Sanrachnatmak Parivartan: BOOK 2 Chapter 1 Sociology Class 12 Notes in Hindi. Sociology Class 12 Questions Answers in Hindi. Class 12 Sociology exam help in Hindi. JAC Board Ranchi Notes.
Sanrachnatmak Parivartan: अति लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1.परिवर्तन से क्या तात्पर्य है?
Ans: वर्तमान स्थिति में बदलाव परिवर्तन कहलाता है।
Q.2. उपनिवेशीकरण क्या है?
Ans: साम्राज्यवादी देशों द्वारा अपने लाभ के लिए (अविकसित) देशों पर कब्जा करना उपनिवेशीकरण कहलाता है।
Q.3.औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं?
Ans: औद्योगीकरण प्रौद्योगिकी उन्नति कि वह प्रक्रिया है, जो सामान्य उपकरणों से चलने वाली घरेलू उत्पादन से लेकर वृहद स्तरीय कारखानों के उत्पादन तक संपन्न होती है।
Q.4. सामाजिक परिवर्तन से क्या अभिप्राय है?
Ans: समाज के सदस्य जब निश्चित तरीकों से हटकर कुछ सोचते हैं और काम करते हैं उसे सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।
Q.5.संरचनात्मक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है?
Ans: सामाजिक संबंधों में होने वाले परिवर्तन को संरचनात्मक परिवर्तन कहते हैं। परिवार, विवाह, नातेदारी और व्यवसायिक समूह संरचनात्मक प्रक्रिया के अंग हैं। इनमें यदि परिवर्तन आता है तो यह संरचनात्मक परिवर्तन कहलाता है।
Q.6.भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को संक्षेप में समझाइए।
Ans:समाजशास्त्री ए. एन. श्रीनिवास का मत है कि भारत में आधुनिकता की उपस्थिति ब्रिटिश काल से समझी जा सकती है। अंग्रेज इस देश में एक व्यापारी की तरह आए लेकिन जब उन्होंने रातसत्ता पर अधिकार कर लिया तो प्रभावी प्रशासन चलाने के लिए उन्होंने आधुनिकता को जन्म दिया। मुद्रण के लिए प्रिंटिंग प्रेस लगाये, रेलगाड़ियां, संचार के साधन और आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास किया। आधुनिकता में तीव्रता लाने में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। लोगों में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न हुई। स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व की भावना ने लोगों में एकता और राष्ट्रीयता को जन्म दिया। अस्पृश्यता के विरुद्ध आवाज उठाई गई। उपनिवेशवादी ताकतों ने नगरीकरण और औद्योगीकरण को जन्म दिया।
Q.7.आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में धर्म पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
Ans:आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में टेलीविजन धर्म और धार्मिक भावनाओं का विस्तार करने में सहायक हो रहा है। कई पारम्परिक संस्थाएं और गतिविधियां फिर से शुरू हो गई है। आस्था, संस्कार, साधना चैनल, पूरी तरह धर्म – प्रचार के लिए समर्पित है। धर्म – प्रवचन भक्तों को आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित कर रहे हैं। योग के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है।
Q.8.आधुनिकता का वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण से क्या संबंध है?
Ans: कुछ समाजशास्त्रियों का विचार है कि वैश्वीकरण उदारीकरण और निजीकरण को प्रोत्साहित करता है। आधुनिकता का कोई भी स्वरूप क्यों न हो इसमें हमें पूंजीवाद, औद्योगिकीकरण, प्रजातंत्र और विवेक या बुद्धिसंगत, केंद्रीय लक्षणों के रूप में दिखाई देते हैं।
Q.9.आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का ग्रामीण जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
Ans:आधुनिकता की प्रक्रिया आज भारतीय ग्रामीण समुदायों में क्रियाशील है। गांवों में किसान नये वैज्ञानिक तरीकों को प्रयोग में लाकर उन्नत कृषि मे लगा है। सिंचाई, बिजली, उन्नत बीज, ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, कीटनाशकों, उर्वरकों का प्रयोग बढ रहा है। शिक्षा के क्षेत्र के में स्त्री – शिक्षा और प्रौढ़ – शिक्षा का विस्तार किया जा रहा है। पुरानी कुरीतियां धीरे-धीरे काम हो रही है। सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हो रही है।
Q.10.नगरीकरण की मुख्य विशेषताएं क्या है?
