भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ | Bhartiya loktantra ki kahaniyan | sociology class 12 chapter 3 NCERT solution in Hindi

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Bhartiya loktantra ki kahaniyan

Bhartiya loktantra ki kahaniyan: अति लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.निजी क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
Ans:
वह आर्थिक क्षेत्र जहां उत्पादन की गतिविधियां निजी उद्यमियों द्वारा चलाई जाती है। यह उद्यम निजी व्यक्ति या व्यक्तियों के प्रबंध, नियंत्रण और स्वामित्व में होती है। उसे निजी क्षेत्र का उद्यम कहते हैं। वह लाभ कमाने के उद्देश्य से उत्पादन की क्रिया का संचालन करता है।

Q.2.प्रत्येक राज्य के लिए संविधान की आवश्यकता और अनिवार्यता क्यों हैं?
Ans:
प्रत्येक राज्य के लिए संविधान की आवश्यकता और अनिवार्यता इसलिए है कि इसमें सरकार के सभी अंगों के कार्य और अधिकार तथा नागरिकों और राज्य के आपसी संबंधों का खुलासा कर दिया जाता है। अत: शासन आसानी से चलाया जा सकता है।

Q.3.मौलिक अधिकारों से क्या तात्पर्य है?
Ans:
भारतीय संविधान ने सभी नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार प्रदान किए हैं। वे मौलिक अधिकारों के रूप में जाने जाते हैं। इन्हें मूलभूत अधिकार इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये मानव के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। हमारे संविधान के संदर्भ में मौलिक अधिकार इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि वे लिखित संविधान द्वारा सुरक्षित है।

Q.4.भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य बताइये।
Ans:
राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने से संबंधित मौलिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं –

  • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा के लिए कार्य करना।
  • देश की रक्षा करना।
  • भारत के सभी लोगों के भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना।
  • हमारी साझा संस्कृति की समृद्ध धरोहर की सुरक्षा करना।
  • संविधान का पालन करना तथा इसके राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना।
  • राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को मनाना और उनका अनुकरण करना।
  • राष्ट्रीय पर्यावरण का संरक्षण तथा इसमें सुधार करना।
  • वैज्ञानिक मनोवृति तथा जिज्ञासा की भावना को विकसित करना।
  • सार्वजनिक संपत्ति का बचाव करना।
  • व्यक्तिगत संपत्ति और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठता के लिए प्रयास करना।

Q.5.संवैधानिक उपचारों का अधिकार क्या है?
Ans:संवैधानिक उपचारों का अधिकार वह अधिकार है जो मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु संविधान में सम्मिलित किया गया है। यदि राज्य किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप करता है या उनका हनन करता है तो नागरिक न्यायपालिका का दरवाजा खटखटा सकता है। न्यायपालिका आदेश, परमादेश, बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख, अधिकार पृच्छा तथा उत्प्रेक्षण लेख जारी करके नागरिकों को मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है।

Q.6.हमारे संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का वर्णन कीजिए।
Ans:
समानता के अधिकार से तात्पर्य है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार और सम्मान अवसर प्राप्त हो। कानून की दृष्टि से सभी समान है। भारत का संविधान धर्म, लिंग, जाति या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। समान अपराध के लिए समान दंड दिया जाएगा। सभी के लिए शिक्षा व रोजगार के समान अवसर उपलब्ध होंगे। सभी को सार्वजनिक स्थानों का बिना भेदभाव के प्रयोग करने का अधिकार है। समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान है। सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है।

Q.7.अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन क्यों आवश्यक है?
Ans:
अधिकार और कर्तव्य एक – दूसरे पर निर्भर करते हैं। ये एक – दूसरे के बिना अधूरे हैं। कर्तव्यों के बिना अधिकार अराजकता पैदा कर देंगे। अधिकारों के अभाव में कर्तव्य तानाशाही की ओर ले जा सकते हैं। अधिकार नागरिक तैयार करते हैं और कर्तव्य नागरिकों को अधिकारो का उपयोग करने में सक्षम बनाने में राज्य की सहायता करते हैं।

Q.8.सामाजिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए संविधान में क्या व्यवस्था की गई है?
Ans:यद्यपि संविधान में नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं लेकिन राज्य से यह भी अपेक्षा की गई है कि वह सामाजिक – आर्थिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए आर्थिक विकास के मार्ग में आने वाले सामाजिक बाधाओं को दूर करें। इसके लिए संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का प्रावधान किया गया है। इन सिद्धांतों का लक्ष्य भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाना है। सविधान में इन्हें देश का शासन चलाने के लिए मौलिक सिद्धांत घोषित किया गया है।

