भारत के विदेश संबंध | Bharat ke Videsh Sambandh | Class 12 Political Science Chapter 4 NCERT Solution in Hindi.

Bharat ke Videsh Sambandh

Bharat ke Videsh Sambandh
भारत के विदेश संबंध

अति लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1. विदेश नीति के लक्षणों का वर्णन करें?
Ans: विदेश नीति के मुख्यतः दो लक्ष्य होते होते हैं-

  • राष्ट्रीय हित: राष्ट्रीय हितों में आर्थिक क्षेत्र में राष्ट्रीय विकास राजनीतिक क्षेत्र में राष्ट्रीय स्थिरता या स्वामित्व रक्षा क्षेत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा आदि का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
  • विश्व समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण: इनमें प्रमुख रूप से विश्व शांति राज्यों का अस्तित्व राज्यों के आर्थिक विकास मानव अधिकार आदि शामिल है।

Q.2. विदेश नीति के चार अनिवार्य कारक बताइए।
Ans: किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति निश्चित करने के लिए निम्नलिखित चार कारक अनिवार्य माने जाते हैं-

राष्ट्रीय हीत, राज्य की राजनीति स्थिति, पड़ोसी देशों से संबंध, अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक वातावरण।

प्रत्येक राज्य अपने नीति अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निश्चित करता है वह उसे अन्य कारको जैसे- बदलती क्षेत्रीय राजनीति तथा विश्व में होने वाली घटनाओं के प्रभाव का भी ध्यान रखना पड़ता है। इसके अलावा विचारधाराएं, लक्ष्य आदि भी विदेश नीति निश्चित करने में सहायक होते हैं।

Q.3.प्रथम एफ्रो एशियाई एकता सम्मेलन कहां तथा कब होगा इसकी कुछ विशेषताएं बताएं।
Ans: प्रथम एफ्रो एशियाई एकता सम्मेलन इंडोनेशिया के एक बड़े नगर बोर्डिंग में 1955 में हुआ था।
विशेषताएं- आमतौर पर इसे बांडुंग सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इस सम्मेलन में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नीव पड़ी। सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों में इंडोनेशिया से नस्लवाद खासकर दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का विरोध किया।

Q.4. भारत की नई नियोजन विकास की रणनीति भारत पर विदेशी क्षेत्र से जुड़े क्या बुरे प्रभाव पड़े थे?
Ans: भारत की योजना विकास रणनीति में आयात कम करें तथा संसाधन आधार तैयार करने पर जोर दिया गया जिसके फलस्वरूप निर्यात के मामले में प्रगति बड़ी ही सीमित रही। बाहरी दुनिया से भारत का आर्थिक लेन-देन बड़ा सीमित रहा।

Q.5. द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत कई विश्व में शक्तिशाली राष्ट्रों का इच्छाअनुसार अपने विदेश नीति क्यों अपनाई थी?
Ans: दूसरे विश्व युद्ध के तुरंत बाद ( 1945 के बाद) के दौर में अनेक विकासशील देशों ने ताकतवर देशों की मर्जी को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति इसलिए अपनाई क्योंकी इन देशों से इन्हें अनुदान अथवा ऋण मिल रहा था।

Q.6. भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व समझाइए।
Ans: भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व निम्नलिखित है:
पंचशील, गुटनिरपेक्षता, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा व शांति को बढ़ाना, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को मजबूत करना, अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के प्रस्तुतीकरण में सहायता करना, रंगभेद की नीति का विरोध करना, निशस्त्रीकरण में सहायता करना।

Q.7. भारत के 8 सदस्यों के नाम लिखें।
Ans: सार्क एक क्षेत्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया के देशों के मध्य विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाना है। प्रारंभ में इस में 7 सदस्य थे अब एक सदस्य बढ़ने से इसकी संख्या 8 हो गई है: भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव तथा म्यांमार।

Q.8. संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा की विदेश नीति बताइए।
Ans: संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे की सरकार लगभग उन्हीं सिद्धांतों के आधार पर विदेश नीति का संचालन कर रही है जो प्रारंभ से भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व रहे हैं। यूपीए सरकार उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीति को बढ़ाया है और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अमेरिका के साथ अधिक सहयोग के लिए समझौता भी किया है चीन तथा सोवियत संघ के साथ भारत के अच्छे संबंध है।

