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Class 10 Hindi kshitij chapter 2 explanation
1 नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।। आयेसु काह कहिअ किन मोहि। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।। सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।। सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।। सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मोरे जैहहिं सब राजा।। सुनि मुमिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।। बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुं न असि रिस किन्हि गोसाई।। येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतु।। रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न संभार। धनुही राम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।
(A) कवि और कविता का नाम लिखिए।
Ans:- कवि – तुलसीदास , कविता – राम – लक्ष्मण – परशुराम संवाद।
(B) परशुराम के क्रोध होने पर श्रीराम ने उनसे क्या कहा?
Ans:– परशुराम के क्रोध होने पर श्री राम ने नम्रतापूर्वक से कहते हैं कि यह धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा। राम जी स्वयं को परशुराम का दास मानकर परशुराम की सेवा करने की अनुमति मांगते हैं।
(C) परशुराम ने श्री राम जी की विनम्रता पर क्या कहा?
Ans:- परशुराम के क्रोध होने पर श्री राम ने नम्रतापूर्वक से कहते हैं कि यह धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा। राम जी स्वयं को परशुराम का दास मानकर परशुराम की सेवा करने की अनुमति मांगते हैं।
(D) परशुराम ने श्री राम जी की विनम्रता पर क्या कहा?
Ans:- परशुराम ने क्रोध से कहा है कि धनुष तोड़ने वाले मेरा केवल शत्रु ही हो सकता है। इस धनुष को तोड़ने वाला हम से शत्रुता मोल लिये हैं। परशुराम ने धमकी देते हुए श्री राम को सहस्रबाहु के समान अपना शत्रु माने हैं। परशुराम ने श्रीराम को राज – समाज को छोड़ने का आदेश देते हैं।
(E) परशुराम को लक्ष्मण ने किस शैली में क्या उत्तर दिया?
Ans:- परशुराम को लक्ष्मण ने व्यंग्यात्मक शैली में मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि हम लड़कपन में बहुत सी धनुहियां तोड़े हैं। हमारे लिए सभी धनुस एक समान है, तब तो आप इतना क्रोध कभी नहीं किये तो इस धनुष में ऐसा क्या है जिसके लिए आप इतना क्रोधित हो रहे हैं।
(F) सभा के बीचोबीच आकर परशुराम ने क्या धमकी दी? वर्णन करें।
Ans:- परशुराम धनुष के टूट जाने पर बहुत क्रोधित थे। परशुराम ने सभा के बीचोबीच क्रोधित होकर कहते हैं कि जिसने मेरे गुरु शिव जी का धनुष तोड़े हैं वह मेरे सामने आ जाए अन्यथा हम सारे राजाओं का वध कर देंगे।
(G) लक्ष्मण से परशुराम ने क्या कहा? स्पष्ट करें।
Ans:- लक्ष्मण से परशुराम ने कहा कि वह व्यक्ति मृत्यु के वश में है अतः वह सोच-समझकर नहीं बोल रहा। परशुराम को यह भली-भांति पता था कि शिव का धनुष तोड़ना कोई आम बात नहीं है। यह कोई मामूली धनुष नहीं है जो हर कोई तोड़ ले। परशुराम भरे सभा के बीच आकर बोलते हैं कि यह धनुष तोड़ने वाले व्यक्ति मेरे सामने आ जाए वरना इसका परिणाम अत्यंत भयानक होगा।
2 लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।। का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।। छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।। बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।। बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।। बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।। भुजबल भूमि भूप बिनु किन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दिन्ही।। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।। मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दिलन परसु मोर अति घोर।।
(A)परशुराम के क्रोध होने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने पर कौन-कौन से उदाहरण दिए हैं?
