शासक और विभिन्न इतिवृति Shasak Aur Vibhinn Itivriti Mughal Darbar class 12 History Chapter 9 NCERT Solution.

Mugal Darbar class 12: शासक और विभिन्न इतिवृति: मुग़ल दरबार लगभग 16 वीं और 17 वीं सदी। झारखण्ड पाठशाला से कक्षा 12 वार्षिक परीक्षा की तैयरी कर सकते है। सभी प्रश्न वार्षिक परीक्षा के लिए के अनिवार्य है।

Shasak Aur Vibhinn Itivriti Mughal Darbar class 12 History Chapter 9 NCERT Solution.
मुग़ल दरबार लगभग 16 वीं और 17 वीं सदी

Mugal Darbar class 12: Important Points:

* मुग़ल वंश का संस्थापक बाबर था। इस वंश के अन्य शासक हुमायूँ, अकबर, जहांगीर ( सलीम ), शाहजहां व औरंगजेब था। अकबर इस वंश का सबसे महान शासक था।

* क्रॉनिकल्स शैली ( इतिवृति ) घटनाओं का अनवरत कालानुक्रमिक विवरण प्रस्तुत करते है।

* मुग़ल काल की प्रमुख रचनायें- बाबरनामा ( बाबर ), हुमायूँनामा ( गुलबदन बेगम ), अकबरनामा ( अबुल फजल ), बादशाहनामा ( अब्दुल हामिद लाहौरी ) थी।

* गूगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे।

* महाभारत का अनुवाद ‘ रज्मनामा ‘( युद्धों की पुस्तक ) के रूप में फारसी में हुआ।

* पाण्डुलिपि को एक बहुमूल्य वास्तु, बौद्धिक सम्पदा और सौंदर्य के कार्य के रूप में देखा जाता था। पाण्डुलिपि के रचना का मुख्या केंद्र शाही किताब खाना था।

* ‘ नस्तलीक़ ‘ अकबर की पसंदीदा लेखन शैली थी।

* इतिहासकार अबुल फजल ने चित्रकारी को एक ‘ जादुई कला ‘ के रूप में वर्णन किया है।

* 1784 में विलियम जॉन्स द्वारा कलकत्ता में सेशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की स्थापना की गयी। जिसका उद्देश्य भारतीय पांडुलिपियों का संपादन, प्रकाशन और अनुवाद करना था।

* अकबर ने 1563 में तीर्थयात्रा व् 1564 में जजिया कर समाप्त कर दिया क्योंकि यह दोनों कर धार्मिक पक्षपात पर आधारित थे।

* ‘ हरम ‘ शब्द फ़ारसी से निकला है जिसका तातपर्य है ‘ पवित्र स्थान’ ।

* दरबारी इतिहासकारों व् चित्रकारों द्वारा मुग़ल सम्राटों पर ईश्वर के दैवीय प्रकाश का निरूपण अपनी रचनाओं में किया गया ।

* अकबर के शासन की एक महत्वपूर्ण नीति ‘ सुलह-ए-कुल ‘ ( पूर्ण शांति) है।

* मुग़ल दरबार में शासक के लिए किये गए अभिवादन के तरीकें थे सिजदा, चार तसलीम, ज़मींबोसी, कोर्निश।

* साम्राज्य के निर्माण के आरंभिक चरण में तुरानी और ईरानी अकबर के शाही सेवा में उपस्थित थे 1560 के बाद राजपूतों व् भारतियों मुसलमानों ने भी शाही सेवा में प्रवेश किया।

* अंबेर का राजा भारमल पहला राजपूत था जो अकबर के शाही सेना में सम्मिलित हुआ। तथा अपनी पुत्री का का विवाह अकबर से किया।

शासक और विभिन्न इतिवृति अति लघु उत्तरीय प्राशन तथा उत्तर

Q.1. मुगलों की उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
Ans: (i) कुछ इतिहासकारों का विचार है कि मुगलो की उत्पत्ति मंगोलों से हुई है। इस शब्द से एक साम्राज्य की भव्यता का अहसास होता है परंतु मुगल शासकों ने इस नाम (मंगोल) को पसंद नहीं किया।
(ii) मुगल शासक अपने को तैमूरी कहना अच्छा समझते हैं क्योंकि वे पितृपक्ष से तुर्की शासक तैमूर के वंशज थे। मुगल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेज खां का संबंधी था।

Q.2. सर्वप्रथम कौन शासक हिंदुकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सफल रहा?
Ans: अकबर प्रथम शासक था जिसने हिंदुकुश पर्वत की सीमा तक अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सफल रहा।

Q.3. मुगल दरबार में फारसी का महत्व बताइए।
Ans: (i)बाबर के बाद सभी मुगल शासकों ने फारसी भाषा को अपनाया।
(ii) राजा, राजपरिवार के लोग, दरबार के विशिष्ट सदस्य सभी फारसी भाषा में बोलते थे। बाद में लिखाकारो, लिपिको और अन्य अधिकारियों ने भी इसे सीख लिया।

