भक्ति- सूफी परम्पराएं
धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रन्ध (लगभग 8 वीं से 18 वीं सदी तक)
इतिहास कक्षा 12वीं
पाठ – 6
Bhakti Sufi Paramparayen: स्मरणीय बिंदु
* इस काल के नूतन साहित्यिक स्रोतों में संत कवियों की रचनाएँ है।
* इतिहासकार इन संत कवियों के अनुयायियों द्वारा लिखी गयी उनकी जीवनियों का भी इस्तेमाल करते है।
* भक्ति आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य असमानता ऊँच-नीच, आमिर-गरीब, छोटे-बड़े की भावनाओं को समाप्त करना था।
* पूरी, उड़ीसा अदि जगहों पर मुख्य देवता को 12 वीं शताब्दी तक आते- आते जगन्नाथ विष्णु के स्वरूप के रूप में प्रस्तुत किया गया।
* देवी की उपासना अधिकतर सिंदूर से पोते गए पत्थर के रूप में ही की जाती थी।
* इस कल में बहुत- भक्ति भक्ति परम्पराओं में ब्राह्मण, देवताओं और भक्त जनों के बिच महत्वपूर्ण बिचौलियें बने रहे।
* प्रारंभिक भक्ति आंदोलन अलवारों लगभग 6ठी शताब्दी ईस्वी में अलवारों और नयनारों के नेतृत्व में हुआ। इन्होने जाती प्रथा और ब्राह्मणों की प्रभुता के विरोध में आवाज उठायी। इन्होने स्त्रियों को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया। अंडाल एक स्त्री अलवार संत थीं तथा अम्मइयार कराईकल एक नयनार स्त्री संत थीं। नलयिरादिव्याप्रबंधम अलवार संतों का प्रमुख संकलन है। इस ग्रन्थ को तमिल में पांच वेध का स्थान प्राप्त है।
* धर्म के इतिहासकार भक्ति परम्परा को दो मुख्या वर्गों में बाँटते है। ( क ) सगुन- शिव, विष्णु तथा उनके अवतार व् देवियों की आराधना की जाती है। ( ख) निर्गुण – इसमें अमूर्त, निराकार ईश्वर की उपासना की जाती थी।
* 12वीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नविन आंदोलन का उद्भव हुआ जिसका नेतृत्व बासवन्ना नामक एक ब्राह्मण ने किया। इसे वीर शैव या लिंगायत आंदोलन कहते है। इन्होंने पनर्जन्म में शिद्धान पर प्रश्न चिह्न लगाया। वयस्क व् विधवा विवाह को मान्यता प्रदान की। ये शिव की आराधना लिंग रूप में करते है।
* “जिम्मी” वे लोग थे जो उद्घटित धर्म ग्रन्थ को मानने वाले थे जैसे इस्लामी शासकों के क्षेत्र में रहने वाले यहूदी और ईशाई।
* जिन्हों ने इस्लाम धर्म काबुल किया उन्होंने सैद्धांतिक रूप से इसकी पांच मुख्य बातें मानी। (1) ‘ अल्लाह ‘ एक मात्रा ईश्वर है। (2) पैगम्बर मोहम्मद उनके दूत है। (3) खैरात (ज़कात) बाँटनी चाहिए। (4) रमजान के महीने में रोजा रखनी चाहिए। (5) हज के लिए मक्का जाना चाहिए।
* 16 वीं शताब्दी तक आते- आते अजमेर की ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह बहुत ही लोकप्रिय हो गयी। इन्होंने भारत में चिश्ती संप्रदाय ( सिलसिला ) की शुरुआत की। यह पीर ( गुरु ) मुरीद ( शिष्य ) परम्परा पर आधारित था। इसमें खानकाह ( पीर के रहने का स्थान ) का काफी महत्व था।
* बाशरा – शरियत को पसंद करने वाले सूफी थे। बेशरा – शरियत की अवहेलना काने वाले सूफी थे।
* कबीर की बानी तीन विशिष्ट परिपाटियों में संकलित है: (1) कबीर बीजक (2) कबीर ग्रंथावली (3) आदि ग्रन्थ साहिब ।
* मीरा बाई भक्ति परम्परा की सबसे सुप्रशिद्ध कवित्री है। इनके गुरु संत रविदास नीची जाती से थे। गुजरात और राजस्थान के गरीब परिवार में मीरा प्रेरणा की स्रोत है।
* चितम्बरम, तंजावुर और गंगैकोंडा चोलपुरम के विशाल शिव मंदिर चोल सम्राट की मदत से निर्मित किये गए थे।
* चोल सम्राट प्रान्तक प्रथम ने कवी अप्पार संबदर और सुंदरार की धातु प्रतिमाएँ एक शिव मंदिर में स्थापित करवाई।
* नाथ, जोगी सिद्ध जैसे धार्मिक नेता रूढ़िवादी ब्राह्मणीय सांचे के बाहर इन्होंने वेदों की सत्ता को चुनौती दी तथा अपने विचार आम लोगों की भाषा में लिखें।
* सैद्धांतिक रूप से मुस्लमान शासकों को उलमा के मार्गदर्शन पर चलना होता था, तथा उनसे आशा की जाती थी वे शासन में शरीयत के नियमों का पालन करवाएंगे।
* मलेच्छ :- प्रवासी समुदाय को कहा जाता था। यह वर्ण नियमों का पालन नहीं करते थे तथा संस्कृत से भिन्न भाषाएँ बोलते थे।
Bhakti Sufi Paramparayen: महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ट प्रश्न-उत्तर
1 कराईकल अम्मईयार नामक महिला किसकी भक्त थी?