Ans:अत्याधिक गतिशीलता, समय की कमी, उन्नत प्रौद्योगिकी पर आधारित जीवन, भाग दौड़, मालिन बस्तियां, परिवहन की समस्या, बिजली – पानी जैसी आवश्यकताओं की कमी, एकाकी परिवार आदि।
Q.11.आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक शर्तें क्या है?
Ans: शिक्षा, संचार माध्यम, यातायात के साधनों की वृद्धि, लोकतांत्रिक राजनैतिक संस्थाएं, गतिशील जनसंख्या, संयुक्त परिवार के स्थान स्थान पर एकाकी परिवार आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक है।
Q.12.आधुनिकीकरण से क्या अभिप्राय है?
Ans:आधुनिकीकरण एक बहुआयामी आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया है जो समाज के सदस्यों के जीवन को एक नया रूप प्रदान करती है।
Q.13.तकनीकी अविष्कारों का आम आदमी के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है?
Ans:गैस – चूल्हों, गैस, खेती में मशीनों का प्रयोगों, सड़कों का निर्माण, संचार के साधनों में वृद्धि, रेल व्यवस्था में सुधार, बिजली का प्रयोग आदि ने आम लोगों के जीवन में बहुत अधिक सुधार किया है। लोगों की मानसिकता में परिवर्तन आया है तथा जीवन में गुणात्मक सुधार हुआ है।
Q.14.नगरीकरण से क्या अभिप्राय है?
Ans:जब ग्रामीण जनता काम की खोज में नगरों की ओर प्रस्थान करने लगती है तो नगरों की जनसंख्या बढ़ने लगती है। इसे ही नगरीकरण कहते हैं। नगरीकरण का अर्थ नगरों के विकास से लिया जाता है। यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से ग्रामीण समाज नागरिया समाज में परिवर्तित होता है। इसे औद्योगीकरण का परिणाम और कारण दोनों ही कह सकते हैं। उद्योगीकरण के कारण नगरों का विकास होता है। श्रीनिवास के अनुसार, “नगरीकरण से अभिप्राय केवल संकुचित क्षेत्र में अधिक जनसंख्या से नहीं होता बल्कि सामाजिक – आर्थिक संबंधों में परिवर्तन से भी होता है।
Q.15.भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है?
Ans:भारत में नगरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे नगरों की ओर प्रवचन की भूमिका महत्वपूर्ण है। बड़ी संख्या में लोग गांव को छोड़कर सिर्फ बड़े नगरों में ही नहीं छोटे और मध्यम नगरों में आ रहे हैं। वह प्रवसन उत्पादन व नौकरी से संबंधित है। अकुशल मजदूरों में मौसमी प्रवसन की प्रवृत्ति भी आम हो गई है। मजदूर मौसमी प्रवसन करते हैं और बाद में अपनी पसंद के क्षेत्रों में स्थायी रूप से बस जाते हैं।
Sanrachnatmak Parivartan : लघु स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1.सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं?