Q.4. नस्तलिक शैली क्या थी?
Ans नस्तलिक शैली

  • (i) सुलेखन अर्थात् हाथ से लिखने की कला एक महत्वपूर्ण कौशल माना जाता था। इसका प्रयोग भिन्न – भिन्न शैलियों में होता था। इनमें एक महत्वपूर्ण शैली नस्तलिक थी। अकबर इसको बहुत पसंद करता था।
  • (ii) यह एक तरल शैली थी जिसे लंबे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था। इसे 5 या 10 मिली मीटर की नोक वाले कलम से लिखा जाता था। कलम सरकंडे से बनी होती थी और इसे स्याही में डुबोकर लिखा जाता था।

Q.5. बिहुजाद कौन था?
Ans: (i) बिहुजाद ईरान का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। यह सफावी दरबार की शोभा था। इसके कारण यह विश्व में प्रसिद्ध हो गया।
(ii) ईरान के सफावी राजाओं ने दरबार में स्थापित कार्यशालाओ में प्रशिक्षित उत्कृष्ट कलाकारों को संरक्षण प्रदान किया।

Q.6. ऐतिहासिक विवरण और एक कालिक विवरण में अंतर बताइएं।
Ans: (i)ऐतिहासिक विवरण समयवार विकास की रूप – रेखा प्रस्तुत करता है।
(ii)एक कालिक विवरण एक विशेष समय की स्थिति का वर्णन करता है।

Q.7. दैवीय प्रकाश सिद्धांत क्या था?
Ans:(i) दैवीय प्रकाश सिद्धांत से राजत्व में वृद्धि की सर्वप्रथम प्रसिद्ध ईरानी सूफी शहाबुद्दीन सुरहवर्दी ने यह विचार दिया।
(ii) इस विचार के अनुसार एक पदानुक्रम के अंतर्गत यह दैवीय प्रकाश राजा में संप्रेषित होता था जिसके बाद राजा अपनी जनता के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था।

Q.8. एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना कब और किसने की?
Ans: 1784 इ० में सर विलियम जेम्स ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना की। इस संस्था के अनेक भारतीय पांडुलिपियों के संपादन, प्रकाशन और अनुवाद का कार्य किया।

Q.9. सुलह – ए – कुल क्या था?
Ans: अबुल फजल के अनुसार सुलह – ए – कुल अर्थात् पूर्ण शांति का आदर्श प्रबुद्ध शासक की आधारशिला है। सुलह – ए – कुल में सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी, किंतु एक शर्त यह थी कि वे राज्य – सत्ता को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाएंगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।

Q.10. लाहौर मुगल साम्राज्य की राजधानी कब बनी?
Ans: 1585 ई० में अकबर ने उत्तर-पश्चिम प्रांतों पर अधिक नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से लाहौर को अपनी राजधानी बतायी। लाहौर 13 वर्षों तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही।

Q.11. मुगल शासक कौन – सा मुख्य त्योहार मनाते थे?
Ans: मुगल शासक वर्ग तीन मुख्य त्योहार मनाया करते थे – सूर्यवर्ष और चंद्रवर्ष के अनुसार शासक का जन्मदिन और बसंत के आगमन पर फारसी नववर्ष नौरोज। जन्मदिन पर शासक को विभिन्न वस्तुओं से तोला जाता था। बाद में ये वस्तुएं दान में बांट दी जाती थी।

Q.12. हरम क्या था
Ans: ‘हरम’ शब्द का प्रयोग सामान्यत: मुगलों की घरेलू दुनिया की ओर संकेत करने के लिए होता था। यह फारसी शब्द था जिसका तात्पर्य ‘पवित्र स्थान’ से हैं।

Q.13. तजवीज क्या था?
Ans: तजवीज एक अभिजात द्वारा बादशाह के सामने प्रस्तुत की जानेवाली ऐसी याचिका थी जिसमें किसी उम्मीदवार को मनसबदार के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की जाती थी।

Q.14. परगना स्तर पर स्थानीय प्रशासन की देख – रेख करने वाला अर्थ – वंशानुगत अधिकारी कौन – कौन थे?
Ans: परगना स्तर पर स्थानीय प्रशासन की देख – रेख करने वाले तीन अर्थवंशानुगत अधिकारी होते थे – कानूनगो, चौधरी और काजी। कानूनगो राजस्व आलेख रखने वाला और चौधरी राजस्व संग्रह का प्रभारी होता था।

Q.15. गुलबदन बेगम कौन थी? लेखक के क्षेत्र में उनकी क्या उपलब्धियां थी?
Ans:(i) गुलबदन बेगम बाबर की पुत्री, हुमायु की बहन तथा अकबर की चाची थी।
(ii) उसने एक रोचक पुस्तक हुमायुनामा लिखा था जिसमे मुगलों के घरेलू जीवन का वर्णन हैं।
(iii) गुलबदन स्वयं तुर्की तथा फारसी में धाराप्रवाह लिख सकती थीं।
(iv) उसने अबुल फजल की अकबरनामा लिखने में सहायता की। उसने बाबर और हुमायू के समय के अपने पहले सस्मरणों को लिपिबद्ध किया था।
(v) उसने राजाओं और राजकुमारी के बीच चलने वाले संघषो और तनावो के साथ ही इनमें से कुछ संघर्षों को सुलझाने में परिवार के बुर्जुग स्त्रियों की भुमिका के बारे में विस्तार में लिखा।