(a) विष्णु
(b) शिव
(c) राम
(d) कृष्ण
2 विष्णु को अपना पति कौन मानती थी?
(a) रूपमती
(b) कराईकल
(c) मीरा
(d) अंडाल
3 शाहजहाँ की किस पुत्री ने ख्वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती साहब की अजमेर स्थित दरगाह का वर्णन किया है?
(a) जहाँआरा
(b) रोशनआरा
(c) गोहरआरा
(d) हमीदा
4 पुष्टिमार्ग का जहाज किसे कहा जाता था?
(a) कबीर
(b) वल्लभाचार्य
(c) नानक
(d) रैदास
5 तलवंडी (ननकाना साहिब) किसका जन्म स्थान था?
(a) नानक
(b) कबीर
(c) रैदास
(d) मीरा
6 बलबन की पुत्री का विवाह किस सूफी संत के साथ हुआ था?
(a) निजामुद्दीन औलिया
(b) फरीदउद्दीन गंज ऐ शकर
(c) कुतबुद्दीन बख्तियार काकी
(d) मुईनुद्दीन चिश्ती
7 राजकुमार दारा का संबंध किस सिलसिले से था?
(a) सुहरावर्दी
(b) चिश्ती
(c) कादिरी
(d) कुबरविया
8 ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती साहब की अजमेर स्थित दरगाह पर सर्वप्रथम कौन-सा सुल्तान गया?
(a) मुहम्मद-बिन-तुगलक
(b) बलबन
(c) अलाउद्दीन खिलजी
(d) अकबर
9 सूफी मत की फिरदौसी शाखा निम्न में से कहाँ सबसे अधिक पनपी?
(a) बिहार
(b) बंगाल
(c) उड़ीसा
(d) दिल्ली
10 ख्वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है?
(a) दिल्ली
(b) अजमेर
(c) आगरा
(d) जयपुर
11 पाहन पूजे हरी मिले……….किसकी काव्य पंक्ति है?
(a) तुलसीदास
(b) सूरदास
(c) रहीम
(d) कबीर
12 शंकराचार्य का मत है-
(a) द्वैतवाद
(b) द्वैताद्वैतवाद
(c) अद्वैतवाद
(d) भेदाभेदवाद
13 निजामुद्दीन औलिया किस सूफी सिलसिले से संबंधित है?
(a) चिश्ती सिलसिला
(b) सुहरावर्दी
(c) कादिरी
(d) फिरदौसी
14 वल्लभाचार्य का जन्म कहाँ हुआ था?
(a) वाराणसी
(b) आगरा
(c) बैंगलोर
(d) श्रीरंगपट्टनम
15 शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी का संबंध की सूफी संप्रदाय से है?
(a) कादिरी
(b) सुहरावर्दी
(c) नक्सवरी
(d) चिश्ती
16 निजामुद्दीन औलिया की दरगाह कहाँ है?
(a) आगरा
(b) दिल्ली
(c) अजमेर
(d) फतेहपुर शिकरी
17 काशी में किस प्रशिद्ध संत का जन्म हुआ?
(a) कबीर
(b) मीरा
(c) वल्लभाचार्य
(d) गुरुनानक
18 औरंगज़ेब का संबंध किस सूफी सिलसिले से था?
(a) नक्शबंद
(b) चिश्ती
(c) सुहरावर्दी
(d) कादिरी
19 “सुल्तान उल हिन्द” किसे कहा गया?
(a) फरीद
(b) निजामुद्दीन औलिया
(c) शेख सलीम चिश्ती
(d) ख्वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती
20 बंगाल के प्रशिद्ध संत कौन थे?
(a) जैतन्य महाप्रभु
(b) गुरुनानक
(c) कबीर
(d) बाबा फरीद
21 किस भक्ति संत ने अपने संदेश के प्रचार के लिए सबसे पहले हिंदी का प्रयोग किया?
(a) कबीर
(b) दादु
(c) रामानंद
(d) तुलसीदास
22 उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का आरंभ किस संत ने शुरू किया?
(a) रामानंद
(b) कबीर
(c) चैतन्य
(d) नानक
23 बीजक में किसका उदेश संगृहित है?
(a) गुरुनानक
(b) कबीर
(c) चैतन्य
(d) रामानंद
24 कुतुबमीनार का निर्माण किसने शुरू किया?
(a) कुतबुद्दीन ऐबक
(b) इल्तुतमिस
(c) जलालउद्दीन खिलजी
(d) रजिया सुल्तान
25 कबीर शिष्य थे?
(a) रामानुज के
(b) नानक के
(c) रामानंद के
(d) श्रीरंगम के
अति लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. सूफी शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है?
Ans: सूफी शब्द की उत्पत्ति सफा शब्द से हुई है।
Q.2. सूफी सिलसिले किन दो वर्गों में विभाजित थे?
