Kshetriya Aakankshayen: राजनीतिक विज्ञान कक्षा 12 अध्याय 8 के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर को पढ़ें। सभी प्रश्न परीक्षा उपयोगी है। झारखण्ड अधिविध परिषद् राँची के पाठ्यक्रम के अनुसार सभी प्रश्नों को तैयार किया गया है।
Kshetriya aakankshayen : अति लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. क्षेत्रीयता अथवा क्षेत्रवाद का क्या तात्पर्य है?
Ans: क्षेत्रवाद किसी क्षेत्र विशेष के लोगों की उस प्रवृत्ति से संबंधित है जो इनमें अपने क्षेत्र की आर्थिक, सामाजिक अथवा राजनीतिक शक्तियों की वृद्धि करने के लिए प्रेरित करती है। इस दृष्टि से क्षेत्र देश का वह भू – भाग होता है जिसमें रहने वाले लोगों के समान उद्देश्य व आकांक्षाएं होती है। इस प्रकार जब किसी भौगोलिक दृष्टि से पृथक भूखंड में रहने वाले मानव समूह में धार्मिक, सांस्कृतिक भाषायी, आर्थिक – सामाजिक, राजनीतिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से उसी प्रकार के अन्य भूखंड से पृथकता उत्पन्न हो जाती है तथा स्वयं की एकरूपता व समानता का विकास हो जाता है तब उस मानव समूह में अपने क्षेत्रों के हितों के प्रति पैदा हुई जागरूकता को क्षेत्रवाद कहा जाता है।
Q.2. कुछ प्रमुख क्षेत्रीय आंदोलनों के नाम बताइए जिन्होंने भारतीय राजनीति को प्रभावित किया है?
Ans: निम्न में कुछ प्रमुख आंदोलन है जो भारतीय राजनीति को लंबे समय से प्रभावित करते रहे हैं –(i) जम्मू – कश्मीर में चल रहे आंदोलन, (ii) आसाम आंदोलन, (iii) मिजोरम आंदोलन, (iv) नागालैंड का आंदोलन, (v) पंजाब आंदोलन, (vi) भाषा को लेकर दक्षिण में चल रहे अनेक आंदोलन।
Q.3. अनुच्छेद 370 से आपका क्या तात्पर्य है?
Ans: जब जम्मू – कश्मीर का भारत में विलय हुआ तो कुछ शर्तों के साथ हुआ जिसमें संविधान के अनुच्छेद 370 में जम्मू – कश्मीर के लिए विशेष दर्जे की व्यवस्था की। अनुच्छेद 370 के आधार पर जम्मू – कश्मीर का अपना अलग संविधान है व भारतीय संसद का कोई भी कानून जम्मू – कश्मीर में तभी चलेगा जब जम्मू – कश्मीर को विधानसभा उसे पारित कर देगी।
Q.4. कुछ राज्यों के नाम बताइये जिनको भाषा के आधार पर गठित किया गया है।
Ans: निम्न प्रमुख राज्य हैं जिनको भाषा के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून के आधार पर गठित किया गया – (i) आंध्र प्रदेश , (ii) कर्नाटक, (iii) महाराष्ट्र , (iv) गुजरात, (v) पंजाब, (vi) हरियाणा
Q.5. द्रविड़ आंदोलन क्या है?
Ans: द्रविड आंदोलन भारतीय राजनीति में सबसे ताकतवर व क्षेत्रीय भावनाओं की सर्वप्रथम व सबसे प्रबल अभिव्यक्ति था। यह आंदोलन एक शांतिप्रिय आंदोलन था। इस आंदोलन के लोगों ने अपनी मांगों को केवल राजनीतिक मंचो के द्वारा ही रखा। द्रविड़ आंदोलन की बागडोर तमिल सुधारक ई . वी . राधास्वामी (पेरियार) के द्वारा हुई इस आंदोलन की प्रक्रिया से एक राजनीतिक संगठन ‘द्रविड़ कषगम ‘ का सूत्रपात हुआ जिसका उद्देश्य व्यवस्था पर ब्राह्मणों के प्रभुत्व को समाप्त करना था व राजनीति में उत्तर राज्यों के प्रभाव को कम करके क्षेत्रीय गौरव की प्रतिष्ठा पर जोर देता था। यह आंदोलन प्रमुख रूप से तमिलनाडु तक सीमित रह।
Q.6. 1973 के आनंदपुर साहिब के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
Ans: अकाली दल की राजनीति धीरे-धीरे उग्र विचारधारा के नेताओं के हाथो में चली गयी। अकाली दल क्षेत्रीय राजनीति करने लगे व केंद्र व प्रांतों के संबंधों की पुनः व्यवस्था की मांग करने लगे 1973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में केंद्र व प्रांतों के संबंध में निम्न विचार दिये गये कि केंद्र के पास केवल निम्न विषय होनी चाहिए। शेष विजय प्रांतों के पास होने चाहिए – (i) विदेश नीति व प्रतिरक्षा, (ii) संचार व्यवस्था, (iii) बजट
Q.7. असम आंदोलन के प्रमुख कारण क्या थे?
