आदिवासी, दीकू और एक स्वर्ण युग की कल्पना(Aadiwasi, diku aur ek swarn yug ki kalpana)

आदिवासी, दीकू और एक स्वर्ण युग की कल्पना: इस पाठ में आदिवासी और दीकू के समाज की अध्ययन करेंगे और सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर को भी देखेंगे जो वार्षिक परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वूर्ण है।

आदिवासी, दीकू और एक स्वर्ण युग की कल्पना महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य

  • बिरसा मुंडा: बिरसा मुंडा का जन्म एक मुंडा परिवार में हुआ था। मुंडा एक जनजातीय समूह है जो छोटानागपुर में रहता है। लोग कहते थे कि बिरसा मुंडा के पास चमत्कारी शक्तियां है वह सारी बीमारियां दूर कर सकता था और अनाज की छोटी सी गहरी को कई गुना बढ़ा सकता था। बिरसा ने खुद यह ऐलान कर दिया था कि उसे भगवान ने लोगों की रक्षा दीकुओ की गुलामी से आजाद करवाने के लिए भेजा है।
  • झूम खेती: झूम खेती को घुमंतू खेती को कहा जाता है इस तरह की खेती अधिकांश क्षेत्र जंगलों में छोटे छोटे भूखंडों पर की जाती थी यह लोग जमीन तक धूप लाने के लिए पेड़ों के ऊपरी हिस्से को काट देते थे और जमीन पर उगी घास को जलाकर साफ कर देते थे इसके बाद घास फूस जलने पर पैदा हुई राख को खाली जमीन पर छिड़क देते थे इस राख में पोटाश होती थी जिससे मिट्टी उपजाऊ हो जाती थी। एक बार फसल तैयार हो जाती थी तो उसे काटकर वेदूसरी जगह के लिए चल पड़ते थे।
  • उड़ीसा में खोंड समुदाय रहता था। इस समुदाय के लोग टोलियां बनाकर शिकार पर निकलते थे और जो हाथ लगता था उसे आपस में बांट लेते थे। खाना पकाने के लिए वे साल और महुआ के बीजों का तेल इस्तेमाल करते थे। इलाज के लिए वे बहुत सारी जंगली जड़ी- बूटियों का इस्तेमाल करते थे और जंगलों में इकट्ठा हुई चीजों को स्थानीय बाजारों में बेच देते थे। जब भी स्थानिय बुनकरो और चमड़ा कारीगरों को कपड़े व चमड़े की रंगाई के लिए कुसुम और पलाश के फूलों की जरूरत होती थी तो भी खोंड समुदाय के लोगों से ही कहते थे।
  • मध्य भारत के बैगा समुदाय औरों के लिए काम करने से कतराते थे। बैगा खुद को जंगल की संतान मानते थे जो केवल जंगल की उपज पर ही जिंदा रह सकती है।मजदूरी करना है बैगाओ के लिए अपमान की बात थी।
  • पंजाब के पहाड़ों में रहने वाले वन गुज्जर और आंध्र प्रदेश के लबाडिया आदि समुदाय गाय-भैन्स के झुंड पालते थे। कुल्लू के गद्दी समुदाय के लोग गडरिया थे और कश्मीर के बकरवाल समुदाय बकरियां पालते थे।
  • ब्रिटिश अफसरों को गोंड और संथाल जैसे एक जगह ठहरकर रहने वाले आदिवासी समूह शिकारी संग्राहक या घुमंतू खेती करने वालों के मुकाबले ज्यादा सभ्य दिखाई देते थे।
  • 19वीं और 20वीं शताब्दीयों के दौरान देश के विभिन्न भागों में जनजातीय समूह ने बदलते कानूनों और अपने व्यवहार पर लगी पाबंदीयो नए करो और व्यापारियों व महाजनों द्वारा किए जा रहे शोषण के खिलाफ कई बार बगावत की। 1832-32 में कॉल आदिवासियों ने और 1855 में संस्थानों ने बगावत कर दी थी। मध्य भारत में बस्तर विद्रोह 1910 में हुआ और 1940 में महाराष्ट्र में वर्ली विद्रोह हुआ।

आदिवासी, दीकू और एक स्वर्ण युग की कल्पना NCERT प्रश्न उत्तर

Q1. रिक्त स्थान भरे

  • अंग्रेजों ने आदिवासियों को__________ के रूप में वर्णित किया।
  • झूम खेती में बीज बोने के तरीके को__________कहा जाता था।
  • मध्य भारत में ब्रिटिश भूमि बंदोबस्त के अंतर्गत आदिवासी मुखियाओ को _________स्वामित्व मिल गया।
  • असम के _______और बिहार की________ में काम करने के लिए आदिवासी जाने लगे।

उत्तर: जंगली और बर्बर।
बिखेरना।
भूमि का।
चाय बागानों कोयला खानों।

Q.2. सही या गलत बताएं

  • झूम काश्तकार जमीन की जुताई करते थे और बीज रोपते थे।
    उत्तर: गलत
  • व्यापारी संथालों से कृमिकोश खरीद कर उसे पाँच गुना ज्यादा कीमत पर बेचते थे।
    उत्तर: सही
  • बिरसा ने अपने अनुयायियों का आह्वान किया कि वे अपना शुद्धिकरण करें शराब पीना छोड़ दें और डायन व जादू टोने जैसे प्रथाओं में यकीन ना करें।
    उत्तर: सही
  • अंग्रेज आदिवासियों की जीवन पद्धति को बचाए रखना चाहते थे।
    उत्तर: गलत ब्रिटिश शासन में घुमंतु काश्तकार के सामने कौन सी समस्याएं थी

