1857 और उसके बाद (jab janata vidroh karti hai 1857 aur uske baad): इस आर्टिकल में कक्षा 8 की इतिहास( हमारे अतीत- 3) की पाठ्यपुस्तक के छठे अध्याय को विस्तार से समझाया गया है। इस अध्याय में आप 1857 की क्रांति और इस क्रांति के पश्चात हुए परिणामों को पढेगे। यहाँ दिए गए सभी तथ्य एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक से लिए गए हैं जो आपके वार्षिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
1857 और उसके बाद महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य
- रेजिडेंट: अंग्रेजों का एक अधिकारी होता था जो उस क्षेत्र में तैनात होता था जहाँ पर सीधे तौर पर अंग्रेजों का शासन नहीं होता था।
- झांसी की अनी लक्ष्मीबाई चाहती थीं कि कंपनी उनके पति की मृत्यु के बाद उनके दत्तक पुत्र को राजा के रूप में स्वीकार करे। पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नानासाहेब ने भी कंपनी से उनके पिता को उनकी मृत्यु के बाद मिलने वाली पेंशन का भुगतान करने का अनुरोध किया था, लेकिन कंपनी ने इन दोनों अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया।
- अवध की रियासत अंग्रेजों द्वारा कब्जा किए जाने वाली अंतिम रियासतों में से एक थी। 1801 में अवध पर एक सहायक संधि लागू की गई थी और 1856 में इसे अंग्रेजों ने मिला लिया था।
- 1849 गवर्नर जनरल डलहौजी ने घोषणा की कि बहादुर शाह जफर की मृत्यु के बाद, बादशाह के परिवार को लाल किले से बेदखल कर दिल्ली में कहीं और बसाया जाएगा।
- 1856 में कंपनी ने एक नया कानून बनाया, इस कानून में यह प्रावधान किया गया कि अगर कोई व्यक्ति कंपनी की सेना में सेवा करना चाहता है, तो उसे जरूरत पड़ने पर समुद्र के पार जाना होगा। उस समय भारतीय लोग समुद्र पार करना पाप समझते थे, उन्हें लगा कि समुद्र पार करने से उनका धर्म और जाति दोनों भ्रष्ट हो जाएंगे।
- 1850 में, कंपनी द्वारा एक और कानून बनाया गया था जिसमें यह प्रावधान किया गया था कि ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले भारतीय अपने पूर्वजों की संपत्ति पर अपना अधिकार नहीं खोएंगे।
- 29 मार्च 1857 को, युवा सैनिक मंगल पांडे को अपने अधिकारियों पर हमला करने के लिए बैरकपुर में फांसी पर लटका दिया गया था।
- 1857की क्रांति 10 मई को शुरू हुई।
- बैरकपुर छावनी में कुछ सिपाहियों ने अंग्रेजों द्वारा दिए गए नए एनफील्ड राइफल को इस्तेमाल करने से मना कर दिया क्योंकि इस नई तकनीक से लैस एनफील्ड राइफल को इस्तेमाल करने से पहले उसे मुंह से खींचना पड़ता था। उस समय यह अफवाह फैली थी कि नए प्रकार की राइफल में गाय और सुअर की चर्बी का लेप लगा हुआ है जिससे हिंदू और मुसलमान दोनों का धर्म भ्रष्ट हो जाएगा।
- सितंबर 1857 में दिल्ली दोबारा अंग्रेजो के कब्जे में आ गई।
- मार्च 1858 में लखनऊ अंग्रेजो के कब्जे में चला गया।
- जून 1858 में रानी लक्ष्मीबाई की शिकस्त हुई और उन्हें मार दिया गया।
- ब्रिटीश संसद ने 1858 में एक नया कानून पारित किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथ में सौंप दिया।
1857 और उसके बाद NCERT प्रश्न उत्तर
Q.1. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से ऐसे क्या मांग थी जिसे अंग्रेजों ने ठुकरा दिया?
Ans: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कंपनी से मांग थी की कंपनी उनकी पति की मृत्यु के बाद उनके दत्तक पुत्र को राजा मान ले परंतु कंपनी लालची थी उसे झांसी राज्य का को हड़पने का लोग मन में था जिस कारण उसने झांसी की रानी की मांग को अस्वीकार कर दिया और झांसी को 1854 हड़प लिया। इसके बाद लक्ष्मीबाई ने अपने झांसी को वापस पाने के लिए संघर्ष किया, अंग्रेजो के साथ बहुत सारी लड़ाइयां लड़ी और अंततः 1858 में वीरगति को प्राप्त हो गई।
Q.2. ईसाई धर्म अपनाने वालों के हितों की रक्षा के लिए अंग्रेजों ने क्या किया?
Ans: ईसाई धर्म अपनाने वालों के हितों की रक्षा के लिए अंग्रेजों ने 1850 में एक कानून लागू किया जिसमें यह प्रावधान किया गया था कि ईसाई धर्म अपनाने वाले भारतीयों को उनके पिता की संपत्ति से बेदखल नहीं किया जाएगा।
Q.3. सिपाहियों को नए कारतूसों पर क्यों ऐतराज़ था?
Ans: सिपाहियों को नए कारतूसों से इसलिए एतराज था क्योंकि उस समय यह अफवाह फैली हुई थी कि अंग्रेजों द्वारा दिए जा रहे नए करतूसो में गाय और सुअर की चर्बी का लेप लगा हुआ है इस नए प्रकार की कारतूस को इस्तेमाल करने से पहले उसे दांतों से खींचना होता था जिससे हिंदू और मुस्लिम दोनों का धर्म भ्रष्ट हो जाता इसलिए वे इस कारतूस को इस्तेमाल नहीं करना चाहते थी।
Q.4. अंतिम मुगल बादशाह ने अपने आखिरी साल किस तरह बिताए?
Ans: अंतिम मुगल बादशाह को अपमे आखरी वर्ष बहुत ही कठिनाई में बिताने पड़े। सितंबर 1857 में दिल्ली दोबारा अंग्रेजो के कब्जे में आ गई। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई। उनके बेटों को उनकी आंखों के सामने गोली मार दी गई। बहादुर शाह और उनकी पत्नी बेगम जीनत महल को अक्टूबर 1858 में रंगून जेल में भेज दिया गया। इसी जेल में नवंबर 1862 में बहादुर शाह जफर में अंतिम सांस ली।