औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास | Audyogik Samaj mein Parivartan aur Vikas | sociology class 12 chapter 5 NCERT Notes

Sociology class 12 chapter 5: JAC Board Ranchi Important Questions and Answers. Class 12 Sociology pdf notes in Hindi. class 12 sociology ncert notes in Hindi. Short and long questions answers of sociology class 12.

Sociology class 12 chapter 5

Sociology class 12 chapter 5: अति लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.लघु उद्योगों को विकसित करने के लिए भारत सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं। कोई चार उपाय लिखे।
Ans:
लघु उद्योगों को विकसित करने के लिए उठाए गए चार उपाय निम्नलिखित हैं –

  • सरकार ने लघु उद्योगों की कुछ वस्तुओं को कर से मुक्त रखा है।
  • इन्हें बैंकों से कम ब्याज पर ऋण दिया जाता है।
  • लघु उद्योगों के विकास के लिए देश में बड़ी संख्या में औद्योगिक बस्तियों की स्थापना की गई है।
  • कुछ वस्तुओं के उत्पादन का आरक्षण लघु उद्योगों को दिया गया है।

Q.2.संरक्षण की नीति किस अवधारणा पर आधारित है?
Ans:
संरक्षण की नीति इस अवधारणा पर आधारित है कि विकासशील देशों के उद्योग अधिक विकसित देशों से निर्मित वस्तुओं का मुकाबला नहीं कर सकते। ऐसी मान्यता है कि यदि घरेलू उद्योगों को संरक्षण दिया जाता है तो वे कुछ समय के पश्चात विकसित देशों को निर्मित वस्तुओं का मुकाबला कर सकेंगे।

Q.3.लघु उद्योग किसे कहते हैं?
Ans:
लघु उद्योगों को निवेश की मात्रा के आधार पर परिभाषित किया जाता है। समय-समय पर निवेश की मात्रा में परिवर्तन किया जाता है। 1950 में उस उद्योग को लघु उद्योग कहा जाता था जिसमें अधिकतम निवेश 5,00,000 रुपये है। वर्तमान समय में इस सीमा कोष को बढ़ाकर एक करोड़ कर दिया गया है।

Q.4.घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से किन दो रूपों में संरक्षण दिया गया? उन रूपों का संक्षेप में वर्णन करें।
Ans:
घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से दो रूपों में संरक्षण दिया गया – प्रशुल्क तथा कोटा। प्रशुल्क से अभिप्राय आयातित वस्तुओं पर कर से हैं। प्रशुल्क से आयात की जाने वाली वस्तु महंगी हो जाती है। परिणामस्वरूप आयात कमी जाने वाले वस्तुओं का प्रयोग कम हो जाता है। कोटा यह निर्धारित करता है कि कितनी मात्रा में वस्तुओं का आयात किया जा सकता है। प्रशुल्क और कोटे का उद्देश्य आयात पर प्रतिबंध लगाना और घरेलू फर्मों को विदेशी प्रतियोगिता में संरक्षण देना है। विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण मिलने पर हमारे देश में घरेलू इलेक्ट्रॉनिक तथा ऑटोमोबाइल उद्योग विकसित हो सके।

Q.5.विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण की आलोचना किस आधार पर की जाती है?
Ans:
ऐसा माना जाता है कि अधिक समय तक संरक्षण देने से उद्योग अपनी वस्तुओं की गुणवत्ता नहीं बढ़ायेगे क्योंकि उन्हें पता है कि वह ऊंची कीमत पर अपनी निकृष्ट वस्तुएं अपने देश में बेच सकते है।

Q.6.भारत में औद्योगिक लाईसेंसिंग नीति के क्या प्रमुख उद्देश्य रहे हैं?
Ans:
भारत में औद्योगिक लाईसेंसिंग नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  • विभिन्न योजनाओं के लक्ष्यों के अनुसार औद्योगिक निवेश तथा उत्पादन की विकसित एवं नियंत्रित करना।
  • छोटे और लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना तथा उन्हें संरक्षण प्रदान करना।
  • औद्योगिक स्वामित्व के रूप में आर्थिक शक्ति के केंद्रीकरण को रोकना।
  • आर्थिक विकास के क्षेत्र में क्षेत्रीय असमानताओ को दूर करना तथा समुचित संतुलित औद्योगिक विकास के लिए प्रेरित करना।

