Mudran Sanskrtiti aur Adhunik Duniya: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनियाँ: काम आराम और जीवन कक्षा 10 की इतिहास का अध्याय 6 का महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर यहाँ देखें। सभी प्रश्न वार्षिक परीक्षा के लिए उपयोगी है। JAC Board के पाठ्यक्रम के अनुसार तैयारी करने वाले पाठको के लिए इस नोट्स को विशेष रूप से तैयार किया गया है। यदि आप किस विशेष प्रश्न का उत्तर चाहते है तो हमें Email कर सकते है।
Mudran Sanskrtiti aur Adhunik Duniya लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. प्रिंट के माध्यम से पहले भारत में हस्तलिखित पांडुलिपि या कैसे रखी जाती थी?
Ans: विभिन्न भाषाओं के पांडुलिपियों को ताड़ के पत्ते या हाथ से बने कागज पर नकल कर लिया जाता था और फिर उनकी आयु बढ़ाने के उद्देश्य से उन्हें तख्तियों की जिल्द में या सिलकर रख दिया जाता था
Q.2. राजा राम मोहन राय द्वारा प्रकाशित दो समाचार पत्र कौन से थे?
Ans: राजा राम मोहन राय ने दो समाचार पत्र समद कौमुदी ( बांग्ला) तथा मिरातूल अकबर (फारसी) किए। ये पत्र सामाजिक सुधारों का प्रचार करते थे।
Q.3. भारत के कुछ राष्ट्रवादी अखबारों के नाम लिखे ।
Ans: बंगाल मे अमृत बाजार पत्रिकए प्रारभं हुई 1868 ई. मे । द हिन्दू मद्रास से प्रकाशत हुआ 1878 मे । 19 वी सदी के अंत तक लगभग 500 समाचार पत्र तथा पत्रिकाएं भारत मे प्रकाशित हुए ।
Q.4. प्रिंटिंग प्रेस से क्या लाभ हुए?
Ans: प्रिंटिंग प्रेस से हुए लाभ:
- इसके द्वारा एक बड़ी मात्र में पुस्तके तैयार करना आसान हो गया।
- पुस्तकों के आसानी से मिलने के फलस्वरूप जहां ज्ञान की वृद्धि हुई वही पाठकों की संख्या भी बढ़ गई।
Q.5. पांडुलिपियों में कौन सी दो मुख्य कमियाँ पाई जाती है?
Ans: पांडुलिपियों को तैयार करना बहुत खर्चीला, अधिक समय लेने वाला तथा अधिक परिश्रम से तैयार होने वाला होता था। पांडुलिपियों को प्रायः बड़ी नाजुक होती है, उनके लाने ले जाने, रख-रखाव में बड़ी कठिनाई होती थी।
Mudran Sanskrtiti aur Adhunik Duniya लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. वुड्ब्लाक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई। कारण दे।
Ans: वुड्ब्लाक प्रिन्ट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई इसके कई करण थे-
- 1295 में मार्कोपोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में काफी सालों तक खोज करने के बाद इटली वापस लौटा। मार्कोपोलो चीन के आविष्कारों की जानकारी लेकर इटली आया।
- 1295 के पहले यूरोप वुड्ब्लाक प्रिन्ट की छपाई से अवगत नहीं था चीन के पास वुड्ब्लाक वाली छपाई की तकनिक पहले मौजूद थी। मार्कोपोलो यह ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा।
- वुड्ब्लाक प्रिन्ट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 तक नहीं आने का एक मुख्य कारण यह था कि कुलीन वर्ग, पादरी और भिक्षु संघ पुस्तकों की छपाई को धर्म के विरुद्ध मानते थे। मुद्रित किताबों को सस्ती और अश्लील मानते थे। अतः पुस्तकों की छपाई को प्रोत्साहन प्रारंभ में नहीं मिला।
Q.2. मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने खुलेआम इसकी प्रशंसा की। कारण दे।
Ans: लूथर जर्मनी का एक पादरी था। वह धर्म सुधार आंदोलन के प्रमुख सुधारको में से एक था। वह रोम गया था जहां उसे यह देखकर दुख हुआ कि पोप और पादरी आध्यातमिक विषयो से बहुत दूर है और सांसारिक विषयों में उलझे पड़े है। जर्मनी वापस आके उसने पोप और पादरीयो के भ्रष्ट जीवन का भांडा फोड़ दिया। शीघ्र ही उसने पोप द्वारा बेचे जाने वाले क्षमापत्रों का खुला विरोध करना शुरू किया उसके प्रयत्नों के फलस्वरूप प्रोटेस्टेंट मत का जन्म तथा विकास हुआ। मार्टिन लूथर द्वारा न्यू टेस्टमेंट की । 5,000 प्रतिलिपियाँ कुछ सप्ताहों में ही बिक गई और उसका दूसरा संस्करण तीन महीने के अंदर ही अंदर छप गया। तभी लूथर से प्रसन्न होकर कहा – प्रिंटिंग ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बाद तोहफा है।
Q.3. गुटेनबर्ग प्रेस पर टिप्पणी लिखे।
Ans: योहन गुटेनबर्ग ने आधुनिक प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार 1448 में किया। इसे गुटनबर्ग प्रेस के नाम से जाना जाता है। गुटेनबर्ग रोमन वर्णमाला के सभी 26 अक्षरों की आकृतियाँ बनाई गई तथा उन्हें इधर उधर ‘मूव’ करा कर शब्दों के निर्माण का प्रयास किया इसी कारण इसे ‘मूववल टाइप प्रिटिंग मशीन’ के नाम से जाना गया। यही विधि अगले 300 सालों तक छपाई की बुनियादी तकनीक रही इसी मशीन से कम समय में अधिक किताबों का छपना संभव हुआ। गुटेनबर्ग प्रेस 1 घंटे में 250 पन्ने छाप सकता था इसमें छपने वाली पहली पुस्तक बाइबल थी 3 वर्षों में उसने बाइबल की180 प्रतियां छापी जो उस समय के हिसाब से काफी तेज थी।
Q.4. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की?