Ans:– परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने कहा हमारे लिए सभी धनुष एक समान है। यह धनुष के टूट जाने से क्या लाभ या हानि ? यह धनुष तो बहुत पुराना था जो श्रीराम के छूते ही टूट गया अत: धनुष के टूट जाने मे श्रीराम का कोई दोस्त नहीं है।
(B) लक्ष्मण ने हंसते हुए क्या कहा ? स्पष्ट करें।
Ans:- लक्ष्मण ने हंसते हुए कहा कि हे देव ! ये सभी धनुष तो एक समान है हमारे लिए। हमलोग धनुष को तोड़ते समय कोई प्रकार का हानि या लाभ के बारे में नहीं सोचते। यह धनुष तो श्री राम के छूते ही टूट गया अब आप इसमें व्यर्थ ही क्रोध कर रहे हैं।
(C) लक्ष्मण को धमकाते हुए परशुराम ने क्या कहा ? वर्णन करें।
Ans:- परशुराम धनुष के टूट जाने से अत्यंत क्रोधित थे परशुराम अपने फसरे की तरफ देखते हुए कहते है कि अरे दुष्ट ! क्या तुमने कभी मेरे स्वभाव के बारे में किसी से सुना नहीं ? मैं तुमको बालक समझकर नहीं मार रहा। अरे मूर्ख तुम क्या मुझे निरा मुनि ही समझता है।
(D) परशुराम से लक्ष्मण ने क्या कहा?
Ans:- परशुराम से लक्ष्मण ने कहा कि यह धनुष तो बहुत पुराना था। यह धनुष श्रीराम के छूते ही टूट गया था। आप इसमे व्यर्थ ही क्रोधित हो रहे हैं। इसमे श्री राम जी का कोई दोष नहीं है।
3 बीहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूंकि पहारू।। इहां कुम्हडबतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।। देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।। भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।। सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।। बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहु पा परिअ तुम्हारें।। कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।। जो बिलोकि अनुचित कहेऊं छमहु महामुनि धीर। सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ।।
(A) परशुराम को लक्ष्मण ने ऐसा क्या कह दिया जो उनका क्रोध इतना बढ़ गया?
Ans:– परशुराम को लक्ष्मण ने व्यंग्यपूर्ण वाणी में यह कहा कि आपके वचन ही इतने कटु है कि वह करोड़ों वर्जो के समान वार करते हैं। आपको धनुष – बाण और फरसा रखने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
(B) परशुराम की वाणी के किस गुण पर लक्ष्मण ने व्यंग्य किया है?
Ans:-परशुराम की वाणी को लक्ष्मण ने कठोरता, क्रूरता और निम्रमता पर व्यंग्य किया है। परशुराम का वचन बहुत कठोर था।
(C)परशुराम को ‘ मृदु बानी ‘ में लक्ष्मण ने क्यों संबोधित किया?
Ans:- लक्ष्मण ने परशुराम के बातों का जवाब बातों से देकर परशुराम को लज्जित करना चाहते थे। लक्ष्मण ने परशुराम के बड़बोलेपन को हंसी – मजाक में उड़ाना चाहता था। इसीलिए उन्होंने कोमल शब्दों में व्यंग्य – वाणी का सहारा लिया।
(D) लक्ष्मण ने परशुराम के समक्ष अपने कुल की किस परंपरा का वर्णन किया है?
Ans:– लक्ष्मण ने परशुराम के समक्ष अपने कुल की परंपरा का वर्णन करते हुए कहा कि हमलोग की कुल में देवता ईश्वर, ब्राह्मण, भक्त और गाय पर अपनी शूरवीरता को नहीं दिखाया करते।
(E) परशुराम पर क्या प्रतिक्रिया हुई लक्ष्मण का अपेक्षा सुनकर स्पष्ट करें।
Ans:– परशुराम क्रोध से भड़क उठे लक्ष्मण की अपेक्षा को सुनकर और अपनी सारी बाते गंभीर वाणी में कहने लगे।
4 कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु । कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।। भानुबंस राकेस कलंकू । निपट निरंकुसु अबुधु असंकु।। कालकवलु होइहि छन माहीं । कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।। तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा । कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।। लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा । तुम्हहि अछत को बरनै पारा ।। अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भांति बहु बरनी ।। नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू । जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।। बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा । गारी देत न पावहु सोभा ।। सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु। बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।
(A) किसको संबोधित कर परशुराम ने क्या कहा रहे हैं?
