दो ध्रुवीयता का अंत Do Dhurviyata Ka Ant | Class 12 Political Science Chapter 2

Do Dhurviyata Ka Ant: पहले के अध्याय में हमने जाना शीतयुद्ध के बारे में। दो महाशक्तियाँ सोवियत संघ और अमेरिका दो अलग-अलग विचारधाराओं के समर्थक थे। अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे देशों के साथ गठबंधन किया और दुनिया दो ध्रुवों में बट गयी। इस अध्याय में हम जानेंगे दो ध्रुवीय व्यवस्था क्या थी? इसके अंत और कारन तथा विश्व पर इसका क्या प्रभाव पड़ा।

दो ध्रुवीयता का अंत: महत्वपूर्ण तथ्य

👉बर्लिन का दीवार: यह दीवार पूँजीवादी और साम्यवादी दुनिया के बिच विभाजन का प्रतिक थी। इस दीवार का निर्माण 1961 में की गयी थी जो बर्लिन को पूर्वी और पक्षिमी भागों में बाटती थी। इस दीवार की लम्बाई 150 किलोमीटर से भी ज्यादा थी। इसे शीतयुद्ध का प्रतीक माना जाता है। यह 28 वर्षो तक खड़ी रही। 9 नवंबर, 1989 में जनताओं ने इसे तोड़ दिया। यह सोवियत संघ के विघटन की शुरुआत थी।

👉1990 में बर्लिन का एकीकरण हो गया।

👉25 दिसम्बर, 1991 को सोवियत संघ का विघटन को गया।

👉सोवियत संघ का जन्म: 1917 की रुसी बोल्शेविक क्रांति के बाद समाजवादी सोवियत गणराज्य संघ (U.S.S.R) अस्तित्व में आया।

👉सोवियत प्रणाली: (1) सोवियत प्रणाली पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध तथा समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित थी। (2) सोवियत प्रणाली में नियोजित अर्थव्यवस्था थी। (3) इसमें कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा था। (4) इसमें न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधा थी। (5) इसमें बेरोजगारी नहीं थी। (6) इसकी संचार प्रणाली बहुत ही उन्नत थी। (7) मिलकियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व होना। उत्पादन के साधनों पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण होना। 

👉दूसरी दुनिया: शीतयुद्ध के दौरान पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश सोवियत संघ के खेमे में सम्मिलित हो गए तथा अपनी अर्थव्यवस्था को समाजवादी व्यवस्था के अनुरूप ढलने दिया। इन्हें ही समाजवादी खेमें के देश या दूसरी दुनिया कहा गया। 

👉पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोस्त: 1980 के दशक में सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति ने ये दो विकास की नीतियाँ लायी थी जो आगे सोवियत संघ के विघटन का कारण बनी। पेरेस्त्रोइका का अर्थ होता है पुनर्रचना और ग्लासनोस्त का अर्थ होता है खुलापन।

👉विघटन की घोसना: 1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों ने तथा रूस, यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोसना कर दी।

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👉सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण: (1)सोवियत संघ की सरकार नागरिकों की राजतीनितक और आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा न कर सकी। (2) कम्युनिस्ट पार्टी का लम्बे समय तक शासन किया और यह अब नागरिको को प्रति जवबदेह नहीं रह गयी थी। (3) संसाधनों का अधिक उपयोग परमाणु हथियारों के उत्पादन में लगाने से उपभोक्ता वस्तुओं की कमी आ गयी। (4) प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में पक्षिमी देशों के मुकाबले पीछे रहना। (5) गोर्बाचेव द्वारा किये गए सुधर नीतियों का विपरीत प्रभाव होना। (6) लंबे समय तक सोवियत अर्थव्यवस्था का गतिरुद्ध रहना। 

👉सोवियत संघ के विघटन के परिणाम : (1) सोवियत संघ के विघटन से शीतयुद्ध की समाप्ति हुयी। (2) दो ध्रुवीय विश्व का अंत हुआ और अमेरिकी वर्चस्व का आरंभ हुआ। (3) दो महाशक्तियों के बिच हथियारों की होड़ की समाप्ति हुयी। (4) सोवियत खेमे का अंत हुआ और 15 नये देश अस्तित्व में अये। (5) रूस सोवियत संघ का उतराधिकारी बना। 