Q.9.धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन कीजिए।
Ans:
भारत में अनेक धर्म है। सभी धर्मों को समान माना गया है। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत सभी नागरिकों को अपनी मर्जी के धर्म को मानने का अधिकार है। राज्य किसी धर्म विशेष के साथ पक्षपात नहीं करता। धर्म के आधार पर कोई निर्णय नहीं किया जायेगा। धर्म और राजनीति को अलग – अलग रखा जायेगा परंतु धार्मिक समुदाय अपने धर्म के शांतिपूर्ण प्रचार और प्रयास करने के लिए परोपकार संस्थाएं स्थापित कर सकते हैं। अल्पसंख्यक समुदायों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त है। राज्य की संस्थाओं और सरकारी शिक्षा प्राप्त संस्थानों को धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति नहीं है, फिर भी वे मानवीय मूल्यों के आधार पर नैतिक शिक्षा देने में स्वतंत्र हैं।

Q.10.राज्य से क्या अभिप्राय है?
Ans:राज्य –
यह बाहरी नियंत्रण है मुक्त निश्चित भू – भाग में निवास करने वाले लोगों का एक ऐसा समुदाय है जिसका एक संगठित सरकार हो। राज्य एक सामाजिक संस्था है जो शक्ति के प्रयोग पर अधिकार रखती है। वह अपने नागरिकों पर नियंत्रण करने का अधिकार भी रखती है। राज्य के आवश्यक तत्व है – जनसंख्या, निश्चित भू – भाग, प्रभुसत्ता और सरकार। राज्य कानून व्यवस्था को नियंत्रित करता है तथा न्यायिय व्यवस्था के माध्यम से तमाम विवादों का निपटारा भी करता है। राज्य की स्थित संस्था है।

Q.11.भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन कीजिए।
Ans:
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। संविधान द्वारा नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। व्यक्तियों को अपने धर्म का प्रचार, प्रसार, एवं पालन करने की स्वतंत्रता है। अनुच्छेद 25 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को, चाहे वे नागरिक हो या विदेशी अंत: कारण की स्वतंत्रता तथा किसी भी धर्म को स्वीकार करने, आजरण करने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। सरकारी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जायेगी। सरकार सार्वजनिक व्यवस्था के अंतर्गत स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध लगा सकती है। अतः यह अधिकार भी निरपेक्ष नहीं है।

Q.12.पंचायती राज्य संस्थाओं की व्याख्या कीजिए।
Ans:
पंचायती राज्य संस्थाएं निम्नलिखित है –

  • ग्राम सभा – ग्राम सभा पंचायती राज प्रणाली की सबसे निचले स्तर की आधारभूत संस्था है। पंचायती क्षेत्र में रहने वाले सभी व्यक्तियों को मिलाकर ग्राम सभा का संगठन होता है। यह वार्षिक लेखा – संबंधी कार्य करती है।
  • पंचायत समिति – पंचायती राज प्रणाली की दूसरी संस्था पंचायत समिति है। इसके अध्यक्ष को प्रमुख कहा जाता है। यह अपने क्षेत्र की विकास योजनाओं का समन्वय और पर्यवेक्षण करती है। ग्राम पंचायत के कार्यों पर निगरानी रखती है।
  • जिला परिषद – पंचायती राज प्रणाली की सर्वोच्च संस्था जिला परिषद होती है। इसके कुछ निर्वाचित सदस्य होते हैं। जिला परिषद के कार्यों में कल्याणकारी कार्य, सामाजिक कार्य और विकासात्मक कार्य प्रमुख है। संविधान के 73वें संशोधन से पंचायती राज्य व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ है और उसका सामाजिक एवं आर्थिक आधार बढ़ा है।

Q.13.73 वें संवैधानिक संशोधन (1992) की मुख्य विशेषताएं क्या है?
Ans:
73वें संवैधानिक संशोधन (1992) की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार है –

  • देश में पंचायती राज प्रणाली के ग्राम, प्रखंड और जिला स्तर पर तीन स्तरीय व्यवस्था होगी।
  • सभी पंचायतों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित होंगे। एक – तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होगी।
  • पंचायतों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव इस संशोधन की प्रमुख विशेषता है।
  • पंचायत का कार्यकाल पांच वर्ष होगा।

