Economics class 12 Model paper 2022 Set 2

Economics class 12: Jharkhand Academic Council Rachi Model Question paper class 12, 2022. These model papers have been made for practice purposes. The language of this paper is Hindi. Questions are taken from NCERT Book.

Economics for class 12 Model paper

Subject: Economics

Time: 3 Hours

Full Marks: 50

Pass marks: 33

Micro-economics: व्यष्टि अर्थशास्त्र : 50 Marks

Group-A: Multitple Choice Type Questions: 1×5 = 5

Q.1. दुर्लभता की समस्या उत्पन्न होती है, क्योकिं हमारे साधन है:
a. असीमित
b. सिमित ✔️
c. उपयुक्त
d. अत्यधिक

Q.2. अवसर लागत का व्यकल्पिक नाम क्या है?
a. आर्थिक लागत ✔️
b. साम्य कीमत
c. सीमांत लागत
d. औसत लागत

Q.3. पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर कार की माँग में होगी:
a. वृद्धि होगी
b. कमी होगी ✔️
c. स्थिर रहेगी
d. इनमें से कोई नहीं

Q.4. यदि वस्तु की माँग में परिवर्तन कीमत के अनुपात में हो तो उसे वस्तु की माँग होगी:
a. इकाई के बराबर लोचदार ✔️
b. इकाई से कम लोचदार
c. पुर्णतःलोचदार
d. पुर्णतःबेलोचदार

Q.5. औसत स्थिर लागत वक्र होता है-
a. U आकार का
b. ऊपर की ओर ढाल वाला ✔️
c. निचे की ओर ढाल वाला
d. x-अक्ष के समांतर क्षैतिज

Group-B: Short Answer Type 1 Questions: 3×5 = 15

Q.6. कुल उपयोगिता और सीमांत उपयोगिता के संबंध को लिखें।
Ans: सीमांत उपयोगिता और कुल उपयोगिता में निम्नलिखित संबंध होते हैं:-
1 जब सीमांत उपयोगिता धनात्मक होते हैं तब कुल उपयोगिता।
2. जब सीमांत उपयोगिता शून्य होते हैं तब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है।
3. जब सीमांत उपयोगिता ऋण आत्मक होती है तब कुल उपयोगिता घटती है।

Q.7. उत्पादन फलन क्या है?
Ans: उत्पादन फलन से अभिप्राय एक वस्तु के भौतिक कारकों तथा भौतिक उत्पादन के बीच पाए जाने वाले फलनात्मक संबंध से हैं। अन्य शब्दों में, उत्पादन फलन किसी फर्म के उत्पादन तथा उत्पादन की भौतिक कारकों के बीच तकनीकी संबंधों को व्यक्त करता है।

Q.8. मुद्रा संकुचन क्या है?
Ans: मुद्रा संकुचन का अर्थ है कीमतों के साथ-साथ मांग में भी गिरावट के कारण होता है जो उद्योगों की लाभ प्रदत्त को खत्म कर देता है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मुद्रास्फीति ऋणात्मक हो सकती हैं। लेकिन यह मुद्रा संकुचन नहीं है जिससे मुद्रा का मूल्य बढ़ता है और वस्तुओं का मूल्य घटता है।

Q.9. मांग की मूल्य लोच की परिभाषा दें।
Ans: कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप मांगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन तथा कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात को मांग की कीमत लोच कहा जाता है। इसे माँग की कीमत लोच भी कहते है। अर्थात, माँग की कीमत लोच यह बताता है कीमत में कितना प्रतिशत परिवर्तन से माँग में कितना प्रतिशक की कमी या वृद्धि हुयी है।

Q.10. व्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर बताएं।
Ans: व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर:
1. व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत व्यक्तिगत इकाईयों के आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र में समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
2. व्यष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र संकीर्ण है लेकिन समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र विस्तृत है।