Ans: सूफी सिलसिले मुख्यत: दो वर्गों में विभाजित थे –
(i) बा- शरिया, (ii) बे -शरिया।
Q.3. भारत के प्रमुख चार सिलसिलो का नाम लिखें।
Ans: भारत के प्रमुख चार सिलसिलो का नाम निम्न है –
(i) चिश्ती सिलसिला, (ii) सुहरावर्दी सिलसिला, (iii) कादरी सिलसिला, (iv) नक्शबंदी सिलसिला।
Q.4. भारत में चिश्ती सिलसिला की स्थापना का श्रेय किसे जाता है?
Ans: ख्वाजा मोईद्दीन चिश्ती को भारत में चिश्ती सिलसिला की स्थापना का श्रेय जाता है।
Q.5. भक्ति आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
Ans: असमानता, ऊंच-नीच, अमीर – गरीब और छोटे – बड़े की भावना को समाप्त करना भक्ति आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य था।
Q.6. सभा शब्द से क्या अभिप्राय है?
Ans: 15 वी शताब्दी में धार्मिक सभाओ को सभा कहा जाता था। इन सभाओं का आयोजन प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया किया करते थे।
Q.7. मीराबाई कौन – से मत की अनुयायी थी?
Ans: मीराबाई विष्णुभक्त कृष्ण के समुदाय की अनुयायी थी।
Q.8. गुरु नानक के प्रथम उत्तराधिकारी कौन थे?
Ans: गुरु अंगद गुरु नानक के प्रथम उत्तराधिकारी थे। उन्होंने इनके उपदेशों एवं शिक्षओ का गुरुमुखी लिपि में विकास किया तथा इनके प्रचार के लिए अनेक केंद्रों की स्थापना की।
Q.9. ‘जजिया’ क्या था?
Ans: ‘जजिया’ एक प्रकार का कर था जिससे गैर – मुसलमानों से वसूला जाता था।
Q.10. ‘शरिया’ क्या है?
Ans: ‘शरिया’ मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून है।
Q.11. ‘मातृगृहता’ क्या है?
Ans: ‘मातृगृहता’ वह परिपाटी है जहां स्त्रियां विवाह के बाद अपने मायके में ही अपने संतान के साथ रहती है और उनके पति उनके साथ आकर रह सकते हैं।
Q.12. सूफी कौन थे?
Ans: इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में धार्मिक और राजनीतिक संस्था के रूप में खिलाफत की बढ़ती विशेष – शक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर झुकाव बढ़ा, इन्हें सूफी कहा जाने लगा।
Q.13. सिलसिला शब्द का क्या अर्थ है?
Ans: सिलसिला का शाब्दिक अर्थ है – जंजीर जो शेख और मुरीद के बीच एक निरंतर रिश्ते की धोतक है, जिसकी पहली अटूट कड़ी पैगंबर मोहम्मद से जुड़ी है।
Q.14. चिश्ती सिलसिला के दो मुख्य उपदेशकों के नाम लिखें।
Ans:(i) शेख मूईनुद्दीन चिश्ती,(ii) ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी।
Q.15. सूफी संत किस प्रकार ईश्वर की आराधना करते थे?
Ans: सूफी संत जिक्र (ईश्वर का नाम – जाप) या फिर सभा (श्रवण करना) यानी अध्यात्मिक संगीत की महफिल के द्वारा ईश्वर की उपासना में विश्वास रखते थे।
लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. सूफीमत के विकास पर एक संक्षिप्त विवरण दें।
Ans: सूफीमत का विकास-इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में धार्मिक और राजनीतिक संस्था के रूप में खिलाफत की बढी विषयशक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर झुकाव बढा, इन्हें सूफी कहा जाने लगा। इन लोगों ने रुढीवादी परिभाषाओ तथा धर्माचार्यों द्वारा की गई, कुरान और सुन्ना (पैगंबर के व्यवहार) की बौद्धिक व्याख्या की आलोचना की। इसके विपरीत, उन्होंने मुक्ती की प्राप्ति के लिए इंसान – ए – कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने की सीख दी। सूफियों ने कुरान की व्याख्या अपने निजी अनुभव के आधार पर की।
Q.2.अलवार और नयनार परंपरा की सबसे बड़ी विशिष्टता क्या थी?
