Ek dal ke prabhutv ka daur: एक दल के प्रभुत्व का दौर अध्याय 2 स्वतंत्र भारत में राजनीति पुस्तक से ली गयी है। इसमें सभी महत्वपूर्ण प्रश्न का समाधान दिया गया है। सभी प्रश्न झारखण्ड अधिविध परिषद् राँची द्वारा संचालित पाठ्यक्रम पर आधारित है। Ek dal ke prabhutv ka daur chapter2 book2 ncert solutions.
Ek dal ke prabhutv ka daur: अति लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. भारतीय जनसंघ पार्टी की उत्पत्ति कैसे हुई?
Ans: भारतीय जनसंघ का पार्टी का गठन 1951 में किया गया था इसके संस्थापक अध्यक्ष श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। इसकी जड़े तथा वैचारिक प्रभाव RSS हिंदू महासभा का है। वैचारिक तौर पर भारतीय जनसंघ पार्टी कांग्रेस व साम्यवादी दलों से अलग है भारतीय जनसंघ पार्टी की प्राथमिकताएं निम्न है- एक शब्द, एक संस्कृति, एक भाषा तथा एक धर्म।
Q.2. राजकुमारी अमृत कौर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans:वह एक गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी थी उनका संबंध कपूरथला (पंजाब) के राजपरिवार से था। विरासत में उन्हें अपनी माता से इसाई धर्म प्राप्त हुआ। उन्हें संविधान सभा की सदस्यता पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बने 1964 में उनका निधन हो गया।
Q.3. मौलाना अब्दुल कलाम पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans: मौलाना अबुल कलाम का पूरा नाम अब्दुल कलाम मोहिउद्दीन अहमद था वह इस्लाम के विद्वान थे वह स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के नेता थे वह हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतिपादक और विभाजन के विरोधी थे वह संविधान सभा के सदस्य तथा स्वतंत्र भारत में बने पहले मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री कौन है।
Q.4. कांग्रेस पार्टी से 1892 के वर्ष में प्रमुख प्रभावशाली लगभग 12 नेताओं के नाम लिखें।
Ans: जवाहरलाल नेहरू, मोरारजी देसाई, रफी अहमद किदवई, डॉक्टर बी सी राय, कामराज नाडार्, गोपालाचारी, जगजीवन राम, मौलाना आजाद, डी पी मिश्रा, पीडी टंडन, बल्लभ पंत, सरोजिनी नायडू, श्रीमती विजया लक्ष्मी पंडित।
Q.5. संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान निर्माण से पूर्व हिंदुस्तान की राजनीति की किस महत्वपूर्ण बुराई की ओर संकेत किया गया?
Ans: संविधान में संविधान तैयार होने से एक-एक दिन पहले अर्थात 25 नवंबर 1949 को नाय पूजा की ओर संकेत दिया गया इससे संबंधित कथन प्रस्तुत है- “हिंदुस्तान की राजनीति में नायक पूजा जितनी बड़ी भूमिका अदा करती है उसकी तुलना दुनिया के किसी भी देश की राजनीति में मौजूद नायक पूजा के भाव से नहीं की जा सकती लेकिन राजनीति में मौजूद नायक पूजा का भाव सीधे पतन की ओर ले जाता है और रास्ता तानाशाही की तरफ जाता है”।
Q.6. आचार्य नरेंद्र देव राय पर संक्षिप्त टिप्पणी दें।
Ans: आचार्य नरेंद्र देव राय का जन्म 1889 में हुआ। वह देश की स्वतंत्रता सेनानी थे उन्होंने सोशलिस्ट कांग्रेस की स्थापना की। स्वराज्य के लिए संघर्ष के आंदोलन के दौरान वह अनेक बार जेल गए। वह वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे उन्होंने देश में किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई है वह बौद्ध धर्म के ज्ञाता और विद्वान थे। देश की आजादी मिलने के बाद पहले तो उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी और कालांतर में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को नेतृत्व प्रदान किया 1956 में उन्होंने अपना दिवंगत शरीर छोड़ दिया।
Q.7.आजादी के बाद प्रारंभिक वर्षों के चुनावों में कांग्रेस की अत्यधिक सफलता के कारण बताएं।
