Vaishvikaran:राजनीतिक विज्ञान कक्षा 12 अध्याय 9 के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर को पढ़ें। सभी प्रश्न परीक्षा उपयोगी है। झारखण्ड अधिविध परिषद् राँची के पाठ्यक्रम के अनुसार सभी प्रश्नों को तैयार किया गया है।
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Vaishvikaran: अति लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. वैश्वीकरण क्या है? vaishvikaran kya hai
Ans:(i) एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण का बुनियादी अर्थ ‘प्रवाह’ है। प्रवाह कई प्रकार के हो सकते हैं।
(ii) विश्व के एक हिस्से के विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुंचाना, पूंजी का एक से अधिक जगहों पर जाना, वस्तुओं का कई देशों में पहुंचना, व्यापार तथा बेहतर आजीविका की तलाश में विश्व के विभिन्न हिस्से में लोगों की आवाजाही प्रवाह है।
Q.2. संचार साधनों के कारण वैश्वीकरण को कैसे बढ़ावा मिला?
Ans:(i) प्रौद्योगिकी के विकास से अनेक संचार साधनों टेलीफोन, टेलीग्राफ और माइक्रोचिप के अविष्कार हुए। इनके कारण संचार की क्रांति दिखाई देती है।
(ii) संचार साधनों से लोगों का आपसी संबंध बढ़ गया। इसके माध्यम से पूंजी, विचार, वस्तुओं और लोगों की आवाजाही में पर्याप्त उन्नति हुई। इस प्रकार वैश्वीकरण को बढ़ावा मिला।
Q.3. आर्थिक वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? Vaishvikaran se aap kya samajhte hain
Ans: (i)आर्थिक वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें विश्व के विभिन्न देशों के बीच आर्थिक गतिविधि तेज हो जाती है अर्थात उनके बीच पुंजी और व्यापार की आवाजाही तेज हो जाती है।
(ii) कुछ आर्थिक प्रवाह स्वेच्छा से होते हैं जबकि कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और ताकतवर देशों द्वारा जबर्दस्ती लादे जाते हैं।
Q.4. बहुराष्ट्रीय निगमों ने सरकारों को कैसे प्रभावित किया?
Ans: (i)वैश्वीकरण के विकास मैं बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बहुत अधिक योगदान है। ये कंपनियां सभी देशों में अपने पांव पसार चुकी हैं।
(ii)विभिन्न देशों में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है। फलस्वरुप सरकारे स्वयं कोई निर्णय नहीं ले पा रही है। अर्थात सरकारों के निर्णय लेने की क्षमता में कमी आई है।
Q.5. आर्थिक वैश्वीकरण को पुनः उपनिवेशीकरण क्यों कहा जाता है?
Ans:(i) लोगों का विचार है कि आर्थिक वैश्वीकरण में सामाजिक सुरक्षा कवच का अभाव है। लोगों का अनुमान है कि इससे धनी देशों और धनी लोगों को ही लाभ होगा, उनकी आमदनी बढ़ सकती है परंतु गरीब देशों और गरीब लोगों को फायदा नहीं होगा। ऐसे में उनकी स्थिति बदतर हो जाएगी और उनके आवास का क्षेत्र उपनिवेश बन जायेगा।
(ii) उपनिवेशीकरण के अंतर्गत शक्तिशाली देश कमजोर राष्ट्रों पर अधिकार कर लेता था और उनके संसाधनों का उपयोग करता था और स्थानीय लोगों की स्थिति खराब हो जाती थी। इस प्रकार की स्थिति वैश्वीकरण के कारण भी होने वाली है।
Q.6. वैश्वीकरण के सकारात्मक सांस्कृतिक प्रभाव बताइए।
Ans: (i)वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव के साथ सकारात्मक प्रभाव भी होते हैं। वैश्वीकरण के अंतर्गत बाहरी प्रभावों से पसंद – नापसंद का क्षेत्र बढ़ता है।
(ii) परंपरागत संस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना भी संस्कृति में सुधार हो सकता है। उदाहरण के लिए बर्गर, डोसा आदि का यदि कोई विकल्प नहीं है, इसलिए बर्गर से वस्तुत: कोई खतरा नहीं है। इससे भोजन की पसंदीदा वस्तुओं में एक चीज और शामिल हो जाती हैं।
Q.7. संस्कृतिक विभिन्नीकारण का क्या अर्थ है?