शासक और विभिन्न इतिवृति लघु उत्तरीय प्राशन तथा उत्तर

Q.1. इतिवृत्त क्या है? इनकी रचना करने का उद्देश्य क्या था?
Ans: मुगल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्वपूर्ण स्रोत है ये इतिवृत्त इस साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने एक प्रबुद्ध राज्य के दर्शन की परियोजना के उद्देश्य से लिखे गए थे। इसी तरह इनका उद्देश्य उन लोगों को, जिन्होंने मुगल शासन का विरोध किया था, यह बताना भी था कि उनके सारे विरोधो का असफल होना नियत है। शासक यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासन का विवरण उपलब्ध रहे।
मुगल इतिवृत्तो के लेखक निरपवाद रूप से दरबारी ही रहे। उन्होंने जो इतिहास लिखे, उनके केंद्रबिंदु में थी – शासक पर केंद्रित घटनाएं, शासक परिवार, दरबार व अभिजात, युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएं। अकबर, शाहजहां और आलमगीर (मुगल शासक औरंगजेब की एक पादवी) की कहानियों पर आधारित इतिवृत्तो के शीर्षक अकबरनामा, शाहजहांनामा, अलमगीरनामा यह संकेत करते हैं कि इनके लेखकों की निगाह में सामन्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।

Q.2. चार तसलीम क्या था?
Ans: अभिवादन का चार तसलीम तरीका दाएं हाथ को जमीन पर रखने से शुरू होता है। इसमें तलहटी ऊपर की ओर होती है। इसके बाद हाथ को धीरे – धीरे उठाते हुए व्यक्ति खड़ा होता है तथा तलहटी को सिर के ऊपर रखता है। ऐसी तसलीम चार बार की जाती है। तसलीम का शाब्दिक अर्थ आत्मनिवेदन है।

Q.3. शब – ए – बारात किस प्रकार का विशिष्ट त्यौहार है?
Ans: शब – ए – बारात हिजरी कैलेंडर के आठवें महीने अर्थात चौदहवें सावन को पड़ने वाली पूर्णचंद्र रात्रि है। भारतीय उपमहाद्वीप में प्रार्थनाओ और आतिशबजियों के खेल द्वारा इस दिन को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस रात मुसलमानों के लिए आगे आने वाले वर्ष का भाग्य निर्धारित होता है और पाप माफ कर दिए जाते हैं।

Q.4. अकबर की राजपूत नीति के परिणाम बताये।
Ans: अकबर की राजपूत नीति के परिणाम –
(i) राजपूत विरोध की समाप्ति – राजपूत, जो हिंदुओं की वीर जाति थी, जिन्होंने सदा विदेशी आक्रमणकारियों का डटकर सामना किया था, वे अकबर के दादा बाबर से भयंकर संघर्ष कर चुके थे। लेकिन अकबर की उदार नीति के कारण वे उसके मित्र बन गए और उन्होंने मुगल साम्राज्य का विरोध बंद कर दिया।
(ii) राजपूत मुगल साम्राज्य के संरक्षक बन गए – राजपूत मुसलमान शासकों तथा मुसलमानों के घोर शत्रु थे। अकबर की उदारता की नीति से वे मुगल साम्राज्य के संरक्षक बन गए। अकबर ने उन्हें सैनिक और नागरिक प्रशासन में उच्च पद प्रदान किए थे। इससे उसे अनुभवी सेनापतियों, योग्य प्रशासको तथा कुशल राजनीतिज्ञो की सेवाएं मिल गई।
(iii) मुगलों की सैनिक शक्ति बढ़ गई – राजपूतों को मित्र बनाकर अकबर ने अपनी सैनिक शक्ति बढ़ा ली थी। मोरलैंड के अनुसार, “राजपूतों के सहयोग से अकबर को भारत के लगभग 50,000 सर्वोत्तम घुड़सवारो की सेवाएं मिल गई।
(iv)प्रशासन में सुधार – प्रशासन कार्यों में हिंदू बहुत योग्य थे। अकबर ने उदार नीति अपनाकर हिंदुओं, विशेषकर राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्ति किया और उनकी योग्यता का लाभ उठाकर अनेक प्रशासनिक सुधार किए।v

Q.5. मुगलशासन में दीवान के कार्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
Ans: वकील – ए – मुतलक, वजीर या दीवान – मुगल शासन – व्यवस्था में वजीर का पद बड़ा गर्वपूर्ण था। अबुल फजल के अनुसार, “वकील साम्राज्य और शाही परिवार से संबंधित सभी कार्यों में सम्राट का नायक होता है। वह परामर्श देता है और अपनी प्रखर बुद्धि से राज्य की बड़ी-बड़ी समस्याओं को सुलझाता है। किसी भी पदोन्नति, पदावनति, नियुक्ति तथा हटाया जाना आदि उसी की समझ पर निर्भर है।” किंतु बैरम खां के पश्चात ऐसे अधिकार किसी भी पदाधिकारी को नहीं दिये गए प्रधानमंत्री को दीवान के कार्य सौंप दिए गए और बाद के समय में दीवान ही राज्य का वजीर तथा प्रधानमंत्री होने लगा। दीवान का मुख्य कार्य राज्य की आय और व्यय की देखभाल करना था। वह बादशाह और अन्य अधिकारियों के बीच की कड़ी था। बादशाह की अनुपस्थिति में राजधानी में रहकर शासन की देखभाल करता था। बादशाह अवयस्क होने पर उसके संरक्षक के रूप में कार्य करता था और आवश्यकता पड़ने पर सेना का सेनापतित्व करता था। वह सभी अन्य विभागों पर नियंत्रण रखता था, सूबो की सूचनाएं प्राप्त करता था, बादशाह के आदेश को वहां भेजता था। राजनीतिक पत्र – व्यवहार करता था और शासन के सामान्य कार्यों की बादशाही की ओर से स्वयं करता था उसकी सहायता के लिए पांच प्रमुख अधिकारी तथा अन्य अनेक अधिकारी थे। इस प्रकार वह सम्राट का दूसरा रूप था।

