सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियां | saanskritik vividhata ki chunautiyan | sociology class 12 chapter 6 NCERT solution in Hindi

saanskritik vividhata ki chunautiyan: Sociology Class 12 Chapter 6 NCERT solutions in Hindi. Class 12 Sociology Important Questions Answers in Hindi. Sociology Class 12 Notes in Hindi based on JAC Board Ranchi.

saanskritik vividhata ki chunautiyan sociology class 12 chapter 6 NCERT solution in Hindi

saanskritik vividhata ki chunautiyan लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1. राष्ट्र राज्य से आप क्या समझते हैं?
Ans: एक विशेष प्रकार का राज्य, जो आधुनिक जगत की विशेषता है, जिसमें एक सरकार की एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र पर संप्रभु शक्ति होती हैं और वहां रहने वाले लोग उसके नागरिक कहलाते हैं जो अपने आप को एकल राष्ट्रीय का हिस्सा मानते हैं। राष्ट्र – राज्य राष्ट्रीयता के उदय से घनिष्ठता से जुड़े हैं।

Q.2. आत्मसातीकरणवादी और एकीकरणवादी रणनीतियां किन राष्ट्रीय पहचानो को स्थापित करती हैं? किन्ही दो का उल्लेख करे।
Ans: यह रणनीतियां एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने का प्रयास करती है, जेसे – (i) प्रभावशाली समूह की भाषा को ही एकमात्र राजकीय ‘राष्ट्रभाषा’ के रूप में अपनाना और उसके प्रयोग को सभी सार्वजनिक सांस्थाओ में अनिवार्य बना देना। (ii) अल्पसंख्यक समूहों और देशज लोगों से जमीने, जंगल एमं मत्स्य क्षेत्र छीनकर उन्हे ‘राष्ट्रीय संसाधन’ घोषित कर देना।

Q.3. सांस्कृतिक विविधता का दमन नुकसानदायक क्यों हो सकता है?
Ans: सांस्कृतिक विविधता का दमन करने से उन अल्पसंख्यक अथवा अधीनस्थ समुदायों का अलगाव हो जाता है जिनकी संस्कृति को गैर – राष्ट्रीय मान लिया जाता है। इसके अलावा दमनकारी कार्य समुदायिक पहचान को और गहरा बनाने का विपरीत प्रभाव उत्पन्न करता है।

Q. 4. ‘प्रेसीडेंसी’ किसे कहा जाता है? किन्ही तीन प्रेसीडेंसियों के नाम लिखें।
Ans: भारत में बड़े – बड़े प्रांतों को प्रेसीडेंसी कहा जाता है। तीन प्रेसीडेंसियां हैं:
(i) मद्रास, (ii) मुंबई,
(iii)कोलकाता।

Q. 5. भारतीय संविधान में विभिन्न कार्यों की जिम्मेदारी किसकी होती है?
Ans: भारत में संविधान में शासन संबंधी विषयों के कार्यों की सूची होती है जिनकी जिम्मेदारी राज्य या केंद्र की होती है। अन्य क्षेत्रों की समवर्ती सूची की भी जिम्मेदारी दोनों की ही होती है। इसके बारे में राज्य और केंद्र दोनों ही कार्य कर सकते हैं।

Q.6. भारतीय संविधान के निर्माताओं के अनुसार संयुक्त एवं सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण कैसे किया जा सकता है? Ans: भारतीय संविधान के निर्माताओं के अनुसार संयुक्त एवं सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण तभी संभव होगा जब सभी वर्गों को अपने धर्म का पालन करने और अपनी संस्कृति तथा भाषा का विकास करने की स्वतंत्रता प्राप्त होगी।

Q. 7. भारत में विविधताओं का वर्णन करें।
Ans: भारत राष्ट्र – राज्य सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से विश्व के सर्वाधिक विविधतापूर्ण देशों में से एक है। इसकी आबादी 100 करोड़ से भी अधिक है। यहां कुल मिलाकर 1,632 भिन्न-भिन्न भाषाएं और बोलियां बोली जाती है। यहां 80. 5% आबादी हिंदुओं की है व 13.4% आबादी मुसलमानों की है। इसके अतिरिक्त यहां सिख, बौद्ध, ईसाई और जैन इत्यादि जैसे धर्मों के लोग भी रहते हैं।