Ans: अलवार और नयनार परंपरा की संभवत: सबसे बड़ी विशिष्टता इसमें स्त्रियों की उपस्थिति थी। उदाहरणतया अंडाल नामक अलवर स्त्री के भक्ति गीत व्यापक स्तर पर गाए जाते थे। ये गीत आज भी गाए जाते हैं। अंडाल स्वयं को विष्णु की प्रेयसी मानकर अपनी प्रेम भावना की छंदों में व्यक्त करती थी। एक और स्त्री शिवभक्त करइक्काल अम्मइयार अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु घोर तपस्या का मार्ग अपनाया। नयनार परंपरा में उसकी रचनाओं को सुरक्षित किया गया। हालांकि इन स्त्रियों ने अपने सामाजिक कर्तव्यों का परित्याग किया। वह किसी वैकल्पिक व्यवस्था अथवा भिक्षुणी समुदाय नहीं बनी। इन स्त्रियों की जीवन पद्धति और इनकी रचनाओं को पितृसत्तात्म आदर्शों की चुनौती दी।
Q.3. आठवीं से अठारहवीं सदी के मध्य की साहित्यिक विशेषताएं का वर्णन कीजिए।
Ans: आठवीं से अठारहवीं सदी के मध्य की साहित्यिक विशेषताएं इस प्रकार है –
(i) इस काल की नूतन साहित्यिक स्रोतों में संत कवियों की रचनाये हैं जिसमें उन्होंने जनसामान्य की क्षेत्रीय भाषाओं में मौखिक रूप से अपने को व्यक्त किया था।
(ii) यह रचनाएं प्राय: संगीतबद्ध है और ये संतो के अनुयायियों द्वारा उनकी मृत्यु के उपरांत संकलित की गई।
(iii) ये परंपरायें प्रवाहमान थी – अनुयायियों की कई पीढ़ियों ने मूल संदेश का न केवल विस्तार किया बल्कि उन भिन्न राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में संदीग्य और अनावश्यक लगने वाले बातों को या तो बदल दिया गया या हटा दिया गया।
(v) इन रचनाओं का मूल्यांकन इतिहासकारों के लिए चुनौती है।
Q.4. महान और लघु परंपरा में अंतर स्पष्ट कीजिए।
Ans: (i)इन दो शब्दों को 20वीं शताब्दी के समान शास्त्री राबर्ट रेडफील्ड ने एक कृषक समाज में सांस्कृतिक आचरणो का वर्णन करने के लिए किया।
(ii) इस समाजशास्त्री ने पाया कि किसान उन कर्मकांड और पद्धतियों का अनुकरण करते थे जिनका समाज के प्रभुत्वशाली वर्ग जैसे पुरोहित और राजा द्वारा पालन किया जाता था। इन कर्मकांडों को उसने ‘महान परंपरा’ की संज्ञा दी।
(iii) इसके साथ ही कृषक समुदाय अन्य लोकाचारों का भी पालन करते थे जो इस महान परंपरा से भिन्न थे। इन्हें ‘लघु परंपरा’ कहा गया।
(iv) रेडफील्ड के अनुसार महान और लघु दोनों प्रकार के परंपराओं में समय के साथ परिवर्तन हुए। ऐसा दोनों में आदान-प्रदान के कारण हुआ।
Q.5. मीराबाई पर संक्षिप्त लेखें।
Ans: मीराबाई को भक्ति परंपरा की सबसे सुप्रसिद्ध कवयित्री माना जाता है। उनकी जीवनी उनके लिखे भजनों के आधार पर संकलित की गई है जो शताब्दियों तक मौखिक रूप से संप्रेषित होते रहे। मीराबाई मारवाड़ के मेड़ता जिले की एक राजपूत राजकुमारी थी जिनका विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध मेवाड के सिसोदिया कुल में कर दिया गया।
उन्होंने अपने पति की आज्ञा की अवहेलना करते हुए पत्नी और मां के परंपरागत दायित्वों को निभाने से इंकार किया और विणु के अवतार कृष्ण को अपना एकमात्र पति स्वीकार किया। उनके ससुराल वालों ने उन्हें विश देने का प्रयत्न किया। किंतु वह राजभवन से निकलकर एक घुमक्कड़ बन गई। उन्होंने अंतमर्न की भाव – प्रवणता को व्यक्त करने वाले अनेक गीतों की रचना की।
कुछ परंपराओं के अनुसार मीरा के गुरु रैदास थे जो एक चर्मकार थे। इससे पता चलता है कि मीरा ने जातिवादी समाज की रूढ़ियों का उल्लंघन किया। ऐसा माना जाता है कि अपने पति के राजमहल के ऐश्वर्य को त्याग कर उन्होंने विधवा का सफेद वस्त्र अथवा सन्यासिनी के जोगिया वस्त्र धारण किया।
हालांकि मीराबाई के आसपास अनुयायियों का जमघट नहीं लगा और न ही उन्होंने किसी निजी मंडली की नींव डाली, किंतु फिर भी वह शताब्दियों से प्रेरणा का स्रोत रही है। उनके रचित पद आज भी स्त्रियों और पुरुषों द्वारा गाए जाते हैं। खासतौर से गुजरात व राजस्थान के गरीब लोगों द्वारा गाये जाते हैं जिन्हें ‘नीचा – जाति’ का समझा जाता है।
Q.6. मुलफुजात क्या है ?
Ans: मुलफुजात सूफी संतो की बातचीत है। मुलफुजात पर एक आरंभिक ग्रंथ फवाइद – अल – फुआद है। यह शेख निजामुद्दीन औलिया की बातचीत पर आधारित एक संग्रह है जिसका संकलन प्रसिद्ध फारसी कवि अमीर हसन सीजजी देहलवी ने किया। स्रोत 9 में इस ग्रंथ से लिया गया एक अंश उद्धृत है। मुफुजात का संकलन विभिन्न सूफी सिलसिलो के शेख की अनुमति से हुआ। इनका उद्देश्य मुख्यत: उपदेशात्मक था। उपमहाद्वीप के अनेक भागों से जिसमें दक्कन शामिल है, अनेक उदाहरण इस तरह के मिलते हैं। कई शताब्दियों तक इनका संकलन होता रहा।
Q.7. तजकिरा क्या है? स्पष्ट करें।
Ans: तजकिरा सूफी संतों की जातियों का स्मरण है। भारत में लिखा पहला सूफी तज़किरा मीर खुर्द किरमानी का सियार – उल – औलिया है। यह तजकिरा मुख्यत: चिश्ती संतो के बारे में था। सबसे प्रसिद्ध तजकिरा अब्दुल हक मुहाद्दीस देहलवी (मृत्यु 1942) का अख्बार – उल – अखयार है। तजकिरा के लेखकों का मुख्य उद्देश्य अपने सिलसिले की प्रधानता स्थापित करना और साथ ही अपनी अध्यात्मिक वंशावली की महिमा का बखान करना था। तजकिरे के बहुत – से वर्णन अद्भुत अविश्वसनीय है, किंतु फिर भी वे इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण है और सूफी परंपरा के स्वरूप को समझने में सहायक सिद्ध होते हैं।
Q.8. लिंगायत संप्रदाय से क्या तात्पर्य है?