Sociology class 12 chapter 5: लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.औद्योगीकरण से आई समानता – असमानता का वर्णन कीजिए।
Ans:
औद्योगीकीकरण कुछ एक स्थानों पर अभूतपूर्व समानता लाता है। उदाहरण के लिए रेलगाड़ियां, बसों और साइबर कैफे में जातीय भेदभाव के महत्व का न होना। दूसरी ओर, भेदभाव के पुराने स्वरूपों को नए कारखानों और कार्यस्थलों में अभी भी देखा जा सकता है। हालांकि, इस संसार में सामाजिक असमानताएं कम हो रही है लेकिन आर्थिक अथवा आय से संबंधित असमानताएं उत्पन्न हो रही है। बहुधा – सामाजिक और आय संबंधी असमानता परस्पर अच्छादित हो जाती है। उदाहरण के लिए अच्छे वेतन वाले व्यवसायों जैसे दवा, कानून अथवा पत्रकारिता में उच्च जाति के लोगों का वर्चस्व आज भी बना हुआ है। महिलाएं (अधिकांशत:) समान कार्य के लिए कम वेतन ही पाती है। कुछ समय से समाजशास्त्रियों ने औद्योगीकरण को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में देखा है। आधुनिकीकरण के सिद्धांत के प्रभाव से 20वीं शताब्दी के मध्य से औद्योगीकरण अपरिहार्य एवं सकारात्मक रूप में दिखाई दे रहा है। आधुनिकीकरण का सिद्धांत यह तर्क देता है कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में पृथक समाज की अवस्थाएं अलग-अलग है परंतु उन सभी की दिशा एक ही है। इन सिद्धांतकारों के अनुसार आधुनिक समाज पश्चिम का प्रतिनिधित्व कर रहा है।

Q.2.औद्योगीकरण की प्रारंभिक दशा में समाजशास्त्र ने क्या कार्य किए ?
Ans:
समाजशास्त्र में अनेकों महत्वपूर्ण कार्य उस समय किए गए थे जबकि औद्योगीकरण एक नई अवधारणा था और मशीनों ने एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया हुआ था। कार्ल मार्क्स, वेबर और एमील दुर्खाइम जैसे विचारको ने उद्योग को अनेक नई संकल्पनाओ से स्वयं को जोड़ा। ये थी नगरीकरण जिसने आमने-सामने के संबंध को बदला जो कि ग्रामीण समाजों में पाए जाते थे। जहां कि लोग अपने या परिचितों के भूस्वामियों के खेतों में काम करते थे, उन संबंधों का स्थान आधुनिक कारखानों एवं कार्यस्थलों के अज्ञात व्यवसायिक संबंधों ने ले लिया। औद्योगीकरण से एक विस्तृत श्रम विभाजन होता है। लोग अधिकांशतया अपने कार्यों को अंतिम रूप नहीं दे पाते क्योंकि उन्हें उत्पादन के एक छोटे – से पुर्जे को बनाना होता है। अक्सर यह कार्य दोहराने और थकाने वाला होता है, लेकिन फिर भी बेरोजगार होने से यह स्थिति अच्छी है। मार्क्स ने इस स्थिति को ‘अलगाव’ कहा, जिसमें लोग अपने कार्य से प्रसन्न नहीं होते, उनकी उत्तरजीवित भी इस बात पर निर्भर करती है कि मशीनें मानवीय श्रम के लिए कितना स्थान छोड़ती हैं।

Q.3.भारत में स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में औद्योगीकरण की क्या दशा थी?
Ans:
कपास, जूट, कोयला खाने एवं रेलवे भारत के प्रथम आधुनिक उद्योग थे। स्वतंत्रता के पश्चात सरकार ने आर्थिकी को ‘प्रभावशाली ऊंचाइयों’ पर रखा। इसमें सुरक्षा, परिवहन एवं संचार, ऊर्जा, खनन एवं अन्य परियोजनाओं को सम्मिलित किया गया। जिन्हें करने के लिए सरकार ही सक्षम थी और यह निजी उद्योगों के विकास के लिए भी आवश्यक था। भारत की मिश्रित आर्थिक नीति में कुछ क्षेत्र सरकार के लिए आरक्षित थे जबकि कुछ निजी क्षेत्रों के लिए खुले थे। लेकिन उसमें भी सरकार अपनी अनुज्ञप्ति (लाईसेंसिंग) नीति द्वारा यह सुनिश्चित करने का प्रयास करती है कि वे उद्योग विभिन्न भागों में फैले हुए हो। स्वतंत्रता के पहले उद्योग मुख्यत: बंदरगाह वाले शहरों जैसे मद्रास, मम्बई एवं कोलकाता (चेन्नई, मुंबई एवं कोलकाता) तक ही सीमित थे। लेकिन उसके पश्चात अन्य स्थान जैसे बड़ौदा (बड़ोदरा), कोयम्बटूर, बंगलोर (बंगलुरु) पूणे, फरीदाबाद एवं राजकोट भी महत्वपूर्ण औद्योगीक केंद्र बन गए। सरकार अन्य छोटे पैमाने के उद्योगो को भी विशिष्ट प्रोत्साहन एवं सहायता देकर प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रही है। अनेक वस्तुएं जैसे कागज एवं लकड़ी के सामान, लेखन सामग्री, शीशा एवं चीनी मिट्टी के उद्योग, छोटे पैमाने के क्षेत्रों के लिए आरक्षित थे। 1991 तक कुल कार्यकारी जनसंख्या में से केवल 28% बड़े उद्योगों में नौकरी कर रहे थे, जबकि 72% लोग छोटे पैमाने के एवं परंपरागत उद्योगो में कार्यरत थे।