Ans: सामाजिक परिवर्तन किसी प्रक्रिया का संबंध सामाजिक संबंधों तथा भारत की व्यवस्था में होने वाले परिवर्तन से है। गिलिन और गिलिन के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन जीवन के स्वीकृत प्रकारों में परिवर्तन है। भले ही वे परिवर्तन भौगोलिक दशाओं में हुए हो या सांस्कृतिक साधनों पर जनसंख्या की रचना या सिद्धांतों के परिवर्तन से हुए हो, या प्रचार से हुए हो या समूह के अंदर अविष्कार से हुए हो।” जानसन के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन से तात्पर्य सामाजिक ढांचे में परिवर्तन से हैं।” प्रत्येक परिवर्तन समाजिक परिवर्तन नहीं कहलाता वरन् केवल सामाजिक संबंधों, सामाजिक संस्थाओं और संस्थाओं के परस्पर संबंधों में होने वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन की श्रेणी में आता है।
Q.2.नगरीकरण एवं नगरीयता में अंतर स्पष्ट कीजिए।
Ans: नगरीकरण – नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें लोग गांवों में रहने के बजाय कस्बों व शहरों में रहना शुरू कर देते हैं। वे ऐसे तरीकों का प्रयोग करते हैं कि कृषि आधारित निवास क्षेत्र गैर – कृषि शहरी विकास क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है। शहरी केंद्रों का निवास विकास बढ़ी हुई औद्योगिक व व्यवसायिक गतिविधियों का परिणाम है। कस्बों और नगरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है और वे गैर – कृषि परिवारों की संख्या में वृद्धि के कारण है।नगरीयता – लुई वर्थ के अनुसार नगरीय परिवेश एक विशिष्ट प्रकार के सामाजिक जीवन का निर्माण करता है जिसे नागरीयता कहते हैं। नगरों में सामाजिक जीवन अधिक औपचारिक और अवैयक्तिक होता है और आपसी संबंध जटिल श्रम – विभाजन पर आधारित होते हैं और इनकी प्रवृत्ति अनुबंधात्मक होती है।
Q.3.सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारणों का प्रभाव बताइये।
Ans: सामाजिक परिवर्तन सामाजिक संबंधों, सामाजिक संरचना, सामाजिक संस्थाओ अथवा संस्थाओं में परस्पर संबंधों में होने वाला परिवर्तन है। सामाजिक परिवर्तन के अनेक कारक है जिसमें जनसंख्यात्मक कारक, जैवकीय कारक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और मनोवैज्ञानिक कारक प्रमुख है। सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पूंजीवाद का विकास, श्रम विभाजन और विशेषीकरण, जीवन का उच्च स्तर, आर्थिक संकट, बेरोजगारी और निर्धनता प्रमुख आर्थिक कारक है। आर्थिक कारकों का समाज पर काफी प्रभाव पड़ता है। कार्ल मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या आर्थिक आधारों पर ही की है। उनके अनुसार उत्पादन के साधनों में परिवर्तन से उत्पादन की शक्तियों और संबंधों में भी परिवर्तन होते रहते हैं जिनसे आर्थिक संरचना प्रभावित होती है। आर्थिक संरचना सभी प्रकार के संबंधों को निर्धारित करती है।
Q.4.नगरीकरण के मुख्य तत्व कौन – से हैं?
