सामाजिक आंदोलन: Samajik Andolan Sociology Class 12 Chapter 8 NCERT Notes in Hindi

Samajik Andolan Sociology Class 12 NCERT Solutions in Hindi. Important Questions Ansewr of Sociology Class 12 based on the Syllaubs of JAC Board Ranchi.

Samajik Andolan Sociology Class 12 Chapter 8

Samajik Andolan Sociology Class 12: अति लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.बिहार में किसान आंदोलन से क्या अभिप्राय है?
Ans:
सन् 1919 – 20 में उत्तरी बिहार में दरभंगा राज की व्यापक क्षेत्र में हुए किसान आंदोलन का नेतृत्व स्वामी विद्यानंद ने किया। यह आंदोलन दरभंगा, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, पूर्णिया और मुंगेर जिलो में फैल गया। दरभंगा राज पुराने चारागाहो का सौदा और पेड़ों पर नया दावा कर रहा था। महंगाई भी बढ़ रही थी। राज के ‘ ‘अमला ‘या एजेंट आमतौर पर छोटे जमींदार थे। आर्थिक दबावो के कारण ये और भी दमनकारी हो गए थे। इस समय किसान आंदोलन मुख्यत: ‘ अमला ‘ वसूली और स्वामित्व अधिकारों पर रोक लगाने की मांग कर रहे थे।

Q.2.किसान आंदोलनो व श्रमिक आंदोलनों का उद्देश्य क्या था? वर्णन करे।
Ans:
किसान आंदोलनों और श्रमिक आंदोलनो का मुख्य उद्देश अवैध वसूली और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाना था।

Q.3.तेभागा आंदोलन को स्पष्ट करें।
Ans:
सन् 1946 – 47 के शीतकाल में बंगाल में एक आक्रामण आंदोलन का उभार आया। प्रांतीय किसान सभा ने फ्लाउड कमीशन की सिफारिशों के अनुसार, ‘ तेभागा ‘ लागू करने के लिए जन – आंदोलन का आह्वान किया। ‘ तेभागा ‘ से आशय है – बटाईदार के लिए, उपज का दो – तिहाई, न कि आधा या इससे भी कम। कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं, जिनमें कई शहरी छात्र थे, गांवो में पहुंचकर बतटाईदरों को संगठित किया।

Q.4.ट्रेड यूनियन आंदोलन से क्या अभिप्राय है?
Ans:
भारत में ट्रेड यूनियन की जोडे धीरे-धीरे जमीं है। सन् 1919 – 20 में कानपुर, कलकत्ता, बंबई, मद्रास, जमशेदपुर जैसे कई औद्योगिक केंद्रों में अनेक हड़ताले हुई। कम्युनिस्टो ने ट्रेड यूनियन आंदोलन में अपना प्रभाव बढ़ाया और फरवरी एवं सितंबर 1927 में खड़गपुर में रेलवे वर्कशॉप मजदूरों की हड़ताल आयोजित करने में निर्णायक भूमिका निभाई। सन् 1928 तक कम्युनिस्ट नेतृत्व वाली गिरनी कामगार यूनियन बहुत सशक्त हो गई।

Q.5.श्रमजीवी वर्ग का उदय कैसे हुआ? स्पष्ट करें।
Ans:
19वीं शताब्दी के अंतिम दशक से 20वीं शताब्दी के प्रारंभ तक ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज एवं अर्थव्यवस्था में काफी परिवर्तन ला दिया था। ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासकों ने औद्योगिक स्वार्यों की सिद्धि एवं उनके पूंजी निवेश के साधनों के माध्यम के रूप में, भारत में रेलवे, उद्योग, चाय बागानों, खानो आदि का विकास हुआ था जिसने अनिवार्यत: श्रमजीवी वर्ग को जन्म दिया। प्रथम विश्वयुद्ध के पहले के मजदूर आंदोलन पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि नवजात मजदूर वर्ग ने शोषण एवं उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाना और संघर्ष करना 19वीं शताब्दी में ही प्रारंभ कर दिया था। 20वीं शताब्दी में यह आवाज संघर्ष में बदल गई जिसके उदाहरण 1907 की रेलवे हड़ताल और 1908 की मुंबई हड़ताल जैसी बड़ी लड़कियों में मिलते हैं। सन् 1907 में सारे देश में रेलवे हड़ताल हुई थी जिसके माध्यम से मजदूर अपना वेतन बढ़वाने एवं मालिकों के अत्याचार कुछ कम कराने में सफल हुए थे।