Ans:- परशुराम ने विश्वामित्र को संबोधित करके रहे हैं कि यह मूर्ख, उदंड और निडर बालक है। यह अत्यंत पापी है यह काल के वश में है और अपने कुल का नाश करने वाला है। यह बालक सूर्यवंश का कलंक है मेरे हाथों यह बालक क्षण भर में मारा जाएगा। अगर यह बालक को बचाना चाहते हैं तो हमारे बल, प्रताप क्रोध से इस बालक को परिचित करा दीजिए।
(B) लक्ष्मण ने शूरवीर की कौन-कौन सी पहचान बताई है?
Ans:– शूरवीर की पहचान बताते हुए लक्ष्मण ने कहा है कि शूरवीर अपना कारनामा समर की भूमि में दिखाता है। शूरवीर अपनी बखान नहीं किया करते हैं। शूरवीर शत्रु को युद्ध के मैदान में देखकर कायर की भांति बढाया नहीं करते बल्कि उन्हें परास्त कर अपनी शूरवीरता को सिद्ध करते हैं।
(C) परशुराम ने विश्वामित्र से किसकी शिकायत की है और क्यों? वर्णन करें।
Ans:- परशुराम ने विश्वामित्र से लक्ष्मण की शिकायत की हैं। परशुराम ने लक्ष्मण की उद्दंडता के बारे में विश्वामित्र को बताते हैं। परशुराम ने लक्ष्मण को मूर्ख, अज्ञानी, निरंकुश कहा है। क्योंकि वास्तव में लक्ष्मण से परशुराम उलझना नहीं चाहता है। इसीलिए परशुराम ने लक्ष्मण की शिकायत विश्वामित्र से करके लक्ष्मण की उद्दंडता को रोकना चाहता है।
(D) लक्ष्मण ने परशुराम की बातें सुनकर व्यंग्य में क्या कहा है?
Ans:-लक्ष्मण ने परशुराम की गर्वपूर्ण बातें सुनकर लक्ष्मण ने व्यंग्य करते हुए कहा है कि है मुनि! आपके रहते हुए भला आपके शक्ति के बखान और कौन कर सकता है। आपने शक्तियों का बखान स्वयं अपने मुख से अनेक बार कर लिए हैं। अगर आपको कुछ कहना शेष रह गया होगा तो कह दीजिए। अपने अंदर क्रोध को रखकर स्वयं को कष्ट मत दीजिए। आप एक वीरव्रती है अतः आपको ऐसे शब्द बोलना शोभा नहीं देता।
(E) इस काव्यांश के आधार पर परशुराम के स्वभाव का वर्णन करें।
Ans:- इस काव्यांश के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परशुराम का स्वभाव अत्यंत क्रोधी है। शिवजी का धनुष टूटने पर परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए।
5 तुम्ह तौ कालु हांक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।। सुनत लखन के बचपन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।। अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगु ।। बाल बिलोकि बहुत मैं बांचा। अब येहु मरनिहार भा सांचा।। कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू ।। खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।। उतर देत छोडौं बिनु मोरे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।। न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेऊं श्रम थोरे।। गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ। अयमय खांड न ऊखमय अजहुं न बूझ अबूझ।।
(A) बधजोगू परशुराम ने किसे कहा और क्यों ? स्पष्ट करें।
Ans:- बधजोगू परशुराम ने लक्ष्मण को वध के योग्य कहा है। परशुराम ने लक्ष्मण को बधजोगू इसलिए कहा है क्योंकि लक्ष्मण ने परशुराम के बड़बोलेपन और खोखली धमकियों की मजाक उड़ाई थी। लक्ष्मण परशुराम की इस खोखले धमकियों से नहीं डरा। इसी बेजती के कारण परशुराम उत्तेजित हो उठे।
(B) विश्वामित्र ने परशुराम को उत्तेजित देखकर क्या कहा? वर्णन करें।
Ans:- विश्वामित्र ने परशुराम को उत्तेजित देखकर उन्हें शांत किया। विश्वामित्र ने कहा – मुनि जी! आप तो एक साधु हो साधुजन का यह कर्तव्य है कि बच्चों के गुण – दोष पर ध्यान न दे अतः आप लक्ष्मण को बच्चा मानकर क्षमा कर दें और अपनी क्रोध को शांत करें।
(C) परशुराम को लक्ष्मण ने क्या कहा और क्यों कहा?