Ans:नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें माध्यम से नगरीया तत्वों या शहरीपन का विकास एवं प्रसार होता है। सामान्य रूप से जनसंख्या के घनत्व एवं आकार में वृद्धि, सामाजिक संबंधों में विषमता एवं औपचारिकता का आधिक्य, सामाजिक गतिशीलता एवं परिवर्तनशीलता में वृद्धि, व्यक्तिवादी जीवन – दर्शन का बोलबाला तथा सांस्कृतिक विविधता को नगरीय तत्व माना जाता है। इन तत्वों में वृद्धि एवं प्रसार ही नगरीकरण है।
Q.5.भारत में नगरीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
Ans: नगरीकरण – यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से ग्रामीण समाज नगरीय समाज में परिवर्तित होता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी भी देश में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि होने लगती है। नगरीकरण सामाजिक परिवर्तन की एक जटिल प्रक्रिया है। नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से नगरीय तत्वों का विकास और प्रसार होता है।
भारत में नगरीकरण के कारण –
- (i)जनसंख्या में वृद्धि औद्योगीकरण – भारत में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। यह बढ़ती हुई जनसंख्या और आजीविका की खोज में नगरों की ओर गतिशील हो जाती है।
- (ii)औद्योगीकरण – वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण उद्योग – धंधों का तेजी से विकास हुआ है। इसके परिणामस्वरूप नगरों का विकास हुआ। जिन स्थानों पर उद्योगों लगे, वहां नये नगर विकसित हो गये।
- (iii) यातायात और संदेश वाहन के साधनों का विकास – यातायात के साधनों के विकास के कारण जनसंख्या एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से आ सकती है। संदेशवाहन के साधनों के विकास से सामाजिक गतिशीलता और नगरों को प्रोत्साहन मिला है।
- (iv) शिक्षा और मनोरंजन के साधन – आधुनिक युग में शिक्षण संस्थाएं ज्ञान का केंद्र बनी और दूर-दूर स्थानों से विद्यार्थी आकर इन शिक्षा संस्थानों में शिक्षा पाने लगे। नगरों में सिनेमा, थियेटर आदि अनेक मनोरंजन के साधनों में नगरों के विकास में सहयोग दिया।
- (v) व्यापारिक क्षेत्र में उन्नति – व्यापारिक क्षेत्र में उन्नति, राजनीतिक दलों का विकास, प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली का विकास, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विकास, नये आर्थिक संगठनों का जन्म और अनुकूल भौतिक परिस्थितियों के कारण नगरीकरण की प्रवृत्ति में वृद्धि हो रही है।
Q.6.आधुनिकीकरण के निर्धारित करने वाले तत्व लिखिए।
Ans: पूंजीवादी विचारको के अनुसार आधुनिकीकरण नई तकनीक और ज्ञान पर निर्भर करता है। आधुनिकीकरण को निर्धारित करने वाले कई सामाजिक – राजनीति कारकों का उल्लेख किया जा सकता है जिनमें से कुछ निम्नलिखित है –
- (i) शिक्षा – स्तर में वृद्धि होना।
- (ii) जनसंचार साधनों का विकास।
- (iii) परिवहन और संचार साधनों का विकास।
- (iv) प्रजातांत्रिक राजनीतिक संस्थाओं का विकास।
- (v) नगरों का विकास और जनसंख्या की गतिशीलता।
- (vi) संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकाकी परिवार।
- (vii) जटिल श्रम विभाजन।
- (viii) धार्मिक प्रभाव की कमी।
- (ix) वस्तुओं और सेवाओं की खरीद के लिए बाजारों का विकसित होना जिससे परंपरागत वस्तु विनिमय प्रणाली की समाप्ति हो सके। इस प्रकार हम देखते हैं कि सामाजिक परिवर्तन और आधुनिकीकरण के लिए उपयुक्त कारको का होना आवश्यक है।
Q.7.”औद्योगिकरण और निगरीकरण में अनिवार्य सह – संबंध नहीं है।” स्पष्ट कीजिए।