Ans: (i)अधिकांश का मानना है कि वैश्वीकरण से विश्व के विभिन्न देशों में सांस्कृतिक समरूपता आती है, परंतु इसके विपरीत प्रक्रिया भी हो सकती है।
(ii) वैश्वीकरण में प्रत्येक संस्कृति कहीं अधिक अलग हो विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक विभिन्नीकारण कहते हैं।
Q.8. ब्रिटिश शासनकाल में भारत की आयात-निर्यात की क्या स्थिति थी? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
Ans: (i) ब्रिटिश शासनकाल में भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक था तथा बने-बनाये सामानों का आयातक देश था।
(ii) इसके कारण भारत की आर्थिक स्थिति दिनों-दिन खराब होती गई। अंग्रेज सस्ते दरों पर आधारभूत वस्तुएं और कच्चे माल खरीदते थे और महंगे दामों पर भारत में ही बेचते थे।
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Q.9. भारत के संरक्षणवाद के क्या परिणाम रहे?
Ans:(i) ब्रिटिश शासनकाल में भारत अनेक वस्तुओं का आयात करता था। जिससे उसे पर्याप्त आर्थिक घाटा होता था। इसलिए उसने संरक्षणवाद को बढ़ावा दिया।
(ii) संरक्षवाद के अंतर्गत विदेशों से वस्तुओं के आयात पर रोक लगा दी गई। यह सोचा गया कि अधिक-से-अधिक उपयोग की वस्तुओं को देश में ही बनाया जाये। इससे कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त उन्नति हुई। परंतु अन्य क्षेत्रों यथा स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा में आशातीत सफलता नहीं मिली और आर्थिक वृद्धि दर भी धीमी रही।
Q.10. सिएटल बैठक का क्या महत्व है?
Ans:(i) 1999 में सिएटल में विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय बैठक हुई जिसमें वैश्वीकरण पर विस्तृत चर्चा हुई।
(ii) इसके विरोध में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। आर्थिक रूप से शक्तिशाली देशों द्वारा व्यापार के असंगत तौर-तरीकों के अपनाने के विरोध में ये प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों का तर्क था कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों के हितों को समुचित महत्व नहीं दिया जा रहा है।
Q.11. वन उपनिवेशवाद क्या है?
Ans: वन उपनिवेशवाद परम्परागत उपनिवेशवाद का एक नया रूप है। इसके अंतर्गत एक समृद्ध तथा शक्तिशाली देश किसी कमजोर देश पर सीधे आर्थिक शोषण करने की बजाय उसका अप्रत्यक्ष रूप से शोषण करता है। एक समृद्ध शक्तिशाली देश आर्थिक सहायता देकर एक कमजोर देश की नीतियां उस देश में होने वाली राजनीतिक गतिविधियों पर नियंत्रण करता है तथा उन नीतियों व गतिविधियों को अपने लाभ की ओर प्रभावकारी बनाता है।
Q.12.राष्ट्रेतर कंपनियों से आप क्या समझते हैं?
Ans: वे कंपनियां जो राष्ट्र की सीमाओं से बाहर भी कार्य करती है, उन्हें राष्ट्रेतर कंपनीयां कहा जाता है। ऐसी राष्ट्रेतर कंपनियां 20वीं शताब्दी से पहले भी थी, परंतु उनका 20वीं शताब्दी के उत्तरायुद्ध में और भी प्रभाव बढ़ गया। राष्ट्रेतर कंपनियां पूंजी की दृष्टि से काफी धन की स्वामी होती है तथा उनकी उत्पादन क्षमता भी बहुत अधिक होती है। ऐसी कंपनियां अन्य देशों में उन देशों के कच्चे माल द्वारा अपने कारखानों में माल बनवाती है। परिणामस्वरूप बने माल को अधिक दामों पर बेचकर अधिक-से-अधिक लाभ कमाती है। राष्ट्रेतर कंपनियां विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को बड़े प्रतिकूल ढंग से प्रभावित करती है।
Q.13. वैश्वीकरण के संदर्भ में भारत की क्या भूमिका रही है?