Ans: असम आंदोलन के निम्न प्रमुख कारण थे –
(i) असमी भाषा का अन्य भाषाओं के लोगों पर प्रभुत्व, (ii) बिहार व बंगलादेश के लोगों का असम की अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व, (iii) असम का केंद्र सरकारों के द्वारा पक्षपातपूर्ण रवैया, (iv) असम का आर्थिक पिछड़ापन।
Q.8. ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के क्या प्रमुख कारण थे?
Ans: उग्रवादियों के पवित्र स्वर्ण मंदिर को अपनी नापाक उग्रवादी गतिविधियों का अड्डा बना दिया जिससे स्वर्ण मंदिर में हथियार जमा करें जिससे यह एक हथियार बंद किले के रूप में परिवर्तित हो गया।
जून , 1984 को भारत सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया जिसके तहत सैनिक कार्यवाही से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से सभी उग्रवादियों व उनमें हथियारों को वहां से साफ किया जिसमें अनेक हत्याएं भी हुई।
Q.9. राजीव गांधी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
Ans: राजीव गांधी, फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी की संतान थे। इनका जन्म 1944 में हुआ था। 1980 के बाद वे देश की सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वे राष्ट्रव्यापी सहानुभूति के वातावरण में भारी बहुमत से 1984 में देश के प्रधानमंत्री बने और 1989 के बीच वे प्रधानमंत्री पद पर रहे। उन्होंने पंजाब के आतंकवाद के विरुद्ध उदारपंथी नीतियों के समर्थक लोगोंवाल से समझौता किया। उन्हें फिजी विद्रोहियों और असम में छात्र संघों से समझौता करने में सफलता मिली।
राजीव देश में उदारवाद या खुली अर्थव्यवस्था एवं कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के प्रणेता थे। श्रीलंका नक्सली समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंने भारतीय शांति सेना को श्रीलंका भेजा। संभवत: ऐसा माना जाता है किसी एल . टी . टी . ई . श्रीलंका के विद्रोही तमिल संगठन में आत्मघाती विस्फोट द्वारा उनकी हत्या 1991 में कर दी गई।
Q.10. बीसवीं सदी के कौन – से दशक को स्वायत्तता की मांग के दशक के रूप में देखा जा सकता है? इसके क्या प्रमुख राजनीतिक प्रभाव दृष्टिगोचर हुए ? उल्लेख कीजिए।
Ans: 1980 के दशक की स्वायत्तता की मांग के दशक के रूप में भी देखा जा सकता है। इस दौर में देश के कई हिस्सों के स्वायत्तता की मांग उठी और इसने सवैधानिक हदों को भी पार किया। इन आंदोलनों में शामिल लोगों ने अपनी मांग के पक्ष में हथियार उठाए, सरकार ने उनको दबाने के लिए जवाबी कार्रवाई की और इस क्रम में राजनीतिक तथा चुनावी प्रक्रिया अवरुद्ध हुई।
Q.11. ‘क्षेत्रवाद एवं राष्ट्रीय सरकार ‘ का वर्णन कीजिए।
Ans: (i) क्षेत्रवाद ने राष्ट्र के लिए चिंता उत्पन्न की। राष्ट्रीय सरकार को कई बार हथियार उठाकर इन्हें कुचलने का प्रयास करने पड़े।
(ii) यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि स्वायत्तता की मांग को लेकर चले अधिकतर संघर्ष लंबे समय तक जारी रहे और इन संघर्षों पर विराम लगाने के लिए केंद्र सरकार को सुलह की बातचीत का रास्ता अख्तीयार करना पड़ा अथवा स्वायत्तता के आंदोलन की अगुवाई कर रहे समूहो से समझौते करने पड़े।
(iii) क्षेत्रवाद के समर्थक गुटों/ नेताओं आदि एवं देश की सरकार के मध्य हुई बातचीत की एक लंबी प्रक्रिया के बाद दोनों पक्षों के बीच समझौता हो सका। बातचीत का लक्ष्य यह रखा गया कि विवाद के मुद्दों को संविधान के दायरे में रहकर निपटा लिया जाए। बहरहाल, समझौते तक पहुंचने की यह यात्रा बड़ी दुर्गम रही और जब – तब हिंसा के स्वर उभरे।
Q.12. शेख अब्दुल्ला के जीवन के कुछ प्रमुख पहलुओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
Ans: शेख अब्दुल्ला का जन्म 1905 मैं हुआ था। वे भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व ही जम्मू एवं कश्मीर के नेता के रूप में उभरे। वे जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता दिलाने के साथ-साथ वहां धर्म निरपेक्षता की स्थापना के समर्थक थे। उन्होंने राजशाही के विरुद्ध राज्य में जन – आंदोलन का नेतृत्व किया। वे धर्म निरपेक्षता के आधार पर जीवन भर पाकिस्तान का विरोध करते रहे। वे नेशनल कांफ्रेंस के गठनकर्ता और प्रमुख नेता थे। वे भारत में जम्मू – कश्मीर के विलय के उपरांत जम्मू – कश्मीर के प्रधानमंत्री ( उन दिनों इस राज्य के मुख्यमंत्री को ही प्रधानमंत्री का जाता है) 1947 में बने थे। उनके मंत्रिमंडल को भारत सरकार की कांग्रेसी सरकार ने 1953 में बर्खास्त कर दिया था तभी से 1964 तक करावास में रखा। सरकार ने अपनी शर्तों पर उनसे समझौता करना चाहा लेकिन समझौता न होने के कारण 1965 से 1968 तक कारावास में रखा। 1974 में इंदिरा कांग्रेस सरकार के साथ समझौता हुआ। वे राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आरुढ हुए। 1942 में उनका देहांत हो गया।
Q.13. मास्टर तारा सिंह के जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
Ans: मास्टर तारा सिंह का जन्म 1985 में हुआ था। वे युवा अवस्था में ही प्रमुख सिक्ख धार्मिक एवं राजनैतिक नेता के रूप में प्रसिद्ध प्राप्त कर सके। वे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी (एस.पी.डी) शुरुआती नेताओं में से एक थे। उन्हें इतिहास में अकाली आंदोलन के सबसे महान नेता के रूप में याद आता है। वे देश की स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थक ब्रिटिश सत्ता के विरोधी थे लेकिन उन्होंने केवल मुसलमानों के साथ समझौते की कांग्रेस नीति का डटकर विरोध किया। वे देश की आजादी के बाद अगला पंजाब राज्य के निर्माण के समर्थक रहे। 1967 में उनका स्वर्गवास हुआ।
Q.14. आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का सिक्खों एवं देश पर क्या प्रभाव पड़ा?