Q.6. फतेहपुर सिकरी का वर्णन करें।
Ans: फतेहपुर सीकरी – फतेहपुर सिकरी उत्तर प्रदेश राज्य में आगरा के समीप अकबर द्वारा बनाई गई नवीन राजधानी थी। 1570 ई० में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ था गुजरात – विजय के उपलक्ष्य में उसने इसका नाम फतेहपुर सिकरी रखा। अबुल फजल के शब्दों में ‘उसके श्रेष्ठ पुत्रों ने सिकरी में जन्म लिया था तथा शेख सलीम की दिव्यज्ञानयुक्त आत्मा उनमें प्रविष्ट हो गई थी। अतः अकबर ने पवित्र हृदय में इस अध्यात्मिक स्थान को सुंदर रूप प्रदान करने की इच्छा प्रकट हुई। बादशाह ने निजी प्रयोग के लिए भव्य भवनों के निर्माण की आज्ञा दे दी।” फतेहपुर सीकरी के भवन में हमे हिंदू तथा मुस्लिम वस्तुकला का प्रभाव निश्चित रूप से दिखाई देता है। 15 वर्षों के अल्पकाल में इस नगर का निर्माण इतनी तीव्र गति से हुआ कि सर्मी ब्राउन के शब्दों में, “ऐसा प्रतीत होता है कि किसी जादूगर ने इसका निर्माण किया हो। इस नगर का विस्तार सात मील के पहाड़ी क्षेत्र पर है। इसके एक ओर कृत्रिम झील है तथा तीन ओर ऊंची चारदीवारी है इसमें कुल नौ द्वार है। इस नगर में बनी इमारतों को दो भागों में बांटा जा सकता है – धार्मिक इमारते तथा धर्म – निरपेक्ष इमारते। धार्मिक इमारतों में जामा मस्जिद, बुलंद दरवाजा, शेख सलीम चिश्ती का मकबरा शामिल है। धर्मनिरपेक्ष इमारतों में दीवाना – ए – आम, जोधाबाई का महल, तुर्की सुल्तानों का महल, बीरबल का महल, दीवाने खास, पंचमहल, टकसाल तथा ज्योतिष भवन प्रसिद्ध है। यहां पर बनी इमारते अकबर की उदार नीति का प्रतीक है। सच तो यह है कि वस्तुकला के क्षेत्र में फतेहपुर सिकरी महान मुगल सम्राट अकबर की सर्वोत्कृष्ट कलाकृति का उत्तम उदाहरण है। मुगल सम्राटो द्वारा बनाई गई इमारतो में फतेहपुर सिकरी का स्थान ताजमहल के बाद दूसरा है।

Q.7 अकबर के काल में चित्रकला के विकास का वर्णन कीजिए।
Ans: अकबर के अधीन चित्रकला – अकबर कलाओ का बड़ा पोषक था। उसके ईरानी चित्रकार अब्दुल समद के नेतृत्व में चित्रकला का एक अलग विभाग स्थापित कर दिया था। उसके आदेश पर फतेहपुर सीकरी के महलों की दीवारों को विभिन्न प्रकार व आकार के सुंदर चित्रों से सजाया गया था। उसने अपने दरबार में अनेक चीनी भारतीय तथा ईरानी चित्रकारों के प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की थी और उन्हें अच्छे वेतन तथा पुरस्कार भी प्रदान किए थे। अकबर स्वयं प्रति सप्ताह इन चित्रकारों की कलाकृतियों का निरीक्षण करता था और अच्छे चित्रों के लिए उन्हें पुरस्कृत व प्रोत्साहित करता था। उसने बड़े तथा कुछ छोटे चित्रकारों को संरक्षण प्रदान किया था जिनकी संख्या लगभग 100 थी। इसमें मुसलमान चित्रकार केवल 3 या 4 ही थे। शेष सभी चित्रकार हिंदू थे। अब्दुल समद, जमशेद, फर्रूखबेग, खुसरो कुली प्रसिद्ध मुसलमान चित्रकार थे। इन सबमें ईरानी चित्रकार अपने चित्रों की कोमलता व सुंदरता के लिए विख्यात था और उच्च कोटि का चित्रकार था और अकबर ने उसे शीरी कमल’ की उपाधि से विभूषित किया था। दसवंत, जगन्नाथ, केसु, लाल, ताराचंद, सांवलदास, बसावन, मुकंद, हरिवंश महान हिंदू चित्रकार थे। हिंदू चित्रकारों की महानता एवं कला – श्रेष्ठता से प्रभावित होकर अब्दुल फजल यह लिखने को विवश हुआ था, हिंदू चित्रकार अपनी कला में अत्यंत निपुण थे और उनके द्वारा बनाए गए चित्र अनुमान से परे थे। वास्तव में उनके समान संसार में कोई विरला ही था।

