Economics class 12 Model paper Set 4

Economics class 12 Model paper: Jharkhand Academic Council Rachi Model Question paper class 12, 2022. These model papers have been made for practice purposes. The language of this paper is Hindi. Questions are taken from NCERT Book.

Economics class 12 Model paper

Subject: Economics

Time: 3 Hours

Full Marks: 50

Pass marks: 33

Microeconomics: व्यष्टि अर्थशास्त्र : 50 Marks

Group-A: Multitple Choice Type Questions: 1×5 = 5

Q.1. जब सीमांत उपयोगिता घटती है तब कुल उपयोगिता-
a. घटती है
b. बढ़ती है
c. घटते हुए दर से बढ़ते हैं✓
d. इनमें से कोई नहीं

Q.2. सामान्य मांग वक्र की ढाल कैसे होती है?
a. बाएं से दाएं नीचे की ओर✓
b. बाएं से दाएं ऊपर की ओर
c. एक्स अक्ष्य के समानांतर
d. इनमें से कोई नहीं

Q.3. ऐसी क्रिया जो आय का सृजन करती है, कहलाती है-
a. आर्थिक क्रिया✓
b. गैर आर्थिक क्रिया
c. A तथा B दोनों
d. इनमें से कोई नहीं

Q.4. प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं?
a. कृषि क्षेत्र✓
b. उद्योग क्षेत्र
c. सेवा क्षेत्र
d. इनमें से कोई नहीं

Q.5. एक अर्थव्यवस्था में शामिल क्षेत्रक होते हैं-
a. प्राथमिक क्षेत्र
b. द्वितीय क्षेत्र
c. तृतीय क्षेत्र
d. इनमें से सभी✓

Group-B: Short Answer Type 1 Questions: 3×5 = 15

Q.6. पूर्ति क्या है? पूर्ति का नियम लिखें।
Ans: एक निश्चित समय में तथा एक निश्चित कीमत पर कोई विक्रेता किसी वस्तु की जो मात्रा बेचने के लिए तैयार होता है उसे उस वस्तु की पूर्ति कहते हैं. पूर्ति का नियम- अन्य बातों के समान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है तब उस वस्तु की पूर्ति की मात्रा बढ़ती है तथा कीमत के घटने पर पूर्ति की मात्रा घटती है इसे यह पूर्ति का नियम कहते हैं. दूसरे शब्दों में , कीमत के बढ़ने पर अधिक पूर्ति तथा कीमत के घटने पर कम पूर्ति की पूर्ति का नियम है.

Q.7. बजट सट क्या है?
Ans: एक उपभोक्ता का बजट सेट वस्तुओं के उन सभी संयोग के समूह को बताता है जिन्हें एक उपभोक्ता अपनी दी गई आय एवं वस्तुओं के कीमत के साथ खरीद सकता है। दूसरे शब्दों में, कोई उपभोक्ता अपनी आय से जिन वस्तुओं के समूह को खरीद सकता है वह उसका बजट सेट कहलाता है।

Q.8. मिश्रित अर्थव्यवस्था की परिभाषा दें।
Ans: मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें केंद्रीय योजनाबद्ध और बाजार अर्थव्यवस्था दोनों का अस्तित्व पाया जाता है। इसमें उत्पादन ,उपभोग तथा निवेश संबंधी निर्णय बाजार शक्तियों की स्वतंत्र अंतक्रिया पर छोड़ दिए जाते हैं परंतु आर्थिक क्रियाओं का नियमन सरकार द्वारा होती है ताकि व्यक्तिगत कल्याण के साथ सामाजिक कल्याण अधिकतम हो सके।

Q.9. उत्पादन संभावना से आप क्या समझते हैं।
Ans: जब एक अर्थव्यवस्था वैकल्पिक उपयोग वाले सीमित संसाधनों से एक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन करता है तो विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन मात्रा कितनी होगी इसकी कई संभावनाएं उत्पन्न होती है जिससे उत्पादन संभावना कहा जाता है। उत्पादन संभावना के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण वस्तु की सीमित मात्रा तथा उन वस्तुओं का वैकल्पिक प्रयोग का होना है।

Q.10. सीमांत उपयोगिता के ह्रास नियम का व्याख्या करें।
Ans: सीमांत उपयोगिता के ह्रास नियम के अनुसार जब वस्तु की एक निश्चित मात्रा का निरंतर प्रयोग किया जाता है तो प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से प्राप्त होने वाली उपयोगिता घटते दर से प्राप्त होती है। ऐसा प्रायः वस्तुओं के संदर्भ में देखने को मिलता है। इसे आवश्यकता संतुष्टि का नियम भी कहते हैं। इस नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम ऑस्ट्रेलियन अर्थशास्त्री H.H गोसेन ने किया था। इसे गोसेन का प्रथम नियम भी कहा जाता है।