Q.8. धार्मिक समुदायों और धर्म – आधारित पहचानो के मुद्दों को किन समूहों में बांटा जा सकता है? Ans: इन मुद्दों को दो समूह के अंतर्गत बांटा जा सकता है- (i)धर्मनिरपेक्षता एवं सांप्रदायिकता,
(ii) अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक।

Q.9. अल्पसंख्यकों एवं सांस्कृतिक विविधता पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 को स्पष्ट करें।
Ans: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 के अनुसार – (i)भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिनकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा। (ii) राज्य द्वारा पोषित या राज्य – निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, जाति, भाषा के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

Q.10. ऐसे दो सांप्रदायिक हिंसा के उदाहरण दीजिए जो राजनीतिक दलों के शासनकाल में घटित हुए?
Ans: सांप्रदायिक हिंसा के दो प्रमुख सर्वाधिक आघातकारी समकालीन उदाहरण जो राजनीतिक दलों के शासनकाल में घटित हुए, इस प्रकार हैं –
(i) 2002 में गुजरात में मुसलमान विरोधी हिंसा भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में हुई। ]
(ii) 1984 के सिख – विरोधी दंगे कांग्रेस के राज में हुए।

Q.11. सत्तावादी राज्यों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
Ans: सत्तावादी राज्य लोकतंत्रात्मक राज्य का विपरीत होता है। सत्तावादी राज्य अक्सर भाषण की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता, सत्ता के दुरुपयोग से संरक्षण का अधिकार, विधि की प्रक्रियाओं का अधिकार जैसे अनेक नागरिक स्वतंत्रताओं को अक्सर समाप्त कर देते है।

Q.12. सूचनाअधिकार अधिनियम, 2005 कानून कब पारित किया गया व यह कब से लागू है?
Ans: इस कानून को भारतीय संसद द्वारा 15 जून, 2005 को पारित किया गया था व यह 13 अक्टूबर, 2005 से लागू हुआ।

Q.13. सूचनाअधिकार अधिनियम नागरिकों के लिए क्या विनिर्दिष्ट करता है?
Ans: यह धिनियम नागरिकों को यह विनिर्दिष्ट करता है की-
(i) नागरिकों को किसी भी सूचना के लिए अनुरोध करने का अधिकार है।
(ii) नागरिकों को कार्य की सामग्रियों के प्रमाणित नमूने लेने का अधिकार है।
(iii) नागरिकों को दस्तावेजों की प्रतिलिपियां लेने का अधिकार है।

Q.14. नागरिक समाज के संगठन के आंदोलन में किन-किन मुद्दों को उठाया गया?
Ans: इन आंदोलनों में उठाए गए मुद्दे इस प्रकार है –
(i) भूमि संबंधी अधिकारों के जनजातीय संघर्ष।
(ii) नगरीय शासन का हस्तांतरण।
(iii) स्त्रियों के प्रति बलात्कार और हिंसा के विरुद्ध अभियान।

Q. 15. भारतीय लोगों को सत्तावादी शासन का अनुभव कब प्राप्त हुआ?
Ans: भारतीय लोगों को सत्तावादी शासन का अनुभव जून, 1975 से जनवरी, 1977 के मध्य ‘आपातकाल’ के दौरान हुआ। इसमे सरकार द्वारा सीधे नए कानून बनाए गए। सक्रिय लोग, जो राजनीतिक तरीकों से दंगों का कारण थे, बड़ी संख्या जेलों में बिना मुकदमे के डाल दिए गए। सरकार के नीचे स्तर के अधिकारियों पर दबाव डाला गया कि वे सरकारी कार्यक्रमों को कार्यान्वित करें।