Q.3. ब्रिटिश शासन में घुमंतु काश्तकार के सामने कौन सी समस्याएं थी?
उत्तर: ब्रिटिश शासन में घुमंतु काश्तकार के सामने निम्न समस्याएं थी:

  • अंग्रेजों ने घुमंतू काश्तकारों को एक जगह बस ने पर मजबूर कर दिया था यह उन लोगों के लिए एक समस्या थी क्योंकि वे काश्तकार इधर से उधर आते जाते रहते हैं और अपनी जीविका चलाते थे।
  • घुमंतू
  • काश्तकारों को अंग्रेजों ने ब्रिटिश मॉडल के अनुसार हल और बैल का प्रयोग करके खेती करने को कहा जिसमें वह निपुण नहीं थे जिस कारण पैदावार अच्छी नहीं होती थी और उन्हें लगान चुकाने में कठिनाई हो रही थी।
  • अंततः इन समस्याओं का हल निकालते हुए उन्होंने विरोध करना आरंभ कर दिया क्योंकि वह वापस अपनी झूम खेती करना चाहते थे जिसमें वे निपुण थे।

Q.4. औपनिवेशिक शासन के तहत आदिवासी मुखियाओ की ताकत में क्या बदलाव आए?
उत्तर: औपनिवेशिक शासन के तहत आदिवासी मुखियाओ की ताकत में निम्न बदलाव आए:

  • आदिवासी मुखिया पहले अपने जंगल में बसने वाले लोगों का प्रशासनिक व्यवस्था अपने अनुसार चलाता था परंतु अंग्रेजों ने उसकी यह ताकत छीन लिया।
  • अब आदिवासी मुखियाओ को अंग्रेज अधिकारियों को कुछ नजराना देना पड़ता था और अंग्रेज अधिकारियों के आदेश अनुसार अपने समूह के लोगों को अनुशासन में रखना पड़ता था।
  • आदिवासी मुखियाओ के पास पहले जितनी भी ताकते थी वे सारी छिन गई थी।

Q.5. दीकुओ से आदिवासियों के गुस्से के क्या कारण थे?
उत्तर: दीकु बाहरी लोगों को कहा जाता था। दीकुओ से आदिवासियों के गुस्से के निम्न है:

  • आदिवासी लोग दीकुओ को अपनी गरीबी का कारण मानते थे।
  • आदिवासियों को लगता था कि दिकु लोग आदिवासियों की जमीन हड़पी जा रहे हैं।
  • आदिवासियों के अनुसार मिशनरी उनके धर्म तथा पारंपरिक संस्कृति की आलोचना करते थे।

Q.6. बिरसा की कल्पना में स्वर्ण युग किस तरह का था? आपकी राय में यह कल्पना लोगों को इतनी आकर्षक क्यों लग रही थी?
उत्तर: बिरसा की कल्पना में स्वर्ण युग:

  • बिरसा मुंडा के समुदाय के लोग ऐसे स्वर्ण युग की बात किया करते थे जब मुंडा लोग दिकुओ के उत्पीड़न से पूरी तरह आजाद थे।
  • अतीत के एक ऐसे स्वर्ण युग की चर्चा करते हैं जब मुंडा लोग अच्छा जीवन जीते थे, तटबंध बनाते थे, कुदरती झरनों को नियंत्रित करते थे, पेड़ और बाग लगाते थे, पेट पालने के लिए खेती करते थे।
  • काल्पनिक युग में मुंडा अपने बिरादरी और रिश्तेदारों का खून नहीं भाते थे वे ईमानदारी से जीते थे।

मेरे अनुसार उनको यह इतनी आकर्षक इसलिए लग रही थी क्योंकि उन्हें लगता था कि एक बार फिर उनके समुदाय के परंपरागत अधिकार बहाल हो जाएंगे।
जब बिरसा मुंडा स्थानीय मिशनरी स्कूल में जाने लगे जहां उन्हें मिशनरियों के उपदेश सुनने का मौका मिला वहां भी उन्होंने यही सुना कि मुंडा समुदाय स्वर्ग का साम्राज्य हासिल कर सकता है और अपने खोए हुए अधिकार वापस पा सकता है अगर वह अच्छे ईसाई बन जाए और अपनी खराब आदतों को छोड़ दें तो ऐसा हो सकता है। बिरसा ने एक जाने-माने वैष्णव धर्म प्रचारक के साथ भी कुछ समय बिताया उन्होंने जनेउ धारण किया और शुद्धता व दया पर जोर देने लगे। बिरसा मुंडा ने अपने स्वर्ण युग को हासिल करने के लिए मुंडाओ से आह्वान किया कि वे शराब पीना छोड़ दें, गांव को साफ रखें और डायन व जादू टोने में विश्वास ना करें । 1895 में बिरसा ने अपने अनुयायियों से आह्वान किया कि वे अपने गौरवपूर्ण अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए संकल्प लें।

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