Ans:भारत की आजादी का गौरव कांग्रेस को प्राप्त था, राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत कांग्रेस के साथ ही थी, कांग्रेस में पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे चमत्कारी व्यक्तित्व के नेता थे, कांग्रेस के अलावा कोई अन्य प्रभावशाली राजनीतिक दल नहीं था।
Q.8. 1967 के चुनाव में कांग्रेस के प्रभुत्व की गिरावट के प्रमुख कारण क्या थे।
Ans: चमत्कारी नेतृत्व का अभाव, राष्ट्रीय आंदोलन के समय की राजनीतिक संस्कृति का अभाव, क्षेत्रवाद का उदय, अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय तथा उनके चुनावी सफलता, गठबंधन की राजनीति का उदय।
Q.9. समाजवादी आंदोलन के प्रमुख नेताओं व चिंतकों के नाम बताएं।
Ans: समाजवाद के बारे में ऐसा कहा जाता है कि- यह एक ऐसा टोप है जिसका अधिक प्रयोग होने से आकार बड़ा बिगड़ गया है यह कथन सही है भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में समाजवाद एक लोकप्रिय विचारधारा रही है जिससे अनेक चिंतक जुड़े रहे हैं परंतु व्यवहार में इसे सफलता नहीं मिली भारत के प्रमुख समाजवादी चिंतको के नाम निम्नलिखित है- आचार्य पटवर्धन, आचार्य नरेंद्र देव राय, जयप्रकाश नारायण, राजनारायण, अशोक मेहता, राम मनोहर लोहिया आदि।
Q.10. उन प्रमुख राजनीतिक दलों के नाम बताइए जिनके जड़े समाजवादी आंदोलन के साथ जुड़ी हुई हैं।
Ans: समाजवादी आंदोलन से 1950 के दशक में अनेक राजनीतिक दल प्रभावित हुए यहाँ तक की कांग्रेस ने भी 1955 में अपने अवधि अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर समाजवाद को अपनाया था। समाजवादी विचारधारा से जुड़े प्रमुख राजनीतिक दल निम्नलिखित है- राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, जनता दल (संयुक्त), जनता दल (सेक्युलर) समाजवादी पार्टी।
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Q.11. दलीय प्रभुत्व से आप क्या समझते हैं?
Ans: दलीय प्रभुत्व का संबंध किसी राजनीतिक व्यवस्था की ओर से स्थिति से है जब किसी दल का प्रभाव सामाजिक व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था, व राजनीतिक व्यवस्था पर होता है चुनावी राजनीति में भी अन्य दल उसके सामने कमजोर होते हैं एक दल के प्रभुत्व के कारण अन्य कोई दल इस स्थिति में नहीं आ पाता कि वह किसी एक विशेष दल के बराबर मतदाताओं को अपनी प्रत्यक्ष रूप से अथवा अप्रत्यक्ष रूप से आकर्षित कर सकें एक दल का प्रभुत्व प्रजातंत्र या व्यवस्था में भी संभव है जैसे कि साम्यवादी देशों में वह मेक्सिको में।
Q.12. भारत में एक दलीय प्रभुत्व के युग से आप क्या समझते हैं?
Ans: भारत में बहुदलीय प्रणाली है अर्थात भारत में अनेक राजनीतिक दल हैं। रिपोर्ट बताती है कि भारत में लगभग 90 राजनीतिक दल हैं जिनमें से 6 राष्ट्रीय दल हैं वह 45 क्षेत्रीय दल है। प्रायः एक दल के प्रभुत्व के युग को 1885 से लेकर 1867 तक के समय को माना जाता है क्योंकि 1885 से लेकर 1947 तक राष्ट्रीय आंदोलन में कांग्रेस का प्रभुत्व रहा। वह 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव से लेकर 1962 तक के सभी चुनाव में कांग्रेस को लोकसभा में सर्वाधिक सीटें प्राप्त करें वह केंद्र तथा प्रांतों में कांग्रेस का ही शासन रहा 1967 में जाकर इस स्थिति में परिवर्तन आया जब कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाई।
Q.13. ऐसे राजनीतिक दलों के नाम लिखे हैं जो कांग्रेस के विरोध में विकसित हुए।
Ans: कांग्रेस के विरोध में जो राजनीतिक दल विकसित हुए उनमें से मुख्य थे- भारतीय जनसंघ पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी मुस्लिम लीग सोशलिस्ट पार्टी तथा स्वतंत्र पार्टी।
Q.14. भारतीय प्रजातंत्र के सम्मुख कौन कौन से प्रमुख चुनौतियां थी?