Group-C: Short Answer Type 2 Questions: 4×3 = 12

Q.11. मिश्रित अर्थव्यवस्था की किन्हीं चार विशेषताओं को लिखें।
Ans: मिश्रित अर्थव्यवस्था की मुख्य चार विशेषताएं निम्नलिखित है-
1. मिश्रित अर्थव्यवस्था ऐसी नीतियां और स्थितियां प्रदान करती है जिससे निजी और सार्वजनिक क्षेत्र एक ही समय में सह अस्तित्व में हो सकते हैं और अपना विकास एवं विस्तार कर सकते हैं।
2. मिश्रित अर्थव्यवस्था में नागरिकों को अपने व्यवसाय चुनने का पूर्ण स्वतंत्रता होती है।
3. मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकारी मूल्य वितरण प्रणाली के माध्यम से सार्वजनिक हित में कीमतों को विनियमित कर सकती है।
4. मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी संपत्ति बनाने और रखने की अनुमति होती है लेकिन संपत्ति और आय के समान वितरण पर जोर दिया जाता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था में किसी एक या कुछ विशेष लोगों का एकाधिकार नहीं होता है।

Q.12. समष्टि अर्थशास्त्र तथा व्यष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट करें?
Ans: समष्टि अरशास्त्र एवं व्यष्टि अर्थशास्त्र में निम्नलिखित अंतर होते हैं-
1. व्यष्टि अर्थशास्त्र में केवल एक व्यक्तिगत इकाई की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
2. व्यष्टि अर्थशास्त्र में एक वस्तु की कीमत निर्धारण का अध्ययन किया जाता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र में सामान्य कीमत स्तर का अध्ययन किया जाता है।
3. व्यष्टि अर्थशास्त्र में एक व्यक्ति और एक व्यक्ति के व्यवहार के विषय में अध्ययन किया जाता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र में समाज के व्यवहार और समाज के विषय में अध्ययन किया जाता है।
4. व्यष्टि अर्थशास्त्र समस्याओं के समाधान में कीमत संयंत्र अर्थात मांग और पूर्ति बलों की क्रिया निर्णायक होती है जबकि समष्टि आर्थिक समस्याओं जैसे गरीबी, रोजगार आदि समाधान में सरकार की भूमिका निर्णायक होती है।

Q.13. “अन्य बातें समान रहे” काव्यांश का क्या अर्थ है?
Ans: मांग के नियम के अनुसार वस्तु की कीमत तथा उसके मांग के बीच विपरीत संबंध होता है। इस नियम की क्रियाशीलता के लिए कीमत के अलावा मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों को स्थिर मान लिया जाता है। मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारक-
1. उपभोक्ता की आय
2. संबंधित वस्तुओं की कीमत
3. उपभोक्ता की रूचि
4. भविष्य में किसी वस्तु की कीमत परिवर्तन की संभावना आदि।
दूसरे शब्दों में, अन्य बातों के समान रहने से हमारा अभिप्राय उन कारकों के स्थिर रहने से है जो किसी वस्तु की मांग को प्रभावित करते हैं।