Ans:- लक्ष्मण को परशुराम ने बार-बार मार डालने की धमकी दे रहे थे। परशुराम कुछ करने के बजाय सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें बोले जा रहे थे। परशुराम की इन्हीं खोखली बातों का मजाक उड़ाने के लिए लक्ष्मण ने कहा परशुराम जी आप तो मानो जैसे मृत्यु को हांक कर मेरे ऊपर डाल दे रहे हो। हम आपकी इन खोखले धमकियों से नहीं डरने वाले।
6 कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा । को नहि जान बिदित संसारा।। माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें।। सो जनु हमरेहि माथें काढा । दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढा ।। अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली । तुरत देऊं मैं थैली खोली।। सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।। भृगृबर परसु देखाबहु मोही। ब्रिप बिचारि बचौं नृपद्रोही।। मिले न कबहूं सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।। अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।। लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
(A)लक्ष्मण ने परशुराम की गर्वपूर्ण बातें सुनकर व्यंग्य में क्या कहा? वर्णन करें।
Ans:-परशुराम की गर्वपूर्ण बातें सुनकर लक्ष्मण ने व्यंग्य करते हुए कहा कि हे मुनि ! पूरा संसार आपकी शील – व्यवहार से परिचित है। आपने तो माता के ऋण से छुटकारा पा लिया परंतु अब अप पर गुरु का ऋण अवश्य है। आप उस ऋण को हमारे सर पर डाल रहे है। बहुत दिन हो गया होगा अतः ब्याज भी बहुत बढ़ गया होगा आप किसी हिसाब – किताब करने वाले को बुला लीजिए, मैं सारा चुकता कर दूंगा। लक्ष्मण ने परशुराम की गर्वपूर्ण बातें सुनकर परशुराम को यह सारी बातें सुना दिया।
(B)परशुराम अपना गुरु किसे मानते थे? परशुराम अपना गुरु ऋण को किस प्रकार उतारना चाहते थे?
Ans:-परशुराम अपना गुरु भगवान शिवजी को मानते थे। परशुराम अपना गुरु ऋण शिवजी के धनुष तोड़ने वाले को वध करके उतारना चाहते थे। इसलिए परशुराम शिव जी के धनुष तोड़ने वाले को दंड देना चाहते थे।
(C) लक्ष्मण ने किस ऋण और ब्याज की बात कर रहे हैं? वर्णन करें।
Ans:- परशुराम अपने गुरु शिवजी को प्रसन्न करना चाहते थे। इसीलिए परशुराम शिव जी के धनुष तोड़ने वाले का वध करना चाहते थे, ताकि वह अपने गुरु को प्रसन्न कर उनका ऋण चुका सके। परंतु ऐसा होने में विलम हो गया। इसीलिए परशुराम लक्ष्मण को शीघ्र ही मारकर उनका ब्याज चुकाना चाहते थे। लक्ष्मण इस ऋण और ब्याज की बात कर रहे है।
(D) परशुराम के व्यवहार पर लक्ष्मण ने क्या प्रतिक्रिया है प्रकट की ? स्पष्ट करें।
Ans:- लक्ष्मण ने परशुराम को करारा जवाब देते हुए कहा कि मैं आपको ब्राह्मण समझकर बचा रहा हूं और आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं। आपका सामना कभी शूरवीरो से नहीं हुआ है। इसीलिए स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझ रहे हैं। स्वयं के घर में हर कोई शेर ही रहता है। कभी मैदान में आकर देखिए फिर पता चलेगा आपको वीर किसे कहते हैं।
अभ्यास : poem class 10 NCERT notes
Q.1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन – कौन से तर्क दिए?