Ans: भारतीय संविधान के निर्माताओं ने भारतीय समाज की कमजोरियों व शक्तियों को समझ कर अच्छी तरह से सोच विचार करने के बाद ही संसदीय प्रजातंत्र को अपनाने का निर्णय लिया और परिस्थितियों में निश्चित रूप से भारतीय प्रजातंत्र की सफलता में निम्नलिखित चुनौतियां थी:
- गरीबी रा
- जनीतिक शिक्षा की कमी
- अनपढ़ता
- क्षेत्रीय असंतुलन
- सांप्रदायिकता
- साम्यवाद
- आर्थिक स्रोतों के विकास का अभाव आदि।
Q.15. दीनदयाल उपाध्याय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans: दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 1916 में हुआ उन्होंने आजादी के पहले से ही देश की राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया 1942 ए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ-साथ भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक वह पहले तो भारतीय जनसंघ पार्टी के महासचिव और बाद में अध्यक्ष बने वह कुशल विचारक नीति का कितना महान संगठन करता है समग्र मानवता के सिद्धांत के प्रणेता के रूप में याद किया जाता है 1968 में उनका देहांत हो गया।
Ek dal ke prabhutv ka daur: लघु उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस को प्राप्त चुनावी सफलता पर प्रभुत्व का उल्लेख कीजिए।
Ans: प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा के पहले चुनाव में कुल 489 सीटों में 364 सीटे जीती और इस तरह कांग्रेस किसी भी प्रतिद्वंद्वी से चुनावी दौड़ में बहुत आगे निकल गया जहां तक सीटों पर जीत हासिल करने का सवाल है पहले आम चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दूसरे नंबर पर रहे उसे कुल 16 हासिल हुई। लोकसभा के चुनाव के साथ-साथ विधानसभा के चुनाव कराए गए थे कांग्रेस पार्टी को विधानसभा के चुनाव में भी बड़ी जीत हासिल हुई त्रावनकोर कोचीन, मद्रास, उड़ीसा को छोड़कर सभी राज्यों में कांग्रेस में अधिकतर सीटों पर जीत हासिल की।आखिरकार ऊपर उल्लेखित तीन राज्यों में भी कांग्रेस की ही सरकार बनी इस तरह राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का शासन कायम हुआ उम्मीद के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू पहले आम चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बने।
Q.2. भारत में समाजवादी आंदोलन की सफलता तथा असफलताओं पर प्रकाश डालिए।
Ans: भारत में समाजवादी आंदोलन को बड़ी ही जोश में उम्मीद से प्रारंभ किया गया क्योंकि भारत के सामाजिक व आर्थिक समस्याओं का हल समाजवादी व्यवस्था में ही देखा गया राम मनोहर लोहिया, आचार्य नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण ने भारत में समाजवाद के नेम रखें जिसको भारत के अनेक राज्यों में सोशलिस्ट पार्टी के रूप में राजनीतिक दलों के माध्यम से लोकप्रिय बनाया गया भारतीय संविधान सभा इसके प्रभाव से मुक्त नहीं थी व भारतीय संविधान के चौथे भाग में दिए गए राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अध्याय में समाजवादी सिद्धांतों को जगह दी अल्फाज सरकारों को यह निर्देश दिया गया कि अपनी सामाजिक व आर्थिक नीतियों व कार्यक्रम समाजवादी विचारधारा के आधार पर बनाएं।
Q.3. भारत के संविधान निर्माताओं ने संसदीय सरकार को क्यों अपनाया?
Ans: 15 अगस्त 1947 को भारत में आजादी प्राप्त करने के बाद अपना संविधान बनाया जिसके लिए 1946 में ही संविधान सभा का गठन किया गया था लंबे विचार-विमर्श की प्रक्रिया में संविधान बनाने में लंबा समय अर्थात 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा जो दिसंबर 1984 जनवरी 1950 को लागू हुआ। भारतीय संविधान संसदीय प्रजातंत्र को अपनाया भारत में संसदात्मक प्रजातंत्र को अपनाने से दुनिया के अनेक क्षेत्रों में इस बात पर संदेह व्यक्त किया गया था कि प्रजातंत्र सफल हो पाएगा या नहीं अधिकांश देशों का मत यह था कि भारत में जल्द ही राजनीतिक अनिश्चितता आ जाएगी क्योंकि भारत की प्रस्तुति प्रजातंत्र सरकार के अनुकूल नहीं है भारत में 78% लोग ग्रामों में रहते हैं 30% लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं यहां पर बड़े पैमाने पर लोग गरीब बेरोजगार स्थित है परंतु भारत के संविधान बनाने वाले ने भारत के लोगों को जिम्मेवार व शक्तिशाली बनाने के लिए ही संसद में सरकार को चुना ताकि वह अपने प्रतिनिधि को चुन सके जो उनके प्रति जिम्मेदार हो तथा उनके बीच में सदस्य हो वास्तव में भारतीयों को विकसित करने में एक नया विश्वास पैदा करने के लिए संसदात्मक सरकार को अपनाया गया।
Q.4. भारत के प्रथम आम चुनाव में चुनाव आयोग को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा था?
