सांस्कृतिक परिवर्तन: sanskritik Parivartan sociology class 12 chapter 2 NCERT solution in Hindi

sanskritik Parivartan: सांस्कृतिक और परिवर्तन समाजशास्त्र कक्षा 12 अध्याय 2 के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर। समाजशास्त्र के सभी विषयों का प्रश्न उत्तर झारखण्ड पाठशाला में पढ़ सकते है।

sanskritik Parivartan: अति लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.ऐतिहासिक दृष्टि से संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
Ans: ऐतिहासिक दृष्टि से संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो विभिन्न जातियों की प्रतिष्ठा में परिवर्तन लाती है। सांस्कृतिक परिवर्तन की प्रक्रिया न केवल जीवन – शैली का अनुकरण करने की अनुमति देती है बल्कि वह नये विचारों और मूल्यों को भी सामने लाती है। मध्यकाल का भक्ति आंदोलन इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इस आंदोलन ने जातिगत अत्याचारों को झकझोर दिया और सामाजिक न्याय और समानता के मूल्यों का प्रचार – प्रसार किया है।

Q.2.भारतीय समाज में प्रभु जातियों का अर्थ क्या होता है?
Ans:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्री निवास के अनुसार, “समाज में प्रमुखता प्राप्त करने के लिए किसी जाति के पास पर्याप्त मात्रा में स्थानीय कृषि योग्य भूमि, संख्या बल तथा उस क्षेत्र के सामाजिक अनुक्रम में ऊंचा स्थान होना चाहिए।” भूमि अधिकार संख्या बल तथा पारंपरिक प्रतिष्ठा के अतिरिक्त शिक्षा प्रशासनिक पद और आय के नगरीया स्रोतों का भी ग्रामीण क्षेत्रों में शक्ति और प्रतिष्ठा प्राप्त करने में योगदान रहता है। प्रभु जातियों का अस्तित्व स्थानीय होता है।

Q.3.विधवा विवाह संघ की स्थापना किसने की थी?
Ans:
विधवा विवाह संघ की स्थापना न्यायाधीश महादेव गोविंद रानाडे ने 1861 में की थी।

Q.4.’सर्वोदय’ शब्द किसकी देन है? इसका एक मुख्य सिद्धांत लिखें।
Ans:
‘ सर्वोदय ‘ शब्द की रचना महात्मा गांधी ने की थी। इसका प्रमुख सिद्धांत यह है कि सिद्धांतवादी व्यक्ति दूसरों को जिंदा रखने के लिए स्वयं मर सकता है।

Q.5.ब्रह्म समाज की स्थापना किसने और कब की थी?
Ans:
ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राममोहन राय ने सन् 1828 में की थी।

Q.6.सिक्ख धर्म में उत्पन्न बुराइयों को समाप्त करने के लिए कौन – सी समिति की स्थापना की गई?
Ans:
सिक्ख धर्म में उत्पन्न बुराइयों को समाप्त करने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की स्थापना की गई।

Q.7.आर्य – समाज की स्थापना किसने और कब की थी?
Ans:
सन् 1875 में मुंबई में स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की थी।

Q.8.गांधीजी ने हरिजनों (दलितों) के लिए अस्पृश्यता – आंदोलन कब चलाया था?
Ans:
गांधीजी ने 1922 में छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए अस्पृश्यता आंदोलन चलाया था।

Q.9.मूलशंकर किसके बचपन का नाम था?
Ans:
मूलशंकर स्वामी दयानंद के बचपन का नाम था।

Q.10.भारत में सुधार आंदोलन के प्रवर्तक कौन थे?
Ans:
भारत में सुधार आंदोलन के प्रवर्तक राजा राममोहन राय थे।

Q.11.अलीगढ़ आंदोलन के नेता कौन थे?
Ans:
सर सैय्यद अहमद खां अलीगढ़ आंदोलन के नेता थे।

Q.12.पश्चिमीकरण से आप क्या समझते हैं?
Ans:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्री निवास के अनुसार, “इस शब्द में डेढ़ सौ वर्षो से अधिक के अंग्रेजी शासन के फलस्वरुप भारतीय समाज और संस्कृति में आये परिवर्तन तथा विभिन्न स्तरों पर प्रौद्योगिकी, संस्थाओ, विचारधारा तथा मूल्यों में आए परिवर्तन सम्मिलित हैं।”