Group-C: Short Answer Type 2 Questions: 4×3 = 12

Q.11. मांग के तत्वों को लिखें।
Ans: मांग के पांच तत्व निम्नलिखित हैं:-
1. वस्तु को खरीदने की इच्छा: किसी भी बस्तु की माँग के लिए उपभोक्ता को उस वस्तु प्रति खरीदने की इच्छा होना अवश्यक है।
2. वस्तु को खरीदने के लिए संसाधन: माँग के लिए आवश्यक है की उपभोक्ता के पास पर्याप्त साधन होना चाहिए।
3. मुद्रा को व्यय करने की तत्परता: उपभोक्ता मुद्रा को व्यय करने के लिए तत्पर होना चाहिए।
4. निश्चित कीमत: वस्तु की माँग के लिए वस्तु की एक निश्चित कीमत होना अवश्यक है जिसकी भुक्तान कर उपभोक्ता माँग कर सकता है।
5. निश्चित समय: उपभोक्ता वस्तु की माँग के लिए एक निश्चित समय तय करता है।

Q.12. “अर्थशास्त्र का संबंध दुर्लभता की अवस्था में चयन करने से हैं, “समझाएं।
Ans:
अर्थशास्त्र का आधार दुर्लभता के कारण चयन करना आवश्यक है। लगभग प्रत्येक देश में प्राकृतिक तथा मानव निर्मित दोनों संसाधन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इन संसाधनों पर निर्भर लोगों की संख्या भी कम नहीं है। इसलिए यह स्वभाविक है कि संसाधन प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से उपलब्ध नहीं है तथा उन्हें मौजूद सीमित संसाधनों के भरपूर उपयोग के लिए अपनी आवश्यकताओं के अनुसार चुनाव करना पड़ता है। चुनाव व्यक्तिगत राष्ट्रीय स्तर पर हो सकता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र दुर्लभता की अवस्था में चयन करने से संबंधित है।

Q.13. सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की मान्यताएं क्या है?
Ans: इस नियम की निम्नलिखित मान्यताएं होती है:-
1. वस्तु का उपभोग लगातार होना चाहिए।
2. उपभोग की जाने वाली प्रत्येक इकाई समरूप होनी चाहिए।
3. उपभोग की जाने वाली इकाई का आकार सामान्य होना चाहिए।
4. उपभोक्ता की आय पर रुचि स्थित होनी चाहिए।
5. उपभोक्ता की मानसिक स्थिति सामान्य होनी चाहिए।

Group-D: Long Answer Type Questions: 6×3 = 18

Q.14. पूर्ति के नियम की व्याख्या करें
Ans: पूर्ति का नियम यह बताता है कि अन्य बातें समान रहने पर कीमत जितनी अधिक होती है उतनी ही पूर्ति अधिक होती है। इसके विपरीत जितनी कम कीमत होती है पूर्ति की मात्रा भी कम होती है। इस प्रकार पूर्ति का नियम वस्तु की कीमत तथा पूर्ति की मात्रा के बीच प्रत्यक्ष संबंध को बताता है। वस्तु की कीमत अधिक होने पर उत्पादक अधिक लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से बाजार में वस्तु की पूर्ति बढ़ा देता है। इस कारण एक अवस्था ऐसे आती है की बाजार में वस्तु की पूर्ति की अपेक्षा मांग कम हो जाती है। मांग में कमी होने से कीमत गिरने लगती है जिससे सामअवस्था स्थापित होने लगती है। इसी तरह के विपरीत क्रिया कीमत के कम रहने पर होती है। कीमत कम होने के कारण उत्पादक पूर्ति कम करते हैं। पूर्ति कम करके वे बाजार में कृत्रिम अनूउपलब्धता लाते हैं जिससे पूर्ति की अपेक्षा मांग में वृद्धि हो जाती है। मांग में वृद्धि होने से कीमत बढ़ने लगती है जिससे सामअवस्था स्थापित होती है।

Q.15. उत्पादन संभावना वक्र से आप क्या समझते हैं?
Ans: उत्पादन संभावना वक्र 2 वस्तुओं के सेट के विभिन्न संयोग को प्रकट करता है जिन का उत्पादन दिए हुए संसाधनों एवं दी गई तकनीक के द्वारा हो सकता है।
उत्पादन संभावना वक्र बाएं से दाएं नीचे की ओर गिरता है: इसका मुख्य कारण यह है कि उपलब्ध सभी साधनों के कुशलतम प्रयोग की स्थिति में दोनों वस्तुओं का उत्पादन एक साथ नहीं बढ़ाया जा सकता है। X एवं Y वस्तु में x का उत्पादन तभी बढ़ाया जा सकता है जब दूसरी वस्तुओं के उत्पादन में कमी की जाए।
सभी उत्पादन संभावना वक्र मूल बिंदु की ओर नतोदर होता है: इसका अभिप्राय यह है कि जब हम किसी एक वस्तु X का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं तो हमें दूसरी वस्तु Y के उत्पादन का त्याग करना पड़ेगा और X वस्तु की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई Y की उत्तरोत्तर अधिक मात्रा का हमें त्याग करना पड़ेगा जिसके कारण उत्पादन संभावना वक्र मूल बिंदु की ओर नतोदर होता है।