Ans: जिस समय देश आजाद हुआ उसी समय का वातावरण अत्यंत तनावपूर्ण तथाअनिश्चितता क्षेत्रों से भरा हुआ था। पहले ही सांप्रदायिक उन्माद के कारण भारत का विभाजन हुआ था भारत की जनता को व्यस्क मताधिकार तो दे दिया कर गया के प्रयोग का ज्ञान बहुत कम लोगों को आर्थिक पिछड़ापन में व्याप्त था उस वातावरण में चुनाव आयोग को स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने में अनेक परेशानियां आए जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित था:
- चुनाव क्षेत्र की सीमाओं को निर्धारित किया जाना था।
- योग्य मतदाताओं की मत सूचियां तैयार करना भी एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि उचित रिकॉर्ड का अभाव था।
- 1952 के चुनाव से लगभग 17 करोड़ मतदाता थे जिनसे प्रत्यक्ष रूप से मतदान कराना एक बड़ा कार्य था।
- इस चुनाव 17 करोड़ मतदाताओं के द्वारा लोकसभा के 489 सदस्यों व 3200 विधानसभा के सदस्यों का चुनाव मापा जाना था।
- 17 करोड मतदाताओं में से केवल 17% शिक्षित थे।
- चुनाव प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी रखने वाले चुनावी कर्मचारी बहुत कम से अतः यह भी एक बड़ी समस्या थी।
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Q.5. उन कारकों की चर्चा कीजिए उनकी पजल से प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई?
Ans: भारत के 1952 में हुए पहले आम चुनाव के नतीजे से शायद ही किसी को अचंभा हुआ हो। आशा यही थी कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस चुनाव में जीत जाएगी।
भारत में राष्ट्रीय कांग्रेस का लोक प्रचलित नाम कांग्रेस पार्टी था इस पार्टी को स्वाधीनता संग्राम की विरासत हासिल थी। तब के दिनों में यही एकमात्र पार्टी थी जिनका संगठन पूरे देश में था इस कार्य में खुद जवाहरलाल नेहरू थे जो भारतीय राजनीति के सबसे करिश्माई और लोकप्रिय नेता थे। नेहरू ने कांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान की अगुवाई की और पूरे देश का दौरा किया जब चुनाव परिणाम घोषित हुए तो आश्चर्य हुआ कांग्रेस पार्टी की भारी-भरकम जीत से पौधों को आश्चर्य हुआ।
Q.6. भारत में 1980 के बाद उत्पन्न हुए राजनीतिक दलों का स्वरूप समझाएं।
Ans: बहुदलीय प्रणाली राजनीतिक प्रणाली के प्रमुख विशेषता रही है यह एक ऐसी बहुदलीय व्यवस्था रही है जिसमें एक ही राजनीतिक दल अर्थात कांग्रेस का प्रभुत्व रहा है। यद्यपि अनेक विरोधी दलों का अस्तित्व रहा है लेकिन मजबूत व स्वस्थ विरोधी दलों का अभाव रहा अर्थात विरोधी दल विभाजित रहे। 1980 तक के वर्षों में मुख्य राजनीतिक दलों का स्वरूप राष्ट्रीय रहा है जैसे साम्यवादी दल, जनसंघ व कुछ प्रमुख समाजवादी राजनीतिक दल प्रमुख राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल रहा है जो केवल किसी विशेष क्षेत्र तक सीमित नहीं थे बल्कि बड़े क्षेत्र में इनका प्रभाव व्याप्त था। परंतु 1980 के बाद विभिन्न कारणों से विभिन्न आधारों पर क्षेत्रीय दलों का विकास प्रारंभ हो गया इन दलों का विकास मुख्य रूप से क्षेत्र भाषा तथा क्षेत्रीय असंतुलन की राजनीति के आधार पर हुआ इन क्षेत्रीय दलों को जल्द ही चुनावी राजनीति में भी सफलता मिलने लगी परिणामस्वरूप 1996 के बाद से केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस के प्रभुत्व के दौर पर मिली जुली राजनीति के आधार पर केंद्र में इनका प्रभुत्व हो गया सरकार एनडीए की रही हो या यूपीए की सरकार रही हो इनमें क्षेत्रीय दलों का ही बोलबाला रहा है।
Q.7. केरल में प्रथम कम्युनिस्टों की जीत और धारा 356 का कांग्रेस द्वारा दुरुपयोग विषय पर टिप्पणी लिखिए।