Group-D: Long Answer Type Questions: 6×3 = 18

Q.14. जब सभी आगत एक ही अनुपात में बढ़ाए जाते हैं तो उत्पादन फलन के आचरण की व्याख्या करें.
Ans: उत्पादन बढ़ाने के लिए जब उत्पादन के सभी साधनों तथा सेवाओं को एक ही अनुपात में बढ़ाए जाते हैं तो इससे अर्थशास्त्रियों द्वारा पैमाने का विस्तार कहा जाता है। ऐसा करना सिर्फ दीर्घ काल में ही संभव होता है। पैमाने के विस्तार से उत्पादन फलन में भी परिवर्तन होता है परंतु प्रतिफल ठीक आगत के अनुपात में हो ऐसा नहीं होता बल्कि उत्पादन फलन कितनी स्थितियां होती है:- 1.पैमाने का सामान प्रतिफल: आगत साधनों में जिस अनुपात में वृद्धि की जाए और उत्पादन में भी ठीक उसी अनुपात में वृद्धि हो तो इसे पैमाने के समान प्रतिफल कहते हैं। अर्थात यदि साधनों को 2 गुना या 3 गुना कर दिया जाए तो उत्पादन भी 2 गुना, 3 गुना हो जाता है।
2. पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल: जिस अनुपात में आगत साधनों में वृद्धि की जाती है और उत्पादन में उससे भी अधिक अनुपात में वृद्धि हो तो इसे पैमाने का बढ़ता हुआ प्रतिफल कहते हैं। अर्थात यदि साधनों में 20% की वृद्धि करते हैं तो उत्पादन में 40%, 60% वृद्धि हो जाती है।
3. पैमाने के घटते हुए प्रतिफल: जिस अनुपात में आगत साधनों में वृद्धि की जाती है और उत्पादन में उससे कम अनुपात में वृद्धि हो तो इसे पैमाने का घटता हुआ प्रतिफल कहते हैं। अर्थात यदि आगत साधनों में 50% की वृद्धि की जाए तो उत्पादन में 30% , 20% की वृद्धि होती है।

Q.15. आर्थिक समस्या क्यों उत्पन्न होती है?
Ans: चयन की समस्या को मुख्य रूप से आर्थिक समस्या कहा जाता है। आर्थिक समस्या के उत्पन्न होने के बहुत से कारण होते हैं जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. मानवीय आवश्यकताएं असीमित है: मानवीय आवश्यकताएं असीमित है अर्थात एक आवश्यकता की संतुष्टि हो जाने पर नया आवश्यकताएं उत्पन्न होती रहती है। आवश्यकताओं की तीव्रता में भी अंतर होता है।
2. सीमित साधन: आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के साधन सीमित होते हैं। साधनों की स्वल्पतआ एक सापेक्षिक बात है। किसी विशेष आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए साधनों की बहुलता हो सकती है परंतु सभी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए साधन स्वल्प होते हैं।
3. साधनों की वैकल्पिक प्रयोग: सीमित साधनों के अनेक प्रयोग संभव होते हैं जैसे बिजली का प्रयोग रोशनी के लिए किया जाए अथवा ऊर्जा के साधन के रूप में किया जाए।
4. चुनाव की समस्या: मनुष्य की आवश्यकता है असीमित और साधन सीमित है इसलिए चुनाव की समस्या उत्पन्न होती है कि क्या?, कैसे? और किसके लिए उत्पादन किया जाए? चुनाव की समस्या ही आर्थिक समस्या है। यदि मानवीय आवश्यकताओं की तरह साधन भी असीमित होते तो चुनाव की समस्या उत्पन्न ही नहीं होती और ना ही कोई आर्थिक समस्या होती।

Q.16. मांग वक्र का ढलान ऋणात्मक होता है। व्याख्या करें।
Ans
: निम्नांकित कारणों से मांग वक्र का ढाल दाएं और ऋण आत्मक होता है:
1. सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम: यह नियम मांग के नियम को बहुत अधिक प्रभावित करता है। एक विवेकशील उपभोक्ता किसी वस्तु से मिलने वाली उपयोगिता के आधार पर ही वस्तु की कीमत देने को तैयार होता है। इस नियम के अनुसार प्रत्येक अगली इकाई से सीमांत उपयोगिता घटती दर से प्राप्त होती है अतः उपभोक्ता भी प्रत्येक अगली इकाई के लिए कम कीमत देने को तैयार होता है। इसलिए वस्तु की मांग व उसकी कीमत में विपरीत संबंध होता है।
2. आय प्रभाव: .आय प्रभाव से अभिप्राय उपभोक्ता की वास्तविक आय में परिवर्तन से है। किसी वस्तु की कीमत में कमी होने पर मुद्रा की क्रय शक्ति बढ़ जाती है अतः मुद्रा की नियत इकाइयों से उपभोक्ता कम कीमत होने पर उपभोक्ता उस वस्तु की अधिक इकाइयां क्रय कर सकता है। इसके विपरीत वस्तु की कीमत बढ़ने पर मुद्रा के क्रय शक्ति कम हो जाती है अर्थ अर्थ ऊंची कीमत पर वास्तविक आय घट जाती है और उपभोक्ता मुद्रा के निश्चित मात्रा में वस्तु की कम इकाइयां क्रय कर पाता है। इस प्रकार आय प्रभाव वस्तु की मांग एवं कीमत में विपरीत संबंध को जन्म देता है।