saanskritik vividhata ki chunautiyan लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1. एकीकरण का क्या है? इन नीतियों को बढ़ावा देने वाली नीतियों का वर्णन करें।
Ans: एकीकरण – सांस्कृतिक जोड़ाव या समेकन की एक प्रक्रिया जिसके द्वारा सांस्कृतिक विभेद निजी क्षेत्र में चले जाते हैं और एक सामान्य सार्वजनिक संस्कृति सभी समूहों द्वारा अपना ली जाती है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत प्रबल या प्रभावशाली समूह की संस्कृति को ही आधिकारीक संस्कृति के रूप में अपनाया जाता है। सांस्कृतिक अंतरों, विभेदो या विशिष्टताओं की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित नहीं किया जाता। कभी – कभी सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसी अभिव्यक्ति पर रोक लगा दी जाती है। एकीकरण नीतियां इस बात पर बल देती है कि सार्वजनिक संस्कृति को सामान्य राष्ट्रीय स्वरूप तक सीमित रखा जाए और ‘ गैरा – राष्ट्रीय’ संस्कृतियों को निजी क्षेत्रों के लिए छोड़ दिया जाए। ये नीतियां शैली की दृष्टि से अलग होती है, परंतु इनका उद्देश्य समान होता है। एकीकरण की नीतियां केवल एक अकेली राष्ट्रीय पहचान बनाए रखना चाहती है जिसके लिए वे सार्वजनिक तथा राजनीतिक कार्यों से नृजातीय – राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विभिन्नताओं को दूर करने का प्रयत्न करती है।

Q.2. ‘ समुदायिक पहचान ‘ का अर्थ स्पष्ट कीजिए। यह पहचान किसी व्यक्ति – विशेष के लिए क्यों आवश्यक है? Ans: समुदायिक पहचान का अर्थ उस पहचान से होता है जिसके द्वारा किसी भी व्यक्ति को समुदाय में एक अलग पहचान मिलती है। इन्हीं पहचान के तौर पर किसी व्यक्ति विशेष को समाज में एक अलग नजरिया से देखा जाता है। इन पहचानो के आधार पर ही पता चलता है कि किसी व्यक्ति का संबंध किस जाति या समुदाय से है। ये पहचान जन्म से ही निर्धारित होती है व किसी व्यक्ति को उसके परिवार से मिलती है। संबंधित व्यक्तियों की पसंद व नापसंद इसमें शामिल नहीं होती। सामुदायिक पहचान संबंधित व्यक्तियों के लिए इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इन समुदायों से संबंधित व्यक्ति सुरक्षित एवं संतुष्ट महसूस करते हैं। इन समुदायों से संबंधित होने के लिए व्यक्ति विशेष को किसी योग्यता या कौशल की आवश्यकता नहीं होती। हमारा समुदाय हमें भाषा और सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करता है जिनके माध्यम से हम स्वयं की पहचान को सहारा देते हैं। प्रदत्त पहचान इतनी पक्की होती है कि इन्हें बदला नहीं जा सकता। ये सर्वव्यापी होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी पहचान के प्रति प्रतिबद्ध एवं वफादार होते हैं।

Q.3. आत्मसातीकरणवादी और एकीकरणवादी रणनीतिययां किन – किन उपायों द्वारा एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने की कोशिश करती है? किन्ही 4 उपायों का उल्लेख कीजिए।
Ans: ये रणनीतियां विभिन्न उपायों द्वारा एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करती है जो इस प्रकार है –
(i)संपूर्ण शक्ति को ऐसे मंचों में केंद्रित करना जहां प्रभावशाली समूह बहुसंख्यक हो और स्थानीय या अल्पसंख्यक समूहों की स्वायत्तता को मिटाना।(ii)प्रभावशाली समूह की परंपराओं पर आधारित एक एकीकृत कानून एवं न्याय व्यवस्था को थोपना और अन्य समूहों द्वारा प्रयुक्त वैकल्पिक व्यवस्थाओं को खत्म कर देना।
(iii) प्रभावशाली समूह की भाषा और संस्कृति को राष्ट्रीय संस्थाओं के जरिए, जिनमें राज्य नियंत्रित जनसंपर्क के माध्यम और शैक्षिक संस्थाएं शामिल है, बढ़ावा देने।(iv)प्रभावशाली समूह के इतिहास, शूरवीरों और संस्कृति को सम्मान प्रदान करने वाले राज्य प्रतीकों को अपनाना, राष्ट्रीय पर्व, छुट्टी या सड़कों आदि के नाम निर्धारित करते समय भी इन बातों का ध्यान रखना।

