sociology class 12 chapter 5: sociology ncert class 12, sociology class 12 notes, class 12 sociology notes, etc notes in Hindi. The solutions are avaiable based on JAC Board Ranchi. Important Questions Answers for the Board Examination.
Sociology class 12: अति लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. पूर्वाग्रह को परिभाषित कीजिए।
Ans: पूर्वाग्रह -इस शब्द का उचित अर्थ है-‘पूर्वनिर्णय’अर्थात ‘पहले ही निर्णय लेना ‘। एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूहों के सदस्यों के बारे में पूर्वनिर्णय लेना या व्यवहार इत्यादि ‘पूर्वाग्रह’ कहलाता है। इसमें किसी व्यक्ति या समूह को जाने या पहचाने बिना ही नकारात्मक सोच या व्यवहार बना लिया जाता है। यह मनोवृत्ति और विचारों को दर्शाता है।
Q.2. भारत में अन्य स्थानों व क्षेत्रों में गरीब लोगों के साथ हो रहे अन्याय के तीन उदाहरण दीजिए।
Ans: (i) नगरीय मध्य वर्ग के घरों में घरेलू नौकर के रूप में गरीब बच्चों से ही कार्य करवाया जाता है।
(ii) सड़क के किनारे बने ढाबे, चाय की दुकानों, भवन निर्माण में मजदूरी इत्यादि कार्य भी इन्हीं गरीब लोगों व बच्चों से करवाए जाते हैं।
(iii) रेलवे पटरियो व प्लेटफार्मो पर व गलियों में भिखारी।
Q.3. सामाजिक संसाधन क्या होते हैं? इनके रूपों का वर्णन कीजिए।
Ans: प्रत्येक समाज में कुछ लोगों के पास धन, संपदा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शक्ति जैसे मूल्यावन संसाधन होते हैं जिन्हें सामाजिक संसाधन कहा जाता है। यह सामाजिक संसाधन पूंजी के तीन रूपों में विभाजित किए जा सकते हैं-(i) भौतिक संपत्ति एवं आय के रूप में आर्थिक पूंजी,। (ii) प्रतिष्ठा और शैक्षणिक योग्यताओं के रूप में सांस्कृतिक पूंजी, (iii) सामाजिक संगतियो और संपर्कों के जाल के रूप में सामाजिक पूंजी।
Q.4. ‘सामाजिक विषमता’ से क्या तात्पर्य है? व सामाजिक स्तरीकरण का वर्णन करे।
Ans: सामाजिक विषमता – समाजिक संसाधनों तक असमान पहुंच की पद्धति ही साधारणतया सामाजिक विषमता कहलाती है। इन समाजिक संसाधनों में धन, संपदा, शिक्षा, शक्ति एवं रोजगार इत्यादि शामिल होते हैं। सामाजिक स्तरीकरण – एक समाज में रह रहे लोगों का वर्गीकरण करके उन्हें एक अधिक्रमित संरचना में बांटना सामाजिक स्तरीकरण कहलाता है। यह अधिक्रम लोगों की पहचान, अनुभव, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति से संबंध तथा साथ ही संसाधनों एवं अवसरों तक उनकी पहुंच को साकार देता है।
Q.5. ‘भेदभाव’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
Ans: भेदभाव – भेदभाव एक समूह या व्यक्ति के प्रति किया गया व्यवहार कहलाता है। यह व्यवहार सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रकार के हो सकते हैं। भेदभाव के तहत एक समूह को उन सुविधाओं, नौकरियों से वंचित किया जा सकता है जो दूसरे समुदाय या जाति के लोगों के लिए खुले होते हैं। उदाहरण के लिए, किसी क्षेत्र में एक समूह के व्यक्ति को नौकरी देना व दूसरे समूह के व्यक्ति को मना कर देना।
Q.6. रूढ़िबद्ध धारणाओं से आपका क्या तात्पर्य है?