Q.6.उत्तराखंड के कुछ गांवों ने जंगलों की कटाई के विरोध में किस प्रकार एक प्रसिद्ध आंदोलन का रूप ग्रहण किया? व्याख्या करें।
Ans:
1973 में पेड़ों को बचाने के लिए सामूहिक कार्यवाही की एक असाधारण घटना ने वर्तमान उत्तराखंड राज्य के स्त्री – पुरुषों की एकजुटता को प्रदर्शित कर वनों की व्यवसायिक कटाई का घोर विरोध किया। इस विरोध का मूल कारण था कि सरकार ने जंगलों की कटाई के लिए अनुमति दी थी। गांव के लोगों ने (विशेषकर महिलाओं) अपने विरोध को जताने के लिए एक नयी तरकीब अपनयी। इन लोगों ने पेड़ों को अपनी बाहों में घेर लिया ताकि उन्हें कटने से बचाया जा सके। यह विरोध आगामी दिनों में भारत के पर्यावरण आंदोलन के रूप में परिणत हुआ और ‘ चिपको – आंदोलन ‘ के नाम से विश्वप्रसिद्ध हुआ।

Q.7.जन आंदोलन की प्रकृति से क्या आशय है?
Ans:
जन – आंदोलन वे आंदोलन होते हैं जो प्राय: समाज के संदर्भ या श्रेणी के क्षेत्रीय अथवा स्थानीय हितो, मांगों और समस्याओं से प्रेरित होकर प्राय: लोकतांत्रिक तरीके से चलाए जाते हैं। उदाहरण के लिए 1973 में चलाया गया चिपको आंदोलन, भारतीय किसान यूनियन द्वारा चलाया गया आंदोलन, दलित पैंथर्स आंदोलन, आंध्र प्रदेश में ताड़ी विरोधी आंदोलन, समय-समय पर चलाये गये छात्र आंदोलन, नारी मुक्ति और सशक्तीकरण समर्थित आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन आदि जन आंदोलनों के उदाहरण है।

Q.8.स्वतंत्रता के बाद महिलाओं की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है? स्पष्ट करें।
Ans:
स्वतंत्रता के बाद महिलाओं की स्थिति को और असमानता में समानता तक लाने के जागरूक प्रयास होते रहे हैं। वर्तमान काल में महिलाओं को पुरुषों के साथ समानता का दर्जा प्राप्त है। महिलाएं किसी भी प्रकार की शिक्षा या प्रशिक्षण को चुनने के लिए स्वतंत्रत है, परंतु ग्रामीण समाज में अभी भी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है जिसे दूर किया जाना चाहिए। यद्यपि कानूनी तौर पर महिलाएं पुरुषों के समान अधिकार रखती है परंतु आदि काल से चली आ रही पुरुष प्रधान व्यवस्था में व्यवहारिक रूप में महिलाओं के साथ अभी भी भेदभाव किया जाता है।

Q.9.शिक्षा और रोजगार में पुरुषों और महिलाओं की स्थिति का वर्णन करे।
Ans:
पुरुषों और महिलाओं की स्थिति में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अंतर है। स्त्री साक्षरता 2001 में 54.16% थी जबकि पुरुषों की साक्षरता 75.85% थी। शिक्षा के अभाव के कारण रोजगार, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की सफलता सीमित है।

Q.10.किन्ही चार प्रमुख नेताओं का वर्णन कीजिए जिन्होंने समाज के दलितों के कल्याण के लिए प्रयास किए।
Ans:
समाज के दलितों के कल्याण के लिए चार प्रमुख नेताओं निम्नलिखित है –

  • ज्योतिराव गोविंद राव फुले ने भारतीय समाज के तथाकथित पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए आवाज उठाई, संगठन बनाए और लेख लिखे। वे ब्राह्मणवाद के कट्टर विरोधी थे।
  • मोहनदास करमचंद गांधी ने हरिजन संघ, हरिजन नाम से पत्रिका, छुआछूत उन्मूलन और तथाकथित हरिजनों के कल्याण के लिए बहुत प्रयास किया।
  • डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवन भर दलितों के उत्थान के लिए कार्य किए संगठन बनाए और भारतीय संविधान की रचना के दौरान छुआछूत उन्मूलन के लिए व्यवस्था कराई। किसी भी रूप में छुआछूत का व्यवहार करने वाले लोगों को दोषी मानकर कानून के अंतर्गत कठोर दंड दिए जाने की व्यवस्था कराई।
  • कांशीराम ने डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे महान् समाज – सुधारक को अपना आदर्श और प्रेरणा स्रोत मानकर बहुजन समाज पार्टी की रचना की। यह दल उनके संपूर्ण जीवन में कार्यरत रहा। आज भी यह दल कुछ परिवर्तित रूप में तथाकथित दलितों के कल्याण के लिए कार्यरत है।

