Jan -Aandolanon ka uday: राजनीतिक विज्ञान कक्षा 12 अध्याय 7 के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर को पढ़ें। सभी प्रश्न परीक्षा उपयोगी है। झारखण्ड अधिविध परिषद् राँची के पाठ्यक्रम के अनुसार सभी प्रश्नों को तैयार किया गया है।
Jan – Aandolanon ka uday: अति लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. जन – आंदोलनों का प्रजातंत्र में क्या महत्व है?
Ans: प्रजातंत्र में जन – आंदोलनों का अस्तित्व में आना व विभिन्न आधारों पर इनका उदय होना स्वाभविक है।प्रजातंत्रीय प्रक्रिया के दौरान व प्रजातंत्रीय वातावरण में जनता अपने हितों को समझना प्रारंभ करती है तथा उनके प्राप्त करने व विकसित करने के संगठन बनाते हैं व आवश्यकता पड़ने पर आंदोलन भी करते हैं। इस प्रकार से कह सकते हैं कि जन आंदोलन का उदय होना प्रजातंत्रीय प्रक्रिया का ही एक अंग है। इस प्रकार के आंदोलन का प्रजातंत्रीय प्रणालियों में अपना अलग महत्व है। प्रजातंत्र के हितों की रक्षा भी होती है।
Q.2. चिपको आंदोलनकारियों की मुख्य मांगे क्या थी?
Ans: चिपको आंदोलन मुख्य रूप से जंगल के अधिकारियों के पक्षपाती व्यवहार के खिलाफ था। इसके साथ जंगल के ठेकेदारों द्वारा ग्रावासियों को नशे की लत डालने के खिलाफ भी यह आंदोलन था। इन आंदोलनकारियों का उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ों की रक्षा करना भी था। इसके साथ अन्य कई और मुद्दे भी इस आंदोलन के कार्य – क्षेत्र में आ गये जैसे कि स्थानीय लोगों के अधिकार व स्थानीय प्राकृतिक स्रोतों की सुरक्षा।
Q.3. दलित पैंथर्स को एक जन आंदोलन के रूप में बताइएं।
Ans: दलित समाज को इतिहास में अनेक प्रकार के कष्टों से गुजरना पड़ा है। इनके साथ सामाजिक, आर्थिक, मानसिक व शारीरिक अन्याय होता रहा है। प्रजातंत्र के विकास का दलितों पर भी प्रभाव पड़ा। विशेषकर दलित युवाओं में अपने हितों, गरिमा व मान – सम्मान के प्रति जागरूकता जागी व इसको विकसित करने के लिए व अपने ऊपर होने वाले विभिन्न प्रकार के अन्याय व शोषण के खिलाफ लड़ने के लिए एक युवा संगठन बनाया। इसका प्रारंभ महाराष्ट्र से हुआ। इस संगठन का नाम दलित पैथर्स था। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य था जातिवाद, छुआछूत व इन आधारों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ लड़ना व भारतीय संविधान में इन कुरीतियों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रावधानों, सरकारी नीतियों व कानूनों को लागू करना था।
Q.4. ताडी विरोधी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
Ans: ताडी एक प्रकार का नशीला पदार्थ होता है जिसका प्रयोग आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के ग्रामों के पुरषों के द्वारा बड़ी मात्रा में हो रहा था जिससे परिवारों का आर्थिक संकट बढ़ रहा था व जिसकी सबसे अधिक मार महिलाओं पर पड़ रही थी। इसलिए ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं ने ताड़ी की पूर्ति व बेचने के खिलाफ एक संगठन बनाया व आंदोलन चलाया जिसको ताड़ी विरोधी आंदोलन कहते हैं। महिलाओं के इस आंदोलन व जागरूकता को दबाने के लिए ताडी के विक्रेताओं व ठेकेदारों ने हर प्रकार के प्रयास किये परंतु वे महिलाओं के साहस को कम न कर सके। अंत में ताडी के विक्रेताओं को हार माननी पड़ी। इस आंदोलन ने शराब के नशे के प्रयोग का भी विरोध किया।
Q.5. चिपको आंदोलन महिलाओं का आंदोलन क्यों कहा जाता है?