Ans: केरल में कम्युनिस्टों के प्रथम चुनावी जीत: 1957 में ही कांग्रेस पार्टी को केरल में हार का मुंह देखना पड़ा 1957 के मार्च महीने में जो विधानसभा के चुनावों के चुनाव हुए उसमें कम्युनिस्ट पार्टी को केरल की विधानसभा के लिए सबसे ज्यादा सीटें मिली कम्युनिस्ट पार्टी को कुल 126 में से 70 सीटें हासिल हुई और पांच स्वतंत्र उम्मीदवारों का भी समर्थन इस पार्टी को प्राप्त था राज्यपाल ने कम्युनिस्ट विधायक दल के नेता ईएमएफ नांबुदरिपाद को सरकार बनाने का न्योता दिया दुनिया में यह पहला अवसर था जब एक कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार लोकतांत्रिक चुनाव के जरिए बनी।
संविधान सभा की धारा 356 का दुरुपयोग: केरल के सत्ता में बेदखल होने पर कांग्रेस पार्टी ने निर्वाचित सरकार के खिलाफ मुक्ति संघर्ष छेड़ दिया भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में इस वायदे के साथ आई थी कि वह कुछ क्रांतिकारी तथा प्रगतिशील नीतिगत पहल करेगी कम्युनिस्ट पार्टी का कहना था कि इस संघर्ष की अगुवाई निहित स्वार्थ और धार्मिक संगठन कर रहे हैं 1959 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत केरल के कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया यह फैसला बड़ा विवादस्पद साबित हुआ संविधान प्रदत्त आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग के पहले उदाहरण के रूप में इस फैसले का बार-बार उल्लेख किया जाता है।
Q.8. सी राजगोपालाचारी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans: सी राजगोपालाचारी का जन्म 1878 में हुआ वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और साहित्यकार थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के वह प्रिय करीबी कार्यकर्ता थे। वह देश के लिए निर्माण करने वाली संविधान सभा के सदस्य रहे। 1948 से 1950 तक उन्हें स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल बनने का सौभाग्य मिला देश की स्वतंत्रता के बाद देश की आंतरिक सरकार में वह मंत्री नियुक्त हुए कालांतर में पर मद्रास के मुख्यमंत्री बने भारत रत्न से सम्मानित पहले भारतीय थे उन्होंने 1959 में स्वतंत्र पार्टी का गठन किया और 1972 में उनका स्वर्गवास हो गया।
Q.9. भारतीय चुनाव आयोग का गठन तथा कार्य समझाएं।
Ans: भारतीय संविधान में स्वतंत्र तथा शांतिपूर्ण तरीके से विभिन्न स्तरों पर चुनाव कराने के लिए एक स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था है जिसके जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो चुनाव आयुक्त होते हैं निश्चित रूप से चुनाव आयोग का कठिन कार्य मुख्य रूप से यह निम्नलिखित कार्य करती है-
- चुनावों की तैयारी करना चुनावों की घोषणा करना
- मत सूचियां तैयार करना
- EVM तैयार करना
- मतपत्र तैयार करना
- चुनाव से जुड़ी कर्मचारियों, अधिकारियों को प्रशिक्षण देना
- परिणाम घोषित करना।
Q.10.भारत में दलीय प्रणाली की प्रमुख समस्याएं समझाएं।
Ans: भारतीय दलीय प्रणाली में निम्न प्रमुख समस्याएं हैं:
- आंतरिक प्रजातंत्र का अभाव
- अनुशासनहीनता
- गुटबाजी
- निश्चित विचारधारा का अभाव
- अवसरवादीता
- विघटित विरोधी दल
- केंद्र की राजनीति पर क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व
- राजनीतिक अस्थिरता
- राजनीतिक अनिश्चितता
- चमत्कारिक व आदर्श नेताओं का अभाव
- जाति के आधार पर राजनीतिक दल
- सांप्रदायिकता के आधार पर राजनीतिक दल
Ek dal ke prabhutv ka daur: दीर्घ उत्तरीय प्रश्न तथा उत्तर
Q.1. दूसरे और तीसरे आम चुनावों में कांग्रेस को मिली सफलता से जुड़े लोगों का प्रयोग पर आलोचनात्मक रूप से एक लेख लिखें।