Q.11.महिलाओं की शिक्षा और रोजगार संबंधी स्थिति का उल्लेख करें।
Ans:
शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति में पुरुषों की अपेक्षा अधिक अंतर है। 2001 में स्त्री साक्षरता दर 54.16 % थी जबकि पुरुषों में यह 75 . 85 % थी। स्वतंत्रता के समय महिलाओं की साक्षरता दर 7.9 % थी जबकि 2001 में यह बढ़कर 54 .18 % हो गई। इसके बावजूद अशिक्षित महिलाओं की संख्या इन दशकों में और भी बढ़ गई। इसका कारण जनसंख्या में वृद्धि तथा लड़कियों को विद्यालय में दाखिला न दिलवाना एवं शिक्षा की औपचारिक व्यवस्था में लड़कियों का स्कूल छोड़ जाना है। निरक्षरता एवं शिक्षा के अभाव के कारण रोजगार एवं प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की सफलता सीमित है।

Q.12. ‘ काका कालेलकर आयोग ‘ ने पिछड़े वर्गों के लिये क्या सुझाव दिये ? स्पष्ट करें।
Ans:
काका कालेलकर आयोग (पिछड़ा वर्ग आयोग) का गठन सन् 1953 में किया गया। इस आयोग ने पिछड़े वर्गों के विकास के लिये सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने पर बल दिया तथा पिछड़ी जातियों को प्रथम श्रेणी की सेवाओं में 25 % , द्वितीय श्रेणी की सेवाओं में 33. 5 % तथा तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में 40% आरक्षण का प्रस्ताव रखा।

Q.13.मंडल आयोग की रिपोर्ट पर सर्वोच्च न्यायालय ने क्या निर्णय दिया? व्याख्या करें।
Ans:
मंडल आयोग की रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वी. पी. सिंह के समय लागू की गई। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में निम्न निर्णय दिया –

  • पिछड़े वर्ग के आरक्षण की पहचान करने के लिए जाति को आधार बनाया जाए।
  • आरक्षण की उच्च सीमा 50% निर्धारित की गई।
  • पिछले वर्ग में समृद्ध लोगों (क्रीमी लेयर) को यह सुविधा नहीं दी गई।
  • कुछ तकनीकी पदों पर आरक्षण नहीं दिया गया।
  • पदोन्नति में आरक्षण नहीं दिया गया।
  • संघ सरकार को पिछड़े वर्गों में समृद्ध लोगों की पहचान करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया।
  • संघ व राज्य सरकारों द्वारा न्यायिक अधिकरण का गठन करके इस वर्ग में जातियों को जोड़ा जा सकता है।

Q.14.भारत में पुराने तथा नए सामाजिक आंदोलनों से स्पष्ट भेद करना क्यों कठिन है? उल्लेख करें।
Ans:
भारत में महिलाओं, कृषको, दलितों, आदिवासियों तथा अन्य सभी से संबद्ध सामाजिक आंदोलन हुए हैं। क्या इन आंदोलनो को जेड ‘ नए सामाजिक आंदोलन ‘ समझा जा सकता है? गेल ऑमवेट ने अपनी पुस्तक ‘ रीइन्वेंटिंग रिवोल्यूशन ‘ में बताया है कि सामाजिक असमानता तथा संसाधनों के असामान्य वितरण के बारे में चिंताएं इन आंदोलनों में भी आवश्यक तत्व बने हुए हैं। कृषक आंदोलनों ने अपने उत्पाद हेतु अच्छे मूल्य तथा कृषि संबंधी सहायता के हटाए जाने के विरुद्ध लोगों को गतिशील किया है। दलित श्रमिकों ने सामूहिक प्रयास करके सुनिश्चित किया है कि उच्च जाति के भू – स्वामी तथा महाजन उनका शोषण न कर पाए। महिलाओं के आंदोलनों ने लिंग – भेद के मुद्दे पर कार्यस्थल तथा परिवार के अंदर जैसे विभिन्न क्षेत्रों में काम किया है। नए सामाजिक आंदोलन आर्थिक असमानता के ‘ पुराने ‘ विषयों के बारे में ही नहीं है, न ही ये वर्गीय आधार पर संगठित हैं। पहचान की राजनीति, सांस्कृतिक चिंताएं तथा अभिलाषाएं सामाजिक आंदोलनों की रचना करने के आवश्यक तत्व है तथा इनकी उत्पत्ति वर्ग – आधारित असमानता में खोजना कठिन है।