Ans: चिपको आंदोलन को महिला आंदोलन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया व पर्यावरण की सुरक्षा व पेड़ों की सुरक्षा के मुद्दो के साथ – साथ महिलाओं से जुड़े अनेक मुद्दों को भी उठाया। चिपको आंदोलन में महिलाओं ने शराब, ताड़ी, दहेज, महिलाओं पर पुरुषों के द्वारा किये गये शारीरिक व मानसिक शोषण जैसे मुद्दे भी उठाये। इस आंदोलन से महिलाओं ने वन अधिकारियों व ठेके द्वारा किये गये गलत कार्यों को भी उजागर किया तथा उनके परिवार के पुरुषों को नशे की लत डालकर किस प्रकार से उनके परिवारों को आर्थिक संकट में डाल रहे थे। अतः ये सभी प्रश्न महिलाओं को प्रभावित कर रहे थे जिससे महिलाओं ने इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा की।
Q.6.नर्मदा बचाओ आंदोलन से क्या अभिप्राय है?
Ans: नर्मदा बचाओ आंदोलन गुजरात में चलाया गया जिसका प्रभाव देश के अनेक क्षेत्रो मे हुआ। इसका उदेश्य सरदार सरोवर परियोजना के तहत होने वाले बांध के निर्माण का विरोध करना था। इस आंदोलन में विकास के नाम पर सरदार सरोवर परियोजना जैसी योजनाओ के ओचित्य पर सवाल उठाये। अनेक पर्यावरण से जुड़े लोग व समाजसेवी जैसे प्रमुख रूप से मेधा पाटेकर व अरुंधती राय इस आंदोलन के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए है। इनकी यह मांग भी है कि इस प्रकार की परियोजनाओं की कीमत का सही विश्लेषण किया जाना चाहिए। इसकी कीमत स्थानीय लोगों द्वारा सही जाने वाली कीमत को भी ध्यान में रखना चाहिए।
Q.7. ताडी विरोधी आंदोलन किस प्रकार से फैला?
Ans: ताड़ी की पूर्ति व बेचने के खिलाफ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं नेल्लौर में इकट्ठी हुई व सभी महिलाओं से इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की जिसका पूरे क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ा व महिलाओं का यह आंदोलन एक विशाल आंदोलन बन गया व लगभग 5000 ग्रामों में फैल गया। जगह-जगह सभाएं हुई व ताड़ी के नशे व शराब के नशे के खिलाफ प्रस्ताव पारित किये गये। इस आंदोलन ने माफिया, अधिकारियों व राजनीतिज्ञों के संबंधों को नंगा कर दिया।
Q.8. भारतीय किसान यूनियन के बारे में आप क्या समझते हैं?
Ans: किसान लंबे समय से शोषित व असंगठित रहा है। गरीब किसानों को आर्थिक स्थिति कमजोर रही है क्योंकि वह हर चीज अर्थात अच्छे बीज, खाद, पानी, बिजली व उसके द्वारा पैदा किये गये कृषि पदार्थों की कीमतों के लिए सरकार पर निर्भर रहा है। 1980 के बाद किसानों में भी जागरूकता आयी व उन्होंने भी राजनीतिज्ञों पर भरोसा किये बिना अपना अलग – अलग संगठन बनाया जिसका नाम भारतीय किसान यूनियन है। यह संगठन विभिन्न तरीकों से समय-समय पर सरकार को प्रभावित करता रहा है।
Q.9. ताड़ी विरोधी आंदोलन का प्रभाव बताइये।
Ans: ताड़ी विरोधी आंदोलन ग्रामीण क्षेत्र की कुछ महिलाओं ने प्रारंभ किया था जिनके प्रयास से यह एक जन – आंदोलन बन गया जिससे न केवल नशे के खिलाफ जनमत तैयार हुआ बल्कि अन्य सामाजिक बुराइयों को दूर करने का संकल्प इस आंदोलन के कारण लिया जा सका। इस आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता इस बात में है कि महिलाओं के अधिकारों के बारे में बहुत जागरूकता आयी व महिलाओं की स्थिति में एक बड़ा परिवर्तन आया। सरकार की नीतियों व कानूनों में भी परिवर्तन आ गया।इस आंदोलन का एक और मायने में प्रभाव व महत्त्व रहा की यह आंदोलन माफियाओं, ठेकेदारों सरकारी अधिकारियों व राजनीति के बीच के संबंधों को तोड़ा गया।
Q.10. शिक्षा और रोजगार में पुरुषों और महिलाओं की स्थिति का अंतर बताइए।
Ans: पुरुषों और महिलाओं की स्थिति में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अंतर है। स्त्री साक्षरता 2001 में 54.16 प्रतिशत थी जबकि पुरुषों की साक्षरता 75.85 प्रतिशत थी। शिक्षा के अभाव के कारण रोजगार, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग जैसे क्षेत्रो में महिलाओं की सफलता सीमित है।