Q.4.औद्योगिक नीति 1956 ने भारत के उद्योगों को कितनी श्रेणियों में बांटा ? इन वर्गों में किन उद्योगों को रखा गया?
Ans:उद्योगों का वर्गीकरण –
औद्योगिक नीति के अनुसार भारतीय उद्योगों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया – (i) प्रथम वर्ग (ii) द्वितीय वर्ग (iii) तृतीय वर्ग।

  • प्रथम श्रेणी – प्रथम श्रगेणी में युद्ध सामग्री का निर्माण, परमाणु शक्ति के उत्पादन एवं नियंत्रण, अस्त्र – शस्त्रों का निर्माण, रेल यातायात तथा डाकघर रखा गया। इसके स्वामित्व और प्रबंध तथा स्थापना एवं विकास का दायित्व पूर्ण रूप से केंद्रीय सरकार को सौंपा गया।
  • द्वितीय श्रेणी – इस श्रेणी में वे उद्योग रखे गये जिनके विकास में सरकार अधिक भाग लेगी। उद्योगों को इस श्रेणी में रखा गया जैसे औजार, मशीन, दवाइयां, रासायनिक खाद, रबड़, जल यातायात, सड़क यातायात आदि। भविष्य में इस श्रेणी के उद्योगों की स्थापना सरकारी क्षेत्र में ही की जायेगी।
  • तृतीय श्रेणी – इस श्रेणी में उन सभी उद्योगों को रखा गया जो निजी क्षेत्र के लिए सुरक्षित रहेंगे। इनका विकास निजी क्षेत्र की प्रेरणा से होगा किंतु इस श्रेणी में भी राज्य नए उद्योगों की स्थापना कर सकता है।

Q.5.उदारीकरण ने रोजगार के प्रतिमानो को किस प्रकार प्रभावित किया है?
Ans:
भारत अभी भी एक कृषि प्रधान देश है। सेवा क्षेत्र – दुकानें, बैंक, आई.टी. उद्योग, होटल्स और अन्य सेवाओं के क्षेत्र में, अधिक लोग आ रहे हैं और नगरीय मध्य वर्ग की संख्या भी बढ़ रही है। नगरीय मध्य वर्ग के साथ वे मूल्य जो टेलीविजन सीरियलों और फिल्मों में दिखाई देते हैं, वो भी बढ़ रहे हैं। परंतु हम यह भी देखते हैं कि भारत में बहुत कम लोगों के पास सुरक्षित रोजगार उपलब्ध है, यहां तक की छोटी संख्या के स्थायी सुरक्षित रोजगार भी अनुबंधित कामगारों के कारण असुरक्षित होते जा रहे हैं। अब तक सरकारी रोजगार ही जनसंख्या के अधिकांश लोगों का कल्याण करने का एक बड़ा मार्ग था, लेकिन अब वह भी कम होता जा रहा है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने इस पर विचार-विमर्श भी किया लेकिन विश्वव्यापी उदारीकरण एवं निजीकरण के साथ आमदनी की असमानताएं भी बढ़ रही है। उदारीकरण के कारण बड़े उद्योगों में भी सुरक्षित रोजगार कम होता जा रहा है, सरकार ने भी उद्योग लगाने के लिए भूमि अधिग्रहण की नीति प्रारंभ की है। यह उद्योग आस – पास के क्षेत्र के लोगों को रोजगार नहीं दिलवाते हैं बल्कि ये वहां जबरदस्त प्रदूषण फैलाते हैं। बहुत – से किसान जिनमें मुख्य रुप से आदिवासी शामिल है, कुल विस्थापितो में से करीब 40% हैं, ने क्षतिपूर्ण की कम दर के लिए विरोध किया और इन्हें जबरन दिहाड़ी मजदूर बनना पड़ा और उन्हें बड़े शहरों के फुटपाथ पर काम करते देखा जा सकता है।