Q.9. भारत तथा पाकिस्तान के बीच संबंधों में तनाव के मुख्य कारण क्या है?
Ans: भारत तथा पाकिस्तान का उदय दुर्भाग्यपूर्ण व हिंसात्मक परिस्थितियों में हुआ।आज भी भारत तथा पाकिस्तान के बीच मुख्य विषय निम्नलिखित है जो दोनों देशों के बीच बाधा बने हैं:
कश्मीर की समस्या, धर्म के आधार पर उन्माद व सांप्रदायिकता, सीमा से संबंधित झगड़े, पाकिस्तान के द्वारा भारत में उग्रवादियों को मदद देना, पाकिस्तान के द्वारा हथियारों को इकट्ठा करना आदि।

Q.10. गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत से क्या अभिप्राय है?
Ans: गुटनिरपेक्षता का शाब्दिक अर्थ है किसी भी गुट के साथ ना जुड़ना। ऐतिहासिक संदर्भ में गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत नए स्वतंत्र देशों के किसी भी सैनिक गुट से अलग रहने का था जैसा कि हम जानते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका व सोवियत संघ के नेतृत्व में सैनिक गुट बने थे जो तीसरे विश्व के देशों पर अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे वास्तव में गुटनिरपेक्षता का अर्थ इससे अधिक कुछ और ही है इसका अर्थ है किसी भी विषय पर योग्यता के आधार पर निर्णय लेना।

लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1. प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कहां तथा कब हुआ? बाद में ऐसे सम्मेलनों की सूची तैयार कीजिए।
Ans: प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन 1961 ईस्वी में बेलग्रेड में हुआ था दूसरा सम्मेलन काहिरा में 1964 ईस्वी में हुआ तीसरा सम्मेलन लुसाका में 1970 में हुआ था। पांचवा सम्मेलन 1976 ईस्वी में कोलंबो में हुआ था वह सम्मेलन हवाना में 1979 ईस्वी में हुआ था सातवा सम्मेलन भारत की राजधानी नई दिल्ली में 1986 में हुआ था तो जनोवा सम्मेलन 1989 ईस्वी में एक बार और बरेली में हुआ था। 10 वा सम्मेलन 1993 में जकार्ता में तथा 11 वा सम्मेलन कार्टागेना में 1995 में हुआ था 12 वा सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका तथा तेरवा 2003 को मलेशिया में हुआ था।

Q.2. किसी देश की विदेश नीति के आंतरिक व बाह्य मुख्य तत्व समझाएं।
Ans: किसी देश की विदेश नीति उसकी आंतरिक स्थिति तथा अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम होते हैं प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-

  • ऐतिहासिक व सांस्कृतिक परिवेश
  • भौगोलिक तथा सामरिक स्थिति
  • आर्थिक तथा वाणिज्य की स्थिति
  • राष्ट्रीय हित
  • वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास
  • सैनिक क्षमता
  • विचारधारा
  • राष्ट्र की का नेतृत्व
  • तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय स्थिति
  • शासक दल की प्राथमिकताएं
  • लोगों का राष्ट्रीय चरित्र
  • राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप।

Q.3. वीके कृष्ण मैनन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans: वीके कृष्ण मैनन का जन्म 1987 में हुआ। वह 1934 से 1947 के बीच ब्रिटेन की लेबर पार्टी में बहुत सक्रिय रहे। वे इंग्लैंड में भारत के उच्चायुक्त और कालांतर से संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के मुखिया रहे। वह संसद के दोनों सदनों अर्थात राज्यसभा और लोकसभा में सांसद रहे। 1956 में वे संघीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री थे। 1957 से वे भारत के रक्षा मंत्री रहे। उन्हीं के काल में भारत चीन युद्ध 1962 में हुआ जिसमें भारत पराजित हुआ और कृष्णा मेनन ने रक्षा मंत्री पद से त्याग दे दिया।

Q.4. 1962 के बाद 1979 तक भारत चीन संबंधों का उल्लेख करें।
Ans: भारत और चीन के बीच संबंधों को सामान्य होने की करीब 10 साल लग गए। 1976 में दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनायिक संबंध बहाल हो सके। शीर्ष नेता के तौर पर पहली बार अटल बिहारी वाजपेई ( तब पे विदेश मंत्री थे) 1979 में चीन की के दौरे पर गए बाद में नेहरू के बाद राजीव गांधी बतौर प्रधानमंत्री चीन के दौरे पर गए इसके बाद से चीन के साथ भारत के संबंधों में ज्यादा जोर व्यापारिक मसलों पर रहा है। समकालीन विश्व राजनीति की किताब में आप इन बातों को पढ़ चुके हैं।