Ans: समाजशास्त्रियों का मत है कि औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रक्रियाएं यद्यपि परस्पर संबंधित हो सकती है फिर भी इनमें अनिवार्य या पूर्ण सहसंबंध नहीं है। दोनों प्रक्रियाएं एक – दूसरे से स्वतंत्र है। भारत में मोहनजोदड़ो, हडप्पा, पाटलिपुत्र, नालंदा, बनारस तथा दिल्ली अति प्राचीन नगर है। इन नगरों का विकास औद्योगिकरण से काफी पहले हुआ था। विकसित देशों में भी ईसा पूर्व नगरों के अस्तित्व के उदाहरण है। कुछ ऐसे भी केंद्र हैं जो केवल औद्योगिक केंद्र हैं। वहां नागरीया जनसंख्या में अधिक वृद्धि नहीं हुई है। यह सत्य है कि औद्योगीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ होने पर नगरों का विकास बहुत तेज गति से होता है लेकिन भारत में औद्योगीकरण से पूर्व नगरों का अस्तित्व यह सिद्ध करता है कि ये दोनों स्वतंत्र क्रियाएं हैं।
Q.8.भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का विश्लेषण कीजिए।
Ans: ऐतिहासिक दृष्टि से भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ब्रिटिश शासन से आरंभ हुई। यह प्रक्रिया स्वतंत्रता के पश्चात भी जारी है। भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का अध्ययन हमें दो भागों में करनी चाहिए – स्वतंत्रता से पूर्व औपनिवेशिक काल में तथा स्वतंत्रता के पश्चात। भारत में ब्रिटिश शासन के आरंभ होने के बाद पश्चिमी विचारों का भारतीय समाज का प्रभाव पडना आरंभ हुआ। इससे सामाजिक ढांचे और सांस्कृतिक संस्थाओं पर प्रभाव पड़ा। जीवन में प्राय: सभी क्षेत्रों पर परिवर्तन दिखाई देने लगा। अंग्रेजी प्रशासन से कानून, कृषि, प्रशासन के क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पड़ा। प्रशासन और कानून के क्षेत्र में जो नई विचारधारा सामने आई उसने परंपरागत भारतीय न्याय व्यवस्था को बदल डाला। शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में बहुत परिवर्तन आया। 19वीं शताब्दी के मध्य में भारत में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को लागू किया गया और इसके बाद भी उनका विस्तार किया जाता रहा। लगान की नई प्रणालियां जमींदारी रैयतवाडी और महलवाडी लागू की गई।
Q.9.उपनिवेशवाद के कारण भारत के आर्थिक क्षेत्र में क्या परिवर्तन आए?
Ans: ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति ने उसकी अर्थव्यवस्था तथा भारत के साथ उसके आर्थिक संबंधों को पूरी तरह बदल कर रख दिया। 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध तथा 19वीं सदी के पहले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण सामाजिक – आर्थिक रूपांतरण हुआ। आधुनिक मशीनों, कारखाना प्रणाली तथा पूंजीवाद के आधार पर ब्रिटिश उद्योगों का तेजी से विकास और प्रसार हुआ। इससे भारत में भी आर्थिक परिदृश्य बदला। कपड़े के उत्पादन में मशीनी क्रांति आ गई। सस्ते श्रम की आपूर्ति के लिए यहां अच्छे श्रमिक उपलब्ध थे। देश में नगरीकरण भी तेजी से होने लगा।
Q.10.मलिन बस्तियों की समस्या का उल्लेख करे।
Ans: भारत में मलिन बस्तियों की समस्या आवास तथा अत्यधिक भीड़ – भाड़ से संबंधित समस्या। मलिन बस्तियां टूटे-फूटे उपेक्षित घरों का वह इलाका है जहां लोग आवश्यक जन सुविधाओं के बिना अत्यधिक गरीबी में रहते हैं। विविध प्रकार की मलिन बस्तियों में रहने वालों को भारतीय नगरीय जनसंख्या के बारे में अनुमान लगाए गये हैं। सन् 1995 में मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या 450 लाख से कम नहीं थी। मलिन बस्तियों में रहने वाली भारतीय जनसंख्या विश्व के 107 देशों की कुल जनसंख्या से अधिक है।
Sanrachnatmak Parivartan: दीर्घ स्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1.सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकी की भूमिका क्या है?