Sociology class 12 chapter 5: दीर्घ स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.हड़ताल के दौरान कामगार और उनके परिवार कैसे अपने आपको बचाए रख पाए?
Ans:
हड़ताल के दौरान कामगार और उनके परिवार अपने आप को निम्नलिखित तरीकों से बचाएं थे जो इस प्रकार थे –

  • 1982 की कपड़ा मिल की हड़ताल मजदूरों ने अपने हक के लिए की थी, जिसमें वेतन, बोनस, छुट्टी के मुद्दे शामिल थे।
  • कामगार वेतन और महंगाई भत्ते के अलावा मिलने वाले अन्य भक्तों व सुविधाओं की मांग को लेकर हड़ताल पर गए।
  • दत्ता सामंत मजदूरों के अत्यधिक आग्रह करने पर ही नेतागिरी स्वीकार कर सके।
  • हड़ताल तोड़ने को राज्य और सरकार दोनों का समर्थन प्राप्त था इसलिए उन्होंने जबरदस्ती मिल खुलवा दी।
  • माफिया के गुंडों को जेल से सरकार ने छोड़ दिया और उन्हेंने दबाव बनाकर मजदूरों में अपनी जगह बनाई।
  • महिलाओं को मोर्चा निकालने के अपराध में जेल भेज दिया गया। उन्हें बेइज्जत किया गया। महिलाओं का सरकार इज्जत के साथ मजदूरी करने अपने बच्चों की भूख को शांत करना था।
  • हड़ताल के दौरान कामगार और उनके परिवार घर की वस्तुएं, बर्तन आदि बेचकर अपने आपको बचाए रख पाए।

Q.2.योजना अवधि के दौरान औद्योगिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र को ही अग्रणी भूमिका क्यों सौंपी गई थी?
Ans:
सार्वजनिक उपक्रम से अभिप्राय ऐसी व्यवसायिक या औद्योगिक संस्था से है जिका स्वामित्व, प्रबंध एवं संचालन सरकार या उसकी किसी संस्था के अधीन होता है। स्वतंत्रता के बाद भारत में सार्वजनिक क्षेत्र को निम्नलिखित कारणों से महत्व दिया गया है –

  • विशाल विनियोग की आवश्यकता – कई ऐसे आधारभूत तथा देश के लिए आवश्यक उद्योग होते हैं जिनमें इतने निवेश की आवश्यकता होती है कि निजी क्षेत्र के उद्योग उनमें रुचि नहीं लेते। अतः उन उद्योगों की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्र में ही करनी पड़ती है।
  • क्षेत्रीय असमानताओ को दूर करने के लिए – भारत जब स्वतंत्र हुआ था तो उस समय क्षेत्रीय समानताएं बहुत थी। इन क्षेत्रीय असमानताओ को दूर करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में उपक्रमो की स्थापना आवश्यक थी। सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जो आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं।
  • आर्थिक शक्ति के केंद्रीकरण को रोकने के लिए – जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो उस समय आय तथा संपत्ति का असमान वितरण था। देश के कुछ लोगों के पास ही देश का अधिकांश धन केंद्रित था। अमीर लोग बहुत अमीर थे और गरीब लोग बहुत ही गरीब थे आय की विषमताओं को कम करने के लिए स्वतंत्रता के पश्चात सार्वजनिक क्षेत्र को महत्व दिया गया।
  • आधारभूत संरचनाओं का विकास करने के लिए – स्वतंत्रता के समय भारत में आधारभूत संरचनाये अविकसित तथा असंतोषजनक थी। बिना आधारभूत संरचनाओं में सुधार लाये देश का विकास नहीं हो सकता। आधारभूत संरचनाओं को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र आगे आने को तैयार नहीं था, क्योंकि आधारभूत संरचनाओं में काफी निवेश होता है और काफी समय के पश्चात उनसे आय प्राप्त होती है। अतः इन संरचनाओं को विकसित करने के लिए सरकार को आगे आना पड़ा।
  • सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण – जब देश स्वतंत्र हुआ तो उस समय भारत की सुरक्षा खतरे में थी। देश की सुरक्षा के लिए युद्ध सामग्री (बम, गोले, अस्त्र, शस्त्र) के निर्माण की आवश्यकता थी। युद्ध सामग्री के निर्माण के लिए हम निजी क्षेत्र पर भरोसा नहीं कर सकते। अतः इन सबका निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र में किया गया।

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