Ans: 24 जुलाई, 1991 को नयी औद्योगिक नीति घोषित किये जाने के साथ ही भारत में आर्थिक सुधारों तथा उदारीकरण की नीतियों का सूत्रपात हुआ था। जनवरी, 1995 में भारत ने प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया। उसी दिन विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई। 26 दिसंबर, 2000 को प्राग में विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की वार्षिक बैठक में मुद्रा कोष के प्रबंधक, विश्व बैंक के अध्यक्ष तथा भारत के वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने विश्व के गरीबों का जीवनस्तर उठाने का आह्वान किया तथा विश्व व्यापीकरण (वैश्वीकरण) अपनाने पर बल दिया।
Q.14. वर्ल्ड सोशल फोरम (WSF) का क्या कार्य है?
Ans:(i) वर्ल्ड सोशल फोरम वन-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध के लिए एक विश्वव्यापी मंच है।
(ii) इस मंच में मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता शामिल है। ये सभी वन-उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।
Vaishvikaran: लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभावों की व्याख्या करे। vaishvikaran ki paribhasha
ans: वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव –
(i) आर्थिक वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें विश्व के विभिन्न देशों के बीच आर्थिक प्रवाहव तेज हो जाता है। कुछ आर्थिक प्रवाह स्वेच्छा से होते हैं। जबकि कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और शक्तिशाली देशों द्वारा थोपे जाते हैं।
(ii) आर्थिक प्रवाह से वस्तुओं, पूंजी और विचारों का प्रवाह होता है। वैश्वीकरण के कारण वस्तुओं के व्यापार को लाभ हुआ है।
(iii) वस्तुतः वैश्वीकरण के प्रभाव से पूंजी और वस्तुओं के आयात पर विभिन्न देशों द्वारा प्रतिबंध समाप्त कर दिये गये हैं। इसलिए धनी देश अपना निवेश किसी अन्य देश या विशेष रूप से विकासशील देशों में कर सकते हैं, जहां उन्हें अधिक लाभ हो सकता है।
(iv) विचारों की दृष्टि से राष्ट्र की सीमा बाधक नहीं है। इसलिए इंटरनेट और कंप्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार हुआ है।
(v) विकसित देशों ने विकासशील देशों के लिए संरक्षण नीति अपना ली है।
Q.2. वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों की विवेचना कीजिए।
ans: वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव –
(i) वैश्वीकरण का जनमत पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है और वह पर्याप्त सीमा तक विभाजित हुआ है।
(ii) वैश्वीकरण से सरकार के उत्तरदायित्व में कमी आई है जिससे सामाजिक न्याय को भारी झटका लगा है।
(iii) सामाजिक न्याय के समर्थक लोगों का कहना है कि आर्थिक वैश्वीकरण से आबादी के एक छोटे-से भाग को लाभ होगा।
(iv) नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई आदि सुविधा प्राप्त करने के लिए सरकार पर आश्रित रहने वाले लोगों की स्थिति खराब हो जायेगी।
(v) वैश्वीकरण में सामाजिक सुरक्षा के अभाव के कारण विश्व के कई भागों में आंदोलन हुए है और अकेले सुरक्षा कवच को अपर्याप्त मानते हैं।
Q.3. वैश्वीकरण के लाभदायक पक्षों का उल्लेख कीजिए।
ans: वेश्वीकरण के लाभदायक पक्ष – (i)आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के समर्थकों का कहना है कि इससे समृद्धि बढ़ती है और खुलेपन के कारण अधिक आबादी की खुशहाली बढ़ती है। (ii)इससे व्यापार का विकास होता है। फलस्वरुप प्रत्येक देश को अपने को बेहतर करने का अवसर मिलता है।
(iii)वैश्वीकरण के समर्थकों का कहना है कि आर्थिक वैश्वीकरण अपरिहार्य है और इसको अवरुद्ध करना इतिहास के धारा को रोकना होगा।
(iv)मध्यमार्गी समर्थकों का विचार है कि वैश्वीकरण ने चुनौतीयां पेश की है और चैतन्य होकर पूरी बुद्धिमानी से इसका सामना किया जाना चाहिए। (v)वस्तुतः देशों और नागरिकों का विभिन्न जरूरतों के कारण पारस्परिक निर्भरता में वृद्धि हो रही है। ऐसे में वैश्वीकरण आवश्यक हो जाती है।
Q.4. भारत में वैश्वीकरण के प्रतिरोध का उल्लेख कीजिए।
ans: भारत में वैश्वीकरण का प्रतिरोध-
(i)भारत के कई क्षेत्रों में वैश्वीकरण का विरोध हो रहा है। विशेष रूप से वामपंथी राजनीतिज्ञ पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
(ii) भारत में वैश्वीकरण के विरोध के लिए ‘इंडियन सोशल फोरम’ का मंच बनाया गया।
(iii) यहां औद्योगिक मजदूरों और किसानों के संगठन ने बहुराष्ट्रीय निगमों का विरोध किया है।
(iv) कुछ वस्तुओ (यथा जींस) के पेटेंट कराने के यूरोपीय और अमरीकी प्रयासों का विरोध किया गया है।
(v) दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ वैश्वीकरण के प्रभावों का विरोध कर रहा है।
Q.5. 1999 में सिएटल में किस बात को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ?