Q.16. पैमाने के प्रतिफल का क्या अर्थ है?
Ans: दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन कर सकता है। दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि और मात्रा के संबंध को पैमाने के प्रतिफल कहते हैं। पैमाने के प्रतिफल के नियम की 3 अवस्थाएं होती है जो निम्नलिखित है:
1. पैमाने का वर्तमान प्रतिफल: दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में अधिक अनुपातिक वृद्धि होती हैं तो इसे पैमाने का वर्धमान प्रतिफल कहते हैं।
2. पैमाने का समता प्रतिफल: दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में समान अनुपात में वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का समता प्रतिफल कहते हैं।
3. पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल: दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में कम अनुपात में वृद्धि होती हैं तो इसे पैमाने का हरआसमान प्रतिफल कहते हैं।

Macro economics: समष्टि अर्थशास्त्र: 50 Marks

Group-A: Multitple Choice Type Questions: 1×5 = 5

Q.17. विश्व की महान मंदी किस वर्ष हुयी थी?
a. 1914
b. 1929 ✔️
c. 1939
d. 1945

Q.18. निम्नलिखित में से किसे राष्ट्रीय आय की गणना में सम्मिलित नहीं किया जाता है?
a. मजदूरी
b. लाभ
c. हस्तांतरण भुक्तान ✔️
d. लगान

Q.19. सबसे तरल संपत्ति किसे मन जाता है?
a. जमीन
b. सोना
c. मुद्रा ✔️
d. बैंक में सावधि जमा

Q.20. व्यावसायिक बैंक का कार्य नहीं है-
a. जमा स्वीकार करना
b. साख का निर्माण
c. एजेंट का कार्य 
d. मुद्रा निर्गमन ✔️

Q.21. सरकार के पूँजीगत आय के स्रोत है-
a. ऋण की वसूली
b. विनेवेश से प्राप्त आय 
c. कर ✔️
d. ऋण 

Group-B: Short Answer Type 1 Questions: 3×5 = 15

Q.22. सरकारी बजट के क्या उद्देश्य है?
Ans: सरकार का बजट सरकार की आय तथा व्यय का वित्तीय नियोजन है। एक वित्तीय वर्ष की अवधि में समस्त अनुमानित सरकारी आय तथा व्यय के लेखों को सरकारी बजट कहा जाता है। केंद्र सरकार की इस वार्षिक विवरण को केंद्रीय बजट या संघीय बजट भी कहा जाता है। सरकारी बजट का मुख्य उद्देश्य है देश के आर्थिक विकास तथा जनकल्याण जैसे लक्ष्य को प्राप्त करना।

Q.23. पूर्ति की लोच से आप क्या समझते हैं?
Ans: पूर्ति की लोच का अर्थ है की कीमत में परिवर्तन होने से पूर्ति में कितने परिवर्तन होता है। संक्षेप में, पूर्ति की कीमत लोच में परिवर्तन के कारण पूर्ति में परिवर्तन की डिग्री को व्यक्त करती है। यह कीमत में परिवर्तन कम और पूर्ति में परिवर्तन अधिक है तो पूर्ति लोचदार कहलाती है। इसके विपरीत यदि कीमत में परिवर्तन अधिक और पूर्ति में परिवर्तन कम है तो पूर्ति कम लोचदार कहलाती हैं।

Q.24. लोचसील विनिमय दर को समझाएं।
Ans: यह वह विनिमय दर होती है जिसका निर्धारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति किस शक्तियों के द्वारा होता है। जिस विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति समान हो जाती है वही दर साम्य विनिमय दर कहलाती है। आजकल समूचे विश्व में विभिन्न देशों के मध्य आर्थिक लेनदेन का निपटारा लोचशील विनिमय दर के आधार पर होता है।