👉शॉक थेरेपी: इसका शाब्दिक अर्थ होता है आघात पहुँचकर उपचार करना। साम्यबाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्यों को विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के मॉडल को अपनाने को कहा गया। इस मॉडल को ही सॉक थेरेपी कहा गया।

👉शॉक थेरेपी की विशेषताएँ : (1) राज्य की सम्पदा का निजीकारण करना।  (2) सामूहिक फार्म के जगह निजी फार्म।  (3) मुक्त व्यापर व्यवस्था को अपनाना। (4) मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता। (5) पक्षिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव। इसमें पूंजीवादी के अतरिक्त किसी भी व्यकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया। 

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👉शॉक थेरेपी के परिणाम: (1) यह मॉडल पूरी तरह से असफल रही। रूस का औद्योगिक ढाँचा डगमगा गया। (2) रुसी मुद्रा रूबल में गिरावट आयी। (3) समाज कल्याण की पुराणी व्यवस्था नष्ट हो गयी। (4) 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी कंपनियों को औने-पौने दामों में बेचा गया जिसे इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल कहा जाता है। (5) आर्थिक विसमता बढ़ी। (6) जनता को खाद्दान्न संकट का सामना करना पड़ा। (7) माफिया वर्ग का उदय हुआ। (8) कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियाँ जिससे सत्तावादी राष्ट्रपति शासन का कायम होना।

👉पूर्व-साम्यवादी देश और भारत: (1) पूर्व-साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है, विषेशकर रूस के साथ मजबूत है। (2) दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। (3) दोनों देश सहस्तित्व, सामूहिक सुरक्षा, क्षेत्रीय संप्रभुता, स्वतंत्र विदेश निति, अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल, संयुक्त राष्ट्र संघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वाश रखते है। (4) 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय हस्ताक्षर किये है। (5) भारत रुसी हथियारों का खरीदार है। (6) भारत रूस से तेल का भी आयात करता है। (7) परमाण्विक तथा अंतरिक्ष योजनाओं में रूस भारत की मदद करता है। (8) 2016 में ब्रिक्स (BRICS) सम्मलेन का आयोजन भारत के गोवा में की गयी। इस सम्मलेन में रूस-भारत के बिच 17वां सम्मेलन था जिसमे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पुतिन के बिच रक्षा, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अभियान समेत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने एवं उनके लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल दिया गया।

👉भारत और सोवियत संघ संबंध:
(1) आर्थिक संबंध- सोवियत संघ ने भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की ऐसे वक्त में मदद की जब ऐसी मदद पाना मुश्किल था। सोवियन संघ ने भिलाई, बोकारो, विशाखापट्न्नम के इस्पात कारखानों तथा भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स जैसी मशीनरी संयंत्रों के लिए आर्थिक और तकनिकी सहायता दी। भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी तब सोवियत संघ ने रूपए को माध्यम बनाकर भारत के साथ व्यापर किया।
(2) राजनीतिक- सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के रुख को समर्थन दिया। सोवियत संघ ने भारत के कई संघर्षो विशेषकर 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान मदद की।
(3) सैन्य संबंध- भारत को सोवियत संघ ने ऐसे वक्त में सैनिक साजो-सामान दिए जब पूरा विश्व अपने सैन्य टेक्नोलॉजी देने को त्यार नहीं था। सोवियत संघ ने भारत के साथ कई ऐसे समझौते किये जिससे भारत संयुक्त रूप से सैन्य उपकरण त्यार कर सका।
(4) संस्कृति- हिंदी फिल्म और भारतीय संस्कृति सोवियत संघ में लोकप्रिय थे। बड़ी संख्या में भारतीय लेखक और कलाकारों ने सोवियत संघ की यात्रा की। 