Q.14.समानता लाने के लिए कुछ वर्गों के लिए क्या प्रयत्न किए गए हैं?
Ans:
संविधान में समानता के अधिकार का लक्ष्य सामाजिक और आर्थिक समानता स्थापित करना है। सभी के लिए रोजगार के समान अवसर प्रदान करना आवश्यक है। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए विशेष सुविधाओं की व्यवस्था की गई है। सामाजिक, आर्थिक रूप से ऊंचा उठाने के लिए शिक्षा, रोजगार, आवास की सुविधाएं दी गई है। सरकारी पदों में आरक्षण दिया गया है। छुआछूत को अपराध माना गया है। सार्वजनिक स्थानों पर आने – जाने में कोई रुकावट नहीं है।

Q.15.आर्थिक नियोजन के दो मुख्य लाभ बताइए।
Ans:
साधारण शब्दों में किसी भी व्यक्तिगत, सामूहिक अथवा सरकारी काम को योजनाबद्ध करना नियोजन कहलाता है। संक्षेप में योजना बनाने का अर्थ होता है किसी क्रिया संबंधी कार्यक्रम को निर्धारित तथा निश्चित करना। आधुनिक युग में नियोजन क्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। आर्थिक नियोजन के दो मुख्य लाभ निम्नलिखित है –

  • आर्थिक नियोजन के माध्यम से एक निश्चित समय के अंदर क्रमिक ढंग से बहुत – से कार्य किये जा सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्तित्व व सामाजिक विकास एक निश्चित समय में ही संभव हो जाता है।
  • आर्थिक नियोजन में पहले से आंकड़े तय कर लिए जाते हैं कि एक निश्चित समय में देश को कितनी आमदनी की संभावना है और उसी समय में किस-किस क्षेत्र में कितना खर्च किया जाना चाहिए। परिणामस्वरुप अति आवश्यक योजनाओं को प्राथमिकता मिल जाती है और इस प्रकार आर्थिक विकास में गति आती है।

Bhartiya loktantra ki kahaniyan: लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
Ans:
भारत के संविधान में नागरिकों को अग्रलिखित मौलिक अधिकार दिए गए हैं –

  • समता का अधिकार भारत में जाति, लिंग, जन्म – स्थान तथा वर्ग आदि का भेदभाव किए बिना सबको समता का अधिकार दिया गया है। हमारे जैसे विशाल विषमताओं वाले देश में इस अधिकार का बड़ा महत्व है।
  • स्वतंत्रता का अधिकार – भारत में नागरिकों को भाषण देने की, समुदाय बनाने की, आवागमन तथा निवास करने आदि की पूर्ण स्वतंत्रता है।
  • सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार – भारत में प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा एवं संस्कृति का विकास करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, अतः उसके नागरिकों को किसी भी धर्म का अनुसरण करने का अधिकार है।
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार – भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे का शोषण नहीं कर सकता। यहां बेगार लेने, 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को कारखाने में रखने तथा स्त्रियों और बच्चों को खरीदने – बेचने आदि की मनाही है।
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार – भारत में कोई भी नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी न्यायालय की शरण ले सकता है।

Q.2.मौलिक अधिकार हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
Ans:
मौलिक अधिकार हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि –

  • मौलिक अधिकारों के अभाव में व्यक्ति अपना सर्वागीण विकास नहीं कर सकता।
  • मौलिक अधिकार ही सुखी और स्वतंत्र जीवन व्यतीत करने का नैतिक बल देते हैं।
  • मौलिक अधिकार कार्यपालिका और व्यवस्थापिका की शक्तियों पर अंकुश रखते हैं।
  • इसके द्वारा नागरिक शोषण से बचता है।
  • मौलिक अधिकार सभी प्रकार की स्वतंत्रताएं नागरिकों को उपलब्ध कराते हैं।
  • मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों में सुरक्षा की भावना को जगाते हैं।
  • बच्चों, महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों का कल्याण सुनिश्चित करते हैं।