Q. 4. राष्ट्र एवं राष्ट्र – राज्य को परिभाषित कीजिए।Ans:राष्ट्र – एक ऐसा समुदाय जो अपने आपको समुदाय मानता है और अनेक साझा विशिष्टताओ, जैसे – साझी भाषा, भौगोलिक स्थिति, इतिहास, धर्म, प्रजाति, संजाति, राजनीतिक आकांक्षाओं पर आधारित होता है। किंतु राष्ट्रों ऐसी एक या अधिक विशिष्टताओ के बिना भी अस्तित्व में रह सकते हैं। एक राष्ट्र उन लोगों से मिलकर बना होता है जो उस राष्ट्र के अस्तित्व, सार्थकता और शक्ति के स्रोत होते हैं। राष्ट्र – राज्य – एक विशेष प्रकार का राज्य, जो आधुनिक जगत की विशेषता है जिसमें एक सरकार की एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र पर संप्रभु शक्ति होती है और वहां रहने वाले लोग उसके नागरिक कहलाते हैं, जो स्वयं को उस एकल का राष्ट्र का हिस्सा मानते हैं। राष्ट्रीयता के प्रारंभ से ही राष्ट्र – राज्य घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं। राष्ट्रवादी निष्ठाएं हमेशा उनके विशिष्ट राज्यों की परिसीमाओं के अनुरूप नहीं होती राष्ट्र राज्यों काम विकास प्रारंभ में यूरोप में शुरू हुई राष्ट्र – राज्य प्रणाली के अंतर्गत हुआ था, लेकिन आज राष्ट्र – राज्य संपूर्ण भूमंडल में पाए जाते हैं। इनका अत्यधिक विकास हुआ है।

Q.5. उदारीकरण के युग से अंतरक्षेत्रीय आर्थिक असमानताएं विद्वानों के लिए चिंता का विषय क्यों है? स्पष्ट करें।
Ans:भारत की संघीय प्रणाली काफ़ी सुचारू रूप से चल रही है, परंतु इसमें भी कई विवादास्पद मुद्दे पाए जाते हैं। यह तर्क उचित है कि उदारीकरण के योग से ही, बढ़ती हुई अंतर – क्षेत्रीय आर्थिक एवं आधारभूत ढांचे से संबंधित असमानताएं नीति – निर्माताओं व विद्वानों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। इसके कई कारण हो सकते हैं-(i) आर्थिक विकास में निजी पूंजी निवेश को अत्यधिक भूमिका सौंपी गई है। इसी कारण क्षेत्रीय समदृष्टि तत्वों को काफी कम महत्व मिला है।(ii) निजी निवेशकर्त्ता ऐसे विकसित राज्यों में पूंजी लगाना चाहते हैं जहां एक आधारभूत ढांचा हो तथा अन्य सुविधाएं भी बेहतर हो। सरकार द्वारा निजी क्षेत्रों को अधिक महत्व दिया जा रहा है, जबकि सरकार केवल मुनाफो को अधिक से अधिक बढ़ाने की बजाय क्षेत्रीय समदृष्टि को कुछ महत्व दे सकती है। इसी कारण यदि बाजारी अर्थव्यवस्था को त्याग दिया जाए तो वह विकसित तथा पिछड़े क्षेत्रों के मध्य अंतर को बढ़ा सकती है।

Q.6.अल्पसंख्यकों एवं सांस्कृतिक विविधता पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 का उल्लेख कीजिए।
Ans:अनुच्छेद 29 –(i)भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिक के किसी अनुभव को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।(ii) राज्य द्वारा घोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 30 –(i) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।(ii) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंधन में है।