Ans: आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का सिक्ख जन – समुदाय पर बड़ा कम असर पड़ा। कुछ साल बाद जब 1980 में अकाली दल की सरकार बर्खास्त हो गई तो अकाली दल ने पंजाब तथा पड़ोसी राज्यों के बीच पानी के बंटवारे के मुद्दे पर एक आंदोलन चलाया। धार्मिक नेताओं के एक तबके ने स्वायत्त सिक्ख पहचान की बात उठायी। को चरमपंथी तबको ने भारत से अलग होकर ‘खालिस्तान’ बनाने की वकालत की।
Q.15. 1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में शांति किस तरह आई और इसके क्या अच्छे परिणाम दिखाई दिए?
Ans:यद्यपि 1992 में पंजाब राज्य में आम चुनाव हुए, लेकिन गुस्से में आई जनता ने दिल से मतदान में पूरी तरह भाग नहीं लिया। केवल 22% मतदाताओं ने मतदान का प्रयोग किया। यद्यपि उग्रवाद को सुरक्षा बलों ने अतत: दबा दिया लेकिन अनेक वर्षों तक पूरी जनता हिंदू और सिक्ख दोनों को ही कष्ट और यातनाएं झेलनी पड़ी।1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में शांति बहाल हुई। 1997 में अकाली दल (बादल) और भाजपा के गठबंधन को बड़ी विजय मिली। उग्रवाद के खात्मे के बाद फिर आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन के सवाल प्रमुख हो उठे। हालांकि धार्मिक पहचान यहां की जनता के लिए लगातार प्रमुख बनी हुई है। लेकिन राजनीति अब धर्मनिरपेक्षता की राह पर चल पड़ी है।
kshetriya aakankshayen : लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. ‘ऑपरेशन विजय ‘ का वर्णन कीजिए तथा उसका महत्व बताइए।
Ans: पुर्तगालियों ने जब किसी भी तरह से भारतीयों की प्रार्थना की, आपसी बातचीत को गोवा को छोड़ने के लिए नहीं मानी और उसने गलतफहमी मैं राष्ट्रवादियों और देशप्रेमियों पर हमले करने शुरू कर दिए। सैकड़ों लोगों की पुर्तगाली पुलिस ने जब अपना निशाना बताया तो भारत ने गोवा की आजादी के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ (operation Vijay) नामक सैनिक कार्यवाही की ताकि गोवा के साथ-साथ गोवा और दमन-दीव को अत्याचारी शासन से छुड़ाया जा सके।
ऑपरोन विजय नामक कार्यवाही 17-18 दिसंबर, 1961 को शुरू की गई। इस कार्यवाही के कमांडर जनरल जे. एन. चौधरी थे। दोपहर के 2 बजकर 25 मिनट पर 19 दिसंबर, 1961 को ऑपरेशन विजय नामक कार्यवाही समाप्त हो गई।
यह कार्यवाही भारतीय स्वतंत्रता को पूर्ण करने वाली कार्यवाही थी। गोवा, दमन, दीव हवेली आदि मैं भारत का तिरंगा फहराया गया। नि: संदेह गोवा की स्वतंत्रता ने भारतीयों का स्वाभिमान बढ़ाया और उन्हें सुशोभित किया। वे भारत के अंग बन गए। भारत की भूमि से विदेशियों की अनाधिकृत उपस्थिति और वर्चस्व पूर्णतया समाप्त हो गया।
Q.2. गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा सन 1987 मैं किस तरह प्राप्त हुआ? संक्षेप में लिखिए।