Ans: दूसरा आम चुनाव 1957 में और तीसरे आम चुनाव 1962 में हुआ इन चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा में अपनी पुरानी स्थिति बरकरार रखी और उससे तीन चौथाई सीटें मिली। कांग्रेस पार्टी ने जितनी सीटें जीती थी उनका दशांश भि कोई विपक्षी पार्टी नहीं जीत सकी। विधानसभा में चुनावों में कहीं-कहीं कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला ऐसा ही एक महत्वपूर्ण उदाहरण केरल का है 1957 केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का अगुवाई में केंद्र सरकार और प्रांतीय सरकार और कांग्रेस पार्टी का नियंत्रण था कांग्रेस पार्टी की जीत का यह आंकड़ा और दायरा हमारी चुनावी प्रणाली के कारण भी बढ़ा-चढ़ा दिखता है। चुनाव प्रणाली के कारण कांग्रेस पार्टी की जीत को अलग से बढ़ावा मिला। मिसाल के लिए 1952 में कांग्रेस पार्टी गोकुल वोटों में से मात्र 45% वोट हासिल हुए थे लेकिन कांग्रेस को 74 फ़ीसदी सीटें हासिल हुई सोशलिस्ट पार्टी वोट हासिल करने के लिहाज से दूसरे नंबर पर रही उसे 1952 के चुनाव में पूरे देश में कोई 10% वोट मिले थे लेकिन यह पार्टी 3% सीट पर ही नहीं जीत पाई हमारे देश की चुनाव प्रणाली में सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत के तरीकों को अपनाया गया है ऐसे में अगर कोई पार्टी बाकियों की अपेक्षा थोड़े ज्यादा वोट हासिल करती है तो दूसरी पार्टियों को प्राप्त वोटों के अनुपात की तो है ना उससे कहीं ज्यादा सीटें हासिल होती हैं यही चीज कांग्रेस पार्टी के पक्ष में साबित हुई। अगर हम सभी गैर कांग्रेसी उम्मीदवारों के वोट जोड़ दे तो वह कांग्रेस पार्टी को हादसे कुल वोट से कहीं ज्यादा होंगे लेकिन गैर कांग्रेसी वोट विभिन्न प्रतिस्पर्धी पार्टियों और उम्मीदवारों में बंट गए इस तरह कांग्रेस बाकी पार्टियों की तुलना में आगे रही और ज्यादा सीटें जीती।
Q.2. स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र स्थापित करने की चुनौती को कैसे स्वीकार किया और उसकी सफलता के उपरांत ग्रुप से कैसे हैरान रह गया?
Ans: स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र स्थापित करने के चुनौती: स्वतंत्रता से पूर्व ही भारत के अनेक राष्ट्रीय नेता यह मान चुके थे कि राष्ट्रीय एकता हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता की चुनौती है और उनेक नेताओं में देश में लोकतंत्रीय शासन प्रणाली को अपनाए जाने में मतभेद था कुछ नेताओं का यह तर्क था कि लोकतंत्र देश में संघर्ष को बढ़ावा देगा जो भी हो हमारे नेता लोकतंत्र को प्यार करते थे और लोकतंत्र में राजनीति के निर्णायक भूमिका को लेकर सचेत थे। राष्ट्रीय नेता गन राजनीति को एक गंभीर समस्या के रूप में नहीं देखते थे। सत्ता और प्रतिस्पर्धा राजनीति को सबसे ज्यादा स्पष्ट रूप से प्रकट चीजें में मानते थे वह यह भी जानते थे कि यदि देश में राजनीति का उद्देश्य जनहित का फैसला करना और उस पर अमल करना होगा तो देश के लोगों पूर्णतया सहयोग देंगे। 26 जनवरी 1950 को देश के संविधान के लागू होने के बाद भारत में चुनाव आयोग का गठन होने से 1950 के जनवरी माह में हो गया। सुकुमार सेन प्रथम चुनाव आयुक्त बने उम्मीद की जा रही थी कि आम चुनाव 1950 में किसी समय हो जाएगा।
प्रथम आयुक्त के समक्ष कठिनाइयां: भारत के प्रथम चुनाव आयोग ने पाया कि भारत के आकार को देखते हुए एक मुक्त और निष्पक्ष आम चुनाव कराना कोई आसान मामला नहीं है चुनाव कराने के लिए चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन जरूरी था। कुल मतदाता सूची यानी मताधिकार प्राप्त वयस्क व्यक्तियों की सूची बनाना भी आवश्यक था। इन दोनों कामों में बहुत सारा समय लगा मतदाता सूचियों का जब पहला प्रारूप राकेश हुआ तो पता चला कि इसमें 4000000 महिलाओं के नाम दर्ज होने से रह गए हैं इन महिलाओं को फलां की बेटी, फलां की बीवी के रूप में दर्ज किया