Ans: लिंगायत संप्रदाय के तत्व –
(i) कर्नाटक में लिंगायत संप्रदाय का विशेष महत्व है।
(ii) वे शिव की आराधना लिंग के रूप में करते थे।
(iii) इस समुदाय के पुरुष बायें कंधे पर चांदी के एक पिटारे में एक लघु लिंग को धारण करते थे। जिन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता था।
(iii) उनमें जंगम अर्थात यायावर भिक्षु शामिल है।
(iv) लिंगायतो का विश्वास है कि मृत्योपरांत भक्त शिव में लीन हो जाएंगे तथा इस संसार में पुनः लौटेंगे।
(v) वे धर्मशास्त्रीय श्राद्ध संस्कार का वे पालन नहीं करते थे और अपने मृतकों को भली – भांति दफनाते हैं।
Q.9. भक्ति – आंदोलनो से सम्राटों में धार्मिक सहनशीलता की भावना किस प्रकार उत्पन्न हुआ?
Ans: सम्राटों में धार्मिक सहनशीलता – भक्ति आंदोलन एक धार्मिक आंदोलन था तथापि इसके देश के राजनीतिक जीवन पर दूरगामी प्रभाव पड़ा। आगे चलकर मुगल सम्राट अकबर पर भक्ति आंदोलन के विचारों तथा शिक्षाओं का बड़ा प्रभाव पड़ा। इसी प्रभाव के फलस्वरुप उसने हिंदुओं से उदारता तथा समानता का व्यवहार किया, उन्हें उच्च राजकीय पद प्रदान किए, उनसे विवाह – संबंध स्थापित कीए। उन पर से जजिया कर हटा दिया, हिंदुओं की ‘तुला दान प्रथा’ तथा ‘झरोखा दर्शन’ की प्रथा को अपनाया और यहां तक कि अपने राजभवन में हिंदू त्योहारों को मनाने की छूट दे दी। डॉ० ईश्वरी प्रसाद ने ठीक ही कहा है “यह कबीर तथा नानक की ही आवाज थी, जो राजा (अकबर) के मुख से बोल रही थी, जिसने कट्टरपंथियों में तूफान मचा दिया।”
Q.10. कबीर की बानिओं का वर्णन कीजिए।
Ans: कबीर की बानी -कबीर की बानी तीन विशिष्ट किंतु परस्पर व्याप्त परिपाटीयों में संकलित है।
(i) कबीर बीजक – यह कबीर पंथीयों द्वारा वाराणसी तथा उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर संकलित है।
(ii) कबीर ग्रंथावली -इसका संबंध राजस्थान के दादू पंथीयों से हैं।
(iii) आदि ग्रंथ साहिब -कबीर के कई पद आदि ग्रंथ साहिब में संकलित है। 19वीं शताब्दी में उनके पद संग्रहों को बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में मुद्रांकित किस किया गया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. भक्ति आंदोलन से आपका क्या तात्पर्य है? इसकी उत्पत्ति और विकास के कारणों की विवेचना कीजिए।
Ans: भक्ति सिद्धांत अत्यंत पुरातन है। इसके बीज वैदिक साहित्य में खोजे जा सकते हैं। ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों में विशेषकर गुप्त काल के रामायण जैसे पवित्र ग्रंथ को फिर से लिखा गया है। तब ज्ञान और कर्म के साथ-साथ भक्ति को भी मुक्ति का एक मार्ग स्वीकार कर लिया गया। इन धर्म ग्रंथों में भक्ति आंदोलन के दो प्रमुख सिद्धांतों – ईश्वर की एकता और ईश्वर भक्ति की स्पष्ट व्याख्या की गई है। भक्ति आंदोलन का वास्तविक अर्थों में विकास 7वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य दक्षिण भारत में हुआ। शेष नयनार और वैष्णव अलवार संतो ने ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत भक्ति को मुक्ति का साधन बताया। उन्होंने प्रेम और व्यक्तिगत ईश्वर भक्ति का संदेश स्थानीय भाषाओं द्वारा समस्त दक्षिण में पहुंचाया। दक्षिण से उत्तर भारत में भक्ति का प्रसार हुआ। 11वीं और 12वीं शताब्दी में भक्ति आंदोलन ने बल पकड़ा। यह आंदोलन 15वीं और 16वीं शताब्दी तक प्रभावशाली रहा।
भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति और विकास के कारण – भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति और विकास के निम्नलिखित कारण थे –
(i) इस्लाम धर्म का प्रभाव – इस्लाम में ईश्वर की एकता, बंधुता और समानता की भावना पर बल दिया गया है। ये सिद्धांत हिंदू धर्म में नवीन न थे, फिर भी इस्लाम में इन सिद्धांतों पर क्रियात्मक रूप से बल दिया गया है। इससे भक्ति आंदोलन का पथ प्रशस्त हुआ।
(ii) मुस्लिम धर्म का खतरा – इस्लाम के सरल सिद्धांतों से प्रभावित होकर हिंदुओं ने इस धर्म को अपना लिया। इस खतरे से बचने के लिए हिंदू संतों व सुधारकों ने भक्ति आंदोलन आरंभ करके हिंदू धर्म के गौरव को फिर से स्थापित किया।