Q.11. डॉ० भीमराव अम्बेडकर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Ans: डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर (1891-1956) – इनका जन्म 1891 में एक महान खानदान में हुआ। इन्होंने इंग्लैंड एवं अमेरिका से वकालत की शिक्षा ग्रहण की थी। 1923 में इन्होंने वकालत प्रारंभ की। 1926 से 1934 तक ये बंबई विधान परिषद के सदस्य रहे। इन्होंने गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लिया। 1942 में यह वायसराय के कार्यकारिणी परिषद के सदस्य नियुक्त किए गए। इन्हें भारत की सविधान प्रारूप समिति का अध्यन बनाया गया। इन्हें आजाद भारत का न्यायमंत्री भी बनाया गया। इन्होंने हिन्दू कोड बिल पास करवाया एंव संविधान में हरिजनों को आरक्षण दिलवाया। 1956 में इनका निधन हो गया।
Q.12. मंडल आयोग की महत्वपूर्ण सिफारिशों का उल्लेख कीजिए।
Ans: जनता पार्टी द्वारा नियुक्त मंडल की अध्यक्षता में आयोग की 1978 में ली गई तीन प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी –
(i) अन्य पिछड़ी जातियों (other (backward classes = OBCs) को सरकारी सेवाओ में 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जाए।
(ii) केंद्रीय तथा राज्य सरकारों द्वारा शासित वैज्ञानिक, तकनीकी तथा व्यवसायिक संस्थानों में अन्य पिछड़ी जातियों (OBCs) के लिए 27% आरक्षण निश्चित किया जाए।
(iii) अन्य पिछड़ी जातियों को आर्थिक सहयोग के लिए सरकार एक पृथक आर्थिक संस्था को चाहे तो निश्चित करें।
Q.13. महिला राष्ट्रीय आयोग का गठन कब हुआ? इसके अधीन कौन-कौन से उपायों को सम्मिलित किया जिनके द्वारा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो?
Ans: महिलाओं के अधिकार और कानूनी अधिकारों की सुरक्षा के लिए 1990 में संसद ने महिलाओं के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना के लिए कानून बनाया जो 31 जनवरी, 1992 को अस्तित्व में आया। इसके अंतर्गत कानून की समीक्षा, अत्याचारों की विशिष्ट व्यक्तिगत शिकायतों में हस्तक्षेप करना जहां कहीं भी उपयुक्त और संभव हो महिलाओं के हितों की रक्षा के उपाय सम्मिलित हैं।
Q.14. स्वतंत्रता के बाद महिलाओं की स्थिति में क्या – क्या परिवर्तन आया है?
Ans: स्वतंत्रता के बाद महिलाओं की स्थिति को असमानता से समानता तक लाने के जागरुक होते रहे है। वर्तमान काल में महिलाओं को पुरूषो के साथ समानता का दर्जा प्राप्त है। महिलाएं किसी भी प्रकार की शिक्षा या प्रशिक्षण को चुनने के लिए स्वतंत्र है परंतु ग्रामीण समाज में अभी भी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है जिसे दूर किया जाना चाहिए। यद्यपि कानूनी तौर पर महिलाएं पुरुषों के समान अधिकार रखती है परंतु आदि काल से चली आ रही पुरुष प्रधान व्यवस्था में व्यावहारिक रूप में महिलाओं के साथ अभी भी भेदभाव किया जाता है।
Q.15. उत्तराखंड में कुछ गांव में जंगलों की कटाई के विरोध में किस प्रकार एक प्रसिद्ध खनन का रूप ग्रहण किया?
Ans: 1973 में पेड़ों को बचाने के लिए सामूहिक कार्यवाही के एक असाधारण घटना ने वर्तमान उत्तराखंड राज्य के स्त्री – पुरुषों की एकजुटता ने वनों की व्यवसायिक कटाई का घोर विरोध किया। इस विरोध का मूल कारण था कि सरकार ने जंगलों की कटाई के लिए अनुमति दी थी। गांव के लोगों ने अपने विरोध को जताने के लिए एक नयी तरकीब अपनायी। इन लोगों ने पेड़ों को अपनी बाहों में घेर लिया ताकि उन्हें कटने से बचाया जा सके। यह विरोध आगामी दिनों में भारत के पर्यावरण आंदोलन के रूप में परिणत हुआ और ‘चिपको – आंदोलन’ के नाम से विश्वप्रसिद्ध हुआ।
Jan – Aandolanon ka uday: लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. चिपको आंदोलन का प्रारंभ किस प्रकार से हुआ?
