क्षेत्रीय संसकृतियों का निर्माण: Class 7 history Chapter 9 Question Answer NCERT Notes in Hindi

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Class 7 history Chapter 9 Question Answer

Class 7 history Chapter 9 Question Answer

विषय सूची:

  1. चेर और मलयालम भाषा का विकास
  2. शासक और धार्मिक परंपराएं- जगन्नाथ संप्रदाय
  3. राजपूत और शूरवीरता कि परंपराएं
  4. क्षेत्रीय सीमांतो से परे- कत्थक नृत्य की कहानी
  5. संरक्षकों के लिए चित्रकला- लघु चित्रों की परंपरा
  6. बंगाल- नजदीक से एक नजर
  7. पीर और मंदिर
  8. मछली- भोजन के रूप में
  9. NCERT अभ्यास प्रश्न तथा उत्तर

चेर और मलयालम भाषा का विकास

  • महोदय पुरम का चेर राज्य नौवीं शताब्दी में स्थापित किया गया। संभवत मलयालम भाषा इस इलाके में बोली जाती थी शासकों ने मलयालम भाषा एवं लिपि का प्रयोग उपयोग अपने अभिलेखों में किया।
  • 14 वीं सदी का एक ग्रंथ लीला तीलकम जो व्याकरण तथा काव्यशास्त्र विषयक है, मणिप्रावलम शैली में लिखा गया था। मणिप्रावलम का शाब्दिक अर्थ हीरा और मूंगा है।

शासक और धार्मिक परंपराएं- जगन्नाथी संप्रदाय

  • जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ है दुनिया का मालिक जो विष्णु का पर्यायवाची है।
  • आज तक जगन्नाथ के काष्ठ प्रतिमा स्थानीय जनजातीय लोगों द्वारा बनाई जाती है जिससे यह तात्पर्य निकलता है कि जगन्नाथ मूलतः एक स्थानीय देवता थे जिन्हें आगे चलकर विष्णु का रूप मान लिया गया।
  • 12 वीं शताब्दी में गंग वंश के एक अत्यंत प्रतापी राजा अनंतवर्मन ने पूरी में पुरुषोत्तम जगन्नाथ के लिए एक मंदिर बनवाने का निश्चय किया था।
  • 1230 में राजा अनंगभीम तृतीय ने अपना राज्य पुरुषोत्तम जगन्नाथ को अर्पित कर दिया और स्वयं को जगन्नाथ का प्रतिनियुक्त घोषित किया।

राजपूत और शूरवीरता कि परंपराएं

  • 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश लोग उस क्षेत्र को जहां आज का अधिकांश राजस्थान स्थित है, राजपूताना कहते थे.
  • अक्सर यह माना जाता है कि राजपूतों ने राजस्थान को एक विशिष्ट संस्कृति प्रदान की है.
  • यह सांस्कृतिक परंपराएं वहां के शासकों के आदर्शों तथा अभिलाषा ओं के साथ घनिष्ठता से जुड़ी हुई थी.
  • लगभग 8 वीं शताब्दी से आज के राजस्थान के अधिकांश भाग पर सभी परिवारों के राजपूत राजाओं का शासन रहा। पृथ्वीराज एक ऐसा ही शासक था।
  • यह शासक ऐसे शासक थे जिन्होंने रणक्षेत्र में बहादुरी से लड़ते हुए अक्सर मृत्यु का वरण किया मगर पिठ नहीं दिखाई।
  • राजपूत सुरवीरों की कहानियां काव्य एवं गीतों में सुरक्षित है। विशेष रूप से प्रशिक्षित चारण भाटों द्वारा गाई जाती है।
  • इन कहानियों में अक्सर नाटक की स्थिति और स्वामी भक्ति, मित्रता, प्रेम, शौर्य, क्रोध आदि प्रबल संवेगओं का चित्रण होता था।
  • कुछ कहानियों में स्त्रियां भी कभी-कभी झगड़े के कारण के रूप में विद्यमान होती थी जब पुरुष स्त्रियों को जीतने के लिए अथवा उनकी रक्षा के लिए आपस में लड़ते थे।
  • कहीं कहीं यह भी चित्रित किया गया है कि स्त्रियां अपने शूरवीर पतियों का जीवन मरण दोनों में अनुसरण करती थी सती प्रथा या विधवाओ द्वारा अपने मृतक पति की चिता पर जिंदा जलाने की प्रथा का भी कुछ कहानियों में उल्लेख पाया जाता है.