Q.25. प्रगतिशील कर क्या है?
Ans: कर की वह प्रणाली जिसमें कर की दर आय एवं संपत्ति की मात्रा बढ़ने पर अधिक होती है एवं आय व संपत्ति की मात्रा घटने पर कर की दर कम होती है, प्रगतिशील कर कहलाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में ज्यादातर कर प्रगतिशील कर लगाए जाते हैं।

Q.26. सकल घरेलू उत्पाद एवं शुद्ध राष्ट्रीय आय में अंतर बताएं.
Ans: किसी देश की सीमा में उत्पादन सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के सकल मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। इसमें घीसावट भी शामिल है। राष्ट्रीय आय लेखांकन में शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में से अप्रत्यक्ष करों को घटाने पर शुद्ध राष्ट्रीय आय प्राप्त होता है। शुद्ध राष्ट्रीय आय घरों की व्यापार की तथा सरकार की आय शामिल है। अतः सकल घरेलू उत्पाद तथा शुद्ध राष्ट्रीय आय के तुलनात्मक अध्ययन करने से इन दोनों में अंतर स्पष्ट होता है।

Group-C: Short Answer Type 2 Questions: 4×3 = 12

Q.27. परम लाभ क्या है?
Ans: परम लाभ वह लाभ है जो किसी वस्तु को बेचने से प्राप्त होती है। परम लाभ इतना आवश्यक होना चाहिए जिससे विक्रेता को संतुष्टि हो और उपभोक्ता भी खुश रहे। उदाहरण के लिए यदि 1 कलम का दाम ₹5 मूल्य है तो अगर इसे ₹6 में बेचा जाए तो परम लाभ विक्रय मूल्य घटाव लागत मूल्य होगा। अर्थात (6-5=1) रुपए परम लाभ होगा। परम लाभ को अधिकतम लाभ भी कहते हैं।

Q.28. एच्छिक बेरोजगारी तथा अनैच्छिक बेरोजगारी की व्याख्या करें।
Ans: अनैच्छिक बेरोजगारी से तात्पर्य उन व्यक्तियों से है जो काम करने के इच्छुक नहीं होते हैं लेकिन उनके लिए पर्याप्त एवं सही कार्य उपलब्ध रहता है। अर्थात यह अपनी इच्छा से बेरोजगार रहते हैं। इस देश के मजदूर शक्ति में शामिल नहीं किया जाता है। एच्छिक बेरोजगारी तब होती है जब कार्य करने की इच्छा रखने वाले को प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य नहीं मिलता है अर्थात यह अपनी इच्छा के विरुद्ध बेरोजगार है। इसे देश की मजदूर शक्ति में शामिल किया जाता है।

Q.29. बाजार को परिभाषित करें
Ans: बाजार की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है- व्यवस्थाओं का कोई भी समुच्चय जिससे लोगों के आर्थिक क्रियाओं को मुक्त रूप से संचालित करने की आजादी होती है, उसे बाजार कहते हैं. एक बाजार में एक व्यक्ति अपने अधिशेष उत्पादन को उन लोगों को बेच सकता है जिन्हें उसकी वस्तुओं की आवश्यकता होती है. विक्रय से प्राप्त मुद्रा का उपयोग वह व्यक्ति उन वस्तुओं एवं सेवा का क्रय करने के लिए कर सकते हैं जिसकी उसे आवश्यकता होती है. वास्तव में बाजार एक ऐसा स्थान है जहां पर वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद – बिक्री की जाती है.

Group-D: Long Answer Type Questions: 6×3 = 18

Q.30. भुगतान संतुलन तथा व्यापार संतुलन में अंतर बताएं।
Ans: भुगतान संतुलन या भुगतान शेष तथा व्यापार संतुलन या व्यापार शेष का तुलनात्मक अध्ययन करने से इन दोनों में अंतर स्पष्ट किया जा सकता है। प्रत्येक देश कुछ वस्तुओं का आयात करता है तथा कुछ अन्य वस्तुओं का निर्यात करता है। आयात तथा निर्यात के बीच मूल्य में अंतर को व्यापार संतुलन कहते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामान्तः सभी देश एक दूसरे के साथ माल का आयात निर्यात करते हैं और राशि का लेन-देन भी करते हैं। इस प्रकार एक निश्चित अवधि के पश्चात इन सभी का लेन दन का यदि हिसाब निकाला जाए तो किसी एक देश को दूसरे से भुगतान लेना शेष होता है और दूसरे देश को कितने तीसरे देश का भुगतान चुकाना शेष रहता है। विभिन्न देशों के बीच इस प्रकार के पारस्परिक लेनदेन के शेष को भुगतान शेष कहते हैं।