Ans: चिपको आंदोलन उत्तराखंड में जंगल के अधिकारियों के पक्षपाती व्यवहार के कारण से प्रारंभ हुआ। जंगल के अधिकारियों ने ग्राम के लोगों को कृषि के यंत्र बनाने के लिए लकड़ी काटने की अनुमति नहीं दी जबकि उन्होंने खेल की सामग्री बनाने वाले ठेकेदारों को भूमिखंड ही दे दिया। इसके विरूद्ध ग्राम की महिलाओं ने अधिकारियों व ठेकेदारों के खिलाफ आंदोलन प्रारंभ कर दिया। यह आंदोलन मात्र कुछ लकड़ी की अनुमति न मिलने से ही नहीं था। वास्तव में इसमें कई प्रकार के मुद्दे उठाये गये थे। इसमें ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के साथ अन्याय का विषय था। ग्रामीणों को पूर्ति की जाने वाली शराब के विरुद्ध था व जंगल के अधिकारियों व ठेकेदारों के खिलाफ था। इसमें यह भी मांग थी कि स्थानीय स्रोतों पर स्थानीय लोगों का ही अधिकार हो।
Q.2. प्रजातंत्र में गैर – राजनीतिक आंदोलनों का महत्व व प्रासंगिकता समझाइये।
Ans: प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों का अत्यंत महत्व होता है। यह उम्मीद की जाती है कि राजनीतिक दल सरकार व जनता के बीच एक कड़ी का कार्य करती है व जनता की मांगों को व हितो को सरकार तक ले जाती है व सरकार की नीतियों व निर्णयों को जनता तक ले जाकर स्वस्थ जनमत का निर्माण का कार्य करती है। प्रजातंत्र में राजनीतिक दल ही एक प्रकार के राजनीतिक आंदोलनों के एजेंट होते हैं परंतु आज के भौतिकवादी व अवसरवादी युग में राजनीतिक दल के बल, सत्ता की राजनीतिक ही करने में लगे रहते हैं व जनहित से अनभिज्ञ रहते हैं। इस कारण से राजनीतिक दल जनता मैं अपने विश्वसनीयता खो चुके हैं। अतः जनता स्वयं अपने हितों की रक्षा के लिए स्वयं ही संगठित होकर अपने हितों की रक्षा करते हैं। सरकार व समाज का ध्यान अपनी मांगों की ओर दिलाते हैं।आवश्यकता पड़ने पर ये आंदोलन करते हैं, धरना देते हैं। वे प्रस्ताव पारित करते हैं। प्रजातंत्रीय प्रणाली के कारण जैसे-जैसे जागरूकता का विकास होता है गैर राजनीतिक आंदोलनों की संख्या बढ़ती जा रही है। अपने-अपने हितों के लिए हित समूह व दबाव समूह के रूप में संबंधित लोग इकट्ठे होते हैं व अपने विषयों पर विचार – विमर्श करते हैं व योजनाएं बनाते हैं व सफलता भी प्राप्त करते हैं। अतः इन गैर राजनीतिक आंदोलनों की प्रासंगिकता भी है व महत्व भी।
Q.3. भारतीय किसान यूनियन को भारतीय राजनीति में एक दबाव समूह के रूप में समझाइए।
Ans: भारत के किसानों के हितों पर जनमत तैयार करने व किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए सरकार की नीतियों को प्रभावित करने के लिए 1980 के दशक में भारतीय किसान यूनियन का गठन किया गया। भारत के किसानों का कोई प्रभावशाली संगठन न होने के कारण इनकी आर्थिक दशा अच्छी नहीं रही। किसान अपनी पैदावार के लिए प्राकृति पर निर्भर करते हैं व कृषि की पैदावार की कीमतों के लिए सरकार पर निर्भर करते हैं। किसान को अपनी उपज की कीमत को तय करने का अधिकार नहीं रहा है। आज किसान यूनियन एक प्रभावकारी दबाव समूह के रूप में कार्य कर रहा है जो न केवल किसानों को संगठित करने में सफल रहा बल्कि किसानों में अपने हितों के प्रति जागरूक करने में भी सफल रहा है। आज स्थानीय स्तर, क्षेत्रीय स्तर व राष्ट्रीय स्तर पर यहां तक अंतरराष्ट्रीय स्तर (डब्ल्यू . टी . ओ .) पर नीति निर्णय व कार्यक्रमों को किसान यूनियन प्रभावित करने में सफल रहा है। विधान सभाओं, संसद व मंत्रिमंडल में किसानों के रूप में मौजूद है। कृषि पदार्थों की कीमत को तय करने वाली संस्था में भी किसानों का प्रतिनिधित्व है।
Q.4. दलितों के विकास में दलित पैंथर्स की भूमिका समझाइये।
Ans: दलित पैंथर्स 1972 में महाराष्ट्र के युवकों द्वारा गठित युवा संगठन था। इसकी प्रेरणा दलित युवाओं ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर से ली थी। दलित पैंथर्स का मुख्य उद्देश्य दलितों पर उच्च जातियों के द्वारा किया गया शोषण व शारीरिक मानसिक अत्याचार को रोकना था। युवा पैंथर्स अर्थात दलित पैंथर्स से जुड़े युवाओं का मुख्य निशाना छुआछूत व लंबे समय से चली आ रही ऊंच – नीच की भावना को समाप्त करना था। दलित पैंथर्स ने देश के सभी दलितो को संगठित कर उनमें आत्म – सम्मान की भावना विकसित करने व शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस पैदा किया। दलित पैंथर्स का इस संबंध में सराहनीय योगदान है कि इन्होंने दलित समाज में जागरूकता पैदा की। दलित समाज के प्रयासों से सरकारों ने दलित विकास के लिए अनेक नीतियां व कार्यक्रम तैयार किए।
Q.5. सरदार सरोवर प्रोजेक्ट से क्या तात्पर्य है?