गया था जो चुनाव आयोग ने ऐसे प्रविष्ट को मानने से इनकार कर दिया। देश के प्रथम चुनाव आयोग ने निर्णय किया कि संभोग करते हो तो मतदाता सूचियों को दोबारा से ध्यान पूर्वक जांच आ जाए और आवश्यकतानुसार उसमें उन मतदाताओं के नाम हटा दिए जाए जिनका सम्मिलित किया जाना अनुचित अथवा गलत रहा हो यह अपने आप में हिमालय की चढ़ाई जैसा कार्य था इतने बड़े पैमाने पर ऐसा काम दुनिया में अब तक नहीं हुआ था उस समय देश में 17 करोड़ मतदाता थे उन्हें 3200 विधायक और लोकसभा के लिए 489 सांसद चुनने थे। इन मतदाताओं में महज 17 % साक्षर थे इस कारण चुनाव आयोग को मतदाता की विशेष पद्धति के बारे में भी सोचना पड़ा चुनाव आयोग ने चुनाव कराने के लिए तीन लाख से ज्यादा अधिकारियों और चुनाव कर्मियों को प्रशिक्षित किया।
Q.3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भारतीय राजनीति में प्रभुत्व के कारण तथा प्रभाव समझाएं।
Ans: 1885 में कांग्रेस के गठन के बाद से ही कांग्रेस का राष्ट्रीय आंदोलन पर तथा स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय राजनीतिक पर प्रभुत्व रहा हैं जो 1952 में संपन्न हुआ। प्रथम चुनाव से लेकर 2004 में हुए चुनाव तक देखा जा सकता है। यह अलग बात है कि कांग्रेस को चुनावी राजनीति में असफलताओं का सामना करना पड़ा जिसका कारण क्षेत्रीय दलों का विकास होना है परंतु यह सत्य आवश्यक है कि कांग्रेस का भारतीय राजनीतिक पर प्रभुत्व अवश्य कायम है जिसके कारण प्रमुख है:
- कांग्रेस को राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में देखा जाता था।
- कांग्रेस को राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत हासिल थी।
- कांग्रेस का जन आधार रहा अर्थात कांग्रेस का देश के प्रत्येक क्षेत्र तथा वर्ग में प्रभाव कायम है।
- कांग्रेस के पास चमत्कारिक नेतृत्व रहा है।
- नेहरू परिवार का कांग्रेस पर प्रभाव।
- प्रत्येक राष्ट्रवादी अवसरों जैसे- 15 अगस्त , 26 जनवरी को कांग्रेस के इतिहास को ही राष्ट्रीय आंदोलन की यादों के माध्यम से दोहराया जाता है।
- कांग्रेस के कुछ वर्ग जैसे अल्पसंख्यक अनुसूचित जाति जनजाति एवं महिलाएं सदैव लगातार समर्थक रहे हैं।
कांग्रेस का भारतीय राजनीति पर लगातार प्रभुत्व के कारण:
- कांग्रेस एक सामाजिक गठबंधन है क्योंकि कांग्रेस को विभिन्न वर्गों का समर्थन प्राप्त है अतः इसमें संपूर्ण वर्ग को सामाजिक तथा राजनीतिक रूप से प्रभावित किया।
- कांग्रेस एक वैचारिक गठबंधन है क्योंकि इसमें सामाजिक तौर पर समाजवादी, साम्यवादी तथा दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग शामिल रहे हैं।
- कांग्रेस ने भारतीय संस्कृति जैसी सहनशीलता, धर्मनिरपेक्षता व गुटनिरपेक्षता को बढ़ाया है।
- कांग्रेस ने भारतीय राजनीति में समायोजन व आम सहमति की राजनीति को बढ़ाया है।
- इसने भारत की विभिन्नता में कला के स्वरूप को मजबूत किया है।
Ek dal ke prabhutv ka daur
Q.4. 1967 के भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट के कारणों को लिखिए।
Ans: राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत रोका भारतीय राजनीति में विशेष तौर से राजनीतिक व्यवहार में 1962 के चुनाव तक रहा व बाद में यह प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा जिसका प्रभाव 1967 के चुनाव में दिखने लगा। जब 1967 के चुनाव में कांग्रेस को इतनी ही सीटें मिली कि साधारण बहुमत से सरकार बन सके। अतः कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट आ गई कांग्रेस के प्रभुत्व की गिरावट के निम्न लिखित प्रमुख कारण माने जाते हैं:
- 1964 में पंडित जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद कांग्रेस में चमत्कारिक व्यक्तित्व का अभाव।