Q.7.धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करें।
Ans:धर्मनिरपेक्षता के विभिन्न प्रकार होते हैं – (i) इसका जनता में प्रचलित अर्थ है – सांप्रदायिकता या संप्रदाय का विरोधी; यानी ऐसी अभिवृत्ति जो किसी भी धर्म के पक्ष में या विरूद्ध न हो। (ii) ऐसा सिद्धांत जिसके अंतर्गत राज्य भिन्न – भिन्न धर्मों के बीच भेदभाव नहीं बरतता और सभी धर्मों का आदर करता है। (iii) वह सिद्धांत जिसके द्वारा राज्य को धर्म से बिल्कुल अलग रखा जाता है, यानि पाश्चात्य समाजों की भांति ‘चर्च’ और ‘राज्य’ का अलगाव। धर्मनिरपेक्षता को सांप्रदायिकता के बिल्कुल विपरीत माना जाता है। धर्म – निरपेक्ष व्यक्ति या राज्य किसी भी विशेष धर्म का पक्ष नहीं लेते। इनकी नजर में सभी धर्म समान होते हैं। इसमें धर्म के प्रति विद्वेष का भाव होना जरूरी नहीं होता। राज्य और धर्म के पारस्परिक संबंधों की दृष्टि से धर्मनिरपेक्षता का यह भाव सभी धर्मों के प्रति समान आदर का द्योतक होता है, न कि अलगाव का। धर्मनिरपेक्षता को एक सिद्धांत के रूप में और हमारे व्यवहार में इसकी समाज को बेहतर बनाने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

Q.8.सांप्रदायिकता के कारण होने वाले दो हानियों के बारे में लिखें।
Ans:संप्रदायिकता भारत में तनाव और हिंसा का स्रोत बन गई। इससे काफी मात्रा में बर्बादी व नुकसान होता है जो इस प्रकार है- (i) इन सांप्रदायिक दंगों में लोग अन्य समुदाय के लोगों को मार डालते हैं। (ii) सांप्रदायिक दंगे लूटपाट, बलात्कार आदि घटनाओं का भी कारण बनते हैं।

Q.9.’राष्ट्र’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
Ans:एक ऐसा समुदाय जो अपने आपको एक समुदाय मानता है और अनेक साझा विशिष्टताओं, जैसे – साझी भाषा, भौगोलिक स्थिति, इतिहास, धर्म, जाति, प्रजाति, सजाति आदि पर आधारित होता है। राष्ट्र एक ऐसी विशिष्टताओं के बिना भी अस्तित्व में रह सकते हैं। एक राष्ट्र उन लोगों से मिलकर बना होता है जो उस राष्ट्र के शक्ति, अस्तित्व और सार्थकता के स्रोत होते हैं।

Q.10.सांस्कृतिक विविधता का क्या अर्थ है ? भारत को अत्यंत विविधतापूर्ण देश क्यों माना जाता है?
Ans:सांस्कृतिक विविधता – इसका तात्पर्य यह है कि किसी भी देश में अनेक प्रकार के सामाजिक समुदाय निवास करते हैं। यह समुदाय सांस्कृतिक चिन्हों जैसे – भाषा, धर्म, पंथ, प्रजाति जा जाति के द्वारा परिभाषित किए जाते हैं। यह तर्क उचित है कि भारत एक अत्यंत विविधतापूर्ण देश है अर्थात यहां अनेक प्रकार के सामाजिक एवं समुदाय निवास व निवार्ह करते हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में विभिन्न धर्मों, जातियों व समुदायों के लोग निवास करते हैं। इन समुदायों के लोगों की भाषा व रहन-सहन, खान-पान इत्यादि में भी काफी अंतर है। परंतु इन सांस्कृतिक से विविधताओं से कठोर चुनौतियां भी उत्पन्न हो सकती है। विभिन्न सांस्कृतिक पहचानो के लिए लोग अपनी पहचानो को प्रबल करने के लिए दंगे करवा सकते हैं। कभी – कभी सांस्कृतिक अंतरों के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक असमानताओ के जुड़ जाने से स्थिति अत्यधिक जटिल हो जाती है। भारत में लोगों तथा संस्कृतियों के बीच विद्यमान विविधताएं अनेक प्रकार की कठोर चुनौतियां प्रस्तुत करती है, फिर भी भारत की स्थिति अन्य राष्ट्रों की तुलना में अच्छी है।