Q.5. भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व क्या है?
Ans: भारतीय संविधान के निर्माता इस प्रकार के संविधान में सामाजिक तथा आर्थिक विकास के स्वरूप के संबंधों में चिंतित थे व आवश्यक निर्देश संविधान में निश्चित किए इस प्रकार से उन्होंने भारत की विदेश नीति व अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत की भूमिका के बारे में भी दिशा निर्देश दिए जिन का विवरण भारतीय संविधान के चौथे भाग में राज्य के नीति के निर्देशक तत्वों के माध्यम से अनुच्छेद 51 में किया गया है जिसके मुख्य बातें निम्न है-
अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देना, विभिन्न देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देना, अंतरराष्ट्रीय कानून तथा अंतरराष्ट्रीय संधियों के प्रति सम्मान एवं वचनबद्धता को कायम रखना, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को मजबूत करने में सहायता देना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मतभेदों तथा झगड़ों को बातचीत के माध्यम से हल करना।

Q.6. भारत तथा पाकिस्तान के बीच युद्ध वह तनाव के प्रमुख विषय क्या है?
Ans: अगस्त 1947 में भारत का विभाजन हुआ जिसके कारण भारत तथा पाकिस्तान के रूप में दो स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ यह विभाजन व्यापक हिंसात्मक माहौल में हुआ जिसमें अनेक प्रश्न पीछे छोड़ दिए जो आज भी तनाव और पाकिस्तान के बीच युद्ध में तनाव का कारण बने हुए हैं:
सीमा विवाद, कश्मीर की समस्या, उग्रवादियों का भारत में प्रवेश व हिंसात्मक कार्यवाही करना, भारत में पाकिस्तान उग्रवादियों का हस्तक्षेप, परमाणु परीक्षण, पाकिस्तान के द्वारा जरूरत से ज्यादा सैनिक सामग्री इकट्ठा करना, भारत का विश्व शक्ति के रूप में उभरना, कश्मीर के प्रश्न का अंतरराष्ट्रीयकरण पर नियंत्रण, सीमा क्षेत्र में हस्तक्षेप करना, कारगिल घटना.

Q.7. कारगिल की लड़ाई पर टिप्पणी लिखिए.
Ans: कारगिल की लड़ाई 1999 के शुरुआती महीने में भारतीय क्षेत्र की नियंत्रक सीमा रेखा के कई ठिकानों जैसे द्रास, मशकोह का काकरसर और बतालीक पर अपने को मुजाहिद्दीन बताने बार कब्जा कर लिया था पाकिस्तानी सेना की इसमें मिलीभगत भांप कर भारतीय सेना इस कब्जे के खिलाफ हरकत में आई इसमें दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ गया इसे कारगिल की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। 1909 के मई-जून में यह लड़ाई जारी रही 26 जुलाई 1999 तक भारत अपने अधिकारों पर अधिकार कर चुका था। कारगिल की लड़ाई में पूरे देशों का ध्यान खींचा था क्योंकि इसके ठीक 1 साल पहले दोनों देश परमाणु हथियार बनाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुके थे जो वह लड़ाई सिर्फ कारगिल के क्षेत्र तक ही सीमित रही पाकिस्तान में इस लड़ाई को लेकर बहुत विवाद में कहा गया कि सेना के प्रमुख ने प्रधानमंत्री को इस मामले में अंधेरे में रखा था इस लड़ाई के तुरंत बाद पाकिस्तान के हुकूमत पर जनरल परवेज मुशर्रफ की अगुवाई में पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण कर लिया।

Q.8. भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति क्यों बनाई हैं?
Ans: 15 अगस्त 1947 ईस्वी को स्वतंत्रता के पश्चात भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया भारत द्वारा इस नीति को अपनाने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  • भारत में अपने को गुट संघर्ष में सम्मिलित करने की अपेक्षा देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक प्रगति की ओर ध्यान देने में अधिक लाभ समझा क्योंकि हमारे सामने अपने प्रगति की और ध्यान देने में अधिक लाभ समझा। क्योंकि हमारे सामने अपनी प्रगति अधिक आवश्यक है।
  • सरकार द्वारा किसी भी ग्रुप के साथ मिलने से यहां की जनता में विभाजन की प्रवृत्ति उत्पन्न होने का भय था जिससे राष्ट्रीय एकता को धक्का लगा।
  • किसी भी गुट के साथ मिलने और उसका पिछलग्गू बनने से राष्ट्र की स्वतंत्रता कुछ अंश तक अवश्य प्रभावित होती है।