Ans: रूढ़िबद्ध धारणाएं- रूढ़िबद्ध धारणाएं लोगों के एक समूह का निश्चित और अपरिवर्तनीय स्वरूप रूढ़िबद्ध धारणाएं ज्यादातर नृजातीय और प्रजातीय समूहों और महिलाओं के संबंध में प्रयोग की जाती है। रूढ़िबद्ध धारणा पूरे समूह को एक समान रूप से स्थापित कर देती है। इस रूढ़िबद्ध धारणा के अंतर्गत व्यक्तिगत समयानुसार या परिस्थिति अनुरूप भिन्नता को भी नकार दिया जाता है।
Q.7. ‘सामाजिक बहिष्कार’ क्या है?
Ans: सामाजिक बहिष्कार – वे तौर-तरीके जिनके जरिए किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने – मिलने से रोका जाता है। इन तरीकों के कारण किसी समूह को अन्य समूह से पृथक या अलग रखा जाता है। यह किसी व्यक्ति या समूह को उन अवसरों या सुविधाओं से वंचित करते हैं जो अधिकांश जनसंख्या के लिए खुले होते हैं या अधिकांश जनसंख्या को प्राप्त होते हैं। सामाजिक बहिष्कार लोगों की इच्छाओं के विरुद्ध होता है।
Q. 8. ‘जनजाति’ को परिभाषित कीजिए।
Ans: जनजाति – एक सामाजिक समूह जिसमें कई परिवार, कुल (वंशज) शामिल हो और नातेदारी, सजातीयता, सामान्य इतिहास अथवा प्रादेशिक – राजनीतिक संगठन के साझे संबंधों पर आधारित हो। जाती परस्पर अलग-अलग जातियों की अधिक्रम व्यवस्था है, जबकि जनजाति एक समावेशात्माक समूह होती है।
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Q.9. दलितों या निम्न जातियों के साथ धर्म से संबंधित कोई एक अपमानजनक व्यवहार बताइए।
Ans: दलितों व निम्न जातियों के लिए उच्च जाति के हिंदू समुदायो ने मंदिरों में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है। विशेष रूप से दलित समुदायों के लिए यह पाबंदी लगाई गई है। इससे प्रभावित होकर दलित समुदायों ने अन्य धर्म अपना लिए।
Q.10. अस्पृश्यता के तीन मुख्य आयाम लिखें।
Ans: अस्पृश्यता के तीन मुख्य आयाम इस प्रकार है – (i) अपवर्जन या बहिष्कार, (ii)अनादर, (iii) अधीनता और शोषण।
Q.11. आदिवासियों को किन पहचानो के आधार पर जाना जाता है?
Ans: आदिवासी जातियों को अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में रखा गया है। अनुसूचित जातियों की भांति इन्हें भी भारतीय संविधान द्वारा विशेष रूप से निर्धनता, शक्तिहीन तथा पीडित समूह के रूप में पहचाना जाता है। इन आदिवासियों को ऐसा ‘वनवासी’ समझा गया जिनके पहाडी या जंगली इलाकों के विशिष्ट परिस्थितियों में आवास ने उनकी आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक विशेषताओं को आकार दिया।
Q.12. राजा राममोहन राय द्वारा स्त्रियों के अधिकारों व उनकी परिस्थिति सुधारने के लिए किए गए प्रयत्नो का उल्लेख कीजिए।
Ans:19वीं शताब्दी के सामाजिक सुधारों में राजा राममोहन राय के प्रयत्न उल्लेखनीय है। उन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना से पूर्व ‘सती’ प्रथा के विरुद्ध अभियान चलाया। उन्होंने सती प्रथा का विरोध मानवतावादी तथा नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धांतों एवं हिंदू शास्त्र के आधार पर किया। यह पहला स्त्री संबंधी मुद्दा था जिसने आम जनता को स्त्रियों की परीस्थिति व अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित किया।
Q.13. आदिवासियों के द्वारा चलाए गए आंदोलनों की किसी एक उपलब्धि का वर्णन कीजिए।
Ans: आदिवासियों ने अपने साथ हुए अन्याय के विरुद्ध कई आंदोलन चलाए जिनमें से एक आंदोलन में उन्हें सर्वाधिक बड़ी उपलब्धि प्राप्त हुई। यह उपलब्धि थी – झारखंड और छत्तीसगढ़ के लिए अलग राज्य का दर्जा प्राप्त करना। इससे पहले यह दोनों राज्य क्रमशः बिहार और मध्य प्रदेश राज्यो के हिस्से थे।
Q.14. 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन में क्या घोषणा की गई ? किन्ही दो का उल्लेख कीजिए।
Ans: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन में नागरिकों के मूल अधिकारों के बारे में घोषणा जारी की गई जिसके द्वारा कांग्रेस ने स्त्रियों को समानता का अधिकार प्रदान किया। यह घोषणा इस प्रकार थी- (i) सभी नागरिक कानून के समक्ष एक समान है अर्थात कानून द्वारा बनाए गए नियम सभी नागरिकों के लिए समान है। चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, पंथ या लिंग से संबंध रखता हो। (ii) स्त्रियों को वोट डालने, प्रतिनिधित्व करने और सार्वजनिक पद धारण करने का अधिकार होगा।
Q.15. जनजातियों के लिए आरक्षण का क्या अर्थ है?