Ans:-परशुराम धनुष के टूट जाने पर अत्यंत क्रोधित हो गए। परशुराम धनुष तोड़ने वाले को सजा देना चाहते थे। परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण निम्नलिखित तर्क दिए हैं-
- हमलोग लड़कपन में ऐसी बहुत सी धनुहिया तोड़े हैं, लेकिन तब तो आप क्रोधित नहीं हुए।
- हमलोग धनुष को तोड़ते समय किसी प्रकार का हानि या लाभ के बारे में नहीं सोचते।
- यह धनुष तो बहुत पुराना था। श्री राम ने छूते ही टूट गया था। इसमें श्री राम जी का कोई दोष नही है।
Q.2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएं हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएं अपने शब्दों में लिखिएं।
Ans:-परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की प्रतिक्रियाएं इस प्रकार है-
- श्री राम :- राम जी का स्वभाव विनयशील एवं मृदु जैसे हैं। राम जी परशुराम के क्रोध करने पर भी श्री राम जी का स्वभाव शांति पूर्ण ही था। श्री राम जी के आवाज में विनम्रता था। राम जी लक्ष्मण को भी शांत रहने का संकेत करते हैं। रामजी धैर्यवान स्वभाव के हैं।
- लक्ष्मण:- लक्ष्मण श्री रामजी के बिल्कुल विपरीत है। लक्ष्मण व्यंग्यपूर्णा भाषा का प्रयोग करते हैं। लक्ष्मण तर्कशील स्वभाव के हैं। लक्ष्मण किसी के दबाव में रहना नहीं चाहते हैं। लक्ष्मण ऊपर से तो मुस्कुराते रहते हैं परंतु उनके मन में क्रोध के भाव है। परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण परशुराम को करारा जवाब देकर परशुराम को लज्जित कर देते हैं , क्योंकि लक्ष्मण किसी का भी बात नहीं सहना चाहते हैं।
Q.3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
Ans:-शिव जी के धनुष टूटने पर लक्ष्मण और परशुराम के बीच हुए संवाद अत्यंत रोचक रहा। उनका संवाद शैली में वर्णन किया है –
- परशुराम:- शिवजी का धनुष तोड़ने का दुस्साहस किसने किया है?
- लक्ष्मण:-हे मुनि! बचपन में तो हमलोग अनगिनत धनुष तोड़े हैं, परंतु तब तो आप इतने क्रोधित नहीं हुए थे। फिर इस धनुष के टूट जाने पर आप इतने क्रोधित क्यों है?
Q.4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, इस चौपाई के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।भुजबल भूमि भूप बिनु किन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।सहसबाहुभुज छंदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।मातु पितहि जनि सोचबस करिस महीसकिसोर।गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
Ans:-परशुराम ने अपने विषय में प्रस्तुत चौपाई में कहा है कि मैं बालब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधित स्वभाव का हूं । सारा संसार मुझे क्षत्रियकुल का नाशक के रूप में जानते हैं। मैंने अपनी भुजाओं के ताकत से छत्रिय राजाओं को पृथ्वी से मुक्त किया है तथा ब्राह्मणों को दान में दे दिए हैं। मेरा यह फरसा बहुत भयानक है । यह फरसा इतना भयानक है कि गर्भ में पल रहे बच्चों को भी नष्ट कर दे। मैंने इस फरसे की सहायता से सहस्त्रबाहु की भुजाओं को भी काट डाला है। इसीलिए है नरेश पुत्र मेरे इस फरसे को भलीभांति देख लो और अपने माता-पिता को सोचने पर विवश ना करो मेरे इस फरसे को हल्के में मत लो।
Q.5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएं बताई?