Macroeconomics: समष्टि अर्थशास्त्र: 50 Marks

Group-A: Multitple Choice Type Questions: 1×5 = 5

Q.17. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में फर्म: –
a. कीमत को ग्रहण करती हैं✓
b. कीमत का निर्धारण करती है
c. a और b दोनों
d. इनमें से कोई नहीं

Q.18. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना कहां हुई थी?
a. मुंबई
b. कोलकाता✓
c. दिल्ली
d. इनमें से कोई नहीं

Q.19. “पूर्ति स्वयं मांग का सृजन करती है” यह कथन किसकी है?
a. जे. बी. से✓
b. एडम स्मिथ
c. मार्शल
d. इनमें से कोई नहीं

Q.20. APC + APS = ?
a. 0
b. 1✓
c. 10
d. 22

Q.21. भारत का केंद्रीय बैंक का नाम क्या है?
a. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया✓
b. रिजर्व बैंक ऑफ दिल्ली
c. मुंबई रिजर्व बैंक
d. इनमें से कोई नहीं

Group-B: Short Answer Type 1 Questions: 3×5 = 15

Q.22. व्यापारिक बैंक के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
Ans: व्यापारिक का अर्थ होता है व्यापार करने वाला अर्थात जो संस्थान व्यापार करता है उसे व्यापारिक संस्थान कहते हैं। इस प्रकार व्यापारिक बैंक का अर्थ हुआ व्यापार करने वाला बैंक। बैंक अपने कार्यों के माध्यम से व्यापार करता है। किसी व्यापार के अंतर्गत या निम्न कार्य करता है: – बैंकिंग व्यवसाय का मुख्य काम जमा शिकार करना तथा ऋण उधार देना है। बैंक जन सामान्य के चेक द्वारा भी जमा स्वीकार करते हैं।

Q.23. पूर्ण प्रतियोगिता में संतुलन कैसे निर्धारण होता है?
Ans: वह स्थिति जिसमें परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं होती है उसे संतुलन की स्थिति कहते हैं। संतुलन की अवस्था में मांगी गई मात्रा तथा पूर्ति की गई मात्रा समान होती है। मांग व पूर्ति में परिवर्तन करने के लिए किसी के लिए कोई प्रेरणा नहीं होती। बाजार संतुलन की अवस्था में सभी फलों द्वारा दी गई आपूर्ति वह सभी उपभोक्ताओं द्वारा की गई मांग के बराबर होती है। संतुलन की अवस्था में ना तो फर्म ना ही उपभोक्ता किसी परिवर्तन की इच्छा करते हैं।

Q.24. राजस्व घाटे का क्या अर्थ है इससे क्या समस्या उत्पन्न होती है?
Ans: राजस्व घाटा-एक लेखा वर्ष की अवधि में सरकार के कुल राजस्व खर्च एवं कुल राजस्व प्राप्ति अंतर को राजस्व घाटा कहते हैं। राजस्व घाटा= राजस्व खर्च – राजस्व प्राप्तियां। राजस्व घाटे में सरकारी चालू वर्ष के खर्च एवं प्राप्त्य को सम्मिलित किया जाता है। राजस्व खर्च वचनबद्ध खर्च होते हैं। इन्हें सरकार कम नहीं कर सकती हैं।

Q.25. राष्ट्रीय आय लेखांक के क्या उपयोग हैं?
Ans: राष्ट्रीय आय लेखांकन के निम्नलिखित महत्व है:
1. इसके द्वारा राष्ट्रीय आय को मापने में सहायता प्राप्त होती है।
2. यह अर्थव्यवस्था के ढांचे को समझने में सहायक होता है।
3. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के सापेक्षिक महत्व का ज्ञान प्राप्त होता है।
4. आय के कारकों में बंटवारे का ज्ञान प्राप्त होता है।
5. विभिन्न समय अवधियों में आय की तुलना में सहायक।

Q.26. घरेलू आय तथा साधन आय दोनों ही साधन आय का जोड़ है, फिर उनमे अंतर क्या है?
Ans: घरेलू आय तथा राष्ट्रीय आय दोनों ही साधन आय का जोड़फल है फिर भी इसकी अवधारणा में विभिन्नता है इसलिए इसमे अंतर है। घरेलू आय तथा राष्ट्रीय आय में निम्नलिखित अंतर होते है:
1. घरेलू आय में साधन आय तथा हस्तांतरण आय दोनों शामिल की जाती है जबकि राष्ट्रीय आय में केवल साधन आय जोड़ी जाती है।
2. घरेलू आय में केवल घरेलू क्षेत्र की आय शामिल की जाती है जबकि राष्ट्रीय आय में घरेलू तथा सार्वजनिक कक्षेत्रों में उपार्जित आय को शामिल किया जाता है।
3. घरेलू आय एक देश के क्षेत्र की आय है जबकि राष्ट्रीय आय एक देश के सामान्य निवासियों की आय है।

