शून्यवाद का सिद्धांत क्या है? Indian History Culture and Diversity Semester 4 SEC Paper.

शून्यवाद का सिद्धांत क्या है? Indian History Culture and Diversity Semester 4 SEC Paper.

शून्यवाद का सिद्धांत क्या है?

शून्यवाद (नास्तिकवाद) एक दार्शनिक सिद्धांत है जो कई परंपरागत धार्मिक विचारधाराओं के विरोधी है। यह सिद्धांत विश्वास करता है कि ईश्वर (देवता, परमात्मा या अन्य आकारधारी शक्ति) का कोई अस्तित्व नहीं है और इसलिए धर्म या आध्यात्मिकता की कोई आवश्यकता नहीं है। शून्यवादी (नास्तिक) समझते हैं कि सभी धार्मिक या आध्यात्मिक विश्वास प्रदर्शनों और परंपराओं के पीछे न केवल असत्यता बल्कि एक प्रकार का भ्रम छिपा होता है।

शून्यवादियों के अनुयायी विज्ञान, तर्क, अनुभव, और प्रकृति के आधार पर विश्व के उत्थान और प्रगति को समर्थित करते हैं। इन्हें मोक्ष या निर्वाण जैसे पारमार्थिक लक्ष्यों की प्रतिपादना में विशेष रूप से विश्वास नहीं होता है। उनका मुख्य ध्येय सुखी और समृद्ध जीवन को यहां और अब तक सीमित करना होता है।

यह धार्मिक दृष्टिकोण समाज में विभिन्न रूपों में पाया जाता है और विभिन्न प्रकार के नास्तिकवादी दार्शनिक संस्थान, जैसे कि चार्वाक, जैन नास्तिकवाद, एथिस्ट, आदि में विभाजित होता है। शून्यवाद के प्रचारक विभिन्न तरीकों से इसे प्रतिपादित करते हैं, लेकिन सामान्यतः वे अधिकांशतः भगवान के अस्तित्व को अस्वीकार करते हैं और अनुषासनिक विचारधाराओं के पक्ष में खड़े नहीं होते।