Q.8. जहांगीर के काल को मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग कहा जाता है, क्यों?
Ans. जहांगीर के अधीन चित्रकार – जहांगीर स्वयं एक अच्छा चित्रकार था और इस कला का महान पारखी था। उसका समय चित्रकला का स्वर्ण – युग था। उसने अपने निजी बगीचे के एक भाग में चित्रकला कक्ष की स्थापना कर रखी थी। उसने अपनी आत्मकथा ‘तुजके जहांगीरी’ में लिखा था, कला में मेरी रुचि एवं ज्ञान इस सीमा तक पहुंच गया है कि यदि मेरे सामने किसी भी मृत या जीवित चित्रकार की कलाकृति लाई जाती है और मुझे उस चित्रकार का नाम नहीं बताया जाता है तो मैं एकदम बता देता हूं कि यह कृति अमुक चित्रकार द्वारा बनाई गई है। यदि एक चित्रकार ने चेहरा बनाया हो और उसी चेहरे में आंखें व भौहे किसी दूसरे चित्रकार ने आंखें तथा भौहें बनाई है।” जहांगीर के इस कथन से अतिश्योक्ति होने पर भी एक उच्चकोटि के चित्रकार तथा इस कला के महान पारखी होने में संदेह नहीं किया जा सकता।
जहांगीर ने अपने यहां अनेक हिंदू तथा मुसलमान चित्रकारों को संरक्षण दिया था। समरकंद के मुहम्मद नादिर, उस्ताद मंसूर तथा मुहम्मद मुराद: हिरात के आगा रजा और उसका पुत्र अब्दुल हसन प्रसिद्ध मुसलमान चित्रकार थे। जहांगीर ने उस्ताद मंसूर व आगा रजा को ‘नारिस्लासार’ की उपाधि से विभूषित किया था। हिंदू कलाकारों में बिशनदास, मनोहर, गोवर्धन, तुलसी, माधव आदि प्रसिद्ध थे। बिशनदास अपने सजीव एवं यथार्थ चित्रों के लिए उसके समय का उच्चकोटि का चित्रकार था।

Q.9. मुगल बादशाहों के लिए कंधार का क्या महत्व था?
Ans: कंधार पर अधिकार – मुगलों की विदेश नीति का मुख्य आधार कंधार पर अधिकार रखना था। ऐसा दो कारणों से था- प्रथम कंधार को अपने अधीन रखे बिना वे काबुल को अपने अधीन नहीं रख सकते थे। दूसरे, कांधार उस व्यापारिक मार्ग पर था जो भारत को ईरान और मध्य एशिया से मिलता था। इस तरह कांधार 1522, 1558, 1595, 1622 और 1622 और 1649 ई० में निरंतर हाथ बदलता रहा। 1522 ई० में बाबर ने इस पर अधिकार किया था परंतु अकबर के बाल्यकाल में (1558 ई० को) ईरानियों से इसे जीत लिया था। फिर अकबर ने इसे 1595 ई० में जीत लिया परंतु जहांगीर के काल में 1622 ई० को ईरानियों ने इसे मुगलो से फिर छीन लिया। शाहजहां ने 1638 ई ० में इसे बड़ी कठिनाई से अपने अधीन कर लिया परंतु 1649 ई ० में ईरानियों ने फिर इसे छीन लिया। इस प्रकार कंधार पर अधिकार स्थापित करने के उद्देश्य से भी मुगलों को मध्य एशिया में दखल देना था।

Q.10. सुलह – ए – कुल के आदर्श को मुगल सम्राटो ने किस प्रकार लागू किया?
Ans: सुलह – ए – कुल के आदर्श को मुगल सम्राटों द्वारा लागू करना –

(i) सुलह – ए – कुल के आदर्श को राज्य नीतियों के माध्यम से लागू किया गया। मुगल सम्राटों के अधीन अभिजात वर्ग मिश्रित किस्म का था। उसमें इरानी, तुरानी, अफगानी, राजपूत आदि सभी शामिल थे। इन सबको पद और पुरस्कार दिये गये जो राजा के प्रति सेवा और निष्ठा पर आधारित थे।
(ii) अकबर ने 1563 में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया क्योंकि ये दोनों कर धार्मिक पक्षपात पर आधारित थे।
(iii) साम्राज्य के अधिकारियों को प्रश्न में सुलह – ए – कुल के नियम का अनुपालन करने के लिए निर्देश दे दिए गए।
(iv) सभी मुगल सम्राटों ने उपासना – स्थलों के निर्माण एवं रख – रखाव के लिए अनुदान दिए। यहां तक कि युद्ध के दौरान जब मंदिरों को नष्ट कर दिया जाता था तो बाद में उनकी मरम्मत के लिए अनुदान जारी किए जाते थे।