Ans: दिसंबर 1961 में पुर्तगाल से स्वतंत्रता प्राप्त करने वाला गोवा एवं भारत संघ में शामिल हुए गोवा संघ प्रदेश में शीघ्र एक और समस्या उठ खड़ी हुई। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के नेतृत्व मैं एक तबके ने मांग रखी कि गोवा को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए क्योंकि यह मराठी भाषी क्षेत्र है। बहरहाल, बहुत से गोवावासी गोवानी पहचान और संस्कृति को स्वतंत्र अहमियत बनाएं रखना चाहते थे। कोंकणी भाषा के लिए भी इनके मन में आग्रह था। इस तबके के नेतृत्व ने यूनाइटेड गोआ मैं एक विशेष जनमत सर्वेक्षण कराया। इसमें गोवा के लोगो से पूछा गया कि आप लोग महाराष्ट्र में शामिल होना चाहते हैं अथवा अलग बने रहना चाहते हैं। भारत में यही एकमात्र अवसर था जब किसी मसले पर सरकार ने जनता की इच्छा को जानने के लिए जनमत संग्रह जैसी प्रक्रिया अपनायी थी। अधिकतर लोगों ने महाराष्ट्र से अलग रहने के पक्ष मैं मत डाला। इस तरह गोवा संघ शासित प्रदेश बना रहा। अंतत: 1987 मैं गोवा भारत संघ का एक राज्य बना।
Q.3.’क्षेत्रीय आकांक्षाओं के प्रति भारत सरकार का नजरिया’ विषय पर एक टिप्पणी लिखिए।
Ans: क्षेत्रीय आकांक्षाओं अथवा क्षेत्रवाद के प्रति भारत सरकार का नजरिया – भारत ने विविधता के सवाल पर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण अपनाया। लोकतंत्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की राजनीतिक अभिव्यक्ति की अनुमति है और लोकतंत्र क्षेत्रीयता को राष्ट्र-विरोधी नहीं मानता। इसके अतिरिक्त लोकतांत्रिक राजनीति मैं इस बात के पूरे अवसर होते हैं कि विभिन्न दल और समूह क्षेत्रीय समस्या को आधार बनाकर लोगों की भावनाओं की नुमाइंदगी करें। इस तरह लोकतांत्रिक राजनीति की प्रक्रिया मैं क्षेत्रीय आकांक्षाएं और बलवती होती है। साथ ही लोकतांत्रिक का एक अर्थ यह भी है कि क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति-निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाएगा और उन्हें इसमें भागीदारी हो जाएगी। ऐसी व्यवस्था में कभी-कभी तनाव या परेशानियां खड़ी हो सकती है। कभी ऐसा भी हो सकता है कि राष्ट्रीय एकता के सरोकार क्षेत्रीय आकांक्षाओं और जरूरतों पर भारी पड़े। कोई व्यक्ति ऐसा भी हो सकता है कि हम क्षेत्रीय सरोकारों के कारण राष्ट्र की वृहत्तर आवश्यकताओ से आंखें मूंद ले। जो राष्ट्र की एकता भी बनी रहे। वहां क्षेत्रों की ताकते, उनके अधिकार और अलग अस्तित्व के मामले पर राजनीतिक संघर्ष का होना एक आम बात है।
Q.4. विभिन्न राज्यों में होने वाले प्रमुख आंदोलनों के क्या प्रमुख कारण थे?
Ans: आजादी के बाद भारत में प्रजातंत्रीय प्रक्रिया प्रारंभ हुई जिसके फलस्वरूप लोगों मैं अपनी व्यक्तिगत व क्षेत्रीय हितों के प्रति भी जागरूकता पैदा हुई। फलस्वरूप विभिन्न राज्यों में अनेक आंदोलन अपना प्रभाव दिखाने लगे। इस आंदोलनों के प्रमुख कारण निम्न माने जा सकते हैं –
(i) राजनीतिक व प्रजातंत्रिय प्रक्रिया के कारण लोगों में राजनीतिक चेतना।
(ii) भारतीय समाज का बहुत स्वरूप अर्थात भारत में विभिन्न जाति, धर्म व सांस्कृतिक व भोगोलिकता के लोग रहते हैं।
(iii) कई राज्यों में सीमा विवादों का जारी रहना।
(iv) क्षेत्रीय असमानताएं।
(v) वियोजन की राजनीति का प्रभाव।
(vi) संविधान के अनुच्छेद 356 का राज्यों में दुरुपयोग।
(vii) विभिन्न राज्यों में नये नेतृत्व का विकास।
(viii) क्षेत्रीय दलों का विकास।
(ix) नदियों के पानी के बंटवारे के संबंध में झगड़े।
(x) राष्ट्रीय क्षेत्रीय हितों में सामंजस्य का अभाव।
Q.5. जम्मू-कश्मीर की समस्या का प्रमुख कारण क्या है?
