जाति, धर्म और लैंगिक मसले: इस आर्टिकल में आप कक्षा 10 की राजनीतिक विज्ञान की अध्याय 4 के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर दिए गए है। ये सभी प्रश्न उत्तर कक्ष 10 की वार्षिक परीक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण है।
जाति, धर्म और लैंगिक मसले अति लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. तीन प्रकार की सामाजिक विषमताएं बताएं।
Ans: तीन प्रकार की सामाजिक विषमताएं निम्नलिखित है:
1) जाति 2)धर्म 3)लिंग
Q.2. पितृ प्रधान का अर्थ स्पष्ट करें।
Ans: वैसे तो पितृ प्रधान का शाब्दिक अर्थ पिता का शासन होता है परंतु कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व ज्यादा शक्ति देने वाली व्यवस्था को इंगित करने के लिए भी किया जाता है।
Q.3. भारतीय समाज पितृसत्तात्मक है या मातृसत्तात्मक?
Ans: भारतीय समाज पितृसत्तात्मक है भारत में आज भी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता है तथा पुरुषों को महिलाओं से अधिक शक्तिशाली समझा जाता है।
Q.4. जाति प्रथा से क्या अभिप्राय है?
Ans: शाम शास्त्री ने अपने प्रसिद्ध पुस्तक ‘जाति की उत्पत्ति’ में जाति प्रथा की परिभाषा देते हुए लिखा है कि- विवाह और भोजन जैसे कार्यों में कुछ लोगों के आपस में संगठित हो जाने को जाति प्रथा कहते हैं।
Q.5. महिलाओं के उत्थान के लिए किए गए दो कार्य कौन-कौन से हैं?
Ans: महिलाओं के उत्थान के लिए किए गए दो कार्य-
1) महिलाओ के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान करने की ओर ध्यान दिया गया है।
2) महिलाओं की राजनीति और वैधानिक दर्जे को ऊंचा उठाने का प्रयत्न किया गया है।
जाति, धर्म और लैंगिक मसले लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. सांप्रदायिकता से क्या तात्पर्य है?
Ans: सांप्रदायिकता एक ऐसी भावना है जिसमे लोग अपने धर्म को ऊंचा तथा दूसरे धर्मों को नीचा समझते है। दूसरे शब्दों में अपने धर्म से प्यार करना तथा दूसरे के धर्म से घृणा करना सांप्रदायिकता कहलाती है। सांप्रदायिकता के कारण ही 1947 में भारत के कुछ भागों को अलग करके एक अलग देश पाकिस्तान बनाया गया।
Q.2. सांप्रदायिकता को दूर करने के उपाय बताएं।
Ans: सांप्रदायिकता को दूर करने के उपाय निम्नलिखित हैं-
- शिक्षा के द्वारा: शिक्षा के पाठ्यक्रमों में सभी धर्मों की अच्छाइयों को बताया जाए तथा बच्चों को सभी धर्मों के प्रति आदर व सम्मान भावना सिखाया जाए। ऐसा करने से सांप्रदायिकता को दूर किया जा सकता है।
- प्रचार द्वारा: सांप्रदायिकता को दूर करने के लिए समाचार पत्रों, वीडियो आदि से जनता को धार्मिक सहिष्णुता के शिक्षा देनी चाहिए।
Q.3. धर्मनिरपेक्ष राज्य से आपका क्या अभिप्राय है?
Ans: धर्मनिरपेक्ष राज्य से हमारा अभिप्राय एक ऐसे राज्य से हैं जहां किसी भी धर्म के साथ कोई धार्मिक पक्षपात ना किया जाता हो। वहां पर सभी धर्मों को एक समान समझा जाता है तथा किसी भी एक धर्म को अधिक मान्यता प्राप्त नहीं होती। धर्मनिरपेक्ष राज्य का कोई राजकीय धर्म नहीं होता बल्कि वहां पर सभी धर्मों को एक समान सम्मान और आदर्श भावना से देखा जाता है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है यहां पर सभी लोगों को निष्पक्ष रूप से अपने अपने धर्मों का पालन करने का अधिकार है।
Q.4. जातिवाद से क्या तात्पर्य है? इसकी बुराइयों को कैसे दूर किया जा सकता है?
Ans: जातिवाद से अभिप्राय एक ऐसे व्यवहार से है जिसमें उत्तेजित होकर उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग से घृणा करने लगते हैं जाति व्यवस्था का आधार जन्म होता है।
जातिवाद की बुराइयों से निपटने की तरीके:
- जातिवाद की भावना के विरुद्ध जनमत तैयार करना चाहिए
- सरकार को कानूनी तौर पर स्त्री पुरुष के बीच समानता लाने का प्रयास करना चाहिए
Q.5. जातिवाद के दुष्प्रभाव लिखें।
Ans: जातिवाद के दुष्प्रभाव निम्रलिखित है:
- सामाजिक समानता यह जातिवाद से उच्च नीच की भावना उत्पन्न होती है। एक जाति का दूसरी जाति के द्वारा उत्पीड़न व शोषण किया जाता , यह वातावरण लोकतंत्र के लिए बड़ा बाधक है।
- जातिवाद के कारण ही जनता विभिन्न वर्गों में बट जाती है तथा उनमें अनेक प्रकार के भेदभाव उत्पन्न होने लगते हैं और देश की एकता नष्ट हो होने की खतरा होती है।
- सामाजिक असमानता या जातिवाद के कारण लोग वोट भी इसी आधार पर देने लगते हैं जो लोकतंत्र के लिए बड़ा ही खतरनाक सिद्ध होता है।
जाति, धर्म और लैंगिक मसले दीर्घ उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. जाति का राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
Ans: राजनीति या चुनाओ में जातिगत भावनाओ का प्रभाव अवश्य पड़ता है परंतु कम मात्रा में। जाति ही राजनीति का आधार है यह बात सच नहीं है। निम्नलिखित बातों से इसे स्पष्ट किया जा सकता है-
- किसी एक संसदीय चुनाव में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं होता। इसलिए उम्मीदवार को एक जाति का नहीं बल्कि सब जातियों के लोगों का भरोसा प्राप्त करना होता है।
- यदि किसी विशेष चुनाव क्षेत्र में एक जाति के लोगों का प्रभुत्व होता है तो विभिन राजनीतक दल उसी के जाति के उम्मीदवार को खड़ा कर देते है ऐसे में उस जाति का प्रभाव जाता रहता है।
- कितनी बार ऐसा देखा गया है कि एक ही जाति के लोग एक बार जिस उम्मीदवार को सफल बना देते है अगली बार उसे हटा देते है ऐसे में वह जातीय प्रभे कहा गया।
- चुनाओ में जाती की भूमिका ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उनके अगले कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। राजनीतिक दलों से गहरा जुड़ाव सरकार द्वारा किया गया काम काज और नेताओ की लोकप्रियता भी चुनाओ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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