Ans: 80 के दशक के प्रारंभ में भारत के मध्य भाग में स्थित नर्मदा घाटी के विकास परियोजना के तहत मध्यप्रदेश, गुजरात व महाराष्ट्र से गुजरनेवाली नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 बीच की आकार के व 300 छोटे बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया। गुजरात के सरदार सरोवर व मध्य प्रदेश के नर्मदा सागर बांध के रूप में दो सबसे बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना का निर्धारण किया।
इस परियोजना के निम्न उद्देश्य थे – (i)पानी का पाने के लिए सिंचाई के लिए निश्चित करना।(ii) बिजली उत्पादन के उद्देश्य से।(iii) कृषि विकास को बढ़ाने व कृषि की पैदावार को बढ़ाने के लिए।
Q.6. सूचना के अधिकार के संबंध में आन्दोलन पर प्रकाश डालिए।
Ans: सूचना के अधिकार का अर्थ है जानने का अधिकार जो प्रजातंत्र के विकास में एक और महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। सूचना के अधिकार को प्राप्त करने के लिए आंदोलन का प्रारम्भ 1990 में हुआ व इसका नेतृत्व किया मजदूर किसान शक्ति संगठन ने। राजस्थान में काम कर रहे इस संगठन ने सरकार के सामने यह मांग रखी कि अकाल, राहत कार्य और मजदूरों को दी जाने वाली पगार के रिकार्ड का सार्वजनिक खुलासा किया जाये। धीरे -धीरे यह आंदोलन मजबूत हुआ और सरकार को इस आंदोलन की मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करनी पड़ी। 2004 में सूचना के अधिकार के विधेयक को सदन में रखा गया। जून, 2005 में विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी हासिल हुई।
Q.7. ताड़ी आंदोलन का महिलाओं की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा?
Ans: ताड़ी आंदोलन का प्रारंभ आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के कलिनारी मंडल स्थित ग्राम गुड़लुर की महिलाओं ने ग्राम के पुरुषों में ताड़ी के नशे की बढ़ती लत के खिलाफ किया। इस आंदोलन ने ताडी के नशे व शराब के नशे के पुरुषों व परिवारों पर बुरे प्रभाव के अलावा अन्य कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया। ग्राम की महिलाओं ने इकट्ठे होकर पहले अपनी आवाज ताड़ी व शराब की बिक्री करने वालो तक पहुंचाई व बाद में अपनी मांगों को व अपनी दशा को पुलिस प्रशासन व सरकार तक पहुंचाया जिसके परिणामस्वरूप सरकार को इस दिशा में सख्त कदम उठाने पड़े। इन आंदोलनकारियों की मुख्य मांग ताड़ी व शराब की बिक्री पर पूर्ण पाबंदी लगाना था। प्रेस के माध्यम से भी इस आंदोलन का काफी प्रचार हुआ। यह आंदोलन केवल महिलाओं से जुड़े इन मुद्दों तक ही सीमित ना रहा बल्कि इस आंदोलन में समाज की अन्य सभी समस्याओं को भी शामिल किया गया। परिणामस्वरूप इस आंदोलन से लोगों में सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूकता भी बढी। इससे लिंग समानता महिलाओं का आर्थिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक शोषण महिलाओं के प्रति हिंसा जैसे मुद्दों को सरकार की ओर से प्राथमिकता का स्थान मिला।
Q.8. ताड़ी विरोधी आंदोलन का प्रभाव बताएं।
Ans: ताड़ी विरोधी आंदोलन ग्रामीण क्षेत्र की कुछ महिलायें ने प्रारभ किया था जिनसे प्रयास से यह एक जन आंदोलन बन गया जिससे न केवल नशे के खिलाफ जनमत तैयार हुआ बल्कि अन्य सामाजिक बुराइयों को दूर करने का संकल्प इस आंदोलन के कारण लिया जा सका। इस आंदोलन से सबसे बड़ी सफलता इस बात में है कि महिलाओ के अधिकारों के बारे में बहुत जागरूकता आई व महिलाओ की स्थिति में एक बडा परिवर्तन आया। सरकार की नीतियों व कानूनो में भी परिवर्तन आ गया।
Q.9. मण्डल आयोग की महत्वपूर्ण सिफारिशों का उल्लेख कीजिए।
Ans: जनता पार्टी द्वारा नियुक्त मण्डल की अध्यक्षता में आयोग की 1978 में ली गई तीन प्रमुख सिफ़ारिशे निम्नलिखित है:
- अन्य पिछड़ी जातियों को सरकारी सेवाओ में 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जाए।
- केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों द्वारा शासित वैज्ञानिकों, तकनीकी तथा व्यावसायिक संस्थाओं में अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण निश्चित किया जाए।
- अन्य पिछड़ी जातियों को अध्यक्ष आर्थिक सहयोग के लिए सरकार एक पृथक आर्थिक संस्था को चाहे तो निश्चित करें
Q.10.जन आंदोलन की कमियों एवं त्रुटियों की संक्षिप्त वर्णन दीजिए।
Ans: जन आंदोलनों द्वारा लामबंद की जाने वाली जनता सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तथा अधिकार इन वर्गों से संबंध रखती है जन आंदोलनों द्वारा अपनाए गए तौर तरीकों से मालूम होता है कि रोज मर जा की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में इन वंचित समूहों को अपनी बात कहने का पर्याप्त मौका नहीं मिलता था किंतु कुल मिलाकर सार्वजनिक नीतियों पर इन आंदोलनों का कोई असर काफी सीमित रहा है इसका एक कारण तो यह है कि समकालीन सामाजिक आंदोलन किसी एक मुद्दे के एक बेटे को ही जनता को लामबंद करते हैं इस तरह वे समाज के किसी एक वर्ग का ही प्रतिनिधित्व कर पाते हैं इस सीमा के चलते सरकार इन आंदोलनों की जायज मांगों को पढ़ाने का साहस कर पाती है लोकतांत्रिक राजनीति वंचित वर्गों के व्यापक गठबंधन को लेकर ही चलती है जबकि जन आंदोलनों के नेतृत्व में यह बात संभव नहीं हो पाती राजनीतिक दलों को जनता के विभिन्न वर्गों के बीच सामंजस्य बिठाना पड़ता है जन आंदोलनों के नेतृत्व स्वर्गीय के प्रश्न को कायदे से नहीं संभाल पाता राजनीतिक दलों ने समाज के वंचित और अधिकारी ने लोगों के मुद्दे पर ध्यान देना छोड़ दिया है पर जन आंदोलन के नेतृत्व में ऐसे मुद्दों को सीमित ढंग से ही उठा पाता है।
Jan – Aandolanon ka uday: लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. पर्यावरण आंदोलन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
Ans:स्वतंत्र भारत को वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए अनेक स्थानों पर अभ्यास अभयारण्य की स्थापना की गई और इन अभयारण्यों में सभी प्रकार के जीवो की सुरक्षा की व्यवस्था की गई जिससे जंगलों की संख्या बढ़े और वातावरण स्वच्छ हो। पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई तथा सर्वत्र वृक्षारोपण कार्य प्रारंभ किया गया वृक्षों की कटाई रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में चिपको आंदोलन चलाया गया। यह आंदोलन सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में चलाया गया विभागीय विकास के लिए कृषि क्षेत्र में नए बीजों खाद्य और अन्य संसाधनों का विकास किया जा रहा है सिंचाई के लिए विभिन्न बांधो की स्थापना की गई इन बांधों से सिंचाई तथा विद्युत उत्पादन दोनों का कार्य चलने लगा है भारत में विकास की क्रांति के संदर्भ में कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति का नारा दिया गया और अन्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की गई। सड़कों के विकास के लिए यातायात के दूसरा में क्रांति लाई गई और चारों तरफ से सड़कों का जाल बिछाया गया रेलवे लाइनों को बचाकर रेल का विस्तार किया गया दूर संचार के साधनों में क्रांति लाकर घर-घर तक टेलीफोन कनेक्शन किए गए तथा इंटरनेट की व्यवस्था की गई। वाणिज्य उद्योग के क्षेत्र में क्रांति ला कर बड़े बड़े उद्योगों की स्थापना की गई और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बाजार को क्लोज कर यूरोपीय बाजार में दाखिला किया गया स्वतंत्रता के बाद भारत में विभिन्न क्षेत्र का क्रांति लाकर विकास किया गया वन्य विस्तार एवं वृक्षारोपण क्रांति जल योजना के संबंध में क्रांति कृषि विकास में हरित क्रांति दूर परिवहन के क्षेत्र में क्रांति दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति किस प्रकार भारत की रक्षा के लिए प्रमंडल बचाओ अभियान के अंतर्गत भारत की प्रकृति एवं वातावरण सुरक्षा व्यापक रूप से की जा रही है।