Ans: जम्मू-कश्मीर की प्रमुख समस्या इसका भारत में विलय का स्वरुप है। भारत सरकार अधिनियम 1947 के अनुसार सभी देशी रियासतों को यह अधिकार था कि अपना विलय भारत में करें या पाकिस्तान में उन्हें स्वतंत्र रूप से रहने का अधिकार भी दिया गया था। जम्मू – कश्मीर के तत्कालीन राजा हरि सिंह ने प्रारंभ में स्वतंत्र रहने की स्थिति को स्वीकारा। परंतु बाद में कबीलों के आक्रमण के कारण भारत में विलय को स्वीकारा। इस प्रकार कश्मीर का भारत में विलय हो गया। परंतु इस विलय को कश्मीर के एक वर्ग ने व पाकिस्तान ने स्वीकार नहीं किया। पाकिस्तान ने कश्मीर में उग्रवाद को भड़काया। तभी से कश्मीर में अलगाववाद का उदय हुआ। आज यद्यपि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है परंतु हिंसा का दौर जारी रहता है।
Q.6. अकालियो ने पंजाब की अधिक स्वायत्तता की मांग उठाई?
Ans: पंजाब में अकाली दल ने अधिकांशत: मिली-जुली सरकार अर्थात गठबंधन की सरकारें ही चलायी। अकाली दल का नेतृत्व यह महसूस करता है कि पंजाब से हरियाणा अलग होने के बावजूद भी अकाली दल की स्थिति मजबूत नहीं हुई। अकाली दल इसके तीन प्रमुख कारण मानता है जो निम्नलिखित है-
(i) अकालियो की पंजाब में सरकारे बार-बार केंद्र ने हटायी है।
(ii) अकालियों का यह भी मानना है कि इसकी सरकारों को व पार्टी का हिंदुओं से अपेक्षित समर्थन नहीं मिलता।
(iii) तीसरा प्रमुख कारण यह है कि खुद अकाली दल विभिन्न जातियों व वर्गों में बटा हुआ है। इन कारणों से अकाली बार-बार पंजाब के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग करते रहते हैं।
Q.7. पूर्वोत्तर के सात राज्यों के नाम बताइये। इनको किस प्रकार से संगठित किया गया?
Ans: पूर्वोत्तर के सात राज्यों को उनकी समान सामाजिक, सांस्कृतिक व भौगोलिक पहचान के आधार पर सात बहने कहा जाता है। इन सात राज्यों का नाम है – असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड। इन राज्यों को मुख्य रूप से इनकी सांस्कृतिक एवं भाषायी आधार पर गठित किया गया। मणिपुर व त्रिपुरा पहले रियासतें थी जो आजादी के बाद भारत में विलय हो गये थे। आसाम पहले मुख्य बड़ा राज्य था। इसके विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली अन्य भाषाओं के लोगों ने महसूस किया कि असमी भाषा उनके ऊपर थोपी जा रही है। अत: उन्होंने असम से अलग होकर अपनी भाषाओं के विकास के लिए पृथक राज्यों की मांग उठाना प्रारंभ कर दिया जिनको विभिन्न समयो में स्वीकार कर लिया गया। नागालैंड का गठन 1960 में पृथक राज्य के रूप में हुआ। 1972 में मेघालय, मणिपुर व त्रिपुरा का गठन किया गया। 1986 में अरुणाचल प्रदेश व मिजोरम का अलग राज्यों के रूप में गठन किया गया। भाषायी व सांस्कृतिक कारणों के अलावा इन राज्यों ने आर्थिक विकास के अभाव के कारण एवं राजनीतिक भेदभाव के कारण अलग राज्यों की मांग उठायी थी जिसमें वे अंतत: सफल भी हो गये।
Q.8. नागालैंड में उग्रवादी घटनाओं के कारणों पर प्रकाश डालिए।
Ans: मिजोरम के समान ही नागालैंड की परिस्थितियां रही। नागालैंड में 1951 के बाद ही ए-जेड-फिजो के नेतृत्व में उग्रवादी गतिविधियां व आंदोलन प्रारंभ हो गये थे। नागालैंड के प्रमुख नेता फिजो को केंद्र सरकार से वार्ता के बार-बार प्रस्ताव मिलते रहे परंतु फिजों का रवेया अड़ियल ही रहा। नागालैंड के आंदोलन को बाहरी शक्तियों विशेषकर चीन व पाकिस्तान से लगातार समर्थन मिलता रहा। हिंसक विद्रोह के एक दौर के बाद नागा लोगों ने भारत की सरकार के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये। नागालैंड का संतोषजनक समाधान अभी भी होना बाकी है। इनकी प्रमुख मांग नागालैंड को अलग राज्य के रूप में स्थापित करना है।
Q.9. राजीव व आसाम के विद्यार्थियों के बीच हुए आसाम समझौते की प्रमुख विशेषताएं समझाइये।
Ans: 1979 से 1985 तक चला असम आंदोलन बाहरी लोगों के खिलाफ चले आंदोलनो का सबसे अच्छा उदाहरण है। असमी लोगों को यह डर था कि बिहार व बंगलादेश से आये बाहरी लोग स्थानीय व्यापार व प्रशासन पर कब्जा कर एक दिन स्थानीय लोगों को अल्पसंख्यक बना देंगे जिसके खिलाफ उन्होंने आंदोलन प्रारंभ कर दिया जो 1979 में ऑल आसाम स्टूडेंट्स यूनियन ने चलाया। आसू का आंदोलन गैर-राजनीतिक था व उनका उद्देश्य केवल बाहर से आये अवैध अप्रवासी बंगालियों के बदबदे को समाप्त करना था।आंदोलनकारियों की मांग थी कि 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाये। इस आंदोलन में इन्हें असम के प्रत्येक वर्ग का समर्थन मिला। धीरे-धीरे यह आंदोलन हिंसक भी हुआ व इस आंदोलन का राजनीतिकरण भी हुआ। आंदोलन की शुरुआत शांतिपूर्ण अवश्य हुई लेकिन बाद में हिंसात्मक होने के कारण जान – माल का काफी नुकसान हुआ।