Ans: सामाजिक परिवर्तन लाने में प्रौद्योगिकी की विशेष भूमिका रहती है। प्रौद्योगिकी एक व्यवस्थित ज्ञान है जिसमें यंत्रों और उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। इसमें वे सभी कुशलताएं और ज्ञान व क्रियाएं शामिल है जिनके द्वारा सामाजिक समूह अपने भौतिक और सामाजिक ढांचे में परिवर्तन लाते हैं। प्रौद्योगिकी और सामाजिक परिवर्तन का घनिष्ठ संबंध है। प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के साथ-साथ सामाजिक संबंधों में भी परिवर्तन होते रहते हैं। नई प्रौद्योगिकी जीवन में नई स्थितियां एवं नवीन अवसरों को उत्पन्न करती है। जीवन की नई स्थितियां बहुत दूर तक जीवन के नये अवसरों के अनुकूल हो जाती है। उत्पादन की नई विधियों के प्रयोग से कारखाना पद्धति का उदय हुआ है। समाज में वर्ग भेद का जन्म हुआ। नवीन विचारधाराओं और आंदोलनों का जन्म हुआ, स्त्रियों का कार्यभार कम हुआ है परंतु औद्योगिक केंद्रों में गंदी बस्तियां बस गई और श्रमिकों को नारकीय जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ा। प्रौद्योगिकी ने सामाजिक जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया है। प्रौद्योगिकीय कारकों का जीवन के मूल्यों पर बहुत प्रभाव पड़ा है। मनुष्य के विचारों, प्रवृत्तियों और विश्वासों में परिवर्तन आये हैं। भारतीय जाति व्यवस्था, संस्कार और धार्मिक विश्वासों के स्वरूप में उल्लेखनीय परिवर्तन आये हैं। परिवार के कार्यों को विभिन्न संस्थाओं और समितियों ने ले लिया है। संयुक्त परिवार का तेजी से विघटन हो रहा है, उसके स्थान पर एकाकी परिवारों का चलन बढ़ गया है। विवाह बंधनों में शिथिलता आई है। राज्य का स्वरूप धर्मनिरपेक्ष होता जा रहा है। धार्मिक संकीर्णता समाप्त हो रही है। प्रौद्योगिकी का सबसे अधिक प्रभाव नागरिक जीवन पर पड़ा है। बीमारियां बढ़ रही है। परिवारिक नियंत्रण में कमी आई है। नैतिकता का स्तर गिरा है। स्त्री – पुरुषों की जनसंख्या में विषमता आ रही है।
Q.2.भारत में औद्योगिकरण के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
Ans: भारत में औद्योगीकरण लगभग 100 वर्ष पुराना है। औद्योगीकरण ने भारत के सामाजिक – आर्थिक जीवन में विशेष प्रभाव डाला है। औद्योगीकरण के प्रभाव को हम निम्न आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं –
- (i) नगरीकरण –औद्योगीकरण के कारण अनेक नये औद्योगिक नगर विकसित हुए हैं। कारखानो में हजारों श्रमिकों को काम मिलने लगा है। गांवो से असंख्य किसान काम की तलाश में नगरों में आते हैं। इनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनेका होटलों, दुकानों, स्कूलों, कॉलेज, बैंक तथा मकानों का निर्माण व्यापक पैमाने पर होता है। जहां बड़े कारखाने स्थापित होते हैं, वहां नये – नये नगर बस जाते हैं।
- (ii) समाज में वर्ग – भेद – औद्योगीकरण का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि इससे समाज में वर्ग – भेद उत्पन्न हो जाता है। धनी और निर्धन का बीच अंतर बढ़ जाता है। श्रमिकों और पूंजीपतियों के बीच संघर्ष का कारण यह औद्योगीकरण ही है।
- (iii) नवीन विचारधाराओं का जन्म – औद्योगिक वर्ग संघर्ष तथा नगरीकरण से नवीन विचारधाराओं का उदय हुआ है। जिन नगरों में बड़े कारखाने हैं वहां साम्यवादी विचारधारा का बोलबाला है। हड़ताल और तालाबंदी की स्थिति देखने को मिलती है।
- (iv) गंदी और घनी बस्तियों – औद्योगिक नगरों में कारखानों के आस – पास गंदी बस्तियां बस जाती है। उनका युवक – युवतियों और बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- (v) स्त्रियों के कार्यभार में कमी – मशीनों के उपयोग से स्त्रियों का काम सरल और कम परिश्रम वाला हो गया है। उन्हें भी पुरुषों के समान व्यवसायिक कार्य के लिए पर्याप्त समय मिलने लगा है।