Ans: 1999 में सिएटल में विरोध प्रदर्शन के कारण –
(i)1999 में सिएटल में विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय बैठक हुई। यहां बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए।
(ii) यह प्रदर्शन आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली देशों द्वारा व्यापार के अनुचित तौर-तरीकों को अपनाने के विरोध में किया गया।
(iii) विरोधियों का आरोप था कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों के हितों को ध्यान नहीं रखा गया है।
(iv) इस व्यवस्था में विकसित देश व्यापार आदि के माध्यम से गरीब देशों का शोषण कर रहे हैं।
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Q.6. वर्ल्ड सोशल फोरम (WSF) का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
Ans: वर्ल्ड सोशल फोरम –
(i)यह एक ऐसा विश्वव्यापी संघ है जो नव – उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करता है।
(ii)इस मंच के अंतर्गत मानवाअधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता एकत्र होकर वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।
(iii)इस मंच की पहली बैठक 2001 में ब्राजील के पोर्टो अलगेरे में हुई।
(iv)2004 में इसकी चौथी बैठक मुंबई में हुई थी।
(v)वर्ल्ड सोशल फोरम की सातवीं बैठक नैरोबी (कीनिया) में जनवरी, 2007 में हुई थी।
Q.7. वैश्वीकरण के प्रति वामपंथी एवं दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञों की राय बताइए।
Ans: वैश्वीकरण के प्रति वामपंथी एवं दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञों की राय-
(i) वामपंथी राजनीतिज्ञों का विचार है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूंजीवाद की एक विशेष व्यवस्था है जो समृद्ध लोगों को अधिक धनी और गरीब लोगों को अधिक गरीब बनाती है।
(ii)वैश्वीकरण से राज्य के अधिकारों में कमी आती है इसीलिए वह गरीब लोगों की रक्षा करने में सक्षम नहीं होगा।
(iii)दक्षिणपंथी लोग वैश्वीकरण के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावो से बहुत चिंतित है। उनका मानना है कि इससे निश्चित रूप से राज्य कमजोर हो जाएगा।
(iv)वे चाहते हैं कि कुछ क्षेत्रों में आर्थिक निर्भरता और संरक्षणवाद कायम रहना चाहिए।
(v)वे मानते हैं कि परंपरागत संस्कृति भी अस्त-व्यस्त हो जाएगी। लोग अपने जीवन – मूल्यों को भूल जायेगे और रीति-रिवाज इतिहास के पन्नों में दफन हो जायेगे।
Q.8. सांस्कृतिक वैश्वीकरण के लाभ बताइए।
Ans: सांस्कृतिक वैश्वीकरण के लाभ -वैश्वीकरण का सांस्कृतिक प्रभाव केवल नकारात्मक ही नहीं बल्कि इसका सकारात्मक प्रभाव भी है –
(i)बाहरी संस्कृत से हमारी पसंदगी में कमी आती है परंतु जरूरी नहीं है।
(ii)इनसे परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृत में सुधार होता है। बल्कि इससे हमारी खाने वाली वस्तुओं की पसंद में एक चीज और शामिल हो जाती है।
(iii)वैश्वीकरण से संस्कृतियों के मिश्रण से संस्कृति में विशिष्टता आती है। उदाहरण के लिए नीली जींस के ऊपर खादी कुर्ता पहना जा रहा है। एक अजूबापन और देखने को मिल रहा है कि इस वेशभूषा को पश्चिमी देशों में भी पसंद किया जा रहा है। अमेरिका में भी यह संभव है।
(iv) वैश्वीकरण से प्रत्येक संस्कृति अधिक अलग और विशिष्ट होती जा रही है।
Q.9. भारत में 1991 के बाद वैश्वीकरण के क्षेत्र में क्या कार्य किया गया?