(iii) हिंदुओं पर अत्याचार- मुस्लिम शासकों ने धर्मान्धता के कारण हिंदुओं की राजनीतिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता छीन ली थी। उन पर बड़े अत्याचार किए गए। इस निराश के दौर में भक्ति आंदोलन ने उन्हें सांत्वना दी।
(iv) मुस्लिम आक्रमण – मध्यकाल में मुसलमानों ने अनेक आक्रमण किए। इन आक्रमणों में इस्लाम धर्म की भावना भरी हुई थी। उन्होंने हिंदू मंदिरो एंव मूर्तियों को नष्ट करना शुरू कर दिया। अनेक प्रकार के अत्याचार किये। हिंदुओं के लिए मंदिर में जाकर पूजा – अर्चना मुश्किल हो गया। असहाय होकर उन्होंने भक्ति – मार्ग का सहारा लिया।
(v) हिंदू धर्म की बुराइयां – हिंदू धर्म में अनेक कुरीतियों के व्यर्थ के रीति-रिवाजों, अंधविश्वासों आदि के कारण जटिलता आ गई थी। इनके निवारण के लिए धर्म- सुधारको एवं संतों ने भक्ति आंदोलन शुरू किया।
(vi) सूफी संतों का प्रचार एवं प्रभाव – सूफी संत उदार प्रकृति के थे। उनमें धार्मिक कट्टरता बिल्कुल नहीं थी। उन्होंने इस्लाम की कट्टरता को दूर करने के प्रयास किए और भाईचारे और एकेश्वरवाद का प्रचार व प्रसार किया। इस प्रकार भक्ति आंदोलन के लिए उचित वातावरण मिला और धर्म सुधारकों का उत्साह और मनोबल बढ़ गया।
सूफी संतों के शिष्यों में हिंदू-मुसलमान दोनों शामिल थे। उनके सरल उपदेशों, ईश्वर की एकता, भाईचारा और समानता के विचारों ने हिंदू – संतो को भी प्रभावित किया। अत: उन्होंने सूफी आंदोलन की तरह भक्ति आंदोलन का प्रचार – प्रसार किया।
(vii) हिंदू – मुस्लिम आपसी संबंधों को बेहतर करना – अनेक प्रचारक हिंदू – मुस्लिम एकता स्थापित करना चाहते थे। उनका विचार था कि ईश्वर एक है और उसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ये प्रचारक दोनों धर्मों की कमियों को दूर करने का प्रयास करते थे। इसीलिए भक्ति आंदोलन लोकप्रिय होने लगी।
Q.2. लोक प्रचलन में इस्लाम की भूमिका का वर्णन कीजिए।
Ans: लोक प्रचलन में इस्लाम की भूमिका – इस्लाम के आने के बाद जो परिवर्तन हुए वे शासक वर्ग तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि पूरे उपमहाद्वीप में दूर – दराज और विभिन्न सामाजिक समुदायों कीसान, शिल्पी, योद्धा, व्यापारी के बीच फैल गए जिन्होंने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया। उन्होंने सैद्धांतिक रूप से इनकी पांच मुख्य बातें मानी – अल्लाह एकमात्र ईश्वर है; पैगंबर मोहम्मद उनके दूत (पैगंबर) हैं; दिन में पांच बार नमाज पढ़ी जानी चाहिए; खैरात (जकात) बांटनी चाहिए, रजवान के महीने में रोजा रखना चाहिए और हज के लिए मक्का जाना चाहिए।
किंतु इन सार्वभौमिक तत्वों में अक्सर संप्रदायिक (शिया , सुन्नी) वजहों से तथा स्थानीय लोकाचारों के प्रभाव की वजह से भी धर्मातरित लोगों के व्यवहारों में भिन्नता देखने में आती थी। उदाहरणत: खोजा इस्लामी (शिया) समुदाय के लोगों ने कुरान के विचारों की अभिव्यक्ति के लिए देशी साहित्यिक विधा का सहारा लिया। जीवन (व्युत्पति संस्कृत शब्द ज्ञान से) नाम से भक्ति गीत, जो राग में निबंध थे, पंजाबी, मुल्तानी, सिंधी, कच्छी, हिंदी और गुजराती में दैनिक प्रार्थना के दौरान गाए जाते थे।
इसके अलावा अरब मुसलामन व्यापारी जो मालाबार तट ( केरल) के किनारे बसे, उन्होंने न केवल स्थानीय मलयालम भाषा को अपनाया अपितु स्थानीय आचारों जैसे मातृकुलीयता और मातृगृहा को भी अपनाया।
एक सार्वभौमिक धर्म के स्थानीय आचारों के संग जटिल मिश्रण का सर्वोत्तम उदाहरण संभवत: मस्जिदों की स्थापना स्थापत्य कला में दृष्टिगोचर होता है। मस्जिदों के कुछ स्थापत्य संबंधी तत्व सार्वभौमिक थे – जैसे इमारत का मक्का की तरफ अनुस्थापन जो मेहराब ( प्रार्थना का आला) और मिनबार (व्यासपीठ) की स्थापना से लक्षित होता था। बहुत – से तत्व ऐसे थे जिनमें भिन्नता देखने में आती है, जैसे – छत और निर्माण का समान।
Q.3. भक्ति – परंपरा के सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव बताइए।
Ans: संस्कृतिक प्रभाव (cultural effects) :