Q.13.संस्कृतिकरण से आपका क्या तात्पर्य हैं?
Ans:
संस्कृतिकरण एक प्रक्रिया है जिसमें एक निम्न हिंदू जाति या कोई आदिवासी या अन्य समूह अपनी परंपरा, रीति-रिवाज सिद्धांत और जीवन शैली को एक उच्च और द्विज जाति के नियमों में परिवर्तित कर देता है। इससे जाती अनुक्रम के अंदर बदलाव आता है परंतु जाति व्यवस्था अपने आप में नहीं बदलती।

Q.14.धर्म निरपेक्षीकरण से क्या तात्पर्य हैं?
Ans:
धर्म निरपेक्षीकरण सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक मामलों में धर्म का प्रभाव कम होता जाता है तथा उसका स्थान व्यावहारिक दृष्टि ले लेती है। जब धर्म निरपेक्षीकरण विकसित होता है तब प्राकृतिक और सामाजिक जीवन को समझने के नजरिये के रूप में धर्म का स्थान विज्ञान ले लेता है।

Q.15.पर – संस्कृतिकरण से आप क्या समझते हैं?
Ans:
जब एक प्रभावी समूह अपनी संस्कृति का प्रभाव अधिनस्थ समूह पर इस प्रकार डालता है कि अधीनस्थ समूह का अस्तित्व प्रभावी समूह की संस्कृति में घुल – मिल जाता है। यह प्रक्रिया पर संस्कृतिकरण कहलाती है।

sanskritik Parivartan: लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.समाज सुधार से आप क्या समझते हैं?
Ans:
जब समाज के प्रतिष्ठित नागरिकों द्वारा स्वस्थ सामाजिक जीवन के लिए सामाजिक चलन में परिवर्तन करने का प्रयत्न किया जाता है, तब उसे समाज सुधार कहा जाता है। दूसरे शब्दों में समाज को स्वस्थ व प्रगतिशील बनाने के कार्य को समाज सुधार कहा जाता है तथा जो इन कार्यों को करते हैं उन्हें समाज – सुधारक कहा जाता है। सामाजिक कुरीतियां, कुप्रथाएं, धार्मिक अंधविश्वास तथा सामाजिक भेदभाव आदि से समाज को मुक्त करना एक सुधारक का प्रमुख लक्ष्य होता है

Q.2.समाज कल्याण का क्या अर्थ है?
Ans:समाज कल्याण के अंतर्गतर उन संगठित सामाजिक सेवाओ व प्रयासों को सम्मिलित किया जाता है। जिनके द्वारा समाज के सभी सदस्यों को अपने व्यक्तित्व को संतुलित रूप से विकसित करने के अधिक अवसर व सुविधाएं उपलब्ध होती है। सामाजिक कल्याण सेवाएं, विकास की अन्य सेवाओं, जैसे – स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, आवास, श्रमिक कल्याण आदि की पूरक है।

Q.3.भारत में थियोसोफिकल सोसाइटी के संस्थापक कौन थे? इस संस्था की स्थापना का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा था?
Ans:मूलत: थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना संयुक्त राज्य अमेरिका में मैडम एच.डी. ब्लावात्सकी एवं कर्नल एच.एस. ओलकार द्वारा की गई थी। बाद में वे लोग भारत आ गए तथा सन् 1886 ई. में मद्रास (चेन्नई) के समीप अड्यार में उन्होंने थियोसोफिकल सोसाइटी का हेडक्वार्टर्स (मुख्य कार्यालय) स्थापित किया। श्रीमती एनी बेसेंट सन् 1893 ई. में आयी और उन्होंने थियोसोफिकल सोसाइटी का नेतृत्व संभाला। इस सोसाइटी ने निम्न विचारों एवं सिद्धांतों पर प्रचार – प्रसार किया-