शासक और विभिन्न इतिवृति दीर्घ उत्तरीय प्राशन तथा उत्तर

Q.1. बाबरनामा के ऐतिहासिक महत्व पर संक्षिप्त विवरण दें।
Ans: बाबरनामा के ऐतिहासिक महत्व – बाबर की आत्मकथा है, जो मूलतः तुर्की भाषा से लिखी गई थी। यह पुस्तक विश्व साहित्य का उच्चकोटि का ग्रंथ ( classic) समझी जाती है। इस पुस्तक में स्वयं बाबर ने अपनी आंखों से देखें भारतीय जनजीवन, पशु – पक्षियों तथा भारत के प्राकृतिक सौंदर्य का सजीव चित्रण किया है। बाबर ने इस ग्रंथ में जहां अपने गुणों एवं उज्जवल पक्ष का वर्णन किया है, वहां उसने अपनी दुर्बलताओ तथा असफलताओं को भी स्पष्ट शब्दों में आंका है। उसने तत्कालीन भारतीय राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशा के तिरिक्त शत्रुओं की त्रुटियों तथा उनके गुणों का भी लेखा-जोखा पेश किया है। इस ग्रंथ की भाषा अत्यंत सरल, शुद्ध, स्वाभावीक, ह्रदयग्राही तथा अलंकृत है। इनमें अतिशयोक्ति तथा लच्छेदार शब्दावली का पूर्णतया अभाव है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह एक बहुमूल्य ग्रंथ है। बाबर का यह कीर्ति – स्तंभ ग्रंथ है। लेनपुल के अनुसार, बाबर के बाद में आने वाले सम्राटों की परंपरा, जिनका आरंभ बाबर से ही हुआ था, समाप्त हो चुकी है – बाबर के वंश की शक्ति तथा शान समाप्त हो चुकी है परंतु उसके जीवन का विवरण अर्थात आत्मकथा – काल का उपहास करती हुई बिल्कुल अपरिवर्तित है और अब तक अमर है।” श्रीमती बेवरिज जिसने तुर्की भाषा से इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया था, का कहना है कि बाबर की आत्मकथा एक वह अमूल्य भंडार है, जिसे सेट अगस्टाइन तथा रूसो के स्वीकृति वचन और गिब्बन तथा न्यूटन की आत्मकथाओ के समकक्ष रखा जा सकता है।
यह ग्रंथ तत्कालीन भारतीय एवं मध्य एशिया के इतिहास का सच्चा दर्पण है। इसमें सभी घटनाओं का वर्णन बड़ा सजीव, मार्मिक तथा वस्तुनिष्ठ बन पड़ा है। इसमें ना तो किसी चीज की अपेक्षा है और न ही अतिरंजना। इसमें प्रत्येक बात का वर्णन प्रत्यक्ष, स्पष्ट तथा नपे – तुले शब्दों में दिया गया है। साथ ही यह ग्रंथ बड़ा मनोरंजक है। सारा ग्रंथ एक रोमांस – सा लगता है। इसमें समस्त घटनाओं को एक क्रम से विधिपूर्वक दिया गया है। इसमे बाबर ने अपने बचपन, यौवन तथा प्रोढ को गुंथा है। यह ग्रंथ बाबर के दु: खमय, संघर्षपूर्ण तथा कठिनाइयों से भरे जीवन की गाथा है। इसमें बाबर की काबुल तथा भारत विजय का मनोहर वर्णन पढ़ने को मिलता है। यह पुस्तक बाबर के प्रकृति – प्रेम को दर्शाती है। इसमें बाबर की सूक्ष्मदृष्टि तथा कवि – हृदय प्रकृति के कण-कण को झांका गया है। बाबर की आत्मकथा केवल उसके सुसंस्कृत एवं सभ्य जीवन का प्रतिनिधि है और न ही यह केवल ऐतिहासिक एवं साहित्यिक दृष्टि से उत्तम बन पड़ी है, वरन् इसमें हमें तत्कालीन भारत, काबुल, फरगना, समरकंद तथा मध्य एशिया के लोगों के आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक जीवन की मनोहर झांकी भी देखने को मिलती है। इस संबंध में लेनपूल ने ठीक ही लिखा है, “उसकी आत्मकथा किसी अशिक्षित सैनिक के आक्रमणो तथा प्रत्याक्रमणो, रसों, सुरंगो, झिलमिलाते पदों, किलाबंदी की खचियाओं, सुरक्षा के लिए बने कटघरों, दुर्गों के ब्रह्म स्वरूपो, मंद स्वर में दिए गए दर्द के शब्द तथा अन्य असार वस्तुओं का वर्णन मान नहीं है वरन् एक ऐसे
मनुष्य के व्यक्तिगत भावों का प्रतिबिंब है, जो संसार का एक सच्चा शक्ति था, फारसी साहित्य का विद्वान था, एक गंभीर तथा जिज्ञासु निरीक्षक था और तीक्ष्ण बुद्धि मानव – स्वभाव का विचारशील परीक्षक तथा प्रकृति का अनन्य प्रेमी।