- (vi) यातायात के साधनों का प्रभाव – सामाजिक संबंधों की स्थापना का संदेशवाहन के साधनों का विशेष प्रभाव पड़ता है। विभिन्न उद्योगों में मशीनों के प्रयोग से व्यापार का विकास हुआ है। आवागमन के साधनों ने व्यापार को बढ़ाने और बाजार का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यातयात के साधनों के कारण अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा मिला है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में वृद्धि हुई है।
- (vii) कारखाना पद्धति का विकास – बड़े कारखानों की स्थापना से कुटीर उद्योगों का पतन हुआ है और उनके स्थान पर बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिससे वहां कार्य करने वाले लोगों के रहन-सहन पर प्रभाव पडा है। कारखानो ने संबंधित व्यक्तियों के आपसी संबंधों को औपचारिक बना दिया है।
Q.3.भारतीय समाज पर नगरीकरण के प्रभाव का वर्णन करें।
Ans: नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों से निकलकर नगरों में जाकर निवास करने लगते हैं। ग्रामीण समाज नगरीय समाज में परिवर्तित हो जाता है। नगरीकरण की प्रक्रिया द्वारा उद्योगों का विकास होता है। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप नगरों का भी विकास होता है।
भारतीय समाज पर नगरीकरण के प्रभाव – भारतीय समाज पर नगरीकरण के निम्नलिखित प्रभाव पड़ रहे हैं –
- (i) औद्योगीकरण – नगरों का विकास हो जाने का कारण औद्योगीकरण की प्रक्रिया बढ़ गई है। ग्रामीण उद्योगों के समाप्त होने और नये उद्योग – धंधों के विकास के कारण भारत में सामाजिक संगठन में परिवर्तन हुए हैं। पूंजीपति और श्रमिक वर्ग के बीच संघर्ष बढ़ गये हैं। श्रम की गतिशीलता में वृद्धि हो गई है। कारखानों की स्थापना से गंदी बस्तियों का विस्तार, हड़ताल, बिजली पानी, यातायात, निवास और भोजन की समस्याएं आदि उत्पन्न हो जाती है।
- (ii) एकाकी परिवारों में वृद्धि – नगरों का विकास हो जाने से भारत में संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हो रहा है। नगरों में एकाकी परिवारों को प्रोत्साहन मिल रहा है। संयुक्त परिवार की भावना धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।
- (iii) संबंधों में औपचारिकता – नगरों की जनसंख्या अधिक होती है। आमने – सामने के घनिष्ठ और औपचारिक संबंध बड़े नगरों में समाप्त हो जाते हैं।
- (iv) भौतिकवादी विचारधारा का विकास – अभी तक भारत में अध्यात्मिकवाद की भावना पर अधिक बल दिया जाता था, परंतु नगरों का विकास होने पर लोगों में भौतिकवाद की भावना का विकास हुआ है। इस भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण भारत में वैयक्तिक संबंधों का अभाव पाया जाता है। समाज में सहयोग की भावना कम हो रही है और विभेदीकरण की प्रक्रिया अधिक प्रभावशाली होती जा रही हैं।
- (v) सामाजिक गतिशीलता – नगरीकरण ने सामाजिक गतिशीलता को प्रोत्साहन दिया है। यातायात और संचार साधनों के विकसित होने से लोग और काम और व्यापार के सिलसिले में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आ – जा सकते हैं। सामाजिक गतिशीलता में तेजी से परिवर्तन हो रहा है।
- (vi)सामाजिक नियंत्रण का अभाव – नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी विचारों और भावनाओं का विकास हुआ है। प्राचीन रीति – रिवाज प्रभावहीन हो गये हैं। रीति – रिवाजों, प्रथाओ, और परंपराओं के अनुसार लोग काम करते थे, लेकिन नगरीकरण के कारण परिवार, प्रथाएं, धर्म आदि प्रभावाहीन हो गए हैं।
