भगवद्गीता मोक्ष योग Philosophy UG SEM 3 BBMKU Notes.

भगवद्गीता मोक्ष, ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग, प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग जैसे दार्शनिक सिद्धांतों का समन्वित रूप है। यह ग्रंथ केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू को दिशा देने वाला गहन दार्शनिक ग्रंथ भी है। मोक्ष को भगवद्गीता में आत्मा की परम मुक्ति माना गया है, जिसे प्राप्त करने के लिए ज्ञान (Jnana Yoga), कर्म (Karma Yoga) और भक्ति (Bhakti Yoga) को तीन मुख्य मार्ग बताया गया है। साथ ही, प्रवृत्ति (सक्रिय जीवन) और निवृत्ति (वैराग्य जीवन) के बीच संतुलन की अवधारणा भी गीता का मूल संदेश है।

भगवद्गीता मोक्ष योग: Philosophy UG Sem 3 BBMKU Notes

परिचय: भगवद्गीता मोक्ष योग
भगवद्गीता भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें जीवन, आत्मा, कर्तव्य, मोक्ष और भक्ति से जुड़े गूढ़ विचार प्रस्तुत किए गए हैं। गीता में मोक्ष को जीवन का परम लक्ष्य माना गया है और इसे प्राप्त करने हेतु विभिन्न मार्गों—ज्ञान योग, कर्म योग, और भक्ति योग—की व्याख्या की गई है। इसके साथ ही प्रवृत्ति मार्ग और निवृत्ति मार्ग की अवधारणाएं भी गीता के चिंतन का मूल अंग हैं।

1. मोक्ष (Moksha):

मोक्ष का अर्थ है – आत्मा की बंधन से मुक्ति। भगवद्गीता में मोक्ष को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होकर परमात्मा में लीन हो जाने की स्थिति माना गया है। यह स्थिति तब आती है जब व्यक्ति अपनी इन्द्रियों, अहंकार और माया से ऊपर उठकर आत्मबोध प्राप्त कर लेता है। गीता के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए तीन मार्गों पर चलना आवश्यक है—ज्ञान, कर्म, और भक्ति।

2. ज्ञान योग (Jnana Yoga):

ज्ञान योग आत्मा और परमात्मा के सत्य स्वरूप को जानने का मार्ग है। इसमें विवेक, विचार, और आत्मबोध के माध्यम से अज्ञान को दूर किया जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सच्चा ज्ञान वही है जो आत्मा और शरीर के भेद को समझाए। ज्ञानी व्यक्ति मोह, क्रोध, और आसक्ति से मुक्त होता है और मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

3. कर्म योग (Karma Yoga):

कर्म योग का तात्पर्य है – निष्काम भाव से कर्म करना। भगवद्गीता में कहा गया है:

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
(अध्याय 2, श्लोक 47)

कर्म योगी व्यक्ति केवल अपने कर्तव्य का पालन करता है, न कि फल की इच्छा करता है। ऐसा कर्म व्यक्ति को बंधन से मुक्त करता है और अंततः मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।

4. भक्ति योग (Bhakti Yoga):

भक्ति योग भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का मार्ग है। इसमें व्यक्ति ईश्वर में पूर्ण श्रद्धा और प्रेम के साथ अपना जीवन अर्पित कर देता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:

“भक्त्या मामभिजानाति” – केवल भक्ति से ही मुझे जाना जा सकता है।

भक्ति योग मोक्ष का सबसे सहज मार्ग माना गया है क्योंकि इसमें हृदय की पवित्रता, प्रेम, और समर्पण की प्रधानता होती है।

5. प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग (Pravritti & Nivritti Marg):

  • प्रवृत्ति मार्ग वह है जिसमें व्यक्ति संसार में रहते हुए कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और सामाजिक उत्तरदायित्वों का पालन करता है। यह कर्मप्रधान मार्ग है।
  • निवृत्ति मार्ग वह है जिसमें व्यक्ति संसारिक मोह से विमुख होकर आत्मचिंतन, ध्यान और वैराग्य को अपनाता है।

भगवद्गीता इन दोनों मार्गों को एक-दूसरे का विरोधी नहीं मानती, बल्कि यह कहती है कि एक संतुलन बनाकर व्यक्ति मोक्ष की ओर बढ़ सकता है। गृहस्थ भी प्रवृत्ति मार्ग पर चलते हुए निवृत्ति मार्ग के गुण अपना सकता है।

निष्कर्ष:

भगवद्गीता में मोक्ष, ज्ञान, कर्म, भक्ति योग और प्रवृत्ति-निवृत्ति मार्ग की अवधारणाएँ आत्मा की शुद्धि और मुक्ति की दिशा में निर्देश देती हैं। गीता का दर्शन एक ऐसा समन्वयवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जहाँ भौतिक जीवन और आध्यात्मिक साधना के बीच संतुलन स्थापित किया गया है। यह ग्रंथ आज भी जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शक है और व्यक्ति को उसके धर्म, कर्तव्य, और मोक्ष के मार्ग की ओर प्रेरित करता है।

इस प्रकार, भगवद्गीता में मोक्ष, ज्ञान, कर्म और भक्ति योग के साथ-साथ प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग की अवधारणाएँ व्यक्ति को संतुलित, नैतिक और आत्मोन्मुख जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। गीता का यह समन्वयवादी दर्शन दर्शाता है कि भक्ति, ज्ञान और कर्म तीनों ही मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं। साथ ही, प्रवृत्ति (सक्रियता) और निवृत्ति (वैराग्य) जीवन के दो ऐसे मार्ग हैं जिन्हें संतुलन में रखकर आत्मोन्नति संभव है।

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