Do Dhurviyata Ka Ant: एक अंक वाले प्रशोत्तर

  • बर्लिन के दीवार कब खड़ी की गयी थी?- 1961 में। 
  • बर्लिन की दीवार किस वर्ष वहाँ की जनताओं ने गिरा दिया? – 1989 में। 
  • जर्मनी का एकीकरण किस वर्ष हुआ था? – 1990 में। 
  • सोवियत संघ का बिघटन कब हुआ था ?- 1991 में। 
  • वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति कौन है?- डोनाल्ड ट्रंप। 
  • 1917 में रूस में समाजवादी राज्य की स्थापना किसने की थी?- व्लादिमीर लेनिन। 
  • दूसरी दूनिया के देशों में किस प्रकार के देश आते है? – साम्यवादी। 
  • पहली दुनियाँ के देशों में किस प्रकार के देश आते है?- पूँजीवादी 
  • ग्लासनोस्त और परिस्त्रोईका का मंत्र किसने दिया था? मिखाइल गोर्बाचेव। 
  • सोवियत संघ के विभाजन के बाद रूस का प्रथम नोर्वाचित राष्ट्रपति कौन था? बोरिस येल्तसिन। 
  • 1991 में सोवियत संघ के विघटन के उपरांत कौन सा देश महाशक्ति के रूप में उभरा? अमरीका। 
  • सोवियत संघ का अंतिम राष्ट्रपति कौन था?- मिखाइल गोर्बाचेव। 
  • साम्यवादी खेमे का नेतृत्व कौन- सा देश कर रहा था?- सोवियत संघ। 
  • समाजवादी सोवियत गणराज्य की स्थापना कब हुयी थी?- 1917 में। 
  • समाजवादी सोवियत गणराज्य के संस्थापक कौन थे? व्लादिमीर लेलिन। 
  • विश्व में साम्यवाद के प्रेरणा स्रोत किसे माना जाता है?- व्लादिमीर लेलिन।
  • कितने गणराज्यों को मिलकर सोवियत संघ का निर्माण किया गया था?- 15 गणराज्य। 
  • व्लादिमीर लेलिन के बाद उसका राजनितिक उतराधिकारी कौन बना?- जोजेफ स्टालिन। 
  • क्यूबा मिसाइल संकट के समय सोवियन संघ का राष्ट्रपति कौन थे?- निकिता ख्रुश्चेव। 

Do Dhurviyata Ka Ant: महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न- सोवियत प्रणाली क्या थी?
उतर- 1917 में रुसी क्रांति के बाद साम्यवादी सोवियत संघ की स्थापना हुयी। साम्यवाद की स्थापन पूँजीवादी अर्थयवस्था के विरोध में हुयी थी। इसका मूल उद्देश्य निजी संपत्ति की संस्था को समाप्त करने और समाज को समानता के सिद्धांत पर सचेत रूप से रचाने की सबसे बड़ी कोसिस थी। सोवियत प्रणाली के निर्माताओं के राज्य में एकल पार्टी को प्राथमिकता दी गयी। इसमें विपक्षी दाल के लिए कोई स्थान नहीं था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश सोवियत प्रणाली को अपनाया क्योकि सोवियत संघ ने इन्हे फांसीवाद ताकत से मुक्त कराया था। सोवियत प्रणाली को अपनाने वाले देश ही दूसरी दुनियाँ कहलाये। इसका नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। 

प्रश्न- नयी विश्व व्यवस्था क्या है?
उत्तर- सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका एक मात्र महाशक्ति के रूप में उभरा और धीरे-धीरे विश्व अर्थव्यवस्था पर उसका वर्चस्व स्थापित हो गया। 1991 के बाद सोवियत संघ के पतन के बाद बढ़ाता हुआ अमरीकी वर्चस्व जिस व्यवस्था की पुष्टि करता है उसे ही ‘नयी विश्व व्यवस्था’ के नाम से जाना जाता है।   

प्रश्न- ग्लासनोस्त व् पेरेस्त्रोइका का क्या अर्थ है?
उत्तर- मार्च 1985 में मिखाइल गोर्बाच्योव सोवियत संघ के नेता बने। उन्होंने देश में नई सोच की शुरुआत की। उनका उद्देश्य था –
लोगों की आज़ादी लौटाना और अर्थव्यवस्था को सुधारना
इसके लिए उन्होंने दो मुख्य नीतियाँ लागू कीं:

  1. ग्लासनोस्तखुलेपन की नीति (मतलब – सरकार और समाज में पारदर्शिता)
  2. पेरेस्त्रोइकाआर्थिक नव-निर्माण की नीति (मतलब – अर्थव्यवस्था में सुधार और बदलाव)

गोर्बाच्योव ने उस पुरानी व्यवस्था को खत्म किया जो लेनिन के समय से चली आ रही थी, जिसमें लोगों की निजी आज़ादी और निजी संपत्ति पूरी तरह खत्म कर दी गई थी। उनका मानना था कि समाजवाद को बचाने और सोवियत संघ को आगे बढ़ाने के लिए यह बदलाव ज़रूरी है।  