Ans: भारत में 1991 के बाद वैश्वीकरण के क्षेत्र में कार्य –
(i)भारत में 1991 में भारी वित्तीय संकट आया था। इससे उबरने और आर्थिक वृद्धि की ऊंची दर प्राप्त करने की इच्छा से भारत में अधिक सुधारों की योजना शुरू हुई।
(ii) इसके अंतर्गत आयात के विभिन्न क्षेत्रों से अनेक प्रतिबंध हटाये गये।
(iii)व्यापार में खुलेपन की नीति अपनाई गई और विदेशी निवेश की निमंत्रित किया गया।
(iv)वैश्वीकरण का लाभ निचले तबके तक पहुंचने का निश्चय किया गया।
Q.10. सांस्कृतिक वैश्वीकरण के हानिकारक पक्ष की चर्चा कीजिए।
Ans: सांस्कृतिक वैश्वीकरण के हानिकारक पक्ष –
(i)इसका प्रभाव हमारे रहन-सहन, वेशभूषा, खान – पान और विचारों पर भी दिखाई देता है।
(ii)अब हमारी पसंद भी वैश्वीकरण से निर्धारित होती है। इस प्रकार पूरा भय बना हुआ है कि इससे संस्कृति को भी खतरा हो सकता है।
(iii)वस्तुतः सांस्कृतिक वैश्वीकरण संस्कृतियों में समरूपता लाने का प्रयास करती है। ऐसे में संस्कृति में परिवर्तन सुनिश्चित है।
(iv) वास्तव में विश्व संस्कृति के नाम पर विभिन्न देशों में पश्चिमी संस्कृति थोपने का प्रयास किया जा रहा है।
(v) अमरीकी वर्चस्व बढ़ता जा रहा है और अमरीकी वस्तुओं का प्रचलन बढ़ाया जा रहा है जिससे लोग गहराई तक प्रभावित हो सके।
Vaishvikaran: दीर्घ उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. वैश्वीकरण के उदय के कारणों की व्याख्या करें। vaishvikaran ke karan
Ans: वैश्वीकरण के उदय के कारण -20वीं शताब्दी के अंतिम दशक में वैश्वीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई और 21वी शताब्दी के आते-आते काफी फैल गई। जब भी संसार में या समाज में कोई नया अध्याय आरंभ होता है तो वह किसी एक या दो कारणों से नहीं होता, बल्कि उसके लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं। वैश्वीकरण के उदय में भी कई कारकों ने योगदान किया जो निम्नलिखित है-
(i) विज्ञान व प्रौद्योगिकी का विकास- भूमंडलीकरण की भावना के उदय तथा विकास में विज्ञान तथा तकनीक के विकास ने सर्वाधिक योगदान दिया है। यातायात तथा संचार के शीघ्रगामी साधनों ने समय और स्थान की दूरी को लगभग समाप्त कर दिया है। व्यक्ति एक ही दिन में कई देशों का भ्रमण कर सकता है और घर में बैठकर संसार के किसी भी भाग में रहने वाले व्यक्ति से बातचीत कर सकता है, लिखित संदेश भेज सकता है, व्यापारिक गतिविधियां चल सकता है और ऐसे महसूस करता है जैसे कि वह अपने ही शहर की मार्केट में खड़ा है। विज्ञान और तकनीक के विकास ने राष्ट्र राज्यों की सीमाओं को समाप्त – सा कर दिया है। बहुत – से देशों ने एक-दूसरे के यहां आने – जाने के लिए अपनी सीमाएं खोल दी है और पासपोर्ट की आवश्यकता समाप्त कर दी है। इन बातों से लोगों में यह भावना स्वाभाविक रूप से विकसित हुई हैं कि हम अलग – अलग देश के नही बल्कि एक है। आधुनिक संचार व यातायात के तीव्रगामी साधनों ने विश्व को एक परिवार में बदल दिया है।
पूंजी, वस्तुओं, सेवाओं, विचारों और लोगों की गतिशीलता अथवा तीव्रगति से संसार के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी प्रौद्योगिकी की उन्नति के कारण ही हुई है और इसने संसार के सभी क्षेत्रों को आमने – सामने ला खड़ा किया है। यह हो सकता है कि आवाजाही की गति सभी क्षेत्रों में एक – सी नहीं हो, परंतु पहले की अपेक्षा गति तेज हुई और इसने सारे जगत को एक सूत्र में जोड दिया है।