Samajik Andolan Sociology Class 12: लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.पर्यावरणणीय आंदोलन प्राय: आर्थिक एवं पहचान के मुद्दों को भी साथ लेकर चलते हैं। वर्णन कीजिए।
Ans:
आधुनिक काल के अधिकतर भाग में सर्वाधिक जोर विकास पर दिया गया है। दशकों से प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित उपयोग तथा विकास के ऐसे प्रतिरूप के निर्माण में, जिससे पूर्व से ही घटते प्राकृतिक संसाधनों के अधिक शोषण की मांग बढ़ती है, के विषय में बहुत चिंता प्रकट की जाती रही है। विकास के इस प्रतिरूप की इसलिए भी आलोचना हुई है, क्योंकि यह स्वीकार करता है कि विकास से सभी वर्गों के लोग लाभान्वित होंगे। जैसे बड़े बांध लोगों को उनके घरों और जीवन – यापन के स्रोतों से अलग कर देते हैं और उद्योग, कृषकों को उनके घरों और आजीविका से। औद्योगिक प्रदूषण के प्रभाव की एक और ही कहानी है। यहां हम परिस्थितिकिय आंदोलन से संबंधित विभिन्न मुद्दों को जानने के लिए उसका केवल एक उदाहरण ले रहे हैं। रामचंद्र गुहा की पुस्तक ‘ अनक्वाइट वुट्स ‘ के अनुसार गांववासी अपने गांवो के पास के ओक तथा रोहोडैड्रोन के जंगलों को बचाने के लिए एक साथ आगे गये। सरकारी जंगल के ठेकेदार पेड़ों को काटने के लिए आए तो गांववासी, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल थी, आगे बढ़े और कटाई रोकने के लिए पेड़ों से चिपक गए।

Q.2.तेलंगाना आंदोलन का वर्णन करे।
Ans:
तेलंगाना का किसान संघर्ष कई मायनों में पूर्ववर्ती संघर्षों की तुलना में कई काफी बढ़ा – चढ़ा रहा। जुलाई, 1946 से अक्टूबर, 1951 के बीच तेलंगाना में आधुनिक भारतीय इतिहास में किसानों के सबसे व्यापक गुरिल्ला युद्ध का समां रहा। यह आंदोलन अपने उभार में 16,000 वर्ग मील, 3000 गांवों और 30 लाख की आबादी में फैल गया। इस क्षेत्र में सीमंती शोषण चरम सीमा पर था और राजनीतिक – लोकतांत्रिक अधिकारों का भयंकर दमन होता था। मुस्लिम और उच्चवर्गीय हिंदू ‘ देशमुख ‘, या ‘ पैगा ‘ , ‘ जागीरदार ‘, ‘ बंजरदार ‘, ‘ मक्तेदार’ जैसे सामंतवादी उत्पीड़न निम्न – वर्गीय, आदिवासी किसानों या कर्ज में दबे लोगों से ‘ वेट्टी’ वसूलते थे। ‘वेट्टी’ प्रथा जबर्दस्ती बेगार या पैसा लेने की प्रथा है।

Q.3.आंध्र प्रदेश में किसान आंदोलन से क्या अभिप्राय हैं?
Ans:
आदिवासियों के निरंतर जुझारू संघर्ष का सबसे अच्छा उदाहरण आंध्रप्रदेश में गोदावरी के उत्तरी क्षेत्र में मिलता है जो मुख्यत: आदिवासी बहुल क्षेत्र था। यहां अगस्त, 1922 से मई, 1924 के बीच अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में गुरिल्ला युद्ध – सा होता रहा। आंदोलन का नायक राजू आंध्र में लोक कथाओं का पात्र बन गया। यह आंदोलन विभिन्न तत्वों के संयोग से विकसित हुआ और आदिम विद्रोह आधुनिक राष्ट्रवाद से जुड़ गया। राजू ने अपने को ‘ बुलेट प्रूफ ‘ होने का दावा किया, इसके साथ ही उसने ‘ कल्कि अवतार ‘ के भी अनिवार्य आगमन की घोषणा की। राजू ने गांधीजी की प्रशंसा की, पर उसने हिंसा को भी अनिवार्य बताया। उनके नेतृत्व में आदिवासियों के में अंग्रेजों और भारतीयों के बीच अंतर करने की उल्लेखनीय प्रवृत्ती दिखाई दी। आदिवासियों की समस्याएं – शिकायतें वही थी जो इस क्षेत्र में पहले भी कई आंदोलनों का कारण बनी थी। सूदखोरी, वन अधिकारों पर नियंत्रण, सरकारी कर्मचारियों द्वारा आदिवासियों से बेगार करवाना आदि असंतोष के मुख्य कारण थे। आंदोलन में गुरिल्ला युद्ध की कार्यनीति का सक्षमता से उपयोग किया गया। इस आंदोलन का जनाधार भी व्यापक था। मालावार पुलिस और असम राइफल्स ने 2 साल में और 15 लाख रुपये व्यय करके आंदोलन का दमन किया।

Q.4.नर्मदा बचाओ आंदोलन का उल्लेख करें।
Ans:
नर्मदा बचाओ आंदोलन के निम्नलिखित तत्व इस प्रकार है –