प्रश्न- सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारणों का वर्णन करे। 
उतर- सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण कई थे। सबसे पहले, कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 साल तक शासन किया, लेकिन अब वह जनता के प्रति जवाबदेह नहीं रही। यह पार्टी लोगों की राजनीतिक और आर्थिक उम्मीदों को पूरा नहीं कर सकी। सोवियत संघ एक साधन-संपन्न देश था, लेकिन अधिकतर संसाधन सेना और हथियारों पर खर्च हुए, जिससे घरेलू चीजों की भारी कमी और महंगाई हो गई। इसका नतीजा भुखमरी और जनता का विरोध था।

सोवियत संघ में कुल 15 गणराज्य थे, लेकिन सरकार का ध्यान केवल रूस पर रहता था, जिससे अन्य राज्यों में असंतोष बढ़ा और लोगों ने सरकार पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। साथ ही, सोवियत संघ ने अपने संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा अपने सहयोगी देशों पर खर्च किया, जिससे उसकी अपनी अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ गया

जैसे-जैसे लोगों को पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में जानकारी मिली, वे समझ गए कि वे पीछे रह गए हैं। सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई थी, और भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया था। इसे सुधारने के लिए ग्लासनोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (आर्थिक सुधार) जैसी नीतियाँ लाई गईं, लेकिन इनका नकारात्मक असर हुआ। अंततः इन सभी कारणों से 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया।

प्रश्न- सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुआ? वर्णन करे। 
उतर- 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया, और इसके साथ ही विश्व राजनीति में बड़े परिवर्तन आए। सबसे पहले, सोवियत संघ और अमेरिका के बीच चल रहा शीतयुद्ध समाप्त हो गया, जिससे हथियारों की होड़ भी खत्म हो गई। इससे दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध के खतरे से बच गई

सोवियत संघ के विघटन से द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था का अंत हो गया और एकध्रुवीय व्यवस्था की शुरुआत हुई, जिसमें अमेरिका एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा। अब दुनिया के ज़्यादातर देश अमेरिकी प्रभाव में आ गए, और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) भी अमेरिका के प्रभाव में काम करने लगीं।

सोवियत संघ कुल 15 गणराज्यों से मिलकर बना था, और उसके टूटने के बाद ये सभी गणराज्य स्वतंत्र देश बन गए। इनमें से रूस को सोवियत संघ का उत्तराधिकारी माना गया।

इसके अलावा, सोवियत संघ समाजवादी विचारधारा का प्रमुख समर्थक था, जिसका उद्देश्य पूँजीवाद का विरोध करना था। लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद समाजवाद की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे, और इसकी शक्ति धीरे-धीरे कमजोर पड़ गई।

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प्रश्न- ‘शॉक थेरेपी’ क्या थी? या, ‘शॉक थेरेपी’ से आप क्या समझते है?
उतर- सोवियत संघ के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों को पूँजीवादी व्यवस्था में परिवर्तित करने की प्रक्रिया शुरू हुई। इस परिवर्तन के लिए विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने एक विशेष आर्थिक मॉडल तैयार किया, जिसे ‘शॉक थेरेपी’ कहा गया। ‘शॉक थेरेपी’ का शाब्दिक अर्थ है – झटका देकर इलाज करना, अर्थात एक साथ बड़े बदलाव लागू कर देना। सोवियत संघ के प्रभाव वाले देशों की अर्थव्यवस्था उस समय बेहद कमजोर हो चुकी थी। इन देशों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए इस मॉडल को एकमात्र समाधान के रूप में प्रस्तुत किया गया।

इस नीति का मुख्य उद्देश्य था सोवियत काल की समूची आर्थिक संरचना को समाप्त कर देना और उसकी जगह पूँजीवादी ढांचे को स्थापित करना। इस प्रक्रिया में राज्य की संपत्ति का निजीकरण, उद्योगों और सेवाओं में व्यावसायिक स्वामित्व की शुरुआत, तथा सामूहिक खेती (collective farming) को समाप्त कर निजी खेती की व्यवस्था लागू की गई। खेती और अन्य क्षेत्रों में पूँजीवादी पद्धति को अपनाया गया।