Q.3.भारत में योजनाओं के महत्व की व्याख्या कीजिए।
Ans:
पंचवर्षीय योजनाएं समाज में परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारक है। यह कारक सामाजिक नीति में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करता है। यह सामाजिक उद्देश्य को प्रतिबिंबित करता है तथा सामाजिक विकास में सहायक है। भारत में पंचवर्षीय योजनाएं स्वतंत्रता के पश्चात आरंभ की गई। देश के संसाधनों तथा आवश्यकताओ को ध्यान में रखते हुए विकास के मानचित्र को तैयार करने के लिए योजना आयोग का गठन किया गया। पंचवर्षीय योजनाओं के मुख्य उद्देश्य –

  • लोगों के जीवन – स्तर को तेजी से सुधारना।
  • विकास की उच्च दर को प्राप्त करना।
  • संपत्ति व आय की असमानता को कम करना।
  • बेरोजगारी को दूर करना।
  • मूल्य स्तर में स्थिरता बनाए रखना।
  • कृषि और उद्योग क्षेत्र का तेजी से विकास कर विदेशों से आयात को कम करना और भुगतान संतुलन की समस्याओं को हल करना।

Q.4.मिश्रित अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य है?
Ans:
भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रणाली को अपनाया गया है। इसमें निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों का ही अस्तित्व है। निजी क्षेत्र में छोटे और बड़े दोनों प्रकार के उद्यम सम्मिलित हैं। कृषि, आवास, निर्माण से संबंधित कार्य उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन आदि निजी क्षेत्रों में है। सार्वजनिक क्षेत्र में बैंक, बीमा कंपनियां, इस्पात – संयंत्र, भारी इंजीनियरिंग उद्योग, रेल, डाक व्यवस्था आदि सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम है। टाटा, अंबानी, बिडला, सिंघानिया आदि निजी क्षेत्र के प्रमुख उत्पादक है। योजना काल के दौरान भारत में पर्याप्त औद्योगिक विस्तार हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र ने देश में उद्योग का आधारभूत ढांचा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार द्वारा सिंचाई, बिजली, सड़के, पुल, बांध, इस्पात, कारखाने, खानों का विकास, हवाई अड्डों का निर्माण आदि सार्वजनिक क्षेत्र में किए गए हैं परंतु अब निवेशक की प्रक्रिया शुरू हो गई है और निजीकरण की मुहिम धीरे-धीरे तेज हो रही है।

Q.5.भारत की नौवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य बताइये।
Ans:
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997 – 2002) का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे –

  • उत्पादक रोजगार में वृद्धि तथा गरीबी उन्मूलन के लिए कृषि और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देना।
  • आर्थिक विकास की दर को स्थिर मूल्यों द्वारा बढ़ाना।
  • सभी के लिए भोजन एवं पोषण सुनिश्चित करना।
  • सभी के लिए पेयजल, प्राथमिक स्वास्थ्य सुवधाएं, प्राथमिक शिक्षा, मकान और संपर्क साधन जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
  • जनसंख्या के विकास की दर को नियंत्रित करना।
  • सामाजिक – आर्थिक परिवर्तन एवं विकास के लिए महिलाओं और सामाजिक रुप से वंचित अन्य वर्गों; जैसे – अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग तथा अल्पसंख्यकों का सशक्तीकरण करना।

Q.6.समाज के कमजोर वर्गों को क्या सुविधाएं प्रदान की गई है?
Ans:
समाज के कमजोर वर्गों के लिए सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए विशेष अधिकार उपलब्ध कराए गए हैं। उनके स्कूलों, कॉलेजों में स्थान आरक्षित किए गए ताकि उनका शैक्षणिक रूप से उत्थान हो सके। व्यवस्थापिकाओं में भी आरक्षण किया गया है। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए विशेष रियायतें दी गई है। रोजगार के क्षेत्र में भी उनके लिए स्थान आरक्षित है। छुआछूत को दंडनीय अपराध बना दिया गया है। वे सभी सार्वजनिक स्थानों को बिना भेदभाव के प्रयोग कर सकते हैं।

Q.7.भारत में पाये जानेवाले कुछ दबाव समूहों के नाम लिखे।
Ans:
भारत में विभिन्न प्रकार के दबाव समूह पाये जाते हैं। जैसे – व्यापारिक समूह, किसान संघ, शक्ति, संगठन, धार्मिक समूह, जाति व क्षेत्र पर आधारित समूह, गांधीवादी विचारधारा से संबंधित समूह।

  • व्यापारिक समूह में फेडरेशन ऑफ इंडियान चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (फिक्की)।
  • किसान संघ के महेंद्र सिंह टिकैत की किसान यूनियन।
  • श्रमिक संगठनो में – ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस आदि प्रमुख है।