Saanskritik vividhata ki chunautiyan: दीर्घ स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.राज्य और सत्तावादी राज्य को परिभाषित कीजिए। इनका संक्षिप्त रूप में वर्णन कीजिए।
Ans:राज्य – एक अमूर्त इकाई जिसमें कई प्रकार की राजनीतिक – वैधिक संस्थाओं का समूह विद्यमान हो, जो एक खास भौगोलिक क्षेत्र पर और उसमें रहने वाले लोगों पर अपने नियंत्रण का दावा करता हो। एक प्रदेश – विशेष में वैध हिंसा के प्रयोग पर अपना एकाधिकार रखने वाला, अनेक परस्पर जुड़ी संस्थाओं का समुच्चय। इसमें विधान मंडल, न्यायपालिका, कार्यपालिका, सेना, नीति और प्रशासन जैसी अनेक संस्थाएं शामिल होती है। एक दूसरे अर्थ में, एक बड़ी राष्ट्रीय संरचना के भीतर एक क्षेत्रीय सरकार को भी यह नाम दिया जाता है, जैसे – तमिलनाडु कि राज्य सरकार।

सत्तावादी राज्य – सत्तावादी राज्य लोकतंत्रात्मक राज्य का विपरीत होता है। इसमें जनता की सुनवाई नहीं की जाती। जिन लोगों के पास शक्ति होती है, वे किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होते। सत्तावादी राज्य अक्सर भाषण की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता, सत्ता के दुरुपयोग से संरक्षण का अधिकार, विधि (कानून) की अपेक्षित प्रक्रियाओं का अधिकार जैसे अनेक प्रकार की नागरिक स्वतंत्रताओ को समाप्त कर देती है। भारतीय लोगों को सत्तावादी शासन का थोड़ा अनुभव ‘आपातकाल’ के दौरान हुआ जो जून, 1975 से जनवरी, 1977 तक लागू रही। संसद को निलंबित कर दिया गया था और सरकार द्वारा सीधे नए कानून बनाए गए। नागरिक स्वतंत्रताएं छीन ली गई और राजनीतिक रूप से सक्रिय लोग बड़ी संख्या में गिरफ्तार करके, बिना मुकदमे के ही जेल में बंद कर दिए गए। जनसंचार के माध्यमो पर सेंसर व्यवस्था लागू कर दी गई और सरकारी पदाधिकारियों को, सामान्य प्रक्रियाएं अपनाए बिना बर्खास्त किया जा सकता था। सरकार ने नीचे स्तर के अधिकारियो पर कार्य करने के लिए दबाव डाला। 1977 के प्रारंभ में अप्रत्याशित रूप से चुनाव कराए गए। इन चुनावो में लोगों ने बढ़ – चढ़कर सत्ताधारी कांग्रेस दल के विरोध में वोट डाले।