- 1964 में कई अन्य राजनीतिक दलों जैसे साम्यवादी दल भारतीय जनसंघ समाजवादी दल मुस्लिम लीग के प्रभावों में बढ़ोतरी हुई।
- भारत में क्षेत्रवाद का विकास होने लगा जिसके आधार पर कई राज्यों में अनेक क्षेत्रीय दलों का विकास होने लगा।
- कांग्रेस के वोट बैंकों का अन्य राजनीतिक दलों के पास खीसक जाने से भी कांग्रेस की सीटों की संख्या में कमी आ गई।
- केंद्र में विरोधी दलों के खिलाफ कांग्रेस की सरकार के द्वारा संविधान के कुछ प्रावधानों के दुरुपयोग के कारण कांग्रेस के खिलाफ लोगों में नकारात्मक भावना बढ़ गई।
- राज्य में मिली जुली सरकारो कि राजनीति का आरंभ होना अनेक राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का बना उसका सफलता के साथ चलना।
- कांग्रेस विरोधी राजनीति का प्रचार।
- कांग्रेस में परंपरागत वोट बैंक द्वारा किए गए विश्वास में गिरावट।
- कांग्रेस में नेतृत्व का संकट।
- अतः उपरोक्त कारणों से 1967 के बाद से कांग्रेस के प्रभाव में कमी आई।
Q.5. सोशलिस्ट पार्टी के जन्म, विकास, विचारधारा, उपलब्धियों और प्रमुख नेताओं को ध्यान में रखकर एक लेख लिखें।
Ans: पृष्ठभूमि: सोशलिस्ट पार्टी की जड़ों को आजादी के पहले के उस वक्त में ढूंढा जा सकता है जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जन आंदोलन चला रहे थे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन कांग्रेस के भीतर 1934 में युवा नेताओं की एक टोली ने किया था। वे नेता कांग्रेस को ज्यादा से ज्यादा परिवर्तनकारी और समतावादी बनाना चाहते थे। 1948 में कांग्रेस ने अपने संविधान में बदलाव किए इसलिए किया गया ताकि कांग्रेस के सदस्य दोहरी सदस्यता धारण ना कर सके। इस वजह से कांग्रेस के समाजवादियों को मजबूरन 1948 में अलग होकर सोशलिस्ट पार्टी बनानी पड़ी।
पार्टी तथा आम चुनाव: सोशलिस्ट पार्टी चुनावों में कुछ खास कामयाबी हासिल नहीं कर सकी। इससे पार्टी के समर्थकों को बड़ी निराशा हुई हालांकि सोशलिस्ट पार्टी की मौजूदगी हिंदुस्तान के अधिक राज्य में थे लेकिन पार्टी को चुनावों में छिटपुट सफलता ही मिली।
समाजवादी पार्टी की विचारधारा: समाजवादी लोकतांत्रिक समाजवाद की विचारधारा में विश्वास करते थे और किस आधार पर वे कांग्रेस तथा साम्यवादी दिमाग से अलग थे वह कांग्रेस की आलोचना करते थे कि वह पूंजीपतियों और जमींदारों का पक्ष ले रही है और मजदूरों किसानों की अपेक्षा कर रही है लोहिया के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी 1955 में दुविधा की स्थिति का सामना करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस ने घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य समाजवादी बनावट वाले समाज की रचना है ऐसे में समाजवादी हो के लिए खुद को कांग्रेस का कारण विकल्प बनाकर पेश करना मुश्किल हो गया राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में कुछ समाजवादियों ने कांग्रेस से अपनी दूरी बढ़ाई और कांग्रेस से हल्के-फुल्के सहयोग की तरफदारी की।
विभाजन: सोशलिस्ट पार्टी के कई टुकड़े हुए और कुछ मामले में बहुदा मेल भी हुआ इस प्रक्रिया में कई समाजवादी दल बने इन दलों में किसान मजदूर प्रजा पार्टी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का नाम लिया जा सकता है।
नेतागण: जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, आचार्य नरेंद्र देव राय, राम मनोहर लोहिया, एसएम जोशी समाजवादी दलों के नेताओं के प्रमुख थे। मौजूदा हिंदुस्तान के कई दलों से समाजवादी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल जनता दल यूनाइटेड और जनता दल सेक्युलर सोशलिस्ट पार्टी की छवि की जा सकती है।
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