क्षेत्रीय सीमांतो से परे- कत्थक नृत्य की कहानी

  • कत्थक नृत्य शैली उत्तर भारत के अनेक भागों से जुड़ी है। कत्थक शब्द कथा शब्दों से निकला है जिसका प्रयोग संस्कृत तथा अन्य भाषाओं में कहानी के लिए किया जाता है।
  • कत्थक मूल रूप से उत्तर भारत के मंदिरों में कथा यानी कहानी सुनाने वालों की एक जाती थी।
  • यह कथाकार अपने हाव-भाव तथा संगीत से अपने कथा वाचन को अलंकृत किया करते थे।
  • 15वीं तथा 16वीं शताब्दी में भक्ति आंदोलन के प्रसार के साथ कत्थक एक विशिष्ट नृत्य शैली का रूप धारण करने लगा।
  • आगे चलकर यह दो परंपराओं अर्थात घरानों में फला- फूला: राजस्थान के राजदरबारों में और लखनऊ में।
  • अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण में यह एक प्रमुख कला रूप में उभरा।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तो देश में इसे शास्त्रीय नृत्य रूप में मान्यता मिल गई।

संरक्षकों के लिए चित्रकला- लघु चित्रों की परंपरा

  • छोटे आकार के चित्र को लघुचित्र कहा जाता है, जिन्हें आमतौर पर जल रंगों से कपड़े या कागज पर चित्रित किया जाता है।
  • प्राचीनतम लघु चित्र तालपत्रों अथवा लकड़ी की शक्तियों पर वितरित किए गए थे।
  • मुगल बादशाह अकबर, जहांगीर, शाहजहां ने अत्यंत कुशल चित्रकारों को संरक्षण प्रदान किया था जो प्राथमिक रूप से इतिहास और काव्य की पांडुलिपि या चित्रित करते थे। यह पांडुलिपिया आम तौर पर चटक रंगों में चित्रित की जाती थी और उन्हें में दरबार के दृश्य लड़ाई, शिकार के दृश्य सामाजिक जीवन के अन्य प्रशिक्षित किए जाते थे।
  • 17 वी शताब्दी के बाद वाले वर्षों में लघु चित्रकला की एक साहस पूर्ण शैली का विकास हुआ जिसे बसोहली शैली कहा जाता है।

बंगाल- नजदीक से एक नजर

  • बंगाल के लोग बंगला या बंगाली भाषा बोलते थे। आज बंगाली संस्कृत से निकली हुई भाषा मानी जाती है.
  • ईसा पूर्व चौथी तीसरी शताब्दी से बंगाल और मगध के बीच वाणिज्यिक संबंध स्थापित होने लगे थे जिसके कारण संभवतः संस्कृत का प्रभाव बढ़ता गया होगा.
  • चौथी शताब्दी के दौरान गुप्त वंश के शासकों ने उत्तरी बंगाल पर अपना राजनीतिक नियंत्रण स्थापित कर लिया और वह ब्राह्मणों को बसाना शुरू कर दिया।
  • 14 से 16 शताब्दी के बीच बंगाल पर सुल्तानों का शासन रहा जो दिल्ली में स्थित शासकों से स्वतंत्र थे.
    1586 में जब अकबर ने इस प्रदेश को जीत लिया तो उसे सूबा माना जाने लगा.
  • उस समय प्रशासन के भाषा तो फारसी थी लेकिन बंगाली क्षेत्रीय भाषा के रूप में विकसित हो रही थी बंगाली का उद्भव संस्कृत से ही हुआ है पर यह अपने विकास की अनेक अवस्थाओं से गुजरी है.
  • बंगाली के प्रारंभिक साहित्य को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है- एक श्रेणी संस्कृत की देनी है और दूसरी उससे स्वतंत्र है. पहली श्रेणी में संस्कृत महाकाव्य के अनुवाद मंगलकाव्य और भक्ति साहित्य जैसे- गौड़ीय वैष्णव आंदोलन के नेता श्री चैतन्य देव की जीवनी आदि शामिल है.
  • दूसरी श्रेणी में नाथ साहित्य शामिल है जैसे मैनामती गोपीचंद्र के गीत धर्म ठाकुर की पूजा से संबंधित कहानियां, परी कथाएं, लोक कथाएं और गाथागीत।