Q.9. भारत की विदेश नीति के संदर्भ में पंचशील का अर्थ बताइए।
Ans: पंचशील का अर्थ है पांच सिद्धांत यह सिद्धांत हमारे विदेश नीति का मूल आधार है इन 5 सिद्धांतों के लिए पंचशील शब्द का प्रयोग सबसे पहले 26 अप्रैल 1954 को किया गया था यह ऐसे सिद्धांत हैं कि यदि इन पर विश्व के सबसे पहले विश्व में शांति स्थापना हो सकती है यह पांच सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

  • एक दूसरे की अखंडता को बनाए रखना
  • एक दूसरे पर आक्रमण ना करना
  • एक दूसरे के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप ना करना
  • शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के सिद्धांत को मानना
  • आपस में समानता और मित्रता की भावना को बनाए रखना।

Q.10. विदेश नीति की परिभाषा दीजिए।
Ans: प्रत्येक राज्य आज विश्व के दूसरे राज्यों से संबंध बनाता है सभी राज्य एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं हम एक राज्य जिन सिद्धांतों के आधार पर विदेशी राज्य से संबंध स्थापित करता है उसे उसे राज्यों की विदेश नीति कहते हैं।
“रुथन स्वामी” के अनुसार विदेश नीति वर्तमान समय में ऐसे सिद्धांत और व्यवहार का समूह है जिनके द्वारा एक राज्य दूसरे राज्यों से संबंधों को नियमित करता है।
“हिल” के अनुसार विदेश नीति एक राष्ट्र की तुलना में अपने हितों को विकसित करने के लिए किए गए उपायों का मूल सारे हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1. पंडित जवाहरलाल नेहरू की भारत की विदेश नीति के निर्माता के रूप में भूमिका बताइए।
Ans: पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत की विदेश नीति का निर्माता कहना सही है क्योंकि वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री ही नहीं थे बल्कि भारत के प्रथम विदेश मंत्री कांग्रेस के प्रमुख नेता तथा चमत्कारिक व्यक्तित्व के धनी थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू पोर्ट अंतरराष्ट्रीय विषयों की अच्छी समझ थी पंडित जवाहरलाल नेहरु एफ्रो-एशियन एकता तथा इन देशों के आर्थिक विकास के बहुत बड़े समर्थक थे सोवियत संघ की नियोजित अर्थव्यवस्था से वह बहुत प्रभावित थे चीन तथा भारत के आपसी संबंधों को सुदृढ़ आधार देने के लिए उन्होंने 1954 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ पंचशील का समझौता किया। पंचशील का समझौता ना केवल भारत व चीन के संबंधों का आधार था बल्कि विश्व के देशों के आपसी संबंधों को मजबूत आधार देने के लिए एक मजबूत जीतू था दुनिया के गरीब देशों के आर्थिक विकास तथा उनके स्वतंत्रता को निश्चित करने के लिए पंडित नेहरू ने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत के प्रतिपादक इसके विकास में योगदान दीया पंडित नेहरू का ना केवल भारत की विदेश नीति के निर्माता में योगदान था बल्कि अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अंतरराष्ट्रीयवाद के विकास में भी पंडित नेहरू का योगदान रहा।

Q.2. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का विकास तथा महत्व समझाइए।
Ans: गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उदय तथा विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उत्पन्न शीत युद्ध के संदर्भ में हुआ।द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद तीसरा युद्ध तो नहीं हुआ परंतु विश्व के अनेक क्षेत्रों में युद्ध जैसी स्थितियां पैदा होने से तनाव जारी रहा। इस तनावपूर्ण स्थिति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शीत युद्ध का नाम दिया गया इसका मुख्य कारण उस समय की दो महान शक्तियों सोवियत संघ तथा अमेरिका के बीच लगातार तनाव रहा। कोरिया संकट तथा हंगरी संकट अरब इजरायल युद्ध पाकिस्तान तथा भारत के बीच कश्मीर विवाद ऐसे विषय रहे जिन पर अमेरिका तथा सोवियत संघ आमने सामने दिखाई दीजिए जिससे युद्ध तो नहीं हुआ परंतु युद्ध जैसी परिस्थितियां व्यापक रही दोनों ही मां सकती हो वहां शक्तियां नए स्वतंत्र देशों पर अपना अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे जिससे इनकी स्वतंत्रता को खतरा पैदा हो रहा था इस प्रभाव को नियमित करने तथा एशिया व अफ्रीका के देशों की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत पर आधारित गुटनिरपेक्ष आंदोलन का विकास हुआ इसकी आवश्यकता तथा महत्व को समझते व स्वीकार करते हुए इसका विकास हुआ प्रारंभ में इस की सदस्य संख्या 25 थी परंतु 2004 तक इसकी संख्या 103 हो गई जो इसकी आवश्यकता तथा महत्व को दर्शाता है इसका प्रथम शिखर सम्मेलन 1961 में हुआ।