Group-C: Short Answer Type 2 Questions: 4×3 = 12

Q.27. पूर्ण रोजगार क्या है?
Ans: समष्टि अर्थशास्त्र में पूर्ण रोजगार साम्यता की स्थिति है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की कुल मांग उनकी पूर्ति के बराबर होती है। इस स्थिति में किसे दिए हुए वास्तविक मजदूरी स्तर पर श्रम की मांग श्रम की पूर्ति के बराबर होते हैं और सभी कार्य करने योग्य एवं इच्छुक व्यक्तियों को प्रचलित मजदूरी दर पर रोजगार मिल जाता है। दूसरे शब्दों में, पूर्ण रोजगार वह दशा है जिसने योग्य एवं इच्छुक व्यक्ति कार्य कर लेते हैं।

Q.28. स्टॉक और प्रवाह में अंतर स्पष्ट करें?
Ans:
स्टॉक तथा प्रवाह में अंतर निम्नलिखित हैं:-
1. स्टॉक आर्थिक चर कि वह मात्रा होती है जिसे एक निश्चित समय बिंदु पर मापा जाता है जबकि प्रभाव आर्थिक चर कि वह मात्रा होती है जिसे एक निश्चित समयावधि के दौरान मापा जाता है।
2. स्टॉक का कोई समय परिमाप नहीं होता है जबकि प्रवाह का समय परिमाप होता है जैसे – प्रति घंटा, प्रतिदिन प्रति, मास आदि।
3. स्टॉक एक स्थैतिक अवधारणा है जैसे किसी वस्तु की मात्रा, टंकी में रखा पानी आदि जबकि प्रवाह एक गत्यात्मक अवधारणा है जैसे – उपभोग, निवेश, नदी में जल आदि।

Q.29. निवेश तथा निवेश फलन क्या है?
Ans निवेश से अभिप्राय उस खर्चे से है जिसके द्वारा पूंजीगत पदार्थों जैसे- मशीन ,औजार , आदि के भंडारों में वृद्धि की जाती है। निवेश दो प्रकार की होती है:- 1. प्रेरित निवेश- प्रेरित निवेश अर्थव्यवस्था में आय तथा व्यय की मात्र पर निर्भर करता है। आय का ऊंचा स्तर उपभोग बढ़ाता है जिससे उत्पादक लाभ की ऊंची प्रत्याशा में निवेश को बढ़ाता है। आय और प्रेरित निवेश में सीधा संबध होता है। स्वायत निवेश – स्वायत निवेयह आय स्तर से स्वतंत्र होता है। अरथार्थ आय का स्तर इस निवेश को प्रभावित नहीं करता है। स्वायत निवेश एक ऐसा सरकारी निवेश है जो सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था में समग्र मांग को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

Group-D: Long Answer Type Questions: 6×3 = 18

Q.30.केन्द्रीय बैंक क्या है?
Ans: किसी देश का केन्द्रीय बैंक उस देश की सर्वोच्च संस्था होती है जो देश के मौद्रिक तथा बैंकिंग ढांचे के केंद्र बिन्दु के रूप में कार्य करती है। केन्द्रीय बैंक देश का शिखर बैंक होता है जो मुद्रा बाजार को नियंत्रित करने के साथ- साथ देश के व्यापारिक बैंक पर नियंत्रण रखती है। केन्द्रीय बैंक देश की मौद्रिक नीति का निर्माता तथा संचालक होता है और देश में स्थिरता और आर्थिक विकाश बनाए रखने के लिए उत्तरदाई नहीं होता है। केन्द्रीय बैंक के कार्य निम्न है –
1. नोट निर्गमन का एकाधिकार: प्रत्येक देश में नोट छापने का एकाधिकार केवल केन्द्रीय बैंक को ही प्राप्त होता है । केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी किए गए नोट सभी जगह मन्य होते है।
2.सरकार का आर्थिक परामर्शदाता: केन्द्रीय बैंक सरकार की आर्थिक नीतियों जेसे – घाटे का वित्त, व्यापार नीति ,विदेशी विनिमय आदि में परमर्शदाता का कार्य करता है।
3. सरकार का बैंकर: व्यापारिक और सामान्य व्यक्तियों की भांति सरकार को भी सेवाओ की जरूरत पड़ती है। केन्द्रीय बैंक सरकार के बैंक के रूप में कार्य करता है।
4.सरकार के प्रतिनिधि के रूप में: केन्द्रीय बैंक सरकार का वित्तीय प्रतिनिधि भी होता है। सरकार जिन देशों से आर्थिक लेन-देन के समझोटे करती है वे सब केन्द्रीय बैंक के माध्यम से किए जाते है।5. बैंको का बैंक: केन्द्रीय बैंक देश के अन्य बैंको के लिए बैंकर का कार्य करती है। केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंको का नकद कोष अपने पास रखती है। इसलिए इसे नकद कोषों का संरक्षक भी कहा जाता है।