छ: वर्ष की अस्थिरता के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तथा राजीव गांधी के साथ असम समझौता हुआ। इस समझौते में यह तय किया गया कि बंगला देश युद्ध के दौरान व उसके बाद के सालों मैं जो लोग असम में आये हैं उनको पहचान कर असम से बाहर निकाला जायेगा। इसके बाद असम में शक्ति का युग प्रारंभ हुआ।
Q.10. मिजोरम में विघटनकारी व अलगाववादी आंदोलन के कारणों को समझाइये।
Ans: मिजोरम को आजादी के बाद असम के भीतर ही एक स्वायत्त जिला बना दिया गया था। कुछ मिजो लोगों का मानना था कि वे ब्रिटिश इंडिया के अंग नहीं रहे। अतः भारत में उनका कोई संबंध नहीं है। 1959 में मिजोरम में अकाल पड़ा जिसकी ओर भारत सरकार ने अधिक ध्यान नहीं दिया जिससे मिजोरम के लोगों की नाराजगी और भी अधिक बढ़ गयी। 1966 में मिजो नेशनल फ्रंट ने आजादी की मांग करते हुए सशस्त्र अभियान प्रारंभ कर दिया व भारतीय सेना व केंद्र सरकार को अपने गुस्से का निशाना बनाया। इस प्रकार मिजो नेशनल फ्रंट ने गुरिल्ला युद्ध प्रारंभ कर दिया। चीन व पाकिस्तान से मिजो उग्रवादियों को सैनिक ट्रेनिंग व आर्थिक सहायता प्राप्त हुई। दो दशकों तक मिजोरम इस आतंकी हिंसा का शिकार हुआ जिससे स्थानीय लोगो, भारतीय सैनिकों को भी नुकसान हुआ। केंद्र सरकार के नेता लालडेंगा थे जिन्होंने 1986 में मिजोरम में शांति लाने व इसको भारत के साथ राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने के लिए समझौता किया जिसके फलस्वरूप लालडेंगा राज्य के मुख्यमंत्री बन व मिजोरम के उग्रवादियों न हिंसा त्यागने का वायदा किया।
kshetriya aakankshayen : दीर्घ उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1.द्रविड़ आंदोलन पर एक नोट लिखें.
Ans: द्रविड़ आंदोलन: क्षेत्रीय आंदोलन में से यह एक शक्तिशाली आंदोलन था देश की राजनीति में यह आंदोलन क्षेत्रीय भावनाओं की सर्वप्रथम और सबसे प्रबल अभिव्यक्ति था।
आंदोलन का बदला स्वरूप: सर्वप्रथम इस आंदोलन के नेतृत्व के एक हिस्से की आकांक्षा का एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की विधि परंतु इस आंदोलन में तराई क्षेत्र संघर्ष का मार्ग नहीं अपनाया इस आंदोलन के प्रारंभ में द्रविड़ भाषा में एक बहुत ज्यादा लोकप्रिय नारा दिया गया था तब तक रूपांतरण है- ‘उत्तर हर दिन बढ़ता जाए दक्षिण दिन घटता जाए’।
द्रविड़ आंदोलन दक्षिण भारतीय संदर्भ में अपनी बात रखता था लेकिन अन्य दक्षिणी राज्यों में समर्थन ना मिलने के कारण यह आंदोलन धीरे-धीरे तमिलनाडु तक ही सिमट कर रह गया उपर्युक्त नारे में यह स्पष्ट है कि इसके संचालक देश के उत्तर और दक्षिण विशाल भागों में विभाजन चाहते थे।
नेतृत्व और उनके तरीके: द्रविड़ आंदोलन का नेतृत्व तमिल सुधारक नेता ई वी रामास्वामी नायर जो पेरियार के नाम से प्रसिद्ध हुए के हाथों में था पेरियार ने अपने नेतृत्व में द्रविड़ आंदोलन की मांग आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक बहस से और चुनावी मंच का ही प्रयोग किया आंदोलन के राजनीतिक उत्तरदाई संगठन द्रविड़ आंदोलन की प्रक्रिया से एक राजनीतिक संगठन द्रविड़ कब गम का सूत्रपात हुआ यह संगठन ब्राह्मणों के वर्चस्व के खिलाफत करता था तथा उत्तरी भारत के राजनैतिक आर्थिक सांस्कृतिक समुद्र को निकालते हुए क्षेत्रीय गौरव के प्रतिष्ठा पर जोर देता था।
Q.2.जम्मू कश्मीर की समस्या का मूल कारण समझाते हुए इसके निर्धारण का तरीका समझाएं।