Q.8.राजनीतिक दल तथा दबाव समूह में अंतर स्पष्ट करें।
Ans:
राजनीतिक दल और दबाव समूह में अंतर निम्नलिखित हैं –

  • राजनीतिक दलों का संगठन दबाव समूहों की अपेक्षा अधिक विस्तृत होता है।
  • दबाव समूहों का कार्य क्षेत्र राजनीतिक समूहों की अपेक्षा सीमित होता है।
  • दबाव समूह केवल सार्वजनिक नीति को अपने हित में करवाने के लिए प्रयत्नशील रखते हैं।
  • राजनीतिक दलों की तरह दबाव समूह चुनाव में भाग नहीं लेते।
  • दबाव समूहों की सदस्यता परस्पर व्यापी होती है।
  • दबाव समूह प्रचार, प्रस्ताव जैसे माध्यमों से अपना हित साधन करते हैं जबकि राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए अनेक साधनों का प्रयोग करते हैं।

Q.9.ग्राम सभा किसे कहते हैं? ग्राम सभा के मुख्य कार्य क्या है?
Ans:
ग्राम सभा पंचायती राज व्यवस्था की सबसे निचले स्तर की आधारभूत संस्था है। पंचायत क्षेत्र में रहनेवाले सभी वयस्को को मिलाकर ग्राम सभा बनाती है। इसमें ग्राम पंचायत क्षेत्र में आने वाले गांव की मतदाता सूची में पंजीकृत सभी लोग शामिल होते हैं। ग्राम सभा को पंचायती राज की आत्मा कहा गया है। चूंकि ग्राम पंचायत के सभी पंजीकृत मतदाता ग्राम सभा में शामिल होते हैं। यह ग्राम पंचायत की सामान्य सभा की तरह कार्य करती है। ग्राम सभा के कार्य –

  • ग्राम सभा पंचायती राज व्यवस्था की सबसे निचले स्तर की आधारभूत संस्था है। भारतीय लोकतंत्र में यही एक संस्था है जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों की प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करती है।
  • पंचायत क्षेत्र में रहने वाले सभी वयस्को को मिलाकर ग्राम सभा का गठन होता है। यह वार्षिक लेखा और लेखा परीक्षा प्रतिवेदन तथा प्रशासनिक रिपोर्ट को अनुमोदित करती है।
  • ग्राम सभा नये विकासत्मक कार्यों को मंजूरी देती है।
  • ग्राम सभा की वर्ष में दो बैठक होती हैं।

Q.10.ग्राम पंचायत में सीटों के आरक्षण की क्या व्यवस्था की गई है? स्पष्ट करें।
Ans:
सभी पंचायतों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए उस पंचायत क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण किया गया है। राज्य के निर्णय के अनुसार अन्य पिछड़े वर्गों के लिए भी सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है। सीधे चुनाव के द्वारा भरी जाने वाली सीटो की कम – से – कम एक तिहाई भाग महिलाओं के लिए सुरक्षित रहता है। इसमें अनुसूचित जातियों और जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित सीट भी शामिल है। पंचायत प्रमुख का पद भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षित रहता है। आरक्षित सीटों का निर्धारण उनकी जनसंख्या के आधार पर होता है। पंचायत प्रमुखों की आरक्षित सीटों की संख्या प्रत्येक स्तर पर कुल पदों की संख्या के एक – तिहाई से कम नहीं हो सकती। राज्यों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए किसी भी स्तर पर सीटों तथा पदों में आरक्षण के लिए प्रावधान रखने का अधिकार मिला हुआ है।

Bhartiya loktantra ki kahaniyan: दीर्घ स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर

Q.1.भारतीय संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का वर्णन कीजिए।
Ans:
समानता का अधिकार – भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 तक समानता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार, भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता या कानून के सामने संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। संविधान के अनुसार भारतीय संघ के समस्त नागरिक समान होंगे। नागरिकों में धर्म, जाति, रंग तथा लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। समानता के अधिकार के अंतर्गत नागरिकों को निम्नलिखित समानताये प्रदान की गई है –