पीर और मंदिर

  • पीर फारसी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ होता है आध्यात्मिक मार्गदर्शक।
  • इस श्रेणी में संत और अन्य धार्मिक महानुभाव, साहसी उपनिवेश, देवत्व प्राप्त सैनिक एवं योद्धा विभिन्न हिंदू एवं बौद्ध देवी देवता और यहां तक कि जीवात्माए भी शामिल थे।
  • पीरो की पूजा पद्धतियां बहुत ही लोकप्रिय हो गई और उनकी मंजारे बंगाल में सर्वत्र पाई जाती है।
  • बंगाल में 15 वी शताब्दी के बाद वाले वर्षों में मंदिर बनाने का दौर जोरों से शुरू हुआ जो 19 वीं सदी में आकर समाप्त हो गया।
  • जब स्थानीय देवी देवता जो पहले गांव में छप्पर वाली झोपड़ियों में पूजे जाते थे, को ब्राह्मणों द्वारा मान्यता प्रदान कर दी गई तो उनकी प्रतिमाएं मंदिरों में स्थापित की जाने लगी।
  • इन मंदिरों की शक्ल या आकृति बंगाल की छप्परदार झोपड़ियों की तरह दोचाला या चौचाला होती थी।
  • इन मंदिरों के भीतरी भाग में सजावट नहीं होती थी तथा मंदिर सामान्यतः वर्गाकार चबूतरे पर बनाए जाते थे

मछली- भोजन के रूप में

  • बंगाल में मछली और धान की उपज बहुतायत मात्रा में होती हैं.
  • मछली पकड़ना बंगाल का प्रमुख धंधा रहा है.
  • बंगाली साहित्य में जगह-जगह पर मछली का उल्लेख मिलता है.
  • ब्राह्मणों को सामिष भोजन करने की अनुमति नहीं थी वृहद धर्म पुराण जो बंगाल में रचित तेरहवीं शताब्दी का संस्कृत ग्रंथ है ने स्थानीय ब्राह्मणों को कुछ खास किस्म की मछली खाने की अनुमति दे दी.

NCERT अभ्यास प्रश्न तथा उत्तर: Class 7 history Chapter 9 Question Answer

1. फिर से याद करें निम्नलिखित में मेल बैठायें:-

अनंतवर्मनकेरल
जगन्नाथबंगाल
महोदयउड़ीसा
लीलातिलकम कांगड़ा
मंगल काव्यपुरी
लघु चित्रकेरल
अनंतवर्मनउड़ीसा
जगन्नाथपुरी
महोदयकेरल
लीलातिलकम केरल
मंगल काव्यकांगड़ा
लघु चित्रबंगाल

2. मणिप्रवालम क्या है? इस भाषा में लिखी पुस्तक का नाम बताएं।
उत्तर- मणिप्रवलम एक प्रकार की भाषा शैली है जिसका शाब्दिक अर्थ हीरा और मूंगा होता है। मणिप्रवालम दो भाषाओ संस्कृत तथा क्षेत्रीय भाषा के साथ साथ प्रयोग की और संकेत करता है।

3. कत्थक के प्रमुख संरक्षण कौन थे?
उत्तर- कत्थक एक नृत्य शैली है जिसे राजस्थान के राजदरबार और लखनऊ के नवाबों ने इस नृत्य शैली को संरक्षण प्रदान किया। कत्थक सबसे अधिक अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण में फला फूला।

4. बंगाल के मंदिरों के स्थापत्यकला के महत्वपूर्ण लक्षण क्या है?
उत्तर- बंगाल के मंदिरों के स्थापत्यकला के महत्वपूर्ण लक्षण इस प्रकार है-

  • देवी देवता गांव में छप्पर वाली झोपड़ियों में पूजे जाते थे।
  • इन मंदिरों की शक्ल या आकृति बंगाल की छप्परदार झोपड़ियों की तरह दोचाला या चौचाला होती थी।
  • इन मंदिरों के भीतरी भाग में सजावट नहीं होती थी।
  • मंदिर सामान्यतः वर्गाकार चबूतरे पर बनाए जाते थे

5. चरण भाटों ने शुरवीरों की उपलब्धियों की उद्घोषणा क्यों की ?
उत्तर- चरण भाटों ने शुरवीरों की उपलब्धियों की उद्घोषणा की क्योंकी

  • चारण भाटो अपने गीतों के माध्यम से सुरवीरों की स्मृति को सुरक्षित रखना चाहते थे।
  • सुरवीरों की उपलब्धियों की उद्घोषणा करने का अन्य कारण यह भी हो सकता है कि चारण भाटों से यह आशा की जाती थी कि वह अन्य लोगों को भी सुरवीरों का अनुकरण करने के लिए प्रोत्साहन दे।

6. हम जनसाधारण की तुलना में शासकों की संस्कृतिक रीति-रिवाजों के बारे में बहुत अधिक क्यों जानते हैं?
उत्तर- हम जनसाधारण की तुलना में शासकों की संस्कृतिक रीति-रिवाजों के बारे में बहुत अधिक जानते हैं क्योंकि-

  • शासक धार्मिक स्मारक निर्मित करवाते थे जिनसे हमें उनके सांस्कृतिक रीति-रिवाजों की जानकारी प्राप्त हो जाती है जबकि जनसाधारण कि नहीं।
  • सांस्कृतिक परंपराएं