  • थियोसोफिस्ट प्रचार करते थे कि हिंदुत्व / जरथूस्त्र मत (पारसी, धर्म), बौद्ध धर्म जैसे प्राचीन धर्मो को पुनर्स्थापित एवं सुदृढ़ किया जाए।
  • उन्होंने आत्मा के ग्राम पुनरागमन के सिद्धांत का भी प्रचार किया।
  • धार्मिक पुनर्स्थापनवादियों के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने भारतीय धर्मों के साथ-साथ भारतीय दार्शनिक परंपरा का महिमामंडल भी किया।
  • भारत में श्रीमती एनी बेसेंट के प्रमुख कार्यों में एक था – बनारस में केंद्रीय हिंदू विद्यालय की स्थापना, जिसे कालान्तर में मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया।
  • आलोचना एवं मूल्यांकन – थियोसोफिकल सोसाइटी की धार्मिक पुनर्स्थापनावादियों के रूप में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई, लेकिन आधुनिक भारत के घटनाक्रम में उसका एक विशिष्ट योगदान रहा। यह पश्चिमी देशों के ऐसे लोगों द्वारा चलाया जा रहा एक आंदोलन था जो भारतीय दर्शन एवं धर्मो की प्रशंसा किया करते थे। इससे भारतीयों को अपना खोया आत्मविश्वास पुनः प्राप्त करने में मदद प्राप्त हुई। यद्यपि इससे अतीत की महानता का झूठा गर्व भी उनके अंदर उत्पन्न हुआ। इस संस्था ने संस्कृत भाषा में लिखी अनेक प्राचीन एवं मूल्यवान पुस्तकों का संग्रह करके एक विशाल पुस्तकालय खोला।

Q.4.धर्मनिरपेक्षता से क्या समझते हैं?
Ans:
यह सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक मामलों में धर्म का प्रभाव कम होता चला जाता है और उसका स्थान व्यावहारिक दृष्टि ले लेती है। जब धर्म निरपेक्षीकरण का विकास होता है तो प्राकृतिक और सामाजिक जीवन को समझने के लिए धर्म के स्थान पर विज्ञान का प्रयोग होने लगता है। धर्म निरपेक्षीकरण की भावना का विकास भारत के पश्चिमी संस्कृति के संपर्क में आने से विकसित हुई। यातायात और संचार के विकास से इसमें तीव्रता आई। औद्योगीकरण और नगरीकरण ने इसे गतिशील बनाया। जैसे – जैसे औद्योगीककरण की गति तीव्र हुई, ग्रामीण क्षेत्रों के लोग निकलकर नगरों की ओर आये। शिक्षा के प्रसार – प्रचार ने धर्म निरपेक्षीकरण की भावना को आगे बढ़ाया। धर्म निरपेक्षीकरण ने भारतीयों को बहुत अधिक प्रभावित किया है। धर्म निरपेक्षीकरण नगरीय तथा शिक्षित समूहों में अधिक क्रियाशील है। भारत में सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से होने वाले परिवर्तनों से धर्म निरपेक्षीकारण अधिक तीव्र हुआ है। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में महात्मा गांधी द्वारा चलाये गए सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि ने जनशक्ति को संगठित किया और उसमें छुआछूत की भावना को कम करने का कार्य किया।

Q.5.समाजशास्त्रियों द्वारा आधुनिकीकरण के स्थान पर पश्चिमीकरण को क्यों अधिक महत्व प्रदान किया गया? स्पष्ट करे।
Ans:
पश्चिमीकरण – इस शब्द को प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम.एन. श्री निवास ने लोकप्रिय बनाया। इसका प्रयोग समकालीन भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के स्रोतों का विश्लेषण करने के लिए किया गया। इसके द्वारा भारत में अंग्रेजों के 200 वर्ष के शासन के फलस्वरुप भारतीय समाज और संस्कृति में आए परिवर्तन तथा विभिन्न स्तरों पर प्रौद्योगिकी, संस्थाओ, विचारधारा तथा मूल्यों में आए परिवर्तन शामिल है। आधुनिकीकरण के स्थान पर पश्चिमीकरण को समाजशास्त्रियों ने अधिक महत्व प्रदान किया क्योंकि इस शब्द में तटस्थता का गुण है। यह अच्छे या बुरे का संकेत नहीं करता। पश्चिमीकरण शब्द भारतीय संस्कृति पर अंग्रेजों के प्रभाव का व्याख्या करने के लिए उपयुक्त शब्द है

Q.6.अंग्रेजों ने भारत में कौन-कौन से सुधार किए?
Ans: अंग्रेजों द्वारा भारत में किये गए सुधार निम्नलिखित हैं-