Ans: आजादी से पहले जम्मू कश्मीर एक देशी रियासत थी भारत सरकार अधिनियम 1947 के आधार पर जम्मू कश्मीर को भी यह छूट दी गई थी कि यह चाहे तो स्वतंत्र राज्य के रूप में रहे अथवा पाकिस्तान या भारत में विलय हो जाए जम्मू कश्मीर के राज सिंह ने स्वतंत्र रहना चाहा परंतु कवियों के 1948 में जम्मू कश्मीर पर आक्रमण के कारण राजा सिंह ने 1948 में कुछ शर्तों के आधार पर भारत में विलय स्वीकार कर लिया परंतु इस विलय को पाकिस्तान ने व जम्मू-कश्मीर के वर्ग ने स्वीकार नहीं किया इसी आधार पर पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध लगातार खराब है चल रहे हैं 1948 तथा 1965 में पाकिस्तान तथा भारत के बीच युद्ध चला भारत ने जम्मू कश्मीर को भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के आधार पर विशेष दर्जा दिया जिसके आधार पर कश्मीर का अपना अलग संविधान है जम्मू कश्मीर में भारतीय संसद के द्वारा बनाया गया कोई कानून लागू हो सकता है जब उस कानून को कश्मीर की विधानसभा पारित कर दें इस विलय के बाद नेशनल कांफ्रेंस के नेता श्री शेख अब्दुल्ला को जम्मू कश्मीर का प्रधानमंत्री बनाया गया तथा यह सुनिश्चित किया गया कि जम्मू कश्मीर के हालात सामान्य हो जाएंगे इस विलय पर जम्मू कश्मीर के लोगों की राय अथवा स्वीकृति प्राप्त कर ले जाएगी केवलिन विलय से समस्या समाप्त नहीं हुई बल्कि इस विलय के बाद समस्या प्रारंभ हो गई पाकिस्तान ने ना केवल इसे अस्वीकार कर दिया बल्कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी लगातार इस विलय पर गुमराह करके वहां पर उग्रवाद तथा आतंकवाद को जन्म दिया जम्मू कश्मीर समस्या के संबंध में तीन धारणाएं हैं जम्मू कश्मीर के लोगों का समूह पाकिस्तान के साथ विलय का पक्षधर है जम्मू कश्मीर में एक समूह ऐसा है जो पाकिस्तान के साथ विलय नहीं चाहता बल्कि स्वतंत्रता है जम्मू कश्मीर के लोगों का एक बड़ा समूह ऐसा है जो भारत में जम्मू कश्मीर के विलय को स्वीकार करता है परंतु और अधिक स्वायत्तता की मांग करता है।
Q.3. जम्मू कश्मीर की 1948 से 1986 के मध्य राजनीति से जुड़ी प्रमुख घटनाओं की चर्चा कीजिए।
Ans: जम्मू कश्मीर की 1948 से 1996 के मध्य राजनीति से जुडी प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित है:
- जम्मू कश्मीर में 1948 के उपरांत तथा 1952 तक की राजनीति: प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद से अब्दुल्ला ने भूमि सुधार के बड़ी मुहिम चलाई उन्होंने इसके साथ-साथ जनकल्याण के कुछ नीतियां भी लागू की इन सब से यहां की जनता का फायदा हुआ बाहर हाल कश्मीर की हैसियत को लेकर शेख अब्दुल्ला के विचार केंद्र सरकार से मेल नहीं खाते थे इससे दोनों के बीच मतभेद पैदा हुआ।
- शेख अब्दुल्ला की बर्खास्तगी एवं चुनाव:1953 में शेख अब्दुल्ला को बर्खास्त कर दिया गया 1 साल तक उन्हें नजरबंद रखा गया शेख अब्दुल्ला के बाद जो नेता सत्तासीन हुए विशेष की तरह लोकप्रिय नहीं थे केंद्र के समर्थन के दम पर ही वे राज्य का शासन चला सके राज्य में हुए चुनावों में धांधली पर गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगे।
- जम्मू कश्मीर में 1953 से लेकर 1977 तक की राजनीतिक घटनाएं : 1953 से लेकर 1974 के बीच अधिकांश राज्य कांग्रेस का कांग्रेस के राज्य में कुछ समय तक रहे लेकिन बाद में कांग्रेस में मिल गई इस तरह राज्य की सत्ता सीधे कांग्रेस के नियंत्रण में आ गई शेख अब्दुल्ला और भारत सरकार के बीच सुलह की कोशिश जारी रही 1974 में इंदिरा गांधी के साथ शेख अब्दुल्ला ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया और वे राज्य के मुख्यमंत्री बने उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस को फिर से खड़ा किया और 1977 के राज्य विधानसभा के चुनाव में बहुमत से निर्वाचित हुए।
- जम्मू कश्मीर फारूक अब्दुल्ला के प्रथम कार्यकाल में: सन 1983 में शेख अब्दुल्लाह की मृत्यु हो गई और नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व की कमान मुख्यमंत्री बने बाहर हाल राज्यपाल ने जल्दी ही उन्हें बर्खास्त कर दिया और नेशनल कांफ्रेंस से एक टूटे हुए घुटने थोड़े समय के लिए राज्य की सत्ता संभाली केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से फारूक अब्दुल्ला की सरकार को बर्खास्त किया था इससे कश्मीर में नाराजगी का भाव पैदा हुआ शेख अब्दुल्ला और इंदिरा गांधी के बीच हुए समझौते से राज्य के लोगों का लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर विश्वास जमा था फारुख अब्दुल्ला की सरकार की बर्खास्तगी से इस विश्वास को धक्का लगा 1986 में नेशनल कांफ्रेंस ने केंद्र में सत्तासीन कांग्रेस पार्टी के साथ चुनाव गठबंधन किया इससे भी लोगों को लगा कि केंद्र राज्य की राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है।
Q.4.गोवा का भारत में विलय किस प्रकार हुआ?