इस मॉडल में यह विश्वास किया गया कि ज्यादा से ज्यादा व्यापार करके ही आर्थिक विकास संभव है। इसलिए मुक्त व्यापार, वित्तीय उदारीकरण, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता, और पूँजी के वैश्विक प्रवाह को बढ़ावा देना इस नीति के महत्वपूर्ण हिस्से थे। इस प्रकार ‘शॉक थेरेपी’ के माध्यम से इन देशों को तेजी से साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर ले जाया गया।

प्रश्न- ‘शॉक थेरेपी’ के परिणामों का वर्णन करे? या,
क्या ‘शॉक थेरेपी’ साम्यवाद से पूँजीवाद को ओर संक्रमण का बेहतर तरीका था?

उतर- विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ‘शॉक थेरेपी’ को साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण का बेहतर तरीका माना लेकिन इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा। यह मोडल नागरिकों को किये गए वादे को पूरा न कर सकी। जहाँ तक की साम्यवादी देशों के अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से तहस-नहस कर दी और जनता को बर्बादी की मर झेलनी पड़ी। रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा गया था। लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों को बेचा गया। आर्थिक ढाँचे का पुननिर्माण सरकार द्वारा निर्देशित औद्योगिक नीति के बजाय बाजार की तकते कर रही थी, इसलिए यह कदम सभी उद्योगों को मटियामेट करने वाला साबित हुआ। महत्वपूर्ण उद्योगों को औने-पौने दामों में निजीकंपनियों के हाथों नीलम कर दी गयी, इस कारन इसे इतिहास का सबसे बड़ा ‘गराज-सैल’ भी कहाँ जाता है। हालाँकि इस महाबिक्री में भाग लेने के लिए नागरिकों को भी अधिकार पत्र दिए गए थे लेकिन अधिकांश नागरिकों ने अपने अधिकार पत्र कालाबाजारियों के हाथों बेंच दिए क्योंकि उन्हें धन की जरुरत थी। रुसी मुद्रा रूबल में गिरावट आयी तथा मुद्रा स्फीति ज्यादा बड़ गयी। सामूहिक खेती बंद हो चुकी थी और अब लोगो के लिए खाद्दान सुरक्षा मौजूद नहीं था इस कारण रूस में खाद्दान की आयात की जाने लगी। समाजीक कल्याण की पुराणी व्यवस्था नष्ट हो चुकी थी। सरकारी रियायतों के खात्मे से ज्यादातर लोग गरीबी में पड़ गए थे। कई देशों में माफिया वर्ग का उदय हुआ और उसने अधिकतर आर्थिक गतिविधियों को अपने कब्जे में ले लिए। अमीर और गरीब लोगों के बीच की आर्थिक दूरी बहुत बढ़ गई। कई देशों में जल्दीबाज़ी में संविधान बनाए गए, जिनमें राष्ट्रपति को बहुत ज़्यादा ताकत दे दी गई। इसी वजह से कुछ देश तानाशाही की ओर बढ़ गए और संसद एक कमजोर संस्था बनकर रह गई

प्रश्न- शीतयुद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंधों का वर्णन करे। 
उत्तर- शीतयुद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुत गहरे थे। इससे आलोचकों को यह कहने का मौका मिला की भारत सोवियत खेमे का हिस्सा था। इस दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुआयामी थे। 

(क) आर्थिक संबंध- सोवियत संघ ने भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की ऐसे वक्त में मदद की जब ऐसा मदद पाना मुश्किल था। सोवियत संघ ने भिलाई, बोकारो और विशाखापट्टनम के इस्पात कारखानों तथा भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स जैसे मशीनरी संयंत्रों के लिए आर्थिक और तकीनीकी सहायता दी। भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी तब सोवियत संघ ने रूपए को माध्यम बनाकर भारत के साथ व्यापर किया। 

(ख) राजनीतिक संबंध- सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के रुख को समर्थन दिया। सोवियत संघ ने भारत के कई संघर्षो विशेषकर 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान मदद की।

(ग) सैन्य संबंध- भारत को सोवियत संघ ने ऐसे वक्त में सैनिक साजो-सामान दिए जब पूरा विश्व अपने सैन्य टेक्नोलॉजी देने को त्यार नहीं था। सोवियत संघ ने भारत के साथ कई ऐसे समझौते किये जिससे भारत संयुक्त रूप से सैन्य उपकरण त्यार कर सका। 