Q.2.नागरिक संगठनों के विभिन्न क्रिया – कलापों में विभिन्न प्रकार के मुद्दों का वर्णन कीजिए।
Ans:नागरिक समाज के संगठनों के क्रिया – कलापों में राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय अभिकरणों के साथ पक्ष समर्थन व आंदोलनों का सक्रियतापूर्वक शामिल होना है। नागरिक संगठनों में समुदाय आधारित बहुत संगठन कार्य करते हैं। इनमें महिला विकास, स्वयंसेवी समूह, मानव अस्तित्ववाद मानवीय गरिमा, महिला सशक्तिकरण तथा बहुलवादी एवं सूर्योदय विकास शामिल है।विभिन्न प्रकार के मुद्दे इस प्रकार है – (i)बांधों के निर्माण अथवा विकास की अन्य परियोजनाओं के कारण विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास। (ii)स्त्रियों के प्रति हिंसा और बलात्कार के विरुद्ध अभियान। (iii) प्राथमिक शिक्षा संबंधी सुधार। (iv) दलितों को भूमि का वितरण। (v) नागरीय शासन का हस्तांतरण। (vi) भूमि संबंधी अधिकारों के लिए जनजातीय संघर्ष। (vii) मशीनो की सहायता से मछली पकड़ने के विरूद्ध में मछुआरों का संघर्ष। (viii) फेरी लगाकर सामान बेचने वाले तथा पटरी पर रहने वालों का पूनर्वास। (ix) गंदी बस्तियां हटाने के विरूद्ध और आवासीय अधिकारों के लिए अभियान। (x) सूचना के अधिकार।

Q.3.क्षेत्रवाद से क्या अभिप्राय है? वर्णित कीजिए।
Ans:क्षेत्रवाद – एक खास क्षेत्रीय पहचान के लिए प्रतिबद्ध विचारधारा, जो भौगोलिक क्षेत्र के अलावा, भाषा, सजातीय आदि अन्य विशेषताओं पर आधारित होती है। भारत में क्षेत्रवाद के पाए जाने के कारण काफी साधारण है। यह भारत की भाषाओं, संस्कृतियों और धर्मों की विविधाता के कारण पाया जाता है इन विभिन्न क्षेत्रों को भौगोलिक संकेंद्रण के कारण भी काफी प्रोत्साहन दिया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय राज्यों ने ब्रिटिश व्यवस्था को अपनाए रखा जिसके अंतर्गत भारत बड़े-बड़े प्रांतों में बंटा हुआ था। इन बड़े – बड़े प्रांतों को प्रेसीडेंसी कहा जाता था जिनमें कलकत्ता, मुंबई, मद्रास जैसे 3 शहरों के नाम थे। यह बड़े-बड़े प्रांतीय राज्य थे। पुराना मुंबई राज्य मराठी, गुजराती, कन्नड़ एवं कोकणी बोलने वाले लोगों का बहुभाषी राज्य था। मद्रास राज्य तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालय बोलने वाले लोगों का बहुभाषी राज्य था। क्षेत्रीय तथा जनजातीय पहचान ने भाषा के साथ मिलकर भारत में नृजातीय – राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए एक अत्यंत सशक्त साधन का काम किया है। 2000 में बने तीन नए राज्यों, जैसे – झारखंड, उत्तरांचल और छत्तससगढ़ के निर्माण में क्षेत्रीय वचन और नृजातीयता ने मिलकर इन राज्यों की स्थापना में काफी सहयोग दिया।

