ने उठा लिया। हिंदुओं ने हिंदू रीति-रिवाजों से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया तथा मुसलमानों ने मुस्लिम रीति-रिवाजों से किया। जिस प्रकार कबीर जी के जन्म को लेकर पुराविदो मैं मतभेद है उसी प्रकार इनके निधन को भी लेकर पूराविदो में मतभेद है। कबीर जी का निधन 1918 ई को हुआ था।