Ans: मुद्रण संस्कृति में भारत में राष्ट्रवाद के विकास में निम्नांकित प्रकार से मदद की:
मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के उदय और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया यह एक शक्तिशाली माध्यम बन गया जिससे राष्ट्रवादी भारतीय देशभक्ति की भावनाओं का प्रसार आधुनिक आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों का प्रचार तथा जनसाधारण में जागृति का विकास हुआ। प्रेस के माध्यम से राष्ट्रवादीओ के लिए अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचाना आसान हो गया। मुद्रण ने जनसाधारण स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व समर्पण करने की प्रेरणा दी। बंकिम चंद्र चटर्जी का उपन्यास ‘आनंदमठ’ जिसे आधुनिक बंगाली देशभक्ति का बाइबिल कहा जाता है और उनका गीत वंदे मातरम भारत के जन जन के लिए स्वाधीनता एवं देशभक्ति का स्रोत बन गया अतः मुद्रण संस्कृति के विकास ने भारतीयों के आत्मगौरव और देशप्रेम को जागृत करके उन्हें स्वाधीनता के मार्ग की ओर अग्रसर किया।
Q.5. प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किसने किया? कौन से पहले पुस्तक प्रकाशित की गई प्रारंभ में प्रकाशित करने का कैसा तरीका था? वर्णन करें।
Ans: एक जर्मन नागरिक जॉन गुटेनबर्ग ने छपाई मशीन का आविष्कार किया। उसने पहली पुस्तक ‘बाइबल’ प्रकाशित की थी। यह भेड़ की खाल पर छापी गई थी। उसने अक्षर रांगे को ढालकर बनाए थे। ये अक्षर जोड़कर शब्द तथा शब्द जोड़कर वाक्य बनाएं। एक लकड़ी के फ्रेम में इन वाक्यों को जोड़ कर रखा गया। इस तरह से एक पृष्ठ तैयार हो जाता था। इन टाइप के अक्षरों पर स्याही लगाकर उस फ्रेम को कागज पर उल्टा हाथ से दबा कर रख दिया जाता था। इस तरह से एक-एक करके पृष्ठ बनाए जाते थे। इस तरह से धीरे-धीरे पृष्ठों को जोड़कर पुस्तक तैयार की जाती थी।
Mudran Sanskrtiti aur Adhunik Duniya दीर्घ उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. छपाई से विरोधी विचारों के प्रसार को किस तरह बल मिलता था। वर्णन करें।
Ans: छपाई से विरोधी विचारों के प्रसार को बल:
- छापेखाने से विचारों के व्यापक प्रचार-प्रसार और बहस मुबाहीसे के द्वार खुले। स्थापित सत्ता के विचारों से असहमत होने वाले लोग भी अब अपने विचारों को छापकर फैला सकते थे।
- अगर छपे हुए और पढ़े जा रहे पर कोई नियंत्रण ना होगा तो लोगों में बागी और और अधार्मिक विचार पनपने लगते हैं।
- मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपने पंचानबे स्थापनाए लिखी। चर्च को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी गई थी। इसके नतीजे में चर्च में विभाजन हो गए।
- छपे हुए लोकप्रिय साहित्य के बल पर कम शिक्षित लोग धर्म की अलग-अलग से परिचित हुए। इटली के एक किसान मेनोकियों ने ईश्वर और सृष्टि के बारे में ऐसे विचार बनाए कि रोमन कैथोलिक चर्च उससे क्रुद्ध हो गया।
Q.2. कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक- एक उदाहरण देकर समझाएं।
Ans: मुद्रित किताबों को लेकर कुछ लोग खुश नहीं थे जिन लोगों ने इसका स्वागत किया था उसके मन में भी कई तरह का डर था कई लोगों को छपी किताब के व्यापक प्रसार और छपे शब्द की सुगमता को लेकर कई आशंकाएं थी कि ना जाने इसका आम लोगों के जीवन पर क्या असर होगा।
किताबों की सुलभता के प्रति चिंतित वर्ग का मानना था कि किताबों से लोगों में बागी और और अधार्मिक विचार पनपने लगेंगे तथा मूल्यवान साहित्य की सत्ता समाप्त हो जाएगी। इस वर्ग में धर्मगुरु सम्राट लेखक और कलाकार आदि शामिल थे। यह किताबों की सुलभता का ही परिणाम था कि सामान्य लोग धर्म के अलग-अलग व्याख्या से परिचित हुए इससे ईसाई धर्म में प्रोटेस्टेंट विचारधारा का उदय हुआ। जिसे कैथोलिक शाखा ने चुनौती के रूप में देखा। धर्मगुरु इसे धर्म विरोधी मानते थे।
जैसे ही बाइबिल और ईश्वर और सृष्टि के नए अर्थ सामने आए धर्मगुरुओं के कान खड़े हो गए। प्रकाशकों पर पाबंदी लगाई गई, पुस्तकों को प्रतिबंधित किया गया तथा लेखकों को ‘धर्म की सुरक्षा’ के नाम पर मौत की सजा दी गई।
भारत में ब्रिटिश शासन ने पुस्तकों को ब्रिटिश राज के खिलाफ एक गंभीर चुनौती के रूप में देखा ब्रिटिश शासकों को अंग्रेजों का यह मानना था कि पुस्तकें ब्रिटिश विरोधी विचारों को जन्म देगी। अतः पुस्तकों के मुद्रण एवं वितरण पर पाबंदियां लगाई गई।