उपनिषद आत्मा ब्रह्म श्रेय प्रेय BBMKU Philosophy Semester 3 Notes

उपनिषद आत्मा ब्रह्म श्रेय प्रेय जैसे गूढ़ सिद्धांतों को प्रस्तुत करते हैं, जो भारतीय दर्शन की आत्मिक परंपरा की नींव हैं। आत्मा को उपनिषदों में शुद्ध, अविनाशी और चेतन तत्व के रूप में देखा गया है, जबकि ब्रह्म को समस्त सृष्टि का परम कारण माना गया है। इसके साथ ही जीवन के दो मार्ग—श्रेय (कल्याणकारी) और प्रेय (प्रिय प्रतीत होने वाला)—के बीच चुनाव की विवेकपूर्ण दृष्टि को भी उपनिषदों ने स्पष्ट किया है। यह ब्लॉग इन्हीं विषयों का दार्शनिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो BBMKU UG Semester 3 Philosophy Honours पाठ्यक्रम के लिए उपयोगी है।

उपनिषद आत्मा ब्रह्म श्रेय प्रेय BBMKU Philosophy Semester 3

परिचय:

उपनिषद भारतीय दर्शन के अद्वैत और आत्मज्ञान से संबंधित ग्रंथ हैं जो वेदों का ज्ञान-प्रधान भाग हैं। इन्हें ‘वेदान्त’ भी कहा जाता है। उपनिषदों का प्रमुख लक्ष्य ब्रह्म और आत्मा के वास्तविक स्वरूप को जानना तथा मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करना है। इन ग्रंथों में “आत्मा” (आत्मन्), “ब्रह्म”, और जीवन के दो पथ—श्रेय और प्रेय—की गूढ़ व्याख्या की गई है। यह उत्तर इन प्रमुख अवधारणाओं पर प्रकाश डालता है।

1. आत्मा (आत्मन्) की संकल्पना:

उपनिषदों के अनुसार, आत्मा शुद्ध, चेतन, अविनाशी और नित्य तत्व है। यह शरीर, मन और इन्द्रियों से परे है। छान्दोग्य उपनिषद में कहा गया है –

“तत्त्वमसि” (तू वही है)
अर्थात, आत्मा और ब्रह्म में भेद नहीं है।

आत्मा का अनुभव तभी संभव है जब व्यक्ति ज्ञान और विवेक से अपने अंदर झाँकता है और इन्द्रियों के परे जाकर आत्मसाक्षात्कार करता है। उपनिषदों में आत्मा को ही असली ‘स्व’ माना गया है, जो पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होकर ब्रह्म में विलीन हो सकता है।

2. ब्रह्म की संकल्पना:

ब्रह्म उपनिषदों में सर्वव्यापक, निराकार, अनंत और परिपूर्ण परम तत्त्व के रूप में वर्णित है। यह सृष्टि का कारण, आधार और उद्देश्य है।
बृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार –

“ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या” –
ब्रह्म ही सत्य है, जगत माया है।

ब्रह्म को ‘सच्चिदानंद’ (सत्य + चित् + आनंद) कहा गया है। उपनिषदों का अद्वैत दर्शन कहता है कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं – “अहं ब्रह्मास्मि” (मैं ही ब्रह्म हूँ)।

3. श्रेय और प्रेय की संकल्पना:

श्रेय का अर्थ है – कल्याणकारी मार्ग, जो आत्मा के मोक्ष की ओर ले जाता है।
प्रेय का अर्थ है – प्रिय या सुखद प्रतीत होने वाला मार्ग, जो इन्द्रिय सुखों में उलझा रहता है।

कठोपनिषद में यम और नचिकेता संवाद के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य को हर समय इन दोनों में से एक का चयन करना होता है।

“श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतः तौ सम्परीत्य विविनक्ति धीरः।”
(कठोपनिषद – 2.1)
बुद्धिमान व्यक्ति श्रेय का चुनाव करता है, जबकि अज्ञानी प्रेय को चुनता है।

श्रेय मार्ग आत्मानुभव, त्याग और ध्यान पर आधारित होता है जबकि प्रेय मार्ग मोह, भोग और भटकाव का प्रतीक है।

निष्कर्ष (Internal Linking के साथ):

उपनिषदों की आत्मा और ब्रह्म की संकल्पनाएँ भारतीय दर्शन की आत्मिक ऊँचाइयों को दर्शाती हैं। आत्मा को जानना ही ब्रह्म को जानना है, और यही ज्ञान व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है। श्रेय और प्रेय के माध्यम से उपनिषद जीवन के नैतिक द्वंद्व को स्पष्ट करते हैं और विवेकशील चयन की प्रेरणा देते हैं।

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