  • 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में कृषि व्यवस्था में नई प्रणालियों को अपनाया गया। ये प्रणाली थी-जमींदारी, रैयतवाड़ी और महालवाड़ी। भूमि के क्षेत्रों तथा स्वामित्व के विवरण का लेखा-जोखा रखने के लिए भूकर मानचित्र बनाए गए।
  • अंग्रेजों ने सेना को आधुनिक बनाने, पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार करने के लिए आधुनिक न्यायिक व्यवस्था को लागू किया।
  • देश में परंपरागत शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन किया गया। देश में स्कूलों, कॉलेजों की स्थापना की गई। शिक्षा, जो अब तक केवल सीमित लोगों के लिए थी, अब गरीब – अमीर सभी के लिए सुलभ हो गई।
  • अंग्रेज अपने साथ मद्रण यंत्र लाये जिससे समाचार – पत्रों पुस्तकों, पत्रिकाओं का प्रकाशन संभव हुआ।
  • सन् 1857 ई. में मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में तीन विश्वविद्यालय आरंभ किए गए जिससे उच्च शिक्षा के रास्ते खुल गये।

Q.7.भारत में पश्चिमीकरण के प्रभावो की व्याख्या कीजिए।
Ans:
राष्ट्रीय तथा लोकतंत्र इन दो विचारों का उदय पश्चिम में हुआ और शीघ्र ही इन विचारों ने सारे संसार को प्रभावित किया। भारत में विचार पश्चिमीकरण के माध्यम से आये। राष्ट्रीयता की भावना एक राष्ट्र की नींव रखती है। भारत में राष्ट्रीयता की भावना का उदय 19वीं शताब्दी में हुआ। परंपरागत भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयास तेज हुए। 1828 में बंगाल में राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना की गई। 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की। भारत में सुधारवादी आंदोलन का उद्देश्य, भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियो, जैसे – जाति प्रथा, सती प्रथा, महिलाओं की निम्न स्थिति, कन्या हत्या, अशिक्षा, बाल विवाह, दहेज प्रथा आदि को दूर करना था। यूरोप के इतिहास और अंग्रेजी साहित्य के अध्ययन ने शिक्षित व्यक्तियों में भारतीयता, राष्ट्रीयता और राजनैतिक चेतना उत्पन्न की। धीरे-धीरे स्वतंत्रता की मांग जोर पकड़ने लगी। भारत में राष्ट्रीयता, लोकतंत्रिय या राज व्यवस्था और धर्म निरपेक्षता के आदर्श भारत में ऐतिहासिक संदर्भ में आये और इनसे सांस्कृतिक चेतना और आधुनिकता का उदय हुआ।

Q.8.मानवतावाद की अवधारणा से क्या अभिप्राय है?
Ans:
पश्चिमीकरण के द्वारा जो नये विचार और सिद्धांत सामने आये उनमें सबसे महत्वपूर्ण विचार था मानवतावाद। यह सभी मनुष्यों के कल्याण के साथ संबंधित था। इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, आयु तथा लिंग का क्यों न हो। स्वतंत्रता समानता और धर्म निरपेक्षता की अवधारणाएं मानवतावाद की मूल अवधारणा से सम्मिलित है। वास्तव में पश्चिमीकरण में मानवतावाद निहित है जिसने 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में भारत में एक नई चेतना को जन्म दिया और कई सुधारों को संभव बनाया। भारत में उस समय फैले हुए सती प्रथा, स्त्री शिशु हत्या तथा दास प्रथा पर रोक लगाने के लिए आवाज उठाई गई। राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती आदि समाज सुधारकों ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। राजा राममोहन राय के प्रयासों से सती प्रथा का अंत करने के लिए कानून बनाए गये।

Q.9.पश्चिमीकरण का व्यवसायी वर्ग पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ा?
Ans:
पश्चिमीकरण का व्यवसायी वर्ग पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। जिन क्षेत्रों में अंग्रेजों का प्रभाव अधिक था, उन क्षेत्रों में व्यवसायी मध्य वर्ग तथा व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। पारंपरिक ढंग के व्यवसायों और कार्य पद्धति से भिन्न व्यवसायों को जन्म मिला। इनमें कार्य करने वाले लोगों में दक्षता और कुशलता की आवश्यकता थी। ये व्यवसायी सांस्कृतिक दृष्टि से पश्चिमी रंग में रंगे हुए नहीं थे परंतु पश्चिमी संस्कृति से उनका निकट का संबंध था। भविष्य में इसी वर्ग से व्यवसायिक लोगों और शिक्षित समूहों की एक नई पीढ़ी का उदय हुआ।