Ans: राज्य की ओर से जनजातियों के लिए कई क्षेत्रों में आरक्षण का प्रावधान है, जिनके अनुसार अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पक्षों में कुछ स्थान व सीटें निर्धारित कर दी जाती है। इन स्थानों पर केवल अनुसूचित जातियों व जनजातियों का ही अधिकार होता है। इन स्थानों से सरकारी नौकरियां, शैक्षिक स्थानों में सीटें, विधानसभा, लोकसभा में सीटें इत्यादि सम्मिलित होती है।
Sociology class 12: लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. विश्व में निर्योग्यता व अक्षमता को क्या समझा जाता है ? वर्णन करें।
Ans: समाज में अयोग्यता व अक्षमता को कई गलत विचारधाराओं से जाना जाता है जो इस प्रकार है- (i) इसे एक जैविक कमजोरी माना जाता है। (ii) किसी अक्षम व्यक्ति के लिए कठिनाइयों का पैदा होना उसकी बाधा या कमजोरी के कारण माना जाता है। (iii) अक्षम व्यक्ति को हमेशा पीड़ित व्यक्ति या दुखी व लाचार व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। (iv) अक्षम व्यक्ति की निर्योग्यता उस व्यक्ति के प्रत्यक्ष ज्ञान से जुड़ी हुई मानी जाती है। (v)निर्योग्य अर्थात असक्षम व्यक्ति शब्द का अर्थ ही यह माना जाता है कि इन व्यक्तियों को सहायता की आवश्यकता है।
Q.2. अस्पृश्यता या जातीय भेदभाव को कम करने के लिए बनाए गए कानूनों की बारे में बताइए।
Ans: (i)1850 :- ‘जातीय योग्यता निवारण अधिनियम’ अर्थात जाति या धर्म के आधार पर नागरिकों के अधिकार को कम न करना। (ii) 1950: ‘भारत का संविधान’।
(iii) 1989:’अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम’। इसके अंतर्गत अनुसूचित जातियों व जनजातियों के प्रति अत्याचार के निवारण के प्रावधान दिए गए।
(iv) 2005 :- ‘संविधान संशोधन अधिनियम’। यह अधिनियम जनजातियों की शिक्षा से संबंधित था।
Q.3. अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए क्या-क्या उपाय किए गए थे? Ans: जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री बने रहने के काल के दौरान स्वतंत्र भारत की पहली सरकार ने अन्य पिछड़े वर्गो के कल्याण के उपाय सुलझाने के लिए एक आयोग स्थापित किया था। 1970 के दशक के आखिरी वर्षों में आपातकाल के बाद जनता पार्टी ने शासन की बागडोर संभाली। बी .पी. मंडल की अध्यक्षता में पिछड़े वर्ग आयोग नियुक्त किया गया। 1990 में केंद्रीय सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को कार्यान्वित किया व उसके पश्चात पिछड़े वर्ग का मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख विषय बन गया।
Q.4. आदिवासी समुदाय के साथ घटी किसी एक दर्दनाक घटना का उल्लेख कीजिए। Ans: 2 जनवरी, 2006 को जब उड़ीसा राज्य के आदिवासी स्टील कंपनी द्वारा उनकी कृषि – भूमि लिए जाने का विरोध कर रहे थे तो पुलिस ने आदिवासियों पर गोलियां चलाई जिसमें 12 आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया। इसका कारण था कि आदिवासियों ने 23 दिनों से कलिंगनगर राजमार्ग को रोके रखा था और उद्योगपति अपना निर्माण कार्य शीघ्र ही शुरू करवाना चाहते थे। मारे गए आदिवासियों के शवों के हाथ व अन्य गुप्तांग काट दिए गए थे जिससे पुलिस या सरकार यह देखना चाहती थी कि वह कुछ भी कर सकती हैं।
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Q.5. स्त्रियों के अधिकारों के लिए समाज सुधारको द्वारा क्या-क्या प्रयत्न किए गए?
