पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत – Class 12 Economics Chapter 4 Notes

पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

1. पूर्ण प्रतिस्पर्धा का अर्थ

पूर्ण प्रतिस्पर्धा (Perfect Competition) एक ऐसी बाजार संरचना है जिसमें कई विक्रेता और क्रेता होते हैं। इस बाजार में किसी भी फर्म का व्यक्तिगत रूप से मूल्य निर्धारण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

2. पूर्ण प्रतिस्पर्धा की विशेषताएँ

  • बाजार में कई विक्रेता और खरीदार होते हैं।
  • सभी फर्में समान (Homogeneous) उत्पाद बेचती हैं।
  • फर्म के लिए स्वतंत्र प्रवेश और निर्गमन होता है।
  • उत्पाद की कीमत पर कोई व्यक्तिगत नियंत्रण नहीं होता।
  • सभी विक्रेताओं और खरीदारों के पास पूर्ण जानकारी होती है।

3. पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्म की संप्राप्ति

कुल संप्राप्ति (Total Revenue – TR):

TR = P × Q

औसत संप्राप्ति (Average Revenue – AR):

AR = TR / Q = P

सीमांत संप्राप्ति (Marginal Revenue – MR):

MR = ΔTR / ΔQ

4. लाभ अधिकतमकरण की शर्तें

  • सीमांत संप्राप्ति (MR) = सीमांत लागत (MC)
  • MC वक्र को MR वक्र को नीचे से काटना चाहिए

5. अल्पकालिक और दीर्घकालिक संतुलन

अल्पकालिक संतुलन

अल्पकाल में, फर्म केवल परिवर्ती लागत को समायोजित कर सकती है। यदि मूल्य (P) औसत परिवर्ती लागत (AVC) से अधिक है, तो फर्म उत्पादन जारी रखेगी।

दीर्घकालिक संतुलन

दीर्घकाल में, सभी उत्पादन कारक परिवर्तनीय होते हैं। सभी फर्में सामान्य लाभ अर्जित करती हैं और दीर्घकाल में आर्थिक लाभ शून्य होता है।

6. पूर्ति की कीमत लोच

Es = (% में पूर्ति की मात्रा परिवर्तन) / (% में मूल्य परिवर्तन)

7. परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न

  • पूर्ण प्रतिस्पर्धा के पांच मुख्य लक्षण क्या हैं?
  • अल्पकालिक संतुलन और दीर्घकालिक संतुलन में क्या अंतर है?
  • लाभ अधिकतमकरण की शर्तों को विस्तार से समझाइए।
  • सीमांत संप्राप्ति और औसत संप्राप्ति में संबंध क्या है?

8. निष्कर्ष

पूर्ण प्रतिस्पर्धा एक आदर्श बाजार संरचना है, जिसमें कोई भी फर्म बाजार मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकती। यह बाजार संरचना संसाधनों के कुशल आवंटन को सुनिश्चित करती है और दीर्घकाल में सामान्य लाभ की स्थिति में आती है।

लघु प्रश्न (1-2 अंक):

प्रश्न: पूर्ण प्रतिस्पर्धा क्या है?
उत्तर: पूर्ण प्रतिस्पर्धा एक ऐसी बाजार संरचना है जिसमें अनेक विक्रेता और खरीदार होते हैं, जो समान (समरूप) उत्पाद बेचते हैं, और किसी भी फर्म का मूल्य पर व्यक्तिगत नियंत्रण नहीं होता।

प्रश्न: मोनोपॉली (एकाधिकार) क्या है?
उत्तर: मोनोपॉली एक बाजार व्यवस्था है जिसमें एक ही विक्रेता होता है जो उत्पाद की आपूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण रखता है और मूल्य निर्धारण में स्वतंत्र होता है।

प्रश्न: सीमांत लागत (Marginal Cost) क्या है?
उत्तर: सीमांत लागत वह अतिरिक्त लागत है जो उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने पर आती है।

प्रश्न: औसत राजस्व (Average Revenue) की परिभाषा दें।
उत्तर: औसत राजस्व प्रति इकाई बेचे गए उत्पाद से प्राप्त औसत आय है, जो कुल राजस्व को बेची गई कुल इकाइयों से विभाजित करके प्राप्त होती है।

प्रश्न: लाभ अधिकतमकरण की शर्त क्या है?
उत्तर: लाभ अधिकतमकरण तब होता है जब फर्म की सीमांत राजस्व (MR) सीमांत लागत (MC) के बराबर होती है।

दीर्घ प्रश्न (4-6 अंक):