  • लोगों द्वारा 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय पूनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। परंतु सफलता के साथ ही नर्मदा बचाओ आंदोलन को बांध के निर्माण पर रोक लगाने की मांग उठाने पर तीखा विद्रोह भी झेलना पड़ा है।
  • आलोचकों का कहना है कि आंदोलन का अड़ियल रवैया विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बांध का काम आगे बढ़ाने की हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह आदेश भी दिया गया है कि प्रभावित लोगों का पूनर्वास सही ढंग से किया जाए।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन 2 से भी ज्यादा दशकों तक चला। आंदोलन ने अपनी मांग रखने के लिए हर संभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। आंदोलन ने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंजो तक उठायी। आंदोलन की समझ को जनता के सामने रखने के लिए नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियो तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया। परंतु विपक्षी दलों सहित मुख्यधार की राजनीतिक पार्टियों के बीच आंदोलन कोई खास जगह नहीं बना पाया।

Q.5.जन आंदोलनों की कमियो एवं त्रुटियों को संक्षेप में वर्णन कीजिए।
Ans:
जन – आंदोलनों की कमियां एवं त्रुटियां निम्नलिखित है –

  • जन – आंदोलनो द्वारा लामबंद की जाने वाली जनता सामाजिक और आर्थिक रुप से वंचित तथा अधिकारहीन वर्गों से संबंध रखती है। जन – आंदोलनों द्वारा अपनाए तौर – तरीको से मालूम होता है कि रोजमर्रा की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इन वंचित समूहों को अपनी बात करने का पर्याप्त मौका नहीं मिलता था।
  • राजनीतिक दलों को जनता के विभिन्न वर्गों के बीच सामंजस्य बैठाना पड़ता है, जन – आंदोलन का नेतृत्व भी ऐसे मुद्दों को सीमित ढंग से ही उठा पाता है।
  • विगत वर्षों में राजनीतिक दलों और जन – आंदोलनों का आपसी संबंध कमजोर होता गया है। इससे राजनीति में एक सूनेपन का माहौल पनपा है। हाल के वर्षों में, भारत की राजनीति में यह एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है।

Q.6.क्या आंदोलन और विरोध की कार्यवाहियो से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है? व्याख्या करें।
Ans:
अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीके से कानून के दायरे मे रहकर आंदोलन करने से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है। जो की निम्नलिखित है –

  • चिपको आंदोलन अहिंसक, शांतिपूर्ण चलाया गया और यहा एक व्यापक जन – आंदोलन था। इससे पेड़ों की कटाई, वनों का उजड़ना रूका। पशु – पक्षियों, गिरिजनों को जल, जंगल, जमीन और स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण मिला। सरकार लोकतांत्रिक मांगों के सामने झुकी।
  • वामपंथियों द्वारा शांतिपूर्ण चलाए गए किसान और मजदूर आंदोलन द्वारा जन – साधारण में जागृति, राष्ट्रीय कार्यों में भागीदारी और सरकार को सर्वहारा वर्ग की उचित मांगों के लिए जगाने में सफलता मिली।
  • दलित पैंथर्स नेताओं द्वारा चलाए गए आंदोलनों, लिखे गए सरकार विरोधी साहित्यकारों की कविताओं और रचनाओं ने आदिवासी, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों में चेतना पैदा की। दलित पैंथर्स राजनैतिक दल और संगठन बने। जाति भेद – भाव और छुआछूत को धक्का लगा। समाज में समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय को सुदृढ़ता मिली।

Q.7.आंध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गंभीर मुद्दों की तरफ खींचा । के मुद्दे क्या थे। स्पष्ट कीजिए।
Ans:
आंध्र प्रदेश में ताड़ी – विरोधी आंदोलन का नारा बहुत साधारण था – “ताडी की बिक्री बंद करो।” लेकिन इस साधारण नारे ने क्षेत्र के व्यापक सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक, मुद्दों तथा महिलाओं के जीवन को गहरा प्रभावित किया ।

  • ताडी व्यवसाय को लेकर अपराध एवं राजनीति के बीच गहरा नाला बन गया था। राज्य सरकार को ताडी की बिक्री से काफी राजस्व की प्राप्ति होती थी, इसलिए वह इस पर प्रतिबंध नहीं लगा रही थी।
  • स्थानीय महिलाओं के समूहो ने इस जटिल मुद्दे को अपने आंदोलन में उठाना आरंभ किया। वे घरेलू हिंसा के मुद्दे पर भी खुली तौर पर चर्चा करने लगी। आंदोलन ने पहली बार महिलाओं को घरेलू हिंसा जैसे निजी मुद्दो पर बोलने का मौका दिया।
  • कालांतर में ताड़ी – विरोधी आंदोलन महिला आंदोलन का एक हिस्सा बन गया। इससे पहले घरेलू हिंसा, दहेज – प्रथा, कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन – उत्पीड़न के खिलाफ काम करने वाले महिला समूह आमतौर पर शहरी मध्यवर्गीय महिलाओं के बीच ही सक्रिय थे और वह बात पूरे देश मे लागू होती थी। महिला समूहों के इस सतत कार्य से यह समझदारी विकसित होनी शुरू की औरतो पर होने वाले अत्याचार और लैंगिक भेदभाव का मामला खासा कठिन है।
  • 9वें दशक तक आते-आते महिला अधिवेशन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करने लगा था। आपको याद ही होगा कि संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधन के अंतर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया।