Ans: भारत में गोवा का विलय आसानी से नहीं हूं इसका कारण पुर्तगालियों फ्रांसीसी का दृष्टिकोण था वह इसे अपने इज्जत का चिन्ह समझते थे और वे इसे अपने नियंत्रण में रखना चाहते थे उनका यह दृष्टिकोण भारतीय दृष्टिकोण के बिल्कुल विपरीत था पुर्तगालियों द्वारा भारत के आक्रमण की कार्यवाही और उसे जबरदस्ती हथियार रखने का अपने देश के सम्मान के लिए एक ध्ब्बा मानते थे भारतीय सरकार ने भरसक कोशिश की पुर्तगालियों को गोवा छोड़कर जाने के लिए राजी करें गोवा को प्राप्त करने के लिए पुर्तगाली राजधानी लिस्बन में अपना कार्यालय खोला था कि वहां की सरकार को गोवा छोड़ने के लिए राजी किया जा सके लेकिन आखिरकार को यह कार्यालय बंद कर दिया गया क्योंकि भारत के तमाम कूटनीतिज्ञ प्रयास विफल हो गए। भारत वासियों ने गोवा राष्ट्रीय कमेटी का गठन किया ताकि गोवा में आजादी के कार्य के संलग्न सभी राष्ट्रवादी पार्टियों की गतिविधियों में सामंजस्य स्थापित किया जा सके और गोवा को भारत संघ में शामिल किया जा सके 18 जून 1954 को अनेक सत्याग्रह कैद कर लिए गए जब उन्होंने गोवा में भारतीय ध्वज लहराया 22 जुलाई को क्रांतिकारियों ने दादर नगर हवेली को आजाद करा लिया इस कार्य में जनसंघ और गोवा वादी लोगों की पार्टी का संयुक्त रुप से क्रांतिकारियों का समर्थन प्राप्त था 15 अगस्त 1955 कोगोवा की आजादी के एक नाटकीय मोड़ लिया किस दिन हजारों भारतवासी चलकर गोवा में प्रवेश कर गए ऐसा ही दमन और दीव में भी हुआ इस प्रक्रिया में 200 प्रदर्शनकारी शहीद हो गए पुर्तगाल के इस गलत कार्यवाही से भारत भौचक्का रह गया हमारे प्रधानमंत्री ने पुर्तगालियों की निंदा के सभी प्रमुख शहरों में हड़ताल हुई नवंबर 1961 में पुर्तगालियों ने भारत के एक जहाज पर हमला करके लोगों को मार दिया अंततः भारतीय सेना ने कार्यवाही की ऑपरेशन विजय की कार्रवाई रंग लाई 19 दिसंबर 1961 को गोवा तथा दमन दीव पूरी तरह आजाद हो गए।
Q.5. पंजाब संकट तथा 1984 के सिख विरोधी दंगों का संक्षिप्त रूप से विवेचना कीजिए।
Ans: पंजाब संकट 1980 की राजनीतिक या चुनावी हार के बाद से अकाली ओके नेतृत्व में सिक्खों ने केंद्र सरकार के विरुद्ध संघर्ष छेड़ दिया था कांग्रेस के आंतरिक गुटबाजी की उठापटक ने इस संघर्ष में जान डाल दी उस समय आंदोलन जिन मांगों को लेकर किया गया उनमें से प्रमुख मांगे थे- अन्य राज्यों के पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में मिलाई जाए, चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाई जाए, भाखड़ा नांगल योजना पंजाब के नियंत्रण में हो, पंजाब में नारी उद्योग स्थापित किए जाए, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रबंधक में देश के सभी गुरुद्वारे हो। संत भिंडरवाले उग्रवादी प्रकृति का था उसने युवकों की एक विशाल वाहिनी अपने चारों और एकत्रित कर ली और आनंदपुर साहब प्रस्ताव की पूर्ति के नाम पर सिखों का अलग राज्य बनाने के लिए उकसाया सिख विरोधी दंगे दिसंबर 1983 में जब केंद्रीय सरकार पर भिंडरवाले को गिरफ्तार करने के लिए दबाव पड़ रहा था तब वह तथा उसके असंख्य हथियारबंद समर्थकों ने स्वर्ण मंदिर के दायरे में मौजूद सबसे अधिक पार्क बयान अकाल तख्त में प्रवेश कर लिया जयंत संरक्षित स्थान में प्रवेश कर गया था तब यह स्थान जिसे अब तक सुरक्षित समझा जाता था इसमें दंड की बाढ़ प्रारंभ हुई और अन्य प्रकार की कार्यवाहीया पंजाब के सभी स्थानों में प्रारंभ हो गई।