Q.2. मुगलकाल में किस प्रकार की पदवियो, उपहार और भेंट दी जाती थी और उनका क्या महत्व था?
Ans: राज्याभिषेक के समय अथवा किसी शत्रु पर विजय के बाद मुगल बादशाह विशाल पद वियां ग्रहण करते थे। उद्योषको (नकाब) द्वारा जब इन गुंजायमान और लयबद्ध पदवियों की घोषणा की जाती थी तो वे सभा में विस्मम का माहौल बना देती थी।
मुगल सिक्को पर राजसी नयाचार के साथ शासनरत बादशाह की पूरी पदवी होती थी।
योग्य व्यक्तियों को पदवियां देना मुगल राज्यतंत्र का एक महत्वपूर्ण पक्ष था। दरबारी पदानुक्रम में किसी व्यक्ति की उन्नति को उसके द्वारा धारण की जाने वाली पदवियो से जाना जा सकता था उच्चतम मंत्रियों में से एक को दी जाने वाली आसफ खां की पदवी का उद्भव अभिजातो जयसिंह और जसवंत सिंह को मिर्जा राजा की पदवी प्रदान की। पदवियां या तो अर्जित की जा सकती थी अथवा इन्हें पाने के लिए पैसे दिए जा सकते थे। मीर खान ने अपने नाम में अलिफ अर्थत् ‘अ ‘ अक्षर लगाकर उसे अमीर खान करने के लिए औरंगजेब को लाख रुपए देने का प्रस्ताव किया। अन्य पुरस्कारों में सम्मान का जामा (खिल्लत)भी शामिल था जिसे पहले कभी – ना – कभी बादशाह द्वारा पहना गया हुआ होता था। इसलिए यह समझा जाता था कि वह बादशाह के तीन हिस्से हुआ करते थे – जामा, पगड़ी और पटका। बादशाह द्वारा अक्सर रत्नजड़ित आभूषण भी उपहार के रूप में दिए जाते थे। बहुत खास परिस्थितियों में बादशाह कमल को मंजरियो वाला रत्नजड़ित गहनो का सेट (पदम मुरस्सा) भी उपहार में प्रदान करते थे।
एक दरबारी बादशाह के पास कभी खाली हाथ नहीं जाता था। वह यह तो नज के रूप में थोड़ा धन या पेशकश के रूप में मोटी रकम बादशाह को पेश करता था। राजनियक संबंधों में उपहारों को सम्मान और आदर का प्रतीक माना जाता था। राजदूत प्रतिद्वंदी राजनीतिक शक्तियों के बीच संधि और संबंधों के जरिए समझौता करवाने के महत्वपूर्ण कार्य का संपादन करते थे। ऐसी परिस्थितियों में उपहारों की महत्वपूर्ण प्रतिकात्मक भूमिका होती थी।

Q.3.अबुल फजल ने अकबर को किस प्रकार प्रभावित किया? अकबरनामा ने उसके मुगल साम्राज्य का वर्णन किस प्रकार किया है?
Ans: अकबरनामा के लेखक अबुल फजल का पालन – पोषण मुगल राजधानी आगरा में हुआ वह अरबी, फारसी, यूनानी दर्शन और सूफीवाद में पर्याप्त निष्णात था। इससे भी अधिक वह एक प्रभावशाल विवादी तथा स्वतंत्र चिंतक था जिसने लगातार दकियानूसी उलमा के विचारों का विरोध किया। इन गुणों से अकबर बहुत प्रभावित हुआ। उसने अबुल फजल को अपने सलाहकार और अपनी नीतियों के प्रवक्ता के रूप में बहुत उपयुक्त पाया। बादशाह का एक मुख्य उद्देश्य राज्य को धार्मिक रूढ़ीवादियों के नियंत्रण से मुक्त करना था। दरबारी इतिहासकारों के रूप में अबुल फजल ने अकबर के शासन से जुड़े विचारों को न केवल आकार दिया बल्कि उनको स्पष्ट रूप से व्यक्त भी किया। 1589 में शुरू अबुल फजल ने अकबरनामा पर 13 वर्षों तक कार्य किया और इस दौरान कई बार उसने प्रारूप में सुधार किए। यह इतिहास घटनाओं के वास्तविक विवरणों (वाकई), शासकीय दस्तावेजों तथा जानकार व्यक्तियों के मौखिक प्रमाणों जैसे विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों पर आधारित है। अकबरनामा को तीन जिल्दो में विभाजित किया गया है जिसमें से प्रथम दो इतिहास है तीसरी जिल्द आईन – ए – अकबरी है। पहला जिल्द में आदम से लेकर अकबर के जीवन के एक खगोलीय कालचक्र तक (30 वर्ष) का मानव – जाति का इतिहास है। दूसरी जिल्द अकबर के 46वे शासन वर्ष (1601) पर खत्म होती है। अगले ही वर्ष अबुल फजल राजकुमार सलीम द्वारा तैयार किए गए ष षडयंत्र का शिकार हुआ है और सलीम के सहापराधी वीर सिंह बुंदेला द्वारा उसकी हत्या कर दी गई।
अकबरनामा का लेखन राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण घटनाओं के समय के साथ विवरण देने के पारंपरिक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से किया गया। इसके साथ ही तिथियों और समय के साथ होने वाले बदलावों के उल्लेख के बिना ही अकबर के साम्राज्य भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक और संस्कृतिक सभी पक्षों का विवरण प्रस्तुत करने के अभिनव तरीके से भी इसका लेखन हुआ। अईन – ए – अकबरी में मुगल साम्राज्य को हिंदूओ, जैनों, बौद्दो और मुसलमानों की भिन्न – भिन्न आबादी वाले तथा एक मिश्रित संस्कृति वाले साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

