गायन की ध्रुपद शैली क्या है? Indian History Culture and Diversity SEC Paper Semester 4 for BBMKU and other universities. It is an essential question for the exams.
गायन की ध्रुपद शैली क्या है?
ध्रुपद गायन एक प्राचीन और प्रमुख शैली है, जो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक अहम अंग है। ध्रुपद गायन का प्रारंभ भारतीय संगीत दरबारों और मंदिरों में आध्यात्मिक उपासना के दौरान हुआ था। यह गायन शैली ग्रीष्म ऋतु से हेमंत ऋतु तक (गर्मी से सर्दी तक) रागों के उच्चारण के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है।
ध्रुपद गायन की विशेषताएं:
- अलाप: ध्रुपद में गायक राग की संरचना को अलाप के माध्यम से विकसित करते हैं। यह अलाप राग के स्वरों को एक विशेष तरीके से गाने में मदद करता है।
- बोल अलाप: ध्रुपद में गायक बोलों के माध्यम से राग को विस्तार करते हैं। इसमें बोलों का प्रयोग विशेष तरीके से होता है जो गायन को गंभीरता और आकर्षण देता है।
- स्थायी अलाप: ध्रुपद में गायक एक स्थायी स्वर से अलाप करते हैं, जिससे राग का विकास किया जाता है और संगति का अनुभव होता है।
- निबद्ध अलाप: ध्रुपद में गायक निबद्ध अलाप का भी उपयोग करते हैं, जिसमें स्वर धीरे-धीरे बढ़ते हैं और साथ ही दूसरे गायक की उपस्थिति में एक समय पर सभी गायक एक साथ गाने का अनुभव होता है।
- बंदिश: ध्रुपद में बंदिश नामक गीतों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। ये गीत राग के संरचना और आकार को स्पष्ट करते हैं।
ध्रुपद गायन को दो धाराओं में विभाजित किया जा सकता है – धृति ध्रुपद और अनिबद्ध ध्रुपद। धृति ध्रुपद में ताल का पालन किया जाता है जो एक निश्चित गति में होता है, जबकि अनिबद्ध ध्रुपद में ताल का पालन नहीं किया जाता है और गायन स्वतंत्र होता है।
ध्रुपद गायन के प्रमुख गायक शिरोमणि गोस्वामी और रामचंद्र गायकवाड रहे हैं। ध्रुपद शैली भारतीय संगीत के विभिन्न परंपराओं में भी बहुत महत्वपूर्ण रही है और इसे आज भी संभाले जा रहे हैं।