Q.31. मुद्रा के प्राथमिक कार्य समझाएं।
Ans: मुद्रा के प्राथमिक कार्य निम्नलिखित हैं:
1. विनिमय का माध्यम: मुद्रा ने समाज में विनिमय माध्यम का आवश्यक कार्य पूरा किया है। विनिमय माध्यम के रूप में मुद्रा सब वस्तुओं की लेन देन को संभव बनाती हैं. उत्पादक अपना माल थोक विक्रेताओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं. थोक विक्रेता वही माल उपभोक्ता को मुद्रा के बदले में बेचते हैं. इसी प्रकार समाज का प्रत्येक वर्ग अपनी सेवाओं के बदले में मुद्रा प्राप्त करता है और उससे अपनी आवश्यकताओं की वस्तु खरीद लेता है।
2. मूल्य का सामान्य मापक: मुद्रा द्वारा अर्थव्यवस्था में उत्पन्न समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य मापा जाता है। वस्तु विनिमय में यह निर्णय करना कठिन था की वस्तु की मात्रा विशेष के बदले दूसरी वस्तु की कितनी मात्रा प्राप्त होनी चाहिए। मुद्रा ने सामान्य मूल्यमापन का कार्य संपन्न करके समाज को इस कठिनाई से मुक्त कर दिया है।
3. भविष्य में भुगतानओं का प्रमाण: आधुनिक आर्थिक ढांचा साख पर आधारित है और साख मुद्रा के रूप में ही प्रदान की जाती है। वास्तव में साख का महत्व अब इतना अधिक बढ़ गया है कि इसको वर्तमान आर्थिक उन्नति की आधारशिला कहना गलत नहीं होगा।
4. मूल्य संचय का साधन: अदल बदल प्रणाली में धन का संचय करना लगभग असंभव था। मुद्रा के अविष्कार ने इस कठिनाई को दूर कर दिया है। मुद्रा के द्वारा व्यक्ति आवश्यक क्रय शक्ति को जमा करके रख सकता है और जब चाहे वह इसका प्रयोग कर सकता है।

Q.32. राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति से आप क्या समझते हैं?
Ans: राजकोषीय नीति: सरकार करारोपण, सार्वजनिक ऋण आदि स्रोतों से सार्वजनिक आय प्राप्त करते हैं तथा इससे प्रशासन, प्रतिरक्षा, सार्वजनिक सेवाओं पर सार्वजनिक खर्च करती है। यह सब वित्तीय अथवा राजकोषीय क्रियाएं हैं। इन क्रियाओं के निर्देशन एवं नियंत्रण से संबंधित नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं। दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक खर्च के नियंत्रण और निर्देशन से संबंधित नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं।
मौद्रिक नीति: मुद्रा एवं साख की मात्रा के नियंत्रण एवं निर्देशन से संबंधित सरकार की नीति को मौद्रिक नीति कहते हैं। मौद्रिक नीति को देश के केंद्रीय बैंक द्वारा लागू किया जाता है। भारत में मौद्रिक नीति को रिजर्व बैंक लागू करता है। मौद्रिक नीति का मुख्य कार्यक्षत्र निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए साख की मात्रा को नियंत्रित करना है। साख की मात्रा में वृद्धि होने पर निवेश खर्च बढ़ता है और इससे समग्र मांग का स्तर बढ़ता है। इसके विपरीत साख की मात्रा के कम होने पर निवेश खर्च कम होता है और इससे समग्र मांग कम होती हैं। साख की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाए गए सभी उपायों को मौद्रिक नीति के उपकरण कहते हैं।

इन्हें भी देखें:

इन सभी प्रश्नों को वार्षिक परीक्षा को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। यदि आपको हमरी लेख से कोई फायदा मिला हो तो प्रोत्साहन के लिए अधिक से अधिक विद्यार्थियों के साथ साझा करें। नियमित रूप से जानकारी की सूचना प्राप्त करने के लिए झारखण्ड पाठशाला के notification को ज्वाइन करें।
सहयोगी,
अमित कुमार सिंह