Dr Rajendra Prasad: डॉ० राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रत भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी का जन्म 9 दिसंबर 1884 ई० मैं बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक स्थान पर हुआ था। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी के पिता का नाम श्री महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। राजेंद्र प्रसाद जी के परिवार गांव के संपन्न और प्रतिष्ठित कृषक परिवारों में से थे। राजेंद्र प्रसाद जी के पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे तथा इनके माता कमलेश्वरी देवी धर्मपरायण महिला थी।
डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी गांधी जी के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। डॉ० राजेंद्र प्रसाद भारत की आजादी के लिए अपने प्राण को भी निछावर कर दिए थे। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी की देशभूषा बड़ी सरल थी। प्रसाद जी के चेहरे मोहरे को देखकर कभी पता ही नहीं लगता था कि प्रसाद जी इतने प्रतिभा संपन्न और उच्च व्यक्तित्व वाले सज्जन हैं। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी को देखने से सामान्य किसान जैसे लगते थे। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी पूरे देश में अत्यंत लोकप्रिय होने के कारण प्रसाद जी को राजेंद्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी का स्वभाव बहुत ही सरल और सहज तरह के थे। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी का विवाह 12 वर्ष की आयु में हो गया था। प्रसाद जी का पत्नी का नाम राजवंशी देवी था।
Dr Rajendra Prasad: शैक्षिक जीवन
डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी को 5 वर्ष के उम्र में ही इनके माता-पिता इन्हें मौलवी के यहां भेजने लगे थे, ताकि प्रसाद जी को हिंदू, उर्दू तथा फारसी का ज्ञान प्राप्त कर सकें। प्रसाद जी का प्रारंभिक शिक्षा इन्हीं के गांव जीरादेई गांव में हुआ। प्रसाद जी को शिक्षा की ओर शुरू से ही बहुत रुझान था। डॉ० राजेंद्र प्रसाद अपने भाई महेंद्र प्रताप के साथ पटना के टी० के० घोष अकैडमी में जाने लगे। इसके बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता में प्रवेश के लिए परीक्षा दी जिसमें डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी ने बहुत अच्छे नंबर से उत्तीर्ण हुए। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी को इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद इन्हें हर महीने ₹30 की स्कॉलरशिप प्राप्त होने लगे।
डॉ० राजेंद्र प्रसाद यह पहले युवक थे जिसमें इस गांव में कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने में सफलता प्राप्त किये थे। डॉ० राजेंद्र प्रसाद और इनके परिवार के लिए निश्चित ही यह गर्व की बात थी। डॉ०राजेंद्र प्रसाद जी 1902 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में अपना दाखिला लिए जहां से प्रसाद जी ने स्नातक की पढ़ाई को पूरा किये। उसके बाद प्रसाद जी ने 1907 में यूनिवर्सिटी और कलकाता से इकोनॉमिक्स में प्रसाद जी ने एम० ए० किये। प्रसाद जी को गोल्ड मेडल से सम्मानित भी किये गये थे। उसके बाद प्रसाद जी ने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त किये। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रसाद जी पटना आकर वकालत करने लगे। इसी दौरान प्रसाद जी लोगों के लिए अत्यंत लोकप्रिय हो गए।
Dr Rajendra Prasad: राजनीतिक जीवन
बिहार में अंग्रेज सरकार नील की खेती करते थे, परंतु सरकार अपने मजदूरों को कभी उचित वेतन नहीं देते थे। महात्मा गांधी जी 1917 में बिहार जाकर इस समस्या को दूर करने की पहल किये। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी उसी दौरान महात्मा गांधी जी से मिले थे। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी को महात्मा गांधी जी के विचारधारा से डॉ० प्रसाद जी अत्यंत प्रभावित हुए थे। पूरे भारत में 1919 में सविनय आंदोलन की लहर चल रही थी। गांधी जी ने सभी स्कूल, सरकारी, कार्यालयों का बहिष्कार करने की अपील किये। उसके बाद डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी ने अपनी नौकरी भी छोड़ दिए। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी चंपारण आंदोलन के दौरान गांधीजी के वफादार साथी बन गए थे। डॉ० प्रसाद जी गांधीजी के संपर्क में आने के बाद अपने पुराने विचारधाराओं का त्याग कर दिए और एक नई विचारधारा के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिए।
कांग्रेस ने 1931 में आंदोलन छेड़ दिए थे। डॉ० प्रसाद जी को इसी दौरान कई बार जेल भी जाने पड़े थे। डॉ० प्रसाद जी को मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष 1934 में बनाया गया था। डॉ० प्रसाद जी को एक से अधिक बार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए गए थे। डॉ० प्रसाद जी भारत छोड़ो आंदोलन में 1942 में भाग लिए थे। इसी आंदोलन के दौरान डॉ० प्रसाद जी गिरफ्तार हुए एवं नजरबंद भी रखे गए थे। भारत को स्वतंत्र कराने में डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी अपनी अहम भूमिका निभाए थे।
Dr Rajendra Prasad राष्ट्रपति के रूप में
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद होने के बाद 26 जनवरी 1950 में जब हमारा देश में संविधान लागू हुआ एवं हमारा देश एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया, तब उसी दौरान स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी को बनाया गया। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी देश के इस सर्वोच्च पद पर बने रहकर प्रसाद जी ने देश के कई महत्वपूर्ण कार्य किए एवं देश में शिक्षा के प्रचार-प्रसार में भी अपना महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी भारत देश के प्रथम राष्ट्रपति थे, जो राष्ट्रपति के पद पर अपने जीवन में दो बार कार्यभार को संभाल चुके थे। प्रसाद जी 12 साल तक राष्ट्रपति के पद में देश का कुशल नेतृत्व दर्शन किए। इसके बाद प्रसाद जी 1962 में राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देकर प्रसाद जी अपने गृहराज्य पटना चले गए थे। डॉक्टर प्रसाद अपने हर कार्य को बखूबी निभाए थे।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी की रचनाएं
डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी के प्रमुख रचनाएं हैं-
- मेरी यूरोप यात्रा
- बाबूजी के कदमों में
- संस्कृत का अध्ययन
- शिक्षा और संस्कृति
- भारतीय शिक्षा
- मेरी आत्मकथा
- गांधी जी की देन
- चंपारण में महात्मा गांधी
- खादी का अर्थशास्त्र
- साहित्य
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी का निधन
डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी बहुत ही निर्मल और दयालु स्वभाव के व्यक्ति थे। डॉ० प्रसाद जी की भारतीय राजनीतिक इतिहास में इनका छवि एक महान और विनम्र राष्ट्रपति के थे। डॉक्टर प्रसाद जी अपने जीवन के अंतिम दिनों को व्यतीत करने के लिए पटना के निकट सदाकत आश्रम को चुने। उसके बाद प्रसाद जी खुद को पूरी तरह से सामाजिक सेवा में समर्पित कर दिए। डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी का निधन 28 फरवरी ,1963 में हो गया था। पटना में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी के याद में ‘ राजेंद्र स्मृति संग्रहालय ‘ का निर्माण करवाया गया।