Q.8.दलित – पैंथर्स ने कौन – कौन से मुद्दे उठाए ? वर्णन करें।
Ans:
20वीं शताब्दी के सातवें दशक के शुरुआती सालों में शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठाई। इनमें ज्यादातर शहर की झुग्गी – बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित हितों की दावेदारी के इस क्रम में महाराष्ट्र में दलित युवाओं का एक संगठन ‘ दलित पैंथर्स ‘ 1972 में बना।

  • आजादी के बाद के सालों में दलित समूह मुख्यतया जाति आधारित असमानता और भौतिक साधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे। वे इस बात को लेकर सचेत थे कि संविधान में जाति आधारित किसी भी तरह के भेद – भाव के विरुद्ध गारंटी दी गई है।
  • आरक्षण के कानून तथा सामाजिक न्याय की ऐसी ही नीतियों का कारगर क्रियान्वयन इनकी प्रमुख मांग थी।
  • भारतीय संविधान में छुआछूत की प्रथा को समाप्त कर दिया गया है। सरकार ने इसके अंतर्गत साठ और सत्तर के दशक में कानून बनाए। इसके बावजूद पुराने जमाने में जिन जातियों को अछूत माना गया था, उनके साथ इस नए दौर में भी सामाजिक भेदभाव तथा हिंसा का बरताव कई रूपों में जारी रहा।

Q.9.महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति 2001 के मुख्य उद्देश्यों का व्याख्या करें।
Ans:
2001 में भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए एक राष्ट्रीय नीति घोषित की। इस नीति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है-

  • सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों द्वारा ऐसा वातावरण तैयार करना जिसमें महिलाओं को अपनी पूर्व क्षमता को पहचानने का मौका मिले और उनका पूर्ण विकास हो।
  • महिलाओं द्वारा पुरषों की भांति राजनीतिक, आर्थिक, समाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक सभी क्षेत्रों में समान स्तर पर मानवीय अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओ का कानूनी और वास्तविक उपभोग।
  • स्वास्थ्य देखभाल, प्रत्येक स्तर पर उन्नत शिक्षा, जीविका एवं व्यवसायिक मार्गदर्शन, रोजगार, समान पारिश्रमिक, व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक पदों आदि में महिलाओं को समान सुविधाएं।

Q.10.भारत में स्त्री उत्थान के लिए उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए।
Ans:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में स्त्रियों की दशा में सुधार लाने के लिए बहुत – से कदम उठाए गए हैं, जो निम्नलिखित है –

  • a महिला अपराध प्रकोष्ठ तथा परिवार न्यायपालिका – यह महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए सुनवाई करते हैं। विवाह, तलाक, दहेज, पारिवारिक मुकदमे भी सुनते हैं।
  • सरकारी कार्यालयों में महिलाओं की भर्ती – लगभग सभी सरकारी कार्यालयों में महिला कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। अब तो वायुसेना, नौसेना तथा थलसेना और सशस्त्र सेनाओं की तीनों में अधिकारी पदों पर स्त्रियों को भर्ती पर लगी रोक को हटा लिया गया है। सभी क्षेत्रों में महिलाएं कार्य कर रही है।
  • स्त्री शिक्षा – स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में स्त्री शिक्षा का काफी विस्तार हुआ है।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग – 1990 के एक्ट के अंतर्गत एक राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई है। महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, दिल्ली, पंजाब, कर्नाटक, असम एवं गुजरात राज्य में भी महिला आयोगो की स्थापना की जा चुकी है। ये आयोग महिलाओं पर हुए अत्याचार उत्पीड़न शोषण तथा अपहरण आदि के मामलों की जांच – पड़ताल करते हैं। सभी राज्यों में महिला आयोग स्थापित किए जाने की मांग जोर पकड़ रही है और इन आयोगों को प्रभावी बनाने की मांग भी जोरों पर है।

Samajik Andolan Sociology Class 12: दीर्घ स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.भारतीय किसान यूनियन, किसानों की दुर्घटना की तरह ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। 90 के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहां तक सफलता मिली?
Ans:
भारतीय किसान यूनियन द्वारा उठाए गए मुद्दे –