(ii) राष्ट्रों की पारस्परिक निर्भरता- आज कोई भी राष्ट्र पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर नहीं है बल्कि सभी छोटे – बड़े, शक्तिशाली और कमजोर राष्ट्र किसी – न – किसी आधार पर एक – दूसरे पर निर्भर है और यह पारस्परिक निर्भरता दिन – प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इनकी परस्परिक निर्भरता के क्षेत्र निम्नलिखित है –
(a)सामाजिक क्षेत्र में निर्भरता- राष्ट्र – राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना ने एक – दूसरे के प्रति घृणा व द्वेष की भावना को पैदा किया है। स्थान – स्थान पर रंगभेद की नीति से झगड़े हो रहे हैं। संसार के सभी नागरिक जाति, रंग, लिंग, जन्म, राष्ट्रीयता, भाषा, सभ्यता और संस्कृति आदि के भेद को भुलाकर संपूर्ण मानवता के परिप्रेक्ष्य में सोचने लगे हैं। यही भूमंडलीय की भावना का प्रभाव है।
(b) स्वास्थ्य के क्षेत्र में – स्वास्थ्य के क्षेत्र में राष्ट्रापे की निर्भरता बढ़ती जा रही है। बीमारी राष्ट्रीय क्षेत्रों को नही मानती। आज एक – से – एक नई और भयंकर बीमारी देखने को मिलती है। कोई भी देश भयंकर बीमारी का अकेला सामना नहीं कर सकता। राष्ट्रों के आपसी सहयोग से कई लाइलाज बीमारियों को विश्व से समाप्त करने के लिए सभी अलविदा कहा जा सकता है यदि नहीं कैंसर व एड्स जैसी बीमारियों से सभी राष्ट्र प्रयास में लगे हुए हैं। उसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु डब्ल्यू. एच. ओ. (WHO) नाम संगठन की स्थापना की गई है।
(c) संसाधनों के क्षेत्र में – विभिन्न राष्ट्र संसाधनों के बंटवारे के क्षेत्र में भी एक – दूसरे पर निर्भर करते हैं। प्रकृति ने राष्ट्रों को संसाधन समान रूप से नहीं दिए हैं। किसी देश में किसी वस्तु की तथा अन्य देश में किसी अन्य वस्तु की बहुतायत है। इस प्रकार विभिन्न देश आपकी कमी को पूरा करने के लिए एक – दूसरे पर निर्भर करते हैं।
(d) आर्थिक क्षेत्र में – आर्थिक क्षेत्र में भी राष्ट्र एक – दूसरे पर निर्भर करते हैं। आर्थिक सहयोग के परिणाम से एक अंतर्राष्ट्रीय बाजार का उदय हुआ है, जो कि भूमंडलीय विपणन केंद्र के रूप में परिणत हो चुका है। आजकल सारा विश्व आर्थिक मंदी की लपेट में आ चुका है और विश्व के सारे देश इसी मंदी का सामना करने में जुटे हुए हैं।
Q.2. विश्वव्यापी स्तर पर वैश्वीकरण के विरोध की व्याख्या करें।
Ans: वैश्वीकरण का विश्वव्यापी प्रतिरोध – वैश्वीकरण का भारत में ही नहीं बल्कि सभी देशों में विरोध हुआ है। यह एक विवाद योग्य मुद्रा है और आज तो सभी देशों में इसके अच्छे – बुरे पक्षों पर विवाद होता है। निम्नलिखित तथ्य इसके विश्वव्यापी विरोध की पुष्टि करते हैं-
(i) मार्क्सवाद विचारधारा के समर्थक इसका विरोध इस आधार पर करते हैं कि यह पूंजीवादी व्यवस्था का समर्थक है। मार्क्सवाद इसे साम्राज्यवादी तथा पूंजीवादी व्यवस्था के विस्तार का साधन मानते हैं। इससे पूंजीवादी व्यवस्था का विस्तार होगा, पूंजीपति और अधिक अमीर होंगे तथा गरीब लोग और अधिक गरीब होते जाएंगे।
(ii) बहुत से विचारक वैश्वीकरण को अमीरों और अमीर देशों की रक्षा का साधन मानते हैं और इस वातावरण में गरीब तथा श्रमिकों के हितों की सुरक्षा नहीं होती।
(iii) कुछ विचारको का कहना है कि क्योंकि वैश्वीकरण से राज्य की प्रभुसत्ता तथा सीमाओं पर राज्य के नियंत्रण पर प्रभाव पड़ता है, इसने राज्य की क्षमता में कमी आती है और वह कानून और व्यवस्था को अच्छी प्रकार से बनाए रखने में प्रभावी नहीं होगा। इसे सीमा पार आतंकवाद के फैसले की संभावना बढ़ेगी।