Q.4. मुगल कौन थे? उन्होंने किस प्रकार भारत में अपनी सत्ता स्थापित की?
Ans: मुगल नाम मंगोल से व्युत्पन्न हुआ है। यद्यपि आज यह नाम एक साम्राज्य की भव्यता का अहसास कराता है, लेकिन राजवंश के शासकों ने स्वयं के लिए यह नाम नहीं चुना था। उन्होंने अपने को तैमूरी कहा, क्योंकि पितृपक्ष से वे तुर्की शासक तिपूर के वंशज थे। पहला मुगल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेज खां का संबंधी था। वह तुर्की बोलता था और उसने मंगोलों का अपहास करते हुए उन्हें बर्बर गिरोह के रूप में उल्लिखित किया है। 16वी शताब्दी के दौरान यूरोपियों ने परिवार की इस शाखा के भारतीय शासकों का वर्णन करने के लिए मुगल शब्द का प्रयोग किया। 16वी शताब्दी से ही इस शब्द का निरंतर प्रयोग होता रहा है। यहां तक की रूडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक के युवा नायक मोगली का नाम भी इससे व्युउत्पन्न हुआ है। मुगलो व स्थानीय सरकारों के बीच राजनीतिक – मैत्रियों के जरिए तथा विजयो के जरिए भारत के विविध क्षेत्रीय राज्यों को मिलाकर साम्राज्य की रचना की गई। साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन बाबर को उसके मध्य एशियाई स्वदेश फरगना से प्रतिद्वंदी उजबेको ने भगा दिया था। उसने सबसे पहले स्वयं को काबुल में स्थापित किया और फिर 1526 में अपने दल के सदस्यों की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए क्षेत्रों और संसाधनों की खोज में वह भारतीय उपमहाद्वीप में और आगे की ओर बढा। इसके उत्तराधिकारी नसीरुद्दीन हुमायूं (1530 – 40, 1555 – 56) ने साम्राज्य की सीमाओं में विस्तार किया, किंतु वह अफगान नेता शेरशाह सूरी से पराजित हो गया जिसने उसे ईरान के सफावी शासक के दरबार में निर्वासित होने को बाध्य कर दिया। 1555 में हुमायूं ने सूरो को पराजित कर दिया, किंतु एक वर्ष में ही उसकी मृत्यु हो गई। कई लोग जलालुद्दीन अकबर (1556 – 1605) को मुगल बादशाहों में महानतम मानते हैं, क्योंकि उसने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार ही किया बल्कि इसे अपने समय का विशालतम , दृढ़तम और सबसे समृद्ध राज्य बनाकर सुदृढ़ भी किया। अकबर हिंदुकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य की सीमाओं के विस्तार में सफल हुआ और उसने ईरान के सफावियों और तूरान (मध्य एशिया) के उजबेको की विस्तारवादी योजनाओं पर लगाम लगाए रखी। अकबर के बाद जहांगीर (1605 – 27), शाहजहां (1628 – 58) और औरंगजेब (1658 – 1707) के रूप में भिन्न – भिन्न व्यक्तित्व वाले तीन बहुत योग्य उत्तराधिकारी हुए। इसके अधीन क्षेत्रिय विस्तार जारी रहा, यद्यपि इसकी गति काफी धीमी रही। तीनों शासकों के विविध यंत्रो को बनाए रखा और उन्हें सुदृढ़ किया।

Q.5. अकबर ने किन कारणों से अपनी राजधानियों को स्थानांतरित किया?
Ans: मुगल साम्राज्य का हृदय – स्थल उसका राजधानी नगर था, जहां दरबार लगता था। 16वी और 17वीं शताब्दीयों के दौरान मुगलों की राजधानियां बड़ी तेजी से स्थानांतरित होने लगी। हालांकि बाबर ने लोदियों की राजधानी आगरा पर अधिकार कर लिया था तथापि उसके शासन के 4 वर्षों के दौरान राजसी दरबार भिन्न-भिन्न स्थान पर लगाए जाते रहे। 1560 के दशक में अकबर ने आगरा के किले का निर्माण करवाया। इसे आसपास के क्षेत्रों की खदानों से लाए गए लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया था। 1570 के दशक में उसने फतेहपुर सीकरी में एक नयी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। इस निर्णय का कारण यह हो सकता है कि सीकरी अजमेर को जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था, जहां से मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह उस समय तक एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन चुकी थी। मुगल बादशाहों के चिश्ती सिलसिले के सूफियो के साथ घनिष्ठ संबंध बने। अकबर ने सीकरी में जुम्मा मस्जिद के बल में ही शेख सलीम चिश्ती के लिए सफेद संगमरमर का एक मकबरा बनाने का आदेश दिया। विशाल मेहराबी प्रवेशद्वार (बुलंद दरवाजा) के निर्माण का उद्देश्य वहां आने वाले लोगों को गुजरात में मुगल विजय की याद दिलाना था। 1585 में उत्तर – पश्चिमी को और अधिक नियंत्रण में लाने के लिए राजधानी को लाहौर स्थानांतरित कर दिया गया और इस तरह वर्षों तक अकबर ने इस सीमा पर गहरी चौकसी बनाए रखी।

Mughal Darbar Class 12: मुग़ल दरबार

इसे विषय का MCQ प्रश्न को पढ़ने के लिए यहाँ Click करें।

Mughal Darbar Class 12: प्रश्न-उत्तर

इस पाठ के प्रश्न उत्तर जल्द ही उपलब्ध होंगे ………………….