  • भेदभाव की समाप्ति – नागरिकों से धर्म, जाति, वर्ग, रंग तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। सभी व्यस्क नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • सरकारी पद प्राप्त करने की समानता – सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सरकारी पद प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया गया है, संविधान के अनुच्छेद 61(1) के अनुसार, समस्त नागरिकों के लिए सरकारी पदों पर नियुक्ति के लिए समान अवसर प्राप्त होंगे। अनुच्छेद 16(2) में कहा गया है कि केवल वंश, जाति, लिंग, जन्म – स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर किसी नागरिक के लिए योग्यता न होगी तथा न विभेद ही किया जायेगा।
  • अस्पृश्यता की समाप्ति – भारतीय संविधान द्वारा अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया है। किसी भी रूप में अस्पृश्यता को मानना कानून अपराध है। यह सत्य है कि अस्पृश्यता की समाप्ति द्वारा किसी विशेष अधिकार की व्यवस्था नहीं की गई है, किंतु फिर भी अनुच्छेद 17 के परिणामस्वरुप भारतीय जनता के लगभग छठे भाग को एक दलित व्यवस्था से मुक्त मिलती है।
  • उपाधियों की समाप्ति – संविधान द्वारा सभी प्रकार की उपाधियों का अंत कर दिया गया है। कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी विदेशी सरकार से उपाधि प्राप्त नहीं करेगा। शिक्षा तथा राजनीति के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिए ही उपाधियां प्रदान की जायेगी।
  • सार्वजनिक स्थानों का सभी के लिए खुला होना – प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के सार्वजनिक स्थानों का उपयोग कर सकता है।

Q.2.भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को भारत के कुछ प्रमुख दबाव समूह ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
Ans:
आधुनिक राजनीतिक युग की महत्वपूर्ण देन हित व दबाव समूहो का विकास है जो आजकल सभी लोकतंत्रिय देशों में पाए जाते हैं। जब समाज हित के व्यक्ति संगठित होकर अपने हितों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं तो उस संगठन को हित समूह कहा जाता है। जब हित समूह अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकार से सहायता चाहने लगते हैं और व्यवस्थापिका के सदस्यों को इस रूप में प्रभावित करने लगते हैं कि उन्हीं के हित के लिए कानून बनाए जाये तो उन्हें दबाव समूह कहा जाता है। भारत में कई प्रकार के दबाव समूह कार्यरत है जैसे – ‘भारतीय वाणिज्य मंडल’ (FICCI) अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिंद मजदूर संघ, किसान संगठन, संप्रदायिक व धार्मिक समूह इत्यादि। इन दबाव समूहों ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित किया है –

  • भारत के विभिन्न श्रमिक संगठनों ने श्रमिक एवं उनके आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए सरकार को प्रभावित करके कई प्रकार के कानून बनवाए हैं।
  • भारत के व्यापारिक समूहों ने अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए सरकार की औद्योगिक नीति को प्रभावित किया है और अपने पक्ष में कानून बनवाए हैं।
  • भारत में समय-समय पर कई धार्मिक समूहों ने सरकार पर दबाव डालकर अपने हितों की रक्षा के लिए कानून बनवाए हैं।

Q.3.भारतीय राजनीति में जाति समूह की वर्णन करे।
Ans:
भारत में जाति समूहो ने राजनीति को अत्यधिक प्रभावित किया है। भारत की राजनीति कठोर जाति प्रथा के शिकंजे में जकड़ी हुई है। यहां चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष न हो सकने का एक बड़ा कारण जाति हित समूह या जाति दबाव समूह भी है। सभी जातियों तथा उपजातियों ने अपने – अपने हित समूह संगठित किए हुए हैं और मतदाता अपने मत का प्रयोग अपने स्वतंत्र निर्णय के अनुसार नहीं करते, बल्कि अपनी जातीय पंचायत या समुदाय के निर्णय के अनुसार करते हैं। परिणाम यह हुआ कि सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों का चयन करते हुए यह देखते हैं कि जिस जाति के मतदाता उस क्षेत्र में अधिक है उसी जाति का व्यक्ति दल द्वारा अपने प्रत्याशी घोषित किया जाता है। मंडीमंडलों का निर्णय करते समय भी प्रधानमंत्री तथा राज्यो के मुख्यमंत्री जाति के आधार पर ही निर्णय लेते हैं और सभी जातियों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाता है। किसी जाति के विधायक को मंत्रिमंडल में लेते समय उसके व्यक्तिगत गुणों और योग्यताओं को इतना महत्व नहीं दिया जाता। बहुत से ऐसे उदाहरण दिये जा सकते हैं जबकि बड़े-बड़े राष्ट्रीय नेताओं की योग्यता भी यही थी कि वे किस जाति के एकमात्र नेता माने जाते थे इन बातों से स्पष्ट है कि जाति ने हित समूह के रूप में भारतीय राजनीति को काफी प्रभावित किया है। सरकार की नीतियां तथा कानून जाति आधार पर बने या उसमें परिवर्तन हुए।