Q.4.पूंजीवादी संरचना पर प्रकाश डालिए।
Ans: उपनिवेशवाद के आयामों व तीव्रता को भलीभांति समझने के लिए यह आवश्यक है कि पूंजीवाद की संरचना को समझा जाए। पूंजीवाद ऐसी आर्थिक अर्थव्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व कुछ विशेष लोगों के हाथों में होता है और इसमें ज्यादा – से – ज्यादा लाभ कमाने पर जोर दिया जाता है। पश्चिम में पूंजीवाद का प्रारंभ एक जटिल प्रक्रिया के फलस्वरुप हुआ था। इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से यूरोप द्वारा शेष दुनिया की खोज, गैर – यूरोपीय देशो की संपत्ति और संसाधनों का दोहन, विज्ञान और तकनीक का अद्वितीय विकास और इसके उपयोग से उद्योग एवं कृषि में रूपांतरण आदि सम्मिलित है। पूंजीवाद को प्रारंभ से ही इसकी गतिशीलता वृद्धि की संभावनाएं, प्रसार, नवीनीकरण, तकनीकी और श्रम के बेहतर उपयोग के लिए जाना गया। इन्हीं गुणों के कारण पूंजीवाद अधिक – से – अधिक लाभ सुनिश्चित करता है। पूंजीवादी दृष्टिकोण से बाजार को एक वृहद – भूमंडलीकृत रूप में देखा गया। पश्चिमी उपनिवेशवाद का पश्चिमी पूंजीवादी के विकास से अन्योन्याश्रित संबंध है। यही बात औपनिवेशिक भारत के संदर्भ में भी कही जा सकती है। भारत में भी पूंजीवाद के विकास के कारण उपनिवेशवाद स्थापित हुआ है और इस प्रक्रिया के दूरगामी प्रभाव भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना पर पड़े।
Q.5.औद्योगीकरण का सामाजिक जीवन पर प्रभाव बताइये।
Ans: औद्योगीकरण ने सामाजिक जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है। इसका सामाजिक संबंधों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है –
- (i) परिवार संस्था और प्रभाव – औद्योगीकरण के फलस्वरूप परिवार क्षेत्र के बहुत – से कार्यों को विभिन्न संस्थाओं और समितियों ने ले लिया है। आज संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन हो रहा है, उसके स्थान पर एकाकी परिवारों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। परिवार का संरचना भी तेजी से बदल रही है। परिवार में अब कर्ता का निरंकुश शासन नहीं रहा है और न ही स्त्रियों की स्थिति इतनी निम्न है।
- (ii) विवाह संस्था पर प्रभाव – औद्योगीकरण के फलस्वरुप बड़े नगरों की स्थापना हो रही है। विवाह – बंधन अबर शिथिल पड़ गये हैं। विवाह जो एक धार्मिक संस्कार था, अब एक सामाजिक समझौते का रूप ग्रहण कर लिया है। प्रेम विवाहों का महत्त्व बढ़ रहा है।
- (iii) धार्मिक संस्थाओं का प्रभाव – धर्म के प्रति लोगों की भावना कम हो रही है, वैज्ञानिक आविष्कारों ने मनुष्य में प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की क्षमता को बढ़ाया है। राज्य भी धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हैं। धार्मिक कट्टरता अब धीरे-धीरे कम हो रही है।
- (iv) स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन – स्त्रियां अब घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर पुरुषों के समान विभिन्न व्यवसायों को करने लगी है।
- (v) नागरिक जीवन पर प्रभाव – प्रौद्योगिक की उन्नति से सामाजिक जीवन पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़ रहे हैं। सामुदायिक भावना की कमी, समय का मूल्य बढ़ जाना, बीमारियों का बढ़ना, परिवारिक नियंत्रण का अभाव, नैतिकता का निम्न स्तर, स्त्री – पुरुषों की जनसंख्या में विषमता जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही है।