Q.4.राष्ट्र को परिभाषित करना क्यों कठिन है? आधुनिक समाज में राष्ट्र और राज्य कैसे संबंधित हैं?
Ans: राष्ट्र – राष्ट्र एक तरह का बड़े स्तर का समुदाय ही होता है। यह विभिन्न समुदायों से मिलकर बना एक समुदाय है। राष्ट्र एक ऐसा अनूठा किस्म का समुदाय होता है जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता। इस कारण है कि धर्म, भाषा, नृजातीयता, इतिहास अथवा क्षेत्रीय संस्कृति जैसी साझी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संस्थाओं के आधार पर राष्ट्रों का वर्णन किया जा सकता है। परंतु यह पता लगाना कि किसी राष्ट्र में कैसी विशेषताएं होनी चाहिए, अत्यंत कठिन होता है। उदाहरण के तौर पर, ऐसे बहुत से राष्ट्र है जिनकी अपनी एक साझा या सामान्य भाषा, धर्म, नृजातीयता नहीं है। दूसरी और ऐसी अनेक भाषाएं, धर्म या नृजातियां है जो कई राष्ट्रो में पाई जाती है। एक राज्य के लिए ‘राष्ट्र’ एक सर्वाधिक स्वीकृत अथवा औचित्यपूर्ण आवश्यकता है। राज्यों को राष्ट्र की उनती ही आवश्यकता है जितनी राष्ट्र को राज्यों की। आज भावी अथवा आकांक्षी राष्ट्रीयताएं अपना राज्य बनाने के लिए प्रयत्नशील है। हाल के समय में राष्ट्र और राज्यों के बीच एक – एक का संबंध है। राष्ट्र ऐसे समुदाय होते हैं जिनका अपना राज्य होता है, परंतु पहले यह बात सच नहीं थी। अर्थात एक राज्य केवल एक ही राज्य का प्रतिनिधित्व कर सकता था। प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक राज्य होना जरूरी था। एतिहासिक तौर पर राज्यों ने राष्ट्र निर्माण की रणनीतियों के माध्यम से अपनी राजनीतिक वैधता को स्थापित करने और उसे एकीकरण की नीतियों के जरिए अपने नागरिकों की निष्ठा, देशभक्ति और आज्ञाकारिता प्राप्त करने के प्रयास किए हैं। ऐसी परिस्थितियों में नागरिक अपने देश के साथ अपने नृजातीय, धार्मिक, भाषायी अथवा अन्य प्रकार के समुदाय के साथ भी गहरा तादात्म्य रखते हैं।

Q.5.आधुनिक भारत में एकता के तत्व का वर्णन करें।
Ans:भारत में लंबे समय तक औपनिवेशिक शासन रहा है। देश के विभिन्न भागों पर अंग्रेज, पुर्तगाली, फ्रांसीसी कब्जा जमाए बैठे थे। भारतीय सभ्यता के एकता के सूत्र औपनिवेशिक शासन काल में कमजोर पड़ते गये। आधुनिक शिक्षण प्रणाली के प्रसार से भारतीय संस्कृति पर पश्चिमीकरण का प्रभाव बढ़ने लगा। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) ने भारतीय समाज में एकता के नये स्रोत विकसित किए। भारत के सभी धर्मों के मानने वाले लोगों ने मिलकर विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया। राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की भावना की भूमिका धर्म और संस्कृत की तुलना में ज्यादा प्रमुख होती गई। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय संविधान ने भारत की एकता को बढ़ाने के लिए उसे समानता, भ्रतृत्व, पंथ निरपेक्षता और न्याय जैसे मूल्यों के साथ जोड़ दिया। आधुनिक भारत में एकता के प्रमुख आधार निम्नलिखित है – (i) भारतीय संविधान – संविधान भारत में एकता का सबसे मौलिक स्रोत है। भारतीय इसकी रूपरेखा को एकता का आधार मानते हैं। (ii) भारतीय संसद – यह भारतीय राष्ट्र कि वह इकाई है जो राष्ट्रीय स्तर पर कानून का निर्माण करती है। इसके प्रतिनिधियों का चुनाव आम जनमत के द्वारा किया जाता है। यह लोगो की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करती है। (iii) भारत में सर्वोच्च पद राष्ट्रपति का है जो प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सलाह से शासन चलाते हैं। (iv) न्यायपालिका इस देश की जनता को कानूनी संरक्षण देती है। यह भारतीय संविधान की परीक्षक है। (v) नौकरशाही, पुलिस तथा अन्य प्रशिक्षित व्यवसायों के लोग जैसे इंजीनियर, वैज्ञानिक, चिकित्सक, शिक्षक, पत्रकार, सैनिक आदि इस देश की एकता के लिए निरंतर प्रयत्न करते हैं। (vi) जनसंचार के साधन – जनसंचार के साधनों जैसे रेल, सड़क, वायुयान, जलयान, डाकघर, पत्र – पत्रिकाएं, रेडियो, टेलीविज़न आदि ने राष्ट्रीयता की भावना को फैलाने का कार्य किया है। (vii) औद्योगीकरण – शहरीकरण – इन कारकों ने देश में मध्य वर्ग को जन्म दिया है। सेवा क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ है जिसने राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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