Q.4.संवैधानिक उपचारों के अधिकार से क्या तात्पर्य है?
Ans:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार – संवैधानिक सुरक्षा के अभाव में मूल अधिकार निरर्थक हो जाते हैं। जी.एन. जोशी के अनुसार, “मौलिक अधिकारों की केवल घोषणा करने तथा उन्हें संविधान में सन्निहित करने से कोई लाभ नहीं है, जब तक कि उनकी सुरक्षा की प्रभावपूर्ण तथा सरल व्यवस्था ना की जाए। अतः राज्य या नागरिक द्वारा संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों का यदि उल्लंघन किया जाता है, तो उनकी रक्षा हेतु दी गई व्यवस्था को संवैधानिक उपचारों का अधिकार कहा गया है। यदि नागरिकों के मूल अधिकारों में बाधा उपस्थित की जाती है तो वे उच्चतम न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय में अपने अधिकारों की रक्षा हेतु जा सकते हैं। न्यायालय द्वारा संवैधानिक उपचार के अंतर्गत अग्रलिखित लेख जारी किये जा सकते हैं –

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण – इस लेख का अर्थ है, ‘ बंदी के शरीर को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करो।’ यह अवैध रूप से बंदी किये गये व्यक्तियों की सुरक्षा करता है।
  • परमादेश – इस लेख के अंतर्गत न्यायालय द्वारा किसी भी अधिकारी या संस्था को अपने कर्त्तव्यपालन करने का आदेश दिया जा सकता है।
  • प्रतिषेध – इस लेख के अंतर्गत न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति अथवा संस्था को उस कार्य को रोकता का आदेश दिया जा सकता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत न हो।
  • उत्प्रेक्षण लेख – इसका अर्थ है पूर्ण रूप से सूचित करना। इस लेख के अंतर्गत उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय से कोई भी रिकॉर्ड मांग सकता है।
  • अधिकार पृच्छा – अधिकार पृच्छा लेख किसी व्यक्ति के किसी पद पर रहने के अधिकार की जांच करने के उद्देश्य से जारी किया जाता है। इसके अंतर्गत मांग की जाती है कि वह उस अधिकार को प्रस्तुत करें, जिसके अंतर्गत वह पदाधिकारी बना है।

Q.5.संविधान के 73वें संशोधन की मुख्य विशेषताएं क्या है?
Ans:
पंचायतों से संबंधित 73वां संविधान संशोधन अधिनियम उसी संसद में दिसंबर 1992 में पारित हुआ और 20 अप्रैल, 1993 को इसे भारत के राष्ट्रपति की सहमति मिली। यह उसी वर्ष 24 अप्रैल से प्रभावी हो गया। यह संशोधन जनता को शक्तिसंपन्न करने पर आधारित है और पंचायतों को संवैधानिक गारंटी प्रदान करता है। इस अधिनियम के प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं –

  • यह पंचायतों की स्वशासी संस्थाओं के रूप में स्वीकार करता है।
  • यह पंचायत की आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजना बनाने हेतु शक्ति और उत्तरदायित्व प्रदान करता है।
  • यह 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले सभी राज्यों के मध्य और जिला स्तर पर समान त्रिस्तरीय शक्ति संपन्न पंचायतों की स्थापना के लिए प्रबंध करता है।
  • यह पंचायतों के संगठन, अधिकार और कार्यों, वित्तीय व्यवस्था तथा चुनावो एवं समाज के कमजोर वर्गों के लिए पंचायत के विभिन्न स्तरों पर स्थानों के आरक्षण के लिए दिशा – निर्देश देता है। संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम को मूलभूत लोकतंत्र की दिशा में क्रांतिकारी कदम कहा गया है। इससे स्वशासन में लोगों की भागीदारी के लिए संवैधानिक गारंटी प्रदान की गई है। सभी राज्यों में संशोधन के प्रावधानों के अनुकूल निश्चित विधान पारित किया गया है। इस प्रकार पंचायती राज व्यवस्था के इतिहास में पहली बार पंचायतों के उच्च स्तर में समानता आ गई है।

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