Q.3. आज के विश्व में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता समझाइए?
Ans: गुटनिरपेक्ष आंदोलन अपने अस्तित्व से आज तक विश्व राजनीति में विशेषकर तीसरे विश्व के देशों तथा राजनीतिक व आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है आज विश्व के लगभग 200 देशों में 103 सदस्य देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य हैं जिस समय गुटनिरपेक्ष आंदोलन 1961 में अस्तित्व में आया उस समय विश्व दो गुटों में बँटा हुआ था। एक सोवियत संघ और दूसरा अमेरिका का गुट। दोनों गुटों के बीच शीत युद्ध का दौर था अब क्योंकि विश्व में सोवियत संघ के टूटने से इस गुट का प्रभाव समाप्त हो गया है व विश्व की रचना का स्वरूप ही बदल गया है अतः इस प्रकार के प्रश्न उठने लगे हैं कि क्या अब गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अस्तित्व कि कोई प्रासंगिकता है? इस संबंध में यह कहा जा सकता है कि भले ही विश्व रचना का स्वरूप बदल गया है परंतु गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता आज भी है क्योंकि इसका उद्देश्य तृतीय विश्व के देशों के लिए स्वतंत्र है।

Q.4. द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत दुनिया के विभिन्न देश दो गुटों में बंट गए थे? इन खेमों का स्पष्टीकरण कीजिए।
Ans: दूसरे विश्वयुद्ध दो बड़े सैन्य गुटों में लड़ा गया था एक गुट के देश पराजित हुए (जर्मनी, जापान तथा इटली इसमें प्रमुख थे) तो दूसरा गुट के देश (सोवियत संघ ,संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन आदि) जीते थे इनमें से विजयी गुट के देशों में विचारधाराओं पूंजीवाद तथा साम्यवाद के 2 सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ थे। उन्होंने नए स्वतंत्र देशों तथा विकासशील देशों में से ज्यादा से ज्यादा देशों को अपनी और सैन्य गुटों में मिलाने के लिए साम दाम दंड और भेद की नीतियां अपनाई ताकि वह अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच पर अपने अपने वर्चस्व का डंका बजा सकें।
विकासशील देश अपनी तुरंत विकास के लिए शक्तिशाली तथा विकसित देशों से अनुदान शर्तों पर ऋण तथा नवीनतम तकनीक प्राप्त करना चाहते थे इसलिए वे अपनी विदेश नीति उनकी इच्छा अनुसार पर करते हुए उनकी इच्छा अनुसार उनके सैन्य गठबंधन में शामिल हो गए इस कारण से दुनिया के विभिन्न निर्देश दो गुटों में बैठ गए इससे अन्य ग्रुप संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके समर्थक देशों कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि का रहा हो तो दूसरा गुट सोवियत संघ के प्रभाव में रहा इसमें शामिल देश थे- हंगरी, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, योगोस्लोवाकिया, रोमानिया आदि।

Q.5. चीन में तिब्बत में 1958 से अब तक क्या दृष्टिकोण अपना रखा है? क्या इस संबंध में तब से भारत का कोई गिफ्ट कोन रहा है?
Ans: 1955-56 के बाद चीन ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया। 1958 में चीनी आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को चीन की सेनाओं ने दबा दिया स्थिति बिगड़ती देख कर तिब्बत के पारंपरिक नेता दलाई लामा ने सीमा पार कर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत में शरण मांगी। पिछले 50 सालों में बड़ी संख्या में तिब्बती जनता ने भारत में शरण ली है।
चीन ने स्वायत्त तिब्बती क्षेत्र बनाया है और इस इलाके को वह चीन का अभिन्न अंग बन मानता है।
तिब्बती जानता चीन के इस दावे को नहीं मानती है तिब्बत चीन का अभिन्न अंग है ज्यादा से ज्यादा संख्या में चीनी बाशिंदों को तिब्बत लाकर वहां बसाने की चीन की नीति का तिब्बती जनता ने विरोध किया। तिब्बती चीन के इस दावे को नकारते हैं कि तिब्बत को स्वायत्तता दी गई है। वे मानते हैं कि तिब्बत की पारंपरिक संस्कृति और धर्म को नष्ट करके चीन वहां साम्यवाद फैलाना चाहता है।

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