(i) सांस्कृतिक विकास -भक्ति आंदोलनों के नेताओं ने अपनी शिक्षा का प्रचार जनसाधारण की भाषा में किया। इसके परिणामस्वरूप बंगाल मराठी, गुजराती, पंजाबी, हिंदी आदि अनेक देशी भाषाओं का विकास हुआ। जयदेव का ‘गीत गोविंद’ , ‘सूरदास का सूरसागर’ , जायसी का ‘पद्मावत’ , सिक्खों का ‘आदि ग्रंथ साहिब’ , तुलसीदास जी का ‘रामचरितमानस’ , कबीर तथा रहीम के ‘दोहे’ तथा रसखाना की ‘साखियां’ आदि ह्रदयग्राही तथा सद्साहित्य रचा गया। यह भारतीय साहित्य की कोई कम सेवा ना थी।
(ii) हिंदू – मुस्लिम कलाओं में समन्वय – राजनीतिक, धार्मिक तथा सामाजिक भेदभाव, कटुता तथा वैमनस्य के कम होने पर हिंदू और मुस्लिम कलाओं में समन्वय का एक नया युग प्रारंभ हुआ इसमें वस्तुकला, चित्रकला तथा संगीत में आये ईरानी कलाओं का मिश्रण तथा संगम हुआ और एक नई भारतीय कला का जन्म हुआ। इसका निखरा हुआ रूप मुगलकालीन भारतीय कलाकृतियों में देखने को मिलता है।
(iii) आर्थिक प्रभाव (Economic Effects) – इस आंदोलन के भारतीय सामाजिक जीवन पर कुछ आर्थिक प्रभाव भी पड़े। संत कबीर तथा गुरु नानकदेव जी ने धनी वर्ग के उन लोगों को फटकारा, जो गरीबों का शोषण करके धन संग्रह करते हैं। गुरु नानकदेव जी ने इस बात पर बल दिया कि लोगों की अपनी मेहनत तथा नेक कमाई पर ही संतोष करना चाहिए।
Q.4. भक्ति आंदोलन की विशेषताओ तथा सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
Ans: भक्ति आंदोलन की विशेषताएं :
(i)भक्ति की धारणा का अर्थ एकेश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा है। भक्ति की आराधना का उद्देश्य मुक्ति के लिए ईश्वर की कृपा प्राप्त करना है।
(ii) भक्ति पंथ ने उपासना की विधियों के रूप में कर्मकांडो तथा यज्ञो का परित्याग किया तथा ईश्वर की अनुभूति के सरल मार्ग के रूप में हृदय और मन की पवित्रता के स्थान पर मानववाद तथा निष्ठा पर बल दिया ।
(iii) भक्ति आंदोलन मुख्यत: एकेश्वरवादी पंथ था और भक्तगण एक ही ईश्वर की उपासना करते थे।
(iv) उत्तर और दक्षिण भारत के भक्ति संत ज्ञान को भक्ति का एक तत्व मानते थे। भक्ति आंदोलन ने गुरु से वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने पर अत्यधिक जोर दिया।
(v) भक्ति आंदोलन समतावादी आंदोलन था जिसने जाति या धर्म पर आधारित भेदभाव का पूर्णतया निषेध किया। भक्ति आंदोलन के संत सामाजिक एकता, मन, चरित्र तथा आत्मा की पवित्रता के पक्के समर्थक थे।
(vi) भक्ति आंदोलन ने पुरोहित वर्ग के प्रभुत्व तथा कर्मकांडो की निंदा की। भक्ति स्रोतों के अनुसार व्यक्ति निष्ठा और व्यक्तिगत प्रयास से ईश्वर की अनुभूति कर सकता है। अतः भक्ति आंदोलनो में यज्ञो तथा दैनिक कर्मकंडो के लिए कोई स्थान नहीं था।
(vii) भक्ति संतों ने जनसाधारण की सामान्य भाषा में उपदेश दिया और इसलिए आधुनिक भारतीय भाषाओं जैसे – हिंदी, मराठी, बंगाली और गुजराती के विकास में अत्यधिक योगदान दिया।
भक्ति आंदोलन के सिद्धांत:
(i) एकेश्वरवाद – भक्ति आंदोलनो के संतो ने ईश्वर की एकता तथा उसकी भक्ति पर बल दिया। उन्होंने राम, रहीम, कृष्ण तथा विष्णु को ईश्वर का दूसरा रूप बताया। उन्होंने अनेक देवी-देवताओं के अस्तित्व को झूठा बताया। उन्होंने यह प्रचार किया कि ईश्वर एक है और वही सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक तथा सर्वज्ञ है।
(ii) ईश्वर भक्ति पर बल – इस आंदोलन के सभी नेताओं – रामानुज, चैतन्य, नानक, कबीर आदि ने भक्ति पर विशेष बल दिया। उन्होंने ईश्वर भक्ति को ही मुक्ति का मार्ग बताया। चैतन्य महाप्रभु ने भक्ति द्वारा ईश्वर प्राप्ति का मंत्र दिया। गुरु नानकदेव जी ने ईश्वर का नाम जपने पर बल दिया।
(iii) गुरु भक्ति – भक्त संतों ने गुरु महिमा का बखान किया, उसे ज्ञान – प्राप्ति का सधान बताया। उनका कहना था कि गुरु का प्रताप व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश में ले जाता है। गुरु नानकदेव जी के अनुसार, ” गुरु भक्ति की नौका है। वह देवीय घर में पहुंचाने की सीढ़ी है। ” संत कबीर ने गुरु को ईश्वर पर वरीयता दी। उनके अनुसार,