Q.2. राजनीतिक व गैर राजनीतिक आंदोलन का महत्व व पासिंग प्रासंगिकता समझाएं।
Ans: प्रजातंत्र सरकार का वह रूप है जिसमें व्यक्ति को अधिकतम स्वतंत्रता प्राप्त होती है व्यक्ति अपने को व्यक्त कर सकता है अपने विचार अपनी मांग रख सकता है वह अपने हितों की रक्षा के लिए संगठित भी हो सकता है प्रजातंत्र में व्यक्ति अपने हितों का प्रचार करने के लिए संगठन भी बनाते हैं यह संगठन दो प्रकार के होते हैं- राजनीतिक संगठन व गैर राजनीतिक संगठन। राजनीतिक संगठनों के माध्यम से विभिन्न हीत समूह राजनीति में हिस्सा लेते हैं वह चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं जबकि गैर राजनीतिक संगठन और व्यक्तियों का समूह होता है जो अपने हितों को प्राप्त करने के लिए सीधे राजनीति में भाग नहीं लेते बल्कि राजनीतिक दलों व राजनीतिक निर्णय को प्रभावित करते हैं। आजादी के बाद से भारत में संसदीय लोकतंत्र काम कर रहा है वह चुनाव प्रक्रिया का दौर चल रहा है विभिन्न प्रकार के दबाव समूह इस बीच अस्तित्व में आए हैं जो अपने हितों की रक्षा के लिए कार्य कर रहे हैं अनेक हित समूह ने अपने संगठनात्मक आंदोलन से चुनावी राजनीति में हिस्सा लेकर अपने हिस्से को प्राप्त करने का प्रयास किया है इन्हें राजनीतिक आंदोलन कहते हैं इसके अलावा किसान यूनियन महिला संगठन विद्यार्थी संगठन व अन्य अनेक प्रकार के संगठन है जो इस समूह में अनेक राजनीतिक आंदोलनों का वर्णन किया गया है जिन के अध्ययन से केवल विभिन्न प्रकार के मुद्दों का ज्ञान होता है चिपको आंदोलन व तारीख आंदोलन व नर्मदा बचाओ आंदोलन ने समाज के ना केवल निश्चित मुद्दे भी उठाए गए हैं जिससे समाज को एक नई दिशा मिली है इस प्रकार ना केवल राजनीतिक संगठनों का आज के प्रजातंत्र में महत्व है बल्कि विभिन्न राजनीतिक संगठनों का महत्व है वहीं का अध्ययन विश्लेषण प्रासंगिक है जिससे भारतीय प्रजातंत्र मजबूत होगा ना केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि स्थानीय स्तर पर भी।
Q.3.ताड़ी आंदोलन आंध्र प्रदेश के कई सामाजिक विषयों को शामिल किया गया। समझाएं।
Ans: ताड़ी आंदोलन आंध्र प्रदेश का बहुत चर्चित आंदोलन रहा है जिसमें चित्तूर जिले के ग्राम गुंडलुरु गांव की महिलाओं ने अपने ग्राम में ताड़ी की बिक्री पर पाबंदी लगाने की मांग करते हुए एकजुट हो गई तथा ग्राम में ताड़ी की बिक्री का विरोध किया जिसकी सूचना मिलने पर साड़ी के ठेकेदारों ने महिलाओं पर शारीरिक आक्रमण किया परंतु इस पर भी महिलाओं का शासक का रहस्य काम नहीं हुआ जिसके आगे ठेकेदार व अन्य के गुंडों की हार मानने पड़ी इस आंदोलन में महिला संगठनों के आंदोलन केवल ताड़ी व शराब की बिक्री के खिलाफ ही नहीं ले रहे थे बल्कि उनके सामने अन्य सामाजिक मुद्दे पर महिलाओं ने बड़े ही साहस के साथ शराब के ठेकेदारों तथा माफिया समूहों के बीच के संबंधों को उजागर किया व राजनीतिज्ञ के संबंधों को उजागर किया जो एक बड़ा समूह था जिसके माध्यम से ग्राम के पुरुष वर्ग का शोषण हो रहा था जिसका बुरा प्रभाव महिलाओं पर पड़ रहा था नेल्लोर जिले की महिलाओं का यह आंदोलन जल्दी बड़े भाग में फैल गया तारी विरोधी आंदोलन का नारा बहुत साधारण था ‘ताड़ी की बिक्री बंद करो’ लेकिन इस साधारण नारी के क्षेत्र के व्यापक सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक मुद्दों तथा महिलाओं के जीवन को गहराई से प्रभावित किया ताड़ी विरोधी