(घ) संस्कृति- हिंदी फिल्म और भारतीय संस्कृति सोवियत संघ में लोकप्रिय थे। बड़ी संख्या में भारतीय लेखक और कलाकारों ने सोवियत संघ की यात्रा की। 

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प्रश्न- भारत जैसे देश के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए? या, सोवियत संघ के विघटन से भारत को क्या प्रभाव पड़ा? वर्णन करे।
उत्तर- सोवियत संघ के विघटन से शीतयुद्ध समाप्त हो गयी और विश्व एकध्रुवीय हो गया। अमेरिका एक मात्र महाशक्ति के रूप में उभरा। भारत को अपने राष्ट्र हित में नीतियाँ बदलनी पड़ी। भारत की विदेश निति में अमेरिका-समर्थक नीतियाँ शामिल की गयी, लेकिन फिर भी रूस भारत का एक महत्वपूर्ण मित्र बना रहा। मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में सैन्य हितो के बजाय आर्थिक निति की घोषणा की जिसमे उदारीकरण, निजीकरण और वैश्विकरण को बढ़ावा दिया गया। अब भारत विश्व आर्थिक शक्ति का महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा है। 
भारत ने साम्यवादी चीन के साथ भी बेहतर आर्थिक सम्बन्ध स्थापित किये है। भारत अंतराष्ट्रीय क्षितिज पर बहुध्रुवीय विश्व की कामना करता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु भारत ने यूरोपीय संघ, चीन, अमेरिका, जापान, रूस, आसियान के सदस्य-देशों, अफ़्रीकी देशों, अपने पड़ोसियों सभी के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने की कोशिश की है। एक ध्रुवीय जगत में ऐसा करना जरुरी है। 

प्रश्न- किन बातों के कारन गोर्बाच्योव सोवियत संघ में सुधर के लिए बाध्य हुए?
उत्तर- सोवियत संघ ने अपने अधिकतर संसाधन परमाणु हथियार और सेना के उपकरणों पर खर्च कर दिए। साथ ही, उसने अपने अधीन पूर्वी यूरोप के देशों के विकास में भी पैसा लगाया, ताकि वे उसके नियंत्रण में बने रहें। इन कारणों से सोवियत संघ पर भारी आर्थिक बोझ पड़ गया, जिसे वह धीरे-धीरे संभाल नहीं सका।

समय के साथ, सोवियत नागरिकों को यह समझ में आने लगा कि वे पश्चिमी देशों से बहुत पीछे रह गए हैं। इससे लोगों को मनोवैज्ञानिक झटका लगा और वे असंतुष्ट होने लगे।

प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से भी सोवियत संघ की व्यवस्था जाम हो चुकी थी। वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी, जिसने 1917 से 1991 तक शासन किया, जनता के प्रति ज़िम्मेदार नहीं थी और उसकी जवाबदेही नहीं थी।

सरकार में कामकाज ठप पड़ गया था, भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया था, और शासन व्यवस्था अपनी गलतियों को सुधारने में असमर्थ थी। सरकार में पारदर्शिता लाने की इच्छा भी नहीं थी, और इतने बड़े देश के बावजूद सारी शक्ति एक ही जगह केंद्रित थी। इन सब कारणों से जनता खुद को सरकार से कटे हुए महसूस करने लगी

सबसे बुरी बात यह थी कि सत्तारूढ़ पार्टी के अधिकारियों को आम नागरिकों से ज्यादा अधिकार और सुविधाएं मिलती थीं। इससे लोगों का सरकार पर से भरोसा उठने लगा और सरकार की लोकप्रियता कम होती चली गई।

मिखाइल गोर्बाच्योव ने इन समस्याओं को हल करने का वादा किया। जैसे ही उन्होंने सुधार लागू किए, लोगों की उम्मीदें बहुत तेज़ी से बढ़ने लगीं, जिसने साम्यवादी व्यवस्था को हिला कर रख दिया। इसके साथ ही, सोवियत गणराज्य के भीतर नस्लीय और क्षेत्रीय पहचान भी मजबूत होने लगी, जिससे गोर्बाच्योव पर और तेज़ सुधार करने का दबाव बढ़ गया।

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