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागो पाय।
बलिहारी गुरु आपने, जिन्ह गोविंद दियो मिलाय।
(iv) आत्म – समर्पण संत – भक्तों का कहना था कि व्यक्ति को अपना सर्वस्व की इच्छा पर न्योछावर कर देना चाहिए। उसे अपने तन – मन – धन को ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए। उसे काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार नामक विचारों का परित्याग कर देना चाहिए और ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए।
Q.5. कबीर पर एक लेख लिखें।
Ans: कबीर इस पृष्ठभूमि में उभरने वाले संत कवियों में अप्रतम थे। इतिहासकारों ने उनके जीवन और काल का अध्ययन उनके काव्य और बाद में लिखी गई जीवनियों के आधार पर किया है। यह प्रक्रिया कई वजहों से चुनौतीपूर्ण रही है।
कबीर की बानी तीन विशिष्ट किंतु परस्पर पारिपाटीयों में संकलित है। कबीर बीजक कबीर पंथीयो द्वार वाराणसी तथा उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर संरक्षित है। कबीर ग्रंथावली का संबंध राजस्थान के दादू पंथियो से है। इसके अतिरिक्त कबीर के कई पद आदि ग्रंथ साहिब में संकलित है। लगभग सभी पांडुलिपि संकलन कबीर की मृत्यु से बहुत बाद में किए गए। 19वीं शताब्दी में उनके पद संग्रहों को बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में मुद्रांकित किया गया। कबीर की रचनाएं अनके भाषाओं और बोलियों में मिलती है। इनमें से कुछ निर्गुण कवियों की खास बोली संत भाषा में है। कुछ रचनाएं जिन्हें उलटबांसी (उलट कहीं उक्तियां ) के नाम से जाना जाता है, इस प्रकार से लिखी गयी की उनके रोजमर्रा के अर्थ को उलट दिया गया कबीर।
कबीर बानी की एक और विशिष्टता यह है कि उन्होंने परम सत्य को वर्णित करने के लिए अनेक परिपाटीयों का सहारा लिया। कबीर कुछ और शब्द पदों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे – शब्द और शून्य, यह अभिव्यंजनाएं योगी परंपरा से ली गई है। विविध और कभी तो विरोधात्मक विचार इन पदों में व्यंजित होते हैं। अन्य कविताएं जिक्र और इश्क के सूफी सिद्धांतों का इस्तेमाल ‘नाम सिमरन’ की हिंदू परंपरा की अभिव्यक्ति करने के लिए करती है।
क्या ये सभी कविताएं कबीर द्वारा रची गई यह कहना मुश्किल है। विद्वान पदों की भाषा शैली और विषयवस्तु के आधार पर यह स्थापित करने की कोशिश करते हैं कि कौन – से पद कबीर के हैं।कबीर की समृद्ध परंपरा इस तथ्य की द्दोतक है कि कबीर पहले और आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो सत्य की खोज में रूढ़िवादी, धार्मिक, सामाजिक, संस्थाओं, विचारों और व्यवहारों को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हैं।
कबीर के विचार संभवत: अवध प्रदेश (उत्तर प्रदेश ) की सूफी परंपरा के साथ हुए संवाद और विवाद के माध्यम से घनीभूत हुए। कबीर की विरासत पर अनेक गुटों ने दावा किया जो उन्हें याद करते थे और आज भी कर रहे हैं। यह तथ्य इस बात से उजागर होता है कि इस विषय पर आज भी विवाद है कि वह जन्म से हिंदू थे अथवा मुसलमान और यह विवाद अनेक संत जीवनियों से उभरकर आते हैं जो 17वीं शताब्दी यानी उनकी मृत्यु के 200 वर्ष बाद से लिखी गई।
वैष्णव परंपरा की जीवनीयों में कबीर (कबीर का अरबी में अर्थ है महान) को जन्म से हिंदू कबीरदास बताया गया है किंतु उनका पालन गरीब मुसलमान परिवार में हुआ जो जुलाहे थे और कुछ समय पहले ही इस्लाम धर्म के अनुयायी बने थे। इन जीवनियो में यह कहा जाता है कि कबीर को भक्ति का मार्ग दिखाने वाले गुरु रामानंद थे।
किंतु कबीर के पद, गुरु और सतगुरु संबोधन का इस्तेमाल किसी विशेष महत्व के संदर्भ में नहीं करते। इतिहासकारों का यह भी मानना है कि कबीर और रामानंद का समकालीन होना मुश्किल प्रतीत होता है जब तक कि उन्हें बहुत ही लंबी आयु ना दे दी जाए। अतः वे परंपराएं जो दोनों को जोड़ती है, स्वीकार नहीं की जा सकती। किंतु उनसे यह अवश्य पता चलता है कि कबीर की विरासत बाद की पीढ़ी के लिए कितने महत्वपूर्ण थी।
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