Q.31. भुगतान शेष में असंतुलन के कारणों की व्याख्या कीजिए ?
Ans:भुगतान शेष में असंतुलन के कारण निम्नलिखित है:-
1. प्राकृतिक कारण: प्राकृतिक कारण जेसे भूकंप, आकाल, सूखा आदि भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न कर देते है। प्रकृति में प्रकोप के कारण अर्थव्यवस्था निर्यात के स्थान पर आयात पर अधिक निर्भर हो जाती है , जिससे भुगतान शेष अधिक प्रभावित होता है।
2. राजनीतिक कारण:- देश की अस्थिरता भी देश के भुगतान संतुलन पे प्रतिकूल प्रभाव डालती है। 3. सामाजिक कारण:- सामाजिक संरचना में परिवर्तन के कारण लोगों की रुचि, स्वभाव, और फैशन में परिवर्तन आ जाता है। इसका देश की उपभोग प्रवृति, आयात और निर्यात पर प्रभाव पड़ता है। यह परिवर्तन भुगतान शेष में असंतुलन का कारण बन सकता है।
4. आर्थिक कारण :-आर्थिक कारण भी भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न कर देती है। आर्थिक कारण बहुत सारे होते है जिनमे से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित है:-
a) विकाश व्यय
b) बढ़ती किमते
c) व्यापार चक्र आदि ।

Q.32. मुद्रा के कार्यों का वर्णन कीजिए।
Ans:वेसे तो मुद्रा के बहुत सारे कार्य होते है जिनमे से कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित है:-
1. विनिमय का माध्यम:- यह मुद्रा का मुख्य कार्य है। वर्तमान समय में मुद्रा वस्तु विनिमय का सबसे तरल साधन है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार के लेन-देन मुद्रा के माध्यम से ही किए जाते है। मुद्रा के आविष्कार ने वस्तु विनिमय प्रणाली की सभी प्रकार के दोषों दूर किया है।
2. मूल्य का मापक:- मुद्रा मूल्य मापक की इकाई का कार्य करती है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो सभी प्रकार की वस्तुओ तथा सेवाओ का मूल्य मुद्रा में ही निर्धारित किया जाता है।
3. भावी भुगतान का आधार:- जिन लेन – देन को तत्काल न करके भविष्य के लिए टाल दिया दिया जाता है उसे भावी भुगतान कहा जाता है। मुद्रा से भावी भुगतान भी किया जा सकता है।
4. मूल्य का संचय : मनुष्य की यह प्रवृति होती है की वह अपने वर्तमान आय में से कुछ बचाकर भविष्य के लिए संचित करके रखना चाहता है ताकि वह अपनी भावी जरूरतों को पूरा कर सके। यह तभी संभव है जब उसे विश्वश हो की उसकी बचत पूरी तरह से सुरक्षित है। मुद्रा में वह गुण विद्यमान है।
5. मूल्य का हस्तांतरण :-मुद्रा विनिमय का सबसे तरल साधन है अतः इसके द्वारा करे शक्ति का हस्तांतरण बहुत सरलता से एक व्यति से दूसरे व्यक्ति और एक स्थान से दूसरे स्थान तक किया जा सकता है। इस प्रकार मुद्रा मूल्य के हस्तांतरण का सर्वोत्तम साधन बन गई है।

इन्हें भी देखें:

इन सभी प्रश्नों को वार्षिक परीक्षा को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। यदि आपको हमरी लेख से कोई फायदा मिला हो तो प्रोत्साहन के लिए अधिक से अधिक विद्यार्थियों के साथ साझा करें। नियमित रूप से जानकारी की सूचना प्राप्त करने के लिए झारखण्ड पाठशाला के notification को ज्वाइन करें।