sanskritik Parivartan: दीर्घ स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.संस्कृतिककारण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
Ans:
समाजशास्त्री एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई निम्न हिंदू जाति या कोई जनजाति अथवा अन्य समूह किसी उच्च और प्राय: द्विज जाति की दशा में अपने रीति – रिवाज, कर्मकांड, विचारधारा और जीवन पद्धति को बदलता है।” संस्कृतिकरण में नए विचारों और मूल्यों को ग्रहण किया जाता है। निम्न जातियां अपनी स्थिति को ऊपर उठाने के लिए ब्राह्मणों की तौर-तरीकों को अपनाती है और अपवित्र समझे जाने वाले मांस – मदिरा के सेवन को त्याग देता है। इन कार्यों से ये निम्न जातियां स्थानीय अनुक्रम में ऊंचे स्थान की अधिकारी हो गई हैं। इस प्रकार संस्कृतिकरण नये और उत्तम विचार, आदर्श मूल्य, आदत तथा कर्मकांडो को एवं अपनी जीवन – स्तर को ऊंचा और परिमार्जित बनाने की क्रिया है। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में स्थिति में परिवर्तन होता है। इसमें संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता। जाति व्यवस्था अपने आप नहीं बदलती। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जातियों में ही नहीं बल्कि जनजातियों और अन्य समूहों में भी पाई जाती है। भारतीय ग्रामीण समुदायों में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया प्रभु – जाति की भूमिका का कार्य करती है। यदि किसी क्षेत्र में ब्राह्मण के विशिष्ट विशिष्ट चरित्र को अपनाने लगती है तो उनका कड़ा विरोध होता है। कभी-कभी ग्रामों में इसके लिए झगड़े भी हो जाते हैं। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया बहुत पहले से चली आ रही है। इसके लिए ब्राह्मणों का वैधीकरण आवश्यक है।

Q.2.पाश्चात्यीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
Ans:
समाजशास्त्री डॉ. श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया है। पश्चिमीकरण के संदर्भ में उनका विचार है कि “पश्चिमीकरण शब्द अंग्रेजों के शासनकाल के 150 वर्षों से अधिक के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों को व्यक्त करता है और इस शब्द में प्रौद्योगिक संस्थाओ, विचारधारा, मूल्यो आदि के विभिन्न स्तरों में घटित होने वाले परिवर्तनों का समावेश रहता है।” पश्चिमीकरण का तात्पर्य देश में उस भौतिक सामाजिक जीवन का विकास होता है जिसके अंकुर पश्चिमी धरती पर प्रकट हुए और जो पश्चिमी व यूरोपीय व्यक्तियों के विस्तार के साथ-साथ विश्व के विभिन्न कोनों में अविराम गति से बढ़ता है। पश्चिमीकरण को आधुनिकीकरण भी कह सकते हैं, लेकिन अनेक समानताएं होते हुए भी पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण दो अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं। पश्चिमीकरण के लिए पश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से संपर्क होना आवश्यक है। पश्चिमीकरण एक तटस्थ प्रक्रिया है। इसमें किसी संस्कृति के अच्छे या बुरे होने का आभास नहीं होता। भारत में पश्चिमीकरण के फलस्वरूप जाति प्रथा में पाये जाने वाले ऊंच-नीच के भेद समाप्त हो रहे हैं। नगरीकरण ने जाति प्रथा पर सीधा प्रहार प्रहार किया है। यातायात के साधनों के विकसित होने से, अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से सभी जातियों का रहन-सहन, खान – पान, रीति – रिवाज आदि एक जैसे हो गये हैं। महिलाओं पर पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ा है। विवाह की संस्था में अब लचीलापन देखने को मिलता है, विवाह पद्धति में परिवर्तन आ रहे हैं। बाल विवाह का बहिष्कार बढ़ रहा है। अंतर्जातीय विवाह नगरों में बढ़ रहे हैं। संयुक्त परिवार प्रथा का पतन भी देखने को मिल रहा है। रीति – रिवाज और खान – पान भी पश्चिमीकरण से प्रभावित हुआ है।