Ans: अनेक समाज सुधारकों के कानूनों, आंदोलनों इत्यादि का सहारा लेकर स्त्रियों के अधिकारों को समाज के प्रत्यक्ष रखने का प्रयत्न किया जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं –
(i)राजा राममोहन राय :- ‘सती विरोधी अभियान’।
(ii) बॉम्बे प्रेसिडेंसी के सुधारक ‘रानाडे’ :- ‘विधवाओं के पूर्नविवाह के लिए आंदोलन’।
(iii) ज्योतिबा फुले :- ‘जातीय और लैंगिक अत्याचारों के विरुद्ध आंदोलन’ ।
(iv) सर सैयद अहमद :- ‘इस्लाम में सामाजिक सुधारों के साथ आंदोलन का नेतृत्व’।
Q.6. आज जाति व्यवस्था में कौन-कौन से परिवर्तन हुए है?वर्णन करें।
Ans: आधुनिक काल के साथ-साथ जाति व्यवस्था में काफी परिवर्तन हुए हैं जो इस प्रकार है-
(i)जाति तथा व्यवसाय के बीच की कड़ी काफी कमजोर हुई है। इसके संबंध व्यवसाय से अधिक मजबूत नहीं है।
(ii) जाति तथा आर्थिक स्थिति के सह – संबंध काफी कमजोर हुए हैं अर्थात आज गरीब व अमीर लोग हर जाति में पाए जाते हैं।
(iii) पहले की अपेक्षा अब जाति में व्यवसाय परिवर्तन आसान हो गया है, अर्थात अब एक जाति के व्यक्ति दूसरे व्यवसाय को भी अपना सकते हैं।
Q.7. दलित वर्गों के साथ क्या-क्या शोषण या अपमानजनक व्यवहार किए जाते हैं?
Ans:(i) उन्हें पेयजल के स्रोतों से जल नहीं लेने दिया जाता व न ही पीने दिया जाता है। उनके कुएं, नल इत्यादि अलग बने होते हैं।
(ii) उन्हो धार्मिक उत्सवो, पूजा-आराधना, सामाजिक समारोहो में भाग नहीं लेने दिया जाता।
(iii) उनसे किसी विवाह शादी में नगाड़े बजवाना, धार्मिक उत्सवों में छोटे काम इत्यादि करवाए जाते हैं।
(iv) इसके अतिरिक्त उन्हें बड़े व्यक्तियों के सामने पगड़ी उतारकर, पहने हुए जूतों को हाथ में पकड़कर, सिर झुकाकर खड़े रहने व साफ कपड़े न पहन के जाना, इत्यादि कार्यों को करने के लिए जबरदस्ती की जाती है।
Q.8. नारी आंदोलन ने अपने इतिहास के दौरान कौन-कौन से मुद्दे उठाए हैं?
Ans: प्रारंभिक नारी- अधिकारवादी दृष्टिकोण के साथ – साथ भारत में अनेक नारी संगठन भी थे जो 20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में अखिल भारतीय एवं स्थानीय स्तरों पर उभर आए थे और फिर स्त्रियों का राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेना शुरू हुआ। 1970 के दशक में स्त्रियों के बिना बनाए गए मुद्दे फिर भी भड़क उठे जो निम्न प्रकार के है-
(i) 19वीं सदी के सुधार आंदोलनों में सती, बाल – विवाह जैसे परंपरागत कुरीतियो अथवा विधवाओं के साथ बुरे व्यवहार को रोकने का प्रयत्न किया गया।
(ii) आधुनिक मुद्दो, पुलिस अभिरक्षा में स्त्रियों के साथ बलात्कार, दहेज और हत्या, असमान विकास के लैंगिक परिमाण, लोकप्रिय मध्यमो का प्रतिनिधित्व आदि की ओर विशेष ध्यान आकर्षित किया गया।
(iii) 1980 के दशक के बाद कानून सुधार करने पर विशेष बल दिया गया। इसका कारण था कि स्त्रियों के प्रावधान के लिए जो कानून बनाए गए थे, उन पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। उन प्रावधानो को अपरिवर्तित रूप में ज्यों का त्यों ही रखा गया है। अतः नारी आंदोलन में ऐसे अनेक मुद्दे उठाए गए है जो स्त्रियों के पक्षों में थे और उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इन आंदोलनों को उठाने का मुख्य कारण नारी जाति की स्थिति में सुधार करना ही है।
Q.9. सामाजिक विषमता व्यक्तियों की विशेषताओं से कैसे भिन्न है?
Ans:सामाजिक विषमता – सामाजिक संसाधनों तक पहुंच की पद्धति ही सामाजिक विषमता कहलाती है। सामाजिक विषमताएं व्यक्तियों के बीच स्वाभाविक विभिन्नता को प्रतिबिंबित करती है। उदाहरण के तौर पर, व्यक्तियों की योग्यता एवं प्रयास में भिन्नता। अर्थात कोई भी व्यक्ति असाधारण बुद्धिमान या प्रतिभावन हो सकता है या, यह भी हो सकता है कि उस व्यक्ति ने समृद्धि और अच्छी स्थिति प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम किया है। सामाजिक विषमता व्यक्ति के बीच उस समाज के माध्यम से उत्पन्न की जाती है जिस समाज में वे व्यक्ति रहते हैं। सामाजिक भिन्नता किसी सहज या प्राकृतिक भिन्नता की वजह से उत्पन्न नहीं होती।
Q.10.आज जाति और आर्थिक असमानता के बीच क्या संबंध है?
Ans: जाति एक विशिष्ट भारतीय सामाजिक संस्था है जो विशेष जातियों में पैदा हुए व्यक्तियों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण व्यवहार को लागू करती है एवं उसे न्यायसंगत ठहराती है। ऐतिहासिक व्यवहार में सामाजिक तथा आर्थिक प्रस्थिति एक – दूसरे के अनुरूप होती थी। सामाजिक तथा आर्थिक प्रस्थिति में घनिष्ठ संबंध था। उच्च जातियां निर्विवाद रूप से उच्च आर्थिक प्रस्थिति की थी, जबकि निम्न जातियां निम्न आर्थिक स्थिति की होती थी। 19वीं सदी से जाती है तथा व्यवसाय के मध्य संबंध काफी हल्के हुए हैं। इसके अतिरिक्त पहले की अपेक्षा रूप से अपेक्षा जाति तथा आर्थिक स्थिति के सह – संबंध कमजोर हुए हैं। प्रत्येक जाति में अमीर व गरीब समान रूप से पाए जाते हैं। जाति – वर्ग का परस्पर संबंध वृहत स्तर पर पूरी तरह कायम है। व्यवस्था की कमी के कारण यह कम हुआ है, परंतु विभिन्न सामाजिक – आर्थिक समूहो के बीच जातीय अंतर अभी भी समान रूप से बना हुआ है। अतः आज जाती और आर्थिक असमानता के बीच जहां कोई समूहो में संबंध कमजोर पड़े हैं वहीं कई समूहों में इनकी स्थिति पहले जैसी।
Sociology class 12: लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. जातीय विषमता को दूर करने के लिए अपनाई गई कुछ नीतियों का वर्णन करें।
Ans: जातीय विषमताओं को दूर करने के लिए पहले भी कई नीतियां अपनाई गई थी, परंतु 1990 के दशक के प्रारंभिक वर्षों से अन्य पिछड़े वर्गों के लिए अन्य अनेक कार्यक्रम भी जोड़ दिए गए हैं जो इस प्रकार है –
(i)पुराने एवं वर्तमान जातीय भेदभाव दूर करने के लिए ‘आरक्षण’ सुविधा प्रदान की गई है। इसके अंतर्गत सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पक्षों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सदस्यों के लिए कुछ स्थान या सीटें निर्धारित कर दी जाती है। इन आरक्षणो में भी अलग-अलग विभाग में अलग-अलग आरक्षण दिए जाते हैं, जैसे –
(a)राज्य और केंद्रीय विधानमंडलों में सीटों का आरक्षण।
(b) शैक्षिक संस्थाओं में सीटों का आरक्षण।
(c) सभी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के अंतर्गत सरकारी सेवा में नौकरियों का आरक्षण।
(ii) अन्य कानून जो जातीय भेदभाव, अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए बनाए गए हैं। 1850 का जातीय निर्योग्यता निवारण अधिनियम, इसके अंतर्गत व्यवस्था थी कि केवल धर्म के आधार पर या जाति के आधार पर नागरिकों के अधिकारों को कम नहीं किया जायेगा।
(iii) 93वां संशोधन उच्चतर शिक्षा की संस्थाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू करने के लिए किया गया।
(iv) सरकारी स्कूलों में दलितों की भर्ती के लिए 1850 का अधिनियम बनाया गया।
(v) 1989 का अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम व 1950 में भारत का संविधान इन जनजातियों के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया था।
(vi) 1989 के अत्याचार निवारण अधिनियम ने दलितों और आदिवासियों के विरुद्ध हिंसा और अपमानजनक कार्यों के लिए दंड देने के उपबंओं में संशोधन करके उन्हें और मजबूत बना दिया।
इस प्रकार जातीय विषमता को दूर करने के लिए नई नीतियां व कानून बनाए गए जिससे जनजातीय, जातीय समूहों को कुछ सुविधाएं व प्रधान देने का प्रयत्न किया गया।
Q. 2. जातियों और जनजातियों के प्रति भेदभाव को मिटाने के लिए राज्य और अन्य संगठनों द्वारा उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदमों के बारे में बताइए।
Ans: भारत में जातियों और जनजातियों के प्रति स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व ही भेदभाव किया जा रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व ही भारत सरकार अनुसूचित जनजातियों व जातियों के लिए अनेक कार्यक्रम चलाती रही है। भारत में ब्रिटिश सरकार ने 1935 में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की ‘अनुसूचियां’ तैयार की थी जिनमें उन जातियों तथा जनजातियों के नाम दिए गए थे जिनके विरूद्ध काफी भेदभाव बरता जाता था। इसके अतिरिक्त स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी कुछ अन्य नीतियां को शुरू किया गया। इसका अर्थ यह नहीं कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व की नीतियों को बंद कर दिया बल्कि उन नीतियों को भी सुचारू रूप से चलाया गया। इसके अतिरिक्त 1990 के दशक के प्रारंभिक वर्षों से ‘अन्य पिछड़े वर्गों’ के लिए भी कुछ विशेष कार्यक्रम जोड़ दिए गए हैं। राज्य की ओर से भी पुराने व वर्तमान जातीय भेदभाव को दूर करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं जिनमें सर्वाधिक लोकप्रिय ‘आरक्षण’ है। चाहे कुछ उच्च वर्गों के समूहों को इनसे परेशानी हुई है परंतु निम्न जाति व अनुसूचित जनजाति के समूहों को इससे काफी लाभ हुआ है। आरक्षण के अंतर्गत सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पदों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सदस्यों के लिए कुछ स्थान या सीटें निर्धारित कर दी जाती है। इन सीटों पर केवल इन्हीं जातियों के लोगों का अधिकार होता है। किसी भी शर्त या कीमत पर ये सीटें किसी और वर्ग या जाति समूह को नहीं दी जाती। इन आरक्षणो में अनेक किस्म के आरक्षण, जैसे – राज्य और केंद्रीय विधान मंडलों में सीटों का आरक्षण, सभी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के अंतर्गत सरकारी सेवा में नौकरियों का आरक्षण, शैक्षिक संस्थाओं में सीटों का आरक्षण।
आरक्षित सीटों का अनुपात समस्त जनसंख्या में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के प्रतिशतांश के बराबर होता है, लेकिन अन्य पिछड़े वर्गों के लिए यह अनुपात अलग आधार पर निश्चित किया गया है। इसी सिद्धांत को सरकार के विकास कार्यक्रमों पर लागू किया गया है। उनमें से कुछ विशेष रूप से अनुसूचित जातियों या जनजातियों के लिए हैं, जबकि कुछ अन्य कार्यक्रमों में अधिमान्यता दी जाती है।
Q.3. ‘आदिवासी’ शब्द को परिभाषित कीजिए व स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व इन समुदायों के साथ किए जाने वाले अन्याय से क्या तात्पर्य है?
Ans: आदिवासी – ऐसी जनजातियां जिन्हें ‘वनवासी’ समझा गया व उनके वनों की परिस्थितियों में, आवास में उनकी आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक विशेषताओं को आकार दिया गया उन्हें आदिवासी कहकर पुकारा गया है।
जनजातीय यानि आदिवासी लोगों की आबादी पूर्वोत्तर राज्यो को छोड़कर किसी भी क्षेत्र या राज्य में अधिक नहीं है। चाहे कुछ क्षेत्रों में इनकी आबादी घनी है, परंतु ऐसा कोई इलाका या राज्य नहीं है जहां केवल जनजातीय लोग ही रहते हैं। जिन इलाकों में इनकी आबादी घनी है, वहां आमतौर पर इन जनजातीय लोगों की आर्थिक स्थिति और सामाजिक हाल बदतर है। इस गरीबी की हालत में रहने का मुख्य कारण स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व औपनिवेशिक काल है। उपनिवेश काल में ब्रिटिश सरकार ने इन जनजातियों के साथ काफी अन्याय व शोषण किया जो निम्नलिखित है –
(i)ब्रिटिश सरकार द्वारा इन जनजातीय लोगों के इलाकों यानी जंगलों से संसाधनों को निकालना शुरू कर दिया था जिससे इनके निर्वाह स्थान को काफी नुकसान हुआ।
(ii) औपनिवेशिक सरकार ने अधिकांश वन – प्रदेशों को आरक्षित कर लिया व अपने उपयोग के लिए बनाये रखा। इन सब प्रयासों से आदिवासियों को इन आरक्षित वनों पर खेती करने व उपज इकट्ठी करने व वानो के संसाधनों का उपयोग करने से वंचित कर दिया। इन जनजातीय लोगों को वनों में पहुंच पर पाबंदी लगा दी गई।
(iii) ब्रिटिश सरकार ने वनों की कीमती इमारती लकड़ियों की अधिकता के लिए लगभग सभी वनों को आरक्षित कर दिया।
(iv) आदिवासी लोगों जो वनों के उत्पादों को बेचकर ही अपनी आजीविका कमाते थे, उनसे उनकी आजीविका के मुख्य आधार छीन लिए गए व उनके जीवन को पहले की अपेक्षा अत्यधिक असुरक्षित बना दिया गया।
(v) इन आदिवासियों के आरक्षित वनों में प्रवेश करने पर उन्हें ‘घुसपैठिए’ या ‘चोर -उचक्के’ कहकर दंडित किया जाने लगा जिससे आदिवासी लोग वनों को छोड़कर अन्य स्थानों पर चले गए।
Q.4. अन्य पिछड़े वर्गों के लिए चलाए गए विभिन्न आंदोलनों व इन पिछड़े वर्गों के द्वारा आंदोलनो के प्रोत्साहन दिए जाने के कारण स्पष्ट कीजिए।
Ans: अन्य पिछड़े वर्गों द्वारा व अन्य लोगों व नेताओं द्वारा भी कई आंदोलन चलाए गए जिनका मुख्य कारण इन पिछड़े वर्गों की दुर्दशा पर ध्यान देना था। इसके लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात बने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के उपाय सुलझाने के लिए एक आयोग स्थापित किया।काका कालेलकर की अध्यक्षता में नियुक्त प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग ने 1953 में अपनी प्रथम रिपोर्ट पेश की थी। परंतु उस समय के राजनीतिक वातावरण को देखते हुए इस रिपोर्ट की ओर कोई ध्यान न दिया गया। पांचवें दशक के मध्य से ही पिछड़े वर्ग क्षेत्रों की कार्यवाही केंद्रीय स्तर पर न होकर राज्य स्तर पर होती रही। दक्षिणी राज्यों में पिछडी जातियों के आंदोलनो ने हमेशा ही उग्र रूप रखा है। इन राज्यों में शक्तिशाली सामाजिक आंदोलनों के कारण अन्य पिछड़े वर्गों की समस्याओं पर ध्यान देने की नीतियां अन्य भागों की अपेक्षा बहुत पहले ही शुरू हो चुकी थी। 1970 के दशक के आखिरी वर्षों में आपातकाल के पश्चात जनता पार्टी ने शासन की बागडोर संभाली। इसके पश्चात पिछड़े वर्गों में मुद्दा केंद्रीय स्तर पर फिर से भड़क उठा। 1990 में केंद्रीय सरकार द्वारा मंडल आयोग की 10 वर्ष पुरानी रिपोर्ट को कार्यान्वित करने का निर्णय लिया गया तथा इसके पश्चात अन्य पिछड़े वर्गों का मुद्दा राष्ट्रीय राजनीतिक में एक प्रमुख विषय बन गया।
1990 के दशक में उत्तर भारत में अन्य पिछड़े वर्गो और दलितों के आंदोलनों में फिर से तेजी आई। अन्य पिछड़े वर्गों के मुद्दे के राजनीतिकरण से उनकी बड़ी भारी संख्या को राजनीतिक प्रभाव यानि वोटों में बदले जा सकने की संभावना बढ़ गई। आज भारत में 41% पिछड़े वर्ग भारतीय जनसंख्या में पाए जाते हैं।
Q.5. ऐसे अनेक कानूनों का उल्लेख कीजिए जो जातियों और जनजातियों के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए बनाए गए थे?
Ans: भारत सरकार द्वारा इन जातियों व जनजातियों के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए गए जिनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण ‘ आरक्षण ‘ प्रदान करना था, जो इन जातियों के लिए काफी सहयोगी साबित हो रहा है। इसके अतिरिक्त सरकार ने इन जातियों व जनजातियों के लिए कानून भी बनाए हैं, जो जातीय भेदभाव विशेष रूप से अस्पृश्यता को खत्म करने व रोकने व इसका दुरुपयोग करने वालो के लिए दंड देने के लिए बनाए गए हैं। इन कानूनों का प्रमुख उद्देश्य इन जातियों व जनजातियों को सामाजिक भेदभाव से दूर रखना वह उन्हें उनके अधिकार दिलाना है। विभिन्न कानूनों का उल्लेख इस प्रकार है-
(i)1850 का ‘ जातीय निर्योग्यता निवारण अधिनियम कानून’ – इस कानून के अंतर्गत यह व्यवस्था थी कि धर्म या जाति के परिववन के कारण नागरिकों के अधिकारों को कम नहीं किया जाएगा। अर्थात यदि कोई व्यक्ति जाति – परिवर्तन या धर्म – परिवर्तन करता है तो उसके अधिकारों को कम नहीं किया जाएगा।
(ii) 1950 का ‘ भारत का संविधान’ – इस संविधान के अंतर्गत भी जातियों व जनजातियों के लिए कई प्रावधान किए गए। इसके अंतर्गत अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया व उपयुक्त आरक्षण संबंधित उपबंध लागू किए गए।
(iii)1989 का ‘अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम’ – यह अधिनियम जातियों व जनजातियों के प्रति हिंसात्मक व अपमानजनक कार्यों को रोकने के लिए किया गया था। इस अधिनियम ने दलितों और आदिवासियों के विरुद्ध हिंसा और अपमानजनक कार्यों के लिए दंड देने के उपबंधो में संशोधित करके उन्हें और मजबूत बना दिया। यदि कोई व्यक्ति या समूह आदिवासियों के प्रति हिंसा करता है तो उसे इस अधिनियम के अंतर्गत कठोर कानूनन दंड दिया जाएगा।
(iv) 2005 का ‘ संविधान संशोधन अधिनियम’ – यह अधिनियम 23 जनवरी, 2006 को कानून बना। यह कानून मुख्यत: शिक्षा से संबंधित था। यह अधिनियम 93वां संशोधन था जिसके अंतर्गत उच्चतर शिक्षा की संस्थाओं में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अर्थात सीटों को सुरक्षित रखा गया।