  • बिजली की दरों में बढ़ोतरी का विरोध किया।
  • 1990 के दशक से भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के प्रयास हुए और इस क्रम में नगदी फसल के बाजार को संकट का सामना करना पड़ा। भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूं की सरकारी और खरीद मूल्य में बढ़ोतरी करने का निर्णय लिया।
  • कृषि उत्पादना के अंतर्राज्यी आवाजाही पर लगी पाबंदियां हटाने।
  • समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने।
  • किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने की मांग की।
  • सफलताएं –
  • (i) मेरठ में किसान यूनियन ने नेता जिला समाहर्ता के दफ्तर के बाहर तीन हफ्तों तक डेरा डाले रहे। इसके बाद इनकी मांग मान ली गई। किसानों का यह बड़ा अनुशासित धरना था और जिन दिनों वे धरने पर बैठे थे उन दिनों आस – पास के गांवो से उन्हें निरंतर राशन – पानी मिलता रहा। मेरठ के इस धरने को ग्रामीण शक्ति का या कह सकते है कि काश्तकारों की शक्ति का एक बड़ा प्रदर्शन माना गया।
  • (ii) 1990 के दशक के शुरुआती सालों तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। वह अपने सदस्यों की संख्या बल के दम पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय थी। इस संगठन के राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ मांगे मनवाने में सफलता पायी। इस अर्थ में यह किसान आंदोलन के दशक में सबसे ज्यादा सफल सामाजिक आंदोलन था।

Q.2.संयुक्त प्रांत के सन् 1920 – 21 के किसान आंदोलन पर संक्षेप में स्पष्ट करे।
Ans:
संयुक्त प्रांत के अवध क्षेत्र में प्रतापगढ़, रायबरेली, सुल्तानपुर और फैजाबाद जिलो में 1920 – 21 में जोरदार किसान आंदोलन हुए। सन् 1918 में उत्तर प्रदेश किसान सभा का आंदोलन एक शांतिपूर्वक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ। इस आंदोलन में प्रतापगढ़ जिले के किसानों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की। किसानों को बाबा रामचंद्र जैसा सक्षम नेता मिला। उन्होंने किसानों की उनकी उचित मांगों के लिए संगठित किया। बाबा रामचंद्र ने किसानों की एकजुटता के आह्वान के लिए रामायण से संबंधित धार्मिक मिथकों और जातीय मुहावरों का व्यापक प्रयोग किया। लेकिन बाबा रामचंद्र की सफलता का यही एकमात्र कारण नहीं था। सामाजिक – आर्थिक परिस्थितियों का भी महत्वपूर्ण योगदान था। बड़े पैमाने पर रैयतो को भूस्वामित्व प्राप्त नहीं था जो मनमानी वसूली, विस्थापन और बढ़ते राजस्व के शिकार थे। इनकी मांगे बहुत सामान्य थी – ‘सेस’ और ‘बेगार’ की समाप्ति, ‘बेदखल की गई’ जमीन पर खेती की मनाही, ‘नाई – धोबी बंद’ द्वारा दमनकारी भूस्वामियों का बहिष्कार। सन् 1920 के अंत तक शांतिपूर्ण किसान आंदोलन अवध के तीन अन्य जिलों में फैल गया। सितंबर, 1920 में किसान आंदोलन की ताकत उभरकर सामने आई जब प्रतापगढ़ में किसानों ने एक शांतिपूर्ण एवं विशाल प्रदर्शन से बाबा रामचंद्र की रिहाई संभव हो गई।पर वास्तव में जनवरी, 1921 में यह आंदोलन चरम सीमा पर आया। जनवरी और मार्च, 1921 के बीच में रायबरेली, प्रतापगढ़, फैजाबाद और सुल्तानपुर में व्यापक पैमाने पर किसान विद्रोह हुए। कई क्षेत्रों में बाजार लूटना, ताल्लुकेदार – सूदखोर पर हमला, पुलिस से टकराव जैसे आक्रामक कार्यक्रम हुए और यह सभी गांधी के नाम पर हुआ। मार्च, 1921 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर बटलर ने इस संबंध में अपना मत इस प्रकार रखा, “दक्षिणी अवध के तीन जिलों में हमने क्रांति जैसी स्थितियों की शुरुआत देखी।” पर अप्रैल, 1921 में यह आंदोलन सरकारी दमन और कांग्रेस की अवरोधकारी भूमिका के कारण नष्टप्राय हो गया।

