झारखण्ड का इतिहास JHARKHAND KA ITIHAS

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झारखण्ड का इतिहास 

झारखण्ड एक आदिवासी बहुल राज्य है। छोटानागपुर और संथाल परगना के वन क्षेत्र को मिला के झारखण्ड क्षेत्र का निर्माण किया गया है। जानकारों के अनुसार प्राचीन काल में गुप्त और गौड़ शासकों का इस क्षेत्र में अधिक समय तक शासन रहा। मध्यकल में इस क्षेत्र में क्षेत्रीय राजवंशों ने शासन किया। जिनमे कुछ प्रमुख राजवश इस प्रकार है –

राजवंशों के नाम            शासन क्षेत्र

नाग वंश                            छोटानागपुर
रक्सेल वंश                         पलामू
सिंह वंश                            सिंहभूम
मान वंश                             मानभूम
ढालवंश                              ढालभूम
चेरो वंश                              पलामू (रक्सेल वंश के पश्चात्)

इन सभी क्षेत्रीय राजवंशों में सबसे अधिक समय तक राज करने वाला वंश छोटानागपुर का नाग वंश है।सल्तनत कल (1206-1526) में झारखण्ड में बहुत काम बहरी आक्रमण हुए थे जैसे- वीरभूम के राजा द्वारा सिंहभूम पर, मुहम्मद-बिन-तुगलक के सेनापति मलिक बया द्वारा हजारीबाग पर तथा उड़ीसा के शासक कपिलेन्द्र गजपति द्वारा संथाल परगना पर। एक कथा के अनुसार, उड़ीसा के राजा जयसिंह देव ने  13वीं सदी में स्वयं को झारखण्ड का शासक घोसित किया था।इन सब के बजूद झारखण्ड में इस शासको का कोई स्थायी प्रभुत्व नहीं रहा तथा झारखण्ड का की अपनी सत्त्ता कायम रही। अकबर के शासन के समय मुगलों का संपर्क झारखण्ड के साथ संपर्क बना। तब से यहाँ के क्षत्रिय शासकों ने मुग़ल सूबेदारों को कर देना पड़ा। जब उत्तर मुग़ल कल में झारखण्ड से मुगलों का प्रभाव ख़त्म होने लगा तब झारखण्ड को मराठों का खतरा बढ़ा। यह खतरा 1803 तक चल, इससे पहले ये खतरा और भरता की भारत में अंग्रेजों का प्रभुत्व कायम हो गया।
                         झारखण्ड में अंग्रेजों को ख़फ़ी मुस्किलो का सामना करना पड़ा। झारखण्ड एक विशाल जंगलों का प्रदेश था जहाँ बहुत प्रकार के जाती और जनजाति निवास करते थे। आज भी ये क्षेत्र कई जाती तथा जनजातियों का बसेरा हे। ये लोग हमेशा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करते रहते थे।
जिनमें प्रमुख आंदोलन थे – संथाल विद्रोह(1855-56 )उलगुलानया बिरसा आंदोलन (1899-1900)। 1857 की क्रांति में भी झारखण्ड के लोगों की अहम् भूमिका रही है। इसके बाद भी गाँधी जी के सभी आंदोलन के साथ-साथ स्वतंत्रा संग्राम में भी अहम् भूमिका रही है। झारखण्ड बिहार का दक्षिण भाग था जो दक्षिण बिहार के नाम से जाना जाता था।
झारखण्ड के निर्माण के लिए आंदोलन 20 वीं शताब्दी के शुरुआती दसक में हुयी थी। इस आंदोलन में छोटानागपुर उन्नति समाज, छोटानागपुर-संथाल परगना के आदिवासी महासभा तथा झारखण्ड पार्टी की अहम् भूमिका रही। 1963  से 1973  तक का समय झारखण्ड आंदोलन के बिखराव एवं ठहराव का दौर था। 20 वीं सदी के अंतिम चतुर्थाश में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ( JMM ) ने नियमित आंदोलन किया, जिसके फलस्वरूप बिहार सर्कार ने 1995 ई। में झारखण्ड अधिविद्य परिषद् ( JAC ) की स्थापना की। फलस्वरूप 15  नवम्बर, 2000 ई। को झारखण्ड, भारत संघ के 28 राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। रांची को इसकी राजधानी तथा दुमका को इसकी उपराजधानी चुना गया।

झारखण्ड का नामंकर तथा प्राचीन नामें:

झारखण्ड का नाम झारखण्ड दो शब्दों के मेल से बना है – झार और खंड। जहाँ झार का अर्थ है झाड़ अर्थात वन और खंड अर्थ है भू खंड। इस प्रकार इसका अर्थ ये था की ये एक ऐसा भू-भाग था जो जंगलों से भरी थी। सामान्य अर्थों में अगर कहा जाये तो झारखण्ड का अर्थ है वन प्रदेश। झारखण्ड का सर्वप्रथम साहित्यिक उल्लेख ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में मिलता है, जिसमे इसका उल्लेख पुण्ड या पुण्ड्र नाम से किया गया है।
झारखण्ड का नाम विभिन्न कालों में अलग-अलग नाम से जाना जाता था, ये निम्नलिखित है:

   कल/रचना                   नाम     


विष्णु पुराण   –                     मुण्ड

वायु पुराण      –                   मुरण्ड

भागवत पुराण    –               किकट प्रदेश

महाभारत (दिग्विजय पर्व में )  –  पुंडरिक देश

महाभारत       –                     पशुभूमि  ( महाभारत में पुंडरिक देश के अलावा इसका भी नाम मिलता है )

प्रयाग प्रसस्ति ( हरिसेन ) –     मुरुण्ड देश

पूर्वमध्यकालीन संस्कृत साहित्य  – कलिन्द देश

एक ताम्रपट में (13 वीं शताब्दी कि ) – झारखण्ड

फ़ो-को-क्वी ( फाहियान )  –       कुक्कुट लाड

सी-यू-की ( ह्वेनसांग )   –          किलो-ना-सु-का-ला-ना

इस में हमें जाना: झारखण्ड का इतिहास, झारखण्ड के प्राचीन नाम, झारखण्ड के क्षेत्रीय राजा और उनके शासन क्षेत्र।

Note: झारखण्ड छोटानागपुर का ही पर्यावाची नाम है। ब्रिटिश कल में 1765 से 1833 ई। तक इस क्षेत्र को छोटानागपुर कहा जाता था।
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