आंदोलन महिला आंदोलन बन गया। इस आंदोलन के मुख्य मुद्दे ने नशाबंदी ठेकेदारों प्रशासन के बीच संबंध महिलाओं पर हिंसा महिलाओं का शारीरिक शोषण आर्थिक संकट दहेज प्रथा इस आंदोलन के कारण महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता पैदा हो गई महिलाओं की विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर विचार विमर्श करने के लिए एक मंच प्राप्त हुआ महिला आंदोलन में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी को भी विकसित किया 73 व 74 वे संविधान के द्वारा महिलाओं की स्थानीय समस्याओं में 33% भागीदारी निश्चित कर आंदोलन का ही परिणाम है।
Q.4. नर्मदा बचाओ आंदोलन का मूल्यांकन कीजिए।
Ans:सरकार द्वारा 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय पुनर्वास निधि को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है परंतु सफलता के साथ ही नर्मदा बचाओ आंदोलन को बांध के निर्माण पर रोक लगाने की मांग उठाने पर तीखा विरोध भी झेलना पड़ा है आल्सो का कहना है कि आंदोलन का अड़ियल रवैया विकास की प्रक्रिया पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बांध का काम आगे बढ़ाने की हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह आदेश भी दिया गया है कि प्रभावित लोगों का पुनर्वास सही ढंग से किया जाए नर्मदा बचाओ आंदोलन 2 से भी ज्यादा दशकों तक चला आंदोलन ने अपने मांग रखने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया आंदोलन अपने न्याय पालिका से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक सफाई आंदोलन की समझ को जनता के सामने रखने के नेतृत्व ने सार्वजनिक लिए तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का प्रयोग किया परंतु विपक्षी दलों सहित मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के बीच आंदोलन कोई खास जगह नहीं बना पाया वास्तव में नर्मदा आंदोलन की विकार तो देखा भारतीय राजनीति में सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी को बयान करती है उल्लेखनीय है कि नए दशक के अंत तक पहुंचते-पहुंचते नर्मदा बचाओ आंदोलन कई अन्य स्थानीय समूह और आंदोलन भी आ जुड़े यह सभी आंदोलन अपने अपने क्षेत्रों में विकास की वृहद परियोजनाओं का विरोध करते थे इस समय के आसपास नर्मदा बचाओ आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों से चल रहे संधर्मा आंदोलन के अंग बन गए। मेघा पाटेकर अन्य कई पर्यावरण से जुड़े लोग इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
Q.5.भारतीय किसान यूनियन को भारतीय राजनीति में एक दबाव समूह के रूप में समझाएं।
Ans:भारत के किसानों के हितों पर जनमत तैयार करने व किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए सरकार की नीतियों को प्रभावित करने के लिए 1980 के दशक में भारतीय किसान यूनियन का गठन किया गया भारत के किसानों का कोई प्रभावशाली संगठन ना होने के कारण इनकी आर्थिक दशा अच्छी नहीं रही किसान अपने प्रभाव के लिए प्रकृति पर निर्भर करते हैं तथा कृषि की पैदावार की कीमतों के लिए सरकार पर निर्भर करते हैं किसान को अपने ऊपर की कीमत को तय करने का अधिकार नहीं रहा आज किसान यूनियन एक प्रभाव कारी दबाव समूह के रूप में कार्य कर रहा है जो ना केवल किसानों को संगठित करने में सफल रहा बल्कि किसानों में अपने हितों के प्रति जागरूक करने में भी सफल रहा है आज स्थानीय स्तर पर राष्ट्रीय स्तर पर यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निबंध तथा कार्यक्रमों को किसान यूनियन प्रभावित करने में सफल रहा है विधानसभा व सांसद व मंत्रिमंडल में किसानों के रूप में मौजूद है कृषि पदार्थों की कीमत को तय करने वाली संस्था में भी किसानों का प्रतिनिधित्व है।