प्रश्न: पूर्ण प्रतिस्पर्धा की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर: पूर्ण प्रतिस्पर्धा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. अनेक विक्रेता और खरीदार: बाजार में विक्रेताओं और खरीदारों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी व्यक्तिगत रूप से मूल्य पर प्रभाव नहीं डाल सकता।
  2. समरूप उत्पाद: सभी फर्में समान प्रकार के उत्पाद बेचती हैं, जिससे उत्पादों में कोई भिन्नता नहीं होती।
  3. स्वतंत्र प्रवेश और निर्गमन: फर्मों के लिए बाजार में प्रवेश और बाहर निकलने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।
  4. पूर्ण जानकारी: सभी विक्रेता और खरीदार बाजार की सभी जानकारियों से पूर्णतः अवगत होते हैं।
  5. मूल्य पर नियंत्रण का अभाव: किसी भी फर्म के पास मूल्य निर्धारण पर व्यक्तिगत नियंत्रण नहीं होता; मूल्य बाजार की मांग और आपूर्ति से निर्धारित होता है।

प्रश्न: अल्पकालिक और दीर्घकालिक संतुलन में फर्म के व्यवहार की तुलना करें।
उत्तर: अल्पकाल में, कुछ उत्पादन कारक स्थिर होते हैं, जिससे फर्म सीमांत लागत और सीमांत राजस्व के आधार पर उत्पादन का निर्णय लेती है। यदि मूल्य औसत परिवर्ती लागत से अधिक है, तो फर्म उत्पादन जारी रखती है। दीर्घकाल में, सभी उत्पादन कारक परिवर्तनीय होते हैं, और फर्में सामान्य लाभ अर्जित करती हैं, क्योंकि नए प्रवेश और निर्गमन के कारण आर्थिक लाभ शून्य हो जाता है।

प्रश्न: लाभ अधिकतमकरण की शर्तों को समझाइए।
उत्तर: फर्म का लाभ अधिकतम तब होता है जब सीमांत राजस्व (MR) सीमांत लागत (MC) के बराबर हो, और MC वक्र MR वक्र को नीचे से काटे। इस स्थिति में, फर्म न तो उत्पादन बढ़ाने से लाभ कमाती है, न ही उत्पादन घटाने से।

प्रश्न: पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्म की दीर्घकालिक आपूर्ति वक्र का वर्णन करें।
उत्तर: दीर्घकाल में, पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्म की आपूर्ति वक्र एक क्षैतिज रेखा होती है, जो दीर्घकालिक संतुलन मूल्य पर होती है। इस मूल्य पर, फर्में सामान्य लाभ अर्जित करती हैं, और बाजार में आपूर्ति मांग के बराबर होती है।

प्रश्न: सीमांत लागत और औसत कुल लागत के बीच संबंध स्पष्ट करें।
उत्तर: जब सीमांत लागत (MC) औसत कुल लागत (ATC) से कम होती है, तो ATC घटता है। जब MC, ATC से अधिक होती है, तो ATC बढ़ता है। इसलिए, MC वक्र ATC वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर काटता है।

पिछले वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न: पूर्ण प्रतिस्पर्धा और एकाधिकार के बीच अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: पूर्ण प्रतिस्पर्धा में अनेक विक्रेता होते हैं जो समरूप उत्पाद बेचते हैं, जबकि एकाधिकार में एक ही विक्रेता होता है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्में मूल्य निर्धारण पर नियंत्रण नहीं रखतीं, जबकि एकाधिकार में विक्रेता मूल्य निर्धारण में स्वतंत्र होता है।

प्रश्न: पूर्ण प्रतिस्पर्धा में दीर्घकालिक संतुलन की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर: दीर्घकाल में, पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्में सामान्य लाभ अर्जित करती हैं, क्योंकि नए फर्मों के प्रवेश और निर्गमन के कारण आर्थिक लाभ शून्य हो जाता है। इस स्थिति में, मूल्य औसत कुल लागत (ATC) के बराबर होता है।

प्रश्न: सीमांत राजस्व और औसत राजस्व के बीच संबंध क्या है?
उत्तर: पूर्ण प्रतिस्पर्धा में, सीमांत राजस्व (MR) और औसत राजस्व (AR) बराबर होते हैं, क्योंकि फर्में मूल्य निर्धारण पर नियंत्रण नहीं रखतीं, और प्रत्येक अतिरिक्त इकाई की बिक्री से प्राप्त राजस्व समान होता है।

प्रश्न: यदि किसी फर्म की औसत परिवर्ती लागत उसके मूल्य से अधिक हो, तो अल्पकाल में फर्म का व्यवहार क्या होगा?
उत्तर: यदि मूल्य औसत परिवर्ती लागत (AVC) से कम है, तो फर्म अल्पकाल में उत्पादन बंद कर देगी, क्योंकि वह अपनी परिवर्ती लागत भी पूरी नहीं कर पाए

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