Q.3.गैर – सरकारी संगठनों की मजदूर कल्याण, स्वास्थ्य – शिक्षा, नागरिक अधिकार , नारी – उत्पीड़न तथा पर्यावरण से संबंधित उनके पहलुओं की भूमिका का व्याख्या कीजिए।
Ans:
भारत में सरकार के साथ-साथ गैर – सरकारी संगठन भी विभिन्न सामाजिक समस्याओं से जुड़े मामलों को उठाते रहे हैं। ये मामले, कल्याण, पर्यावरण, महिला कल्याण आदि के साथ जुड़े रहे हैं। भारत में गैर – सरकारी संगठनों की भूमिका, मजदूरों के कल्याण, स्वास्थ्य के विकास, शिक्षा के प्रसार और नागरिकों के अधिकारो के रक्षण, नारी उत्पीड़न की समाप्ति, कृषि के विकास, वृक्षारोपण आदि के क्षेत्र में व्यापक रूप में रही है। गैर – सरकारी संगठनों में -(a) अंतर्राष्ट्रीय चैंबर ऑफ कॉमर्स, (b) रेडक्रॉस सोसाइटी, (c) एमनेस्टी इंटरनेशनल, (d) मानवाधिकार आयोग आदि संगठन विश्व स्तर पर सभी देशों में फैले हुए हैं। इन गैर – सरकारी संगठनों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भूमिका द्वारा निम्नलिखित विकास किया –

  • इन गैर – सरकारी संगठनों ने मानव जाति के अधिकारों की रक्षा की। विश्व के विभिन्न देशों में इनकी स्थापित शाखाएं विभिन्न सरकारों द्वारा मानव अधिकारों की रक्षा करवाती है।
  • इन गैर सरकारी संगठनों ने विभिन्न देशों में वृक्षारोपण में सहयोग दिया।
  • इन गैर – सरकारी संगठनों ने रोजगारोन्मुख योजना चलाकर मजदूरों को विभिन्न कार्यों का प्रशिक्षण दिया।
  • वे गैर – सरकारी संगठन स्वास्थ्य के क्षेत्र में दवा छिड़काव, टीकाकरण, विभिन्न प्रकार की दवाओं के वितरण और बीमारियों की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
  • इन गैर – सरकारी संगठनों ने कृषि के क्षेत्र में उन्नति के लिए सरकारों से निवेदन कर विकासात्मक कार्य करवाया। खाद, बीज आदि की व्यवस्था में योगदान दिया।
  • विभिन्न गैर – सरकारी संगठनों ने बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षण कार्य किया एवं सामग्रियो वितरित की। गैर – सरकारी संगठनों ने बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षण कार्य किया एवं सामग्रियां वितरित की। इस तरह गैर – सरकारी संगठनों की भूमिका मानव जाति के विकास और समस्याओं के समाधान में व्यापक रूप से रही है।

Q.4.आंध्र प्रदेश में शराब – विरोधी आंदोलन क्यों और कब शुरू हुआ। इसने कैसे एक महिला आंदोलन का रूप ले लिया। वर्णन करें।
Ans:
आंध्र प्रदेश में शराब – विरोधी आंदोलन इस प्रकार हुए हैं-

  • दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश में ताड़ी – विरोधी आंदोलन महिलाओं का एक स्वत: स्फूर्त आंदोलन था। ये महिलाएं अपने आस – पोड़स में मदिरा की बिक्री पर पाबंदी की मांग कर रही थी। वर्ष 1992 के सितंबर और अक्टूबर माह में ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी थी। यह लड़ाई माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी। इस आंदोलन ने ऐसा रूप धारण किया कि इसे राज्य में ताड़ी – विरोधी आंदोलन के रूप में जाना गया।
  • कालांतर में यह आंदोलन महिला आंदोलन के रूप में सक्रिय हुआ। ताड़ी विरोधी आंदोलन द्वारा महिलाओं ने अपने जीवन से जुड़ी सामाजिक समस्याओं जैसे – दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, घर से बाहर यौन उत्पीड़न, समाज में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, परिवार में लैंगिक भेदभाव आदि के विरुद्ध व्यापक जागरूकता पैदा की।
  • महिलाओं ने पंचायतों, विधान सभाओ, संसद में अपने लिए एक – तिहाई स्थानों के आरक्षण और सरकार के सभी विभागों जैसे – वायुयान, पुलिस सेवाएं आदि में समान अवसरों और पदोन्नति की बात की। उन्होंने न केवल धरने दिए, प्रदर्शन किए, जुलूस निकाले बल्कि विभिन्न मुद्दों पर महिला आयोग, राष्ट्रीय आयोग और लोकतांत्रिक मंचों से भी आवाज उठाई।
  • सविधान में 73 वां व 74 वां संशोधन हुआ। स्थानीय निकायों में महिलाओं के स्थान आरक्षित हो गए। विधानसभाओं और संसद में आरक्षण के लिए विधेयक अभी पारित नहीं हुए हैं। अनेक राज्यों में शराब बंदी लागू कर दी गई है और महिलाओं के विरुद्ध अत्याचारों पर कठोर दंड दिए जाने की व्यवस्था की गई है।

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