Ans:-लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएं बताई है –
- वीर योद्धा स्वयं के मुंह से अपने शक्तियों के बखान नहीं किया करते।
- वीर योद्धा शत्रु को देखकर युद्ध भूमि में अपनी प्रशंसा करने के बजाय शत्रु को युद्ध में हराकर अपनी वीरता को सिद्ध करते हैं।
- वे अपने वीरतापूर्ण कार्यों से अपना परिचय देते हैं।
- वीर योद्धा अपने मुंह से कभी अपशब्द नहीं बोलते हैं।
- वीर योद्धा धैर्यवान होते हैं।
Q.6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखें।
Ans:-साहस और शक्ति के साथ विनम्रता का होना अनिवार्य है, क्योंकि अगर व्यक्ति के पास यह सब हो तो व्यक्ति कभी अभिमानी एवं उद्दंड नहीं बनते हैं। विनम्रता हमें संयमित बनाती है। विनम्रता से कठिन से कठिन कार्य भी आसान बन जाता है। परशुराम बहुत साहस व शक्तिशाली है पर फिर भी श्री राम जी के विनम्रता के सामने परशुराम का अहंकार को भी नतमस्तक होना पड़ा। साहस शक्ति और विनम्रता ये सब होने पर व्यक्ति को परिपूर्ण बनाता है
Q.7. भाव स्पष्ट करें-
(A) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूंकि पहारू।।
Ans:-इस पंक्ति में परशुराम लक्ष्मण को बार-बार अपना फरसा दिखा कर डरा रहे थे। लक्ष्मण परशुराम पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आप अपने आप को बहुत ताकतवर समझते हो, परंतु मैं आपके फरसे से डरने वाला नहीं हूं।
(B) इहां कुम्हडबतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
Ans:-प्रस्तुत पंक्ति में लक्ष्मण परशुराम के अभिमान को चूर करने के लिए कहते हैं कि हम बालक जरूर है, परंतु हम आपकी खोखले धमकियों से डरने वाले नहीं है। हमने भी यह फरसे धनुष बाण बहुत देखे हैं। लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं कि हमें बालक समझने की भूल न करें।
(C) गाधि सूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ। अयमक खांड न ऊखमय अजहुं न बूझ अबूझ।।
Ans:-इस पंक्ति में परशुराम लक्ष्मण को बार – बार मारने की धमकी दे रहे थे। विश्वामित्र मन ही मन कहते हैं कि परशुराम को चारों ओर हरा ही हरा दिखाई दे रहा है, क्योंकि परशुराम राम लक्ष्मण को सिर्फ एक सामान्य क्षत्रियों की तरह ही समझ रहे हैं। परशुराम इन्हें गन्ने की बनी तलवार की तरह कमजोर समझ रहे हैं, परंतु यह असल में लोहे की बनी तलवार है।
Q.8.पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियां लिखिए।
Ans:-इस पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर 10 पंक्तियां निम्नलिखित हैं –
- तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी भाषा का प्रयोग किये है।
- यह काव्यांश रामचरितमानस के बालकांड से ली गई है।
- तुलसीदास जी की भाषा सरल सहज और अत्यंत लोकप्रिय हैं।
- कवि ने दोहा – चौपाई छंद का सुंदर प्रयोग किया है।
- तुलसीदास के काव्य में वीर रस, हास्य रस एवं रूपक अलंकार की भी सहज अभिव्यक्ति हुई है।
- भाषा में व्यंग्यात्मक शैली का बहुत सुंदर प्रयोग किया है।
- भाषा अलंकारों से सुसज्जित है।
- इस काव्यांश मे गेयता का गुण विद्यमान है। यह भी दिखाया गया है।
- कवि ने दो चौपाइयों के बाद एक दोहे का क्रम अत्यंत सुंदर बनाया गया है।
- इस काव्यांश में ओजगुण एवं वीर रस को भी बहुत बखूबी से दिखाया गया है।
Q.9.इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
Ans:-इस पूरे प्रसंग में ‘ राम – लक्ष्मण – परशुराम – संवाद’ में व्यंग्य का प्रभावी रूप निम्नलिखित है –
- इस प्रसंग के आरंभ में ही जब राम कहते हैं कि इस धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा। उस समय परशुराम व्यंग्यात्मक स्वर में कहते हैं कि यह धनुष तोड़ने वाला केवल मेरा शत्रु ही हो सकता है मेरा सेवक नहीं।
- लक्ष्मण और परशुराम के बीच हुए संवाद तो सिर्फ एक दूसरे पर व्यंग्य करते हुए ही प्रतीत होता है। दोनों बस एक दूसरे पर व्यंग्य करते हैं। जबकि दूसरी और राम शांत, विनम्र तरह के स्वभाव में दिखाए गए हैं।
Q.10.निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
(A) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।।
Ans:-अनुप्रास अलंकार।
(B) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।।
Ans:-उपमा एवं अनुप्रास अलंकार ।
(C) तुम्ह तौ कालु हांक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
Ans:-पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार।
(D) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु। बढ़त देखि जल समवचन बोले रघुकुलभानु।।
Ans:- उपमा अलंकार।