Q.3.वर्तमान समाज में स्त्रियों की दशा की समीक्षा कीजिए। वे कौन – सी सामाजिक बुराइयां हैं जिनसे आज भी स्त्रियां ग्रसित हैं?
Ans:वर्तमान समय में स्त्रियों की दशा की समीक्षा इस प्रकार है –

  • स्वतंत्रता के बाद नये भारत के संविधान लागू हो जाने के साथ ही पूरे देश में कानून स्त्री और पुरुष की स्थिति समान हो गयी है। भारतीय संविधान लिंग के आधार पर नर – नारी में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता।
  • अब स्त्रियों तथा पुरुषों को समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत कानून अपना लिया गया है।
  • नारी शिक्षा को पूरे जोरों से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अनेक राज्यों एवं संघीय प्रदेशों में नारी शिक्षा पूर्णतया नि:शुल्क है। नारियों को घरेलू शिक्षा ग्रहण करने की आर्थिक सुविधाएं हैं।
  • नारी राजनीति में समान रूप में भाग ही नहीं ले सकती बल्कि अब तो अनेक चुनाव क्षेत्र तथा पद स्त्रियों के लिए रिजर्व भी कर दिये गए हैं। वे देश की विभिन्न स्थानीय सरकारो, राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकारों में सफल पदाधिकारियों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों तथा प्रधानमंत्री के पद पर कार्य कर चुकी है, कर रही है तथा भविष्य में भी कर सकती है।
  • सामाजिक दृष्टिकोण में भी बदलाव आ रहा है। पुत्र के जन्म के लिए अब बहुत ज्यादा अंधा उत्साह नहीं है। पुत्रियां तथा पुत्र बराबर माने जाने लगे हैं। संतान के नाम के आगे पिता के साथ – साथ मां का भी नाम लिखा जाने लगा है।
  • पैतृक संपत्ति पाने का अधिकार पुत्रों के साथ-साथ पत्रियों को भी है। आज की नारी अपने अधिकारों के लिए बहुत सजग है। वह न केवल नागरिक क्षेत्रों में बल्कि नौ – सेना, वायु सेना, पुलिस तथा स्थल सेना में भी भर्ती हो रही है।विद्यमान बुराइयां – आज के समाज में भी कुछ बुराइयां विद्यमान है। उनमें सबसे प्रमुख है – दहेज प्रथा। दहेज के नाम पर नवविवाहितो की आत्महत्या या जलाये जाने की खबर प्रतिदिन समाचार – पत्रों में पढ़ने को मिलती है। आज की अधिकतर स्त्रियां आर्थिक दृष्टि से पुरुष पर निर्भर है। पैतृक संपत्ति में भाई अपने स्वार्थ के लिए बहनों के हितों की हत्या कर देते हैं। पुत्र के जन्म की अभी भी प्राथमिकता दी जाती है। आसान तलाक तथा बहुपत्नी विवाह कुछ समाज में प्रचलित है।

Q.4.जाति और पंथ निरपेक्षीकरण से क्या तात्पर्य है?
Ans:
जैसे-जैसे आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई और विकास की गति बढ़ी, धर्म तथा विभिन्न प्रकार के उत्सवो, त्यौहारों को मनाना, विभिन्न धार्मिक कृत्यों, विभिन्न समारोहो के आयोजनों, इन समारोहों से जुड़े निषेध विभिन्न प्रकार के दान, एवं उनके मूल्य इत्यादि में निरंतर परिवर्तन आया विशेष रूप से यह परिवर्तन निरंतर बढ़ते और परिवर्तित होते हुए नगरीय क्षेत्र में अधिक दिखाई देता है। इस परिवर्तनात्मक दबाव में जनजातीय पहचान की अवधारणा में एक प्रतिक्रिया हुई। एक जनजाति का होने के नाते पारंपरिक व्यवहारो और उनमें निहित मूल्यों के संरक्षण को आवश्यक समझा जाने लगा। आधुनिकीकरण के तहत जो नारे बुलंद किए गए थे – जैसे, ‘संस्कृति समाप्त, पहचान समाप्त’ – उसे एक प्रकार का उत्तर मिला जिसे समाज में हो रहे पारंपरिक चेतना के नवजागरण के रूप में देखा जाता है। त्योहार का सामूहिक तौर पर मनाया जाना तथा रीती – रिवाजों के प्रति रुझान को इसी सामाजिक प्रतिक्रिया के रूप में समझा जा सकता है। वर्तमान जनजातीय समाज में यह बहुत स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पहले पारंपरिक तरीके से सामाजिक समूह त्योहारों को मानते थे। उस समूह की सामाजिक मान्यता भी होती थी और उसमें एक प्रकार की अनोपचारिकता भी थी अब उनके स्थान पर त्यौहार मनाने के लिए समितियां बनने लगी है बनने लगी है जिसकी संरचना में एक प्रकार की आधुनिकता होती है। परंपरागत रूप से, त्योहारों के दिन मौसम – चक्र के आधार पर तय किए जाते थे। अब उत्सव के दिन औपचारिक तरीके से सरकारी कैलेंडर के द्वारा निश्चित कर दिए जाते हैं। इन त्योहारों को मानने में झंडे की कोई विशेष डिजाइन नहीं होती है, न ही कोई मुख्य अतिथि के भाषण होते हैं न ही उत्सव प्रतियोगिता होती थी लेकिन अब ये सब नई आवश्यकताएं बन गई है। जैसे-जैसे तार्किक अवधारणाएं एवं विश्व दृष्टि जनजातियों के दिमाग में जगह बनाती जा रही है वैसे-वैसे पुराने व्यवहार और समारोह पर प्रश्न उठते जा रहे हैं।

Q.5.मुसलमानों की दशा सुधारने के लिए सैयद अहमद खां ने क्या सुधार कार्य किए?
Ans:सर सैयद अहमद खां द्वारा मुसलमानों की दशा सुधारने के लिए किए गए कार्य:

  • सैयद अहमद खां शिक्षा को बहुत महत्व देते थे। उनका विचार था कि मुसलमानों के सामाजिक और धार्मिक जीवन में सुधार केवल पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति को ग्रहण करके ही लाया जा सकता है। उनके अनुसार मुसलमान हर क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं। उनमें व्याप्त कुरीतियां, पर्दा – प्रथा, बहु – विवाह, तलाक का आसानी से मिल जाना आदि भी अज्ञान के कारण ही है। इसलिए उन्होंने मुसलमान में व्याप्त अज्ञान के अंधकार को पाश्चात्य शिक्षा के प्रकाश से दूर करने का प्रयत्न किया। अतः आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई नगरों में खुलवाए और पश्चात्य शिक्षा को लोकप्रिय बनाने के लिए पाश्चात्य पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद करवाया। उन्होंने 1875 ई. में मुहम्मदन – एंग्लो ओरियएंटल कॉलेज की स्थापना अलीगढ़ में की। आजकल यह कॉलेज मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध है।
  • सर सैयद अहमद खां धार्मिक सद्भावना और एकता में विश्वास रखते थे। वे संप्रदायिकता के कट्टर विरोधी थी। हिंदू – मुस्लिम एकता पर उन्होंने बल दिया। उन्होंने कहा कि “पारस्परिक असहमति, जिद और विरोध तथा दुर्भावना हमारा विनाश निश्चित रूप से कर देंगे।”
  • सैयद अहमद खां भारत में अंग्रेजी शासन के बड़े पक्षपाती थे। उनके विचार में मुसलमानों का उद्धार और सुधार अंग्रेजी सरकार के सहयोग के बिना संभव नहीं। उसका दृढ़ विश्वास था कि अंग्रेजी सरकार को भारत से हटाया नहीं जा सकता, इसलिए उनका विरोध करने का अर्थ होगा मुसलमानों में शिक्षा एवं सुधार कार्य को ठप्प करना। इस प्रकार जहां तक हो सका, सर सैयद अहमद खां ने अंग्रेजी सरकार को अपना पूर्ण समर्थन दिया।
  • सैयद अहमद खां राष्ट्रीय अधिवेशन में मुसलमानों द्वारा भाग लिए जाने के विरोधी थे। अपने जीवन के अंतिम काल में उन्होंने मुसलमानों को राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल होने से रोका।
  • सैयद अहमद खां ने तत्कालीन मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों पर कुठाराघात किया। उन्होंने नारी शिक्षा पर जोर दिया। पर्दा प्रथा, बहु – विवाह और आसानी से तलाक मिल जाने का विरोध किया।

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