(iv) वैश्वीकरण से राज्य की समाज – कल्याण, सामाजिक न्याय था सामाजिक सुरक्षा संबंधी गतिविधियों में कमी आने की संभावना है। ऐसी अवस्था में समाज के कमजोर तथा पिछड़े वर्गों को जो राज्य की सहायता पर निर्भर रहते हैं और अधिक लाचारी, अभाव, भूख और शोषण का सामना करना पड़ेगा। इससे अमीर – गरीब के बीच की खाई भी चोडी होगी और सामाजिक तनाव में भी वृद्धि होगी।(v) तीसरी दुनिया के देशों का कहना है कि क्योंकि विश्वव्यापी संस्थाओं जैसे विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व व्यापार संगठन आदि पर पश्चिमी विकसित तथा धनी देशों का प्रभुत्व है। अतः वे उनका प्रयोग अपने हित की पूर्ति के लिए करेंगे, समस्त संसार के हित के लिए नहीं और इससे गरीब देशों के हितों की अनदेखी होगी।
(vi) वैश्वीकरण का विश्वव्यापी विरोध करने के उद्देश्य से वर्ल्ड सोशल फोरम(World social forum) की स्थापना हुई। इसमें मानवाधिकार – वाद कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी – कार्यकर्ता, श्रमिक, महिला कार्यकर्ता तथा युवा समाजसेवी सम्मिलित है। इसका गठन 2001 में हुआ था और इसकी चौथी बैठक मुंबई, भारत में हुई थी। जनवरी, 2007 में इसकी 7वी बैठक नैरोबी (केनिया) में हुई थी। वे वैश्वीकरण का विरोध करते हैं क्योंकि इससे सामाजिक कल्याण और सामाजिक न्याय की प्राप्ति में बाधा आती है। इसलिए वैश्वीकरण का विरोध हो रहा है।
Q.3. वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकरण का क्या योगदान है?
Ans: वैश्वीकरण की धारणा तथा विकास में सबसे अधिक योगदान प्रौद्योगिकी का है क्योंकि इसने ही सारे संसार के लोगों का पारस्परिक जुड़ाव किया है और विभिन्न देशों तथा क्षेत्रों को आमने – सामने ला खड़ा किया है, उनकी आपसी निर्भरता को बढ़ाया है और साथ ही उन्हें यह महसूस करने पर बाध्य किया है कि वे सब एक ही परिवार के सदस्य हैं। इसके महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं –
(i) प्रौद्योगिकी की प्रगति ने सारे संसार में लोगों, वस्तुओं, पूंजी और विचारो के प्रवाह में आश्चर्यजनक वृद्धि की है। इनकी गतिशीलता बहुत तेज हुई है।
(ii) प्रौद्योगिकी की प्रगति के कारण आज संसार के किसी भी भाग में बैठा व्यक्ति हजारों लाखों मील की दूरी पर घटने वाली घटनाओं से तुरंत परिचित हो जाता है और ऐसा महसूस करने लगता है कि वह उसी स्थान पर मौजूद है और उसके आसपास ही घटना घट रही है।
(iii) टी.वी. पर दिखाए जाने वाले लाइव – टेलीकास्ट ( Live Telecast) से व्यक्ति हजारों मील दूर घटने वाली घटनाओं तथा मैच आदि के बारे में यह महसूस करता है कि वह उस घटना या मैच को प्रत्यक्ष रूप से उसी स्थान पर बैठा देख रहा है और समम तथा स्थान की दूरी प्राय: समाप्त हो गई है।
(iv) प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के कारण अपने घर में बैठा व्यक्ति सारे संसार से जुड़ा हुआ महसूस करता है। वह घर बैठा ही विदेशो से व्यापार करता है, धन का भुगतान करता है, आपस में बातचीत करता है, यहां तक कि सम्मेलनों तथा बैठकों में भागीदारी भी करता है।
(v) प्रौद्योगिकी विभिन्न देशों की संस्कृतियों की टी. वी. तथा इंटरनेट के माध्यम से अंत: क्रिया करने में भूमिका निभाती है और वे एक- दूसरे को ऐसे प्रभावित करने लगी हैं जैसे लोग प्रत्यक्ष रूप से आमने – सामने आकर बातचीत करके प्रभावित होते हैं। अत: वैश्वीकरण के प्रसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान प्रौद्योगिकी का है।
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Q.4. एक कल्याणकारी राज्य में किन – किन विशेषताओं का होना जरूरी है। भारत को एक कल्याणकारी राज्य कहना कहां तक उपयुक्त है?
Ans: कल्याणकारी राज्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
(i) लोक कल्याण ( public welfare)-लोक कल्याण नागरिकों का अधिकार है – राज्य लोक कल्याण के लिए कार्य इसलिए नहीं करता कि उसे समाज में गरीबी दूर करनी है। वरन् इसलिए करता है कि जनता की भलाई राज्य का कर्तव्य है। राज्य का ध्येय लोक कल्याण होना चाहिए।
(ii) आर्थिक सुरक्षा (Economic security)-लोक कल्याणकारी राज्य आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्था करता है। यह सभी व्यक्तियों को रोजगार, न्यूनतम जीवन स्तर की गारंटी तथा अधिकतम समानता की स्थापना करता है। वह नागरिकों के भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा तथा बेकारी व बीमारी के समय सुरक्षा की व्यवस्था करता है।
भारत एक कल्याणकारी राज्य है। भारत के संविधान में इस बात पर पूर्ण बल दिया गया है। इसके लोक – कल्याणकारी होने के तीन उदाहरण निम्न प्रकार के हैं –
(i)भारत राज्य जनगणना, भू – सर्वेक्षण, मौसम की जानकारी आदि इकट्टी करता है। पर्यावरण के संरक्षण पर भी ध्यान रखता है। इस प्रकार वह लोक कल्याण के कार्यो को संरक्षण प्रदान करता है। वह उद्योगों को इस प्रकार नियंत्रित करता है कि उससे जन-स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न ड़े।
(ii)भारत सरकार नीति निर्देशक सिद्धांतों को क्रियान्वित करके नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान कर रही है। न्यूनतम जीवन स्तर की गारंटी, जवाहर रोजगार योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि कार्यक्रमों में सरकारी सहायता दी जा रही है।
(iii) भारत सरकार का उद्देश्य जन – कल्याणकारी है। उसके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों का स्वरूप लोकहित है। जैसे राज्य का कर्तव्य है कि वह नागरिकों के मानसिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास में सहयोग दें।
Q.5. वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका की व्याख्या करें।
Ans: वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका –
(i) राज्य की क्षमता में कमी -कुछ लोगों का विचार है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य की क्षमता पर प्रभाव पड़ा है। उसकी कार्य करने की क्षमता में कमी आई है। संपूर्ण विश्व में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा समाप्त – सी हो गई है। राज्य का कार्य सीमित हो गया है। उसका कार्य केवल कानून व्यवस्था एवं सुरक्षा रखना रह गया है। वह अनेक सामाजिक एवं आर्थिक कार्यों से मुक्त हो गया है। विश्व में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फैलाव के कारण सरकारों का निर्णय लेने का कार्य संकुचित हो गया है।
(ii) राज्य की भूमिका अपरिवर्तनीय -कुछ अन्य लोगों का विचार है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य की भूमिका में कोई परिवर्तन नहीं आया है। राजनीतिक समुदाय के रूप में उसकी प्रधानता कायम है और उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता। अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी राज्य अपना मुख्य कार्य कानून व्यवस्था तथा राष्ट्रीय सुरक्षा का कार्य कर रहा है। वह कोई कार्य अपनी इच्छा के विरुद्ध नहीं करता है।
(iii) राज्य की शक्ति में वृद्धि -कुछ राजनीतिज्ञों का कथन है कि वैश्वीकरण के फलस्वरुप राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई है। इसके कारण राज्यों को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी प्राप्त है। इसके द्वारा राज्य अपने नागरिकों के विषय में सूचनाएं एकत्र कर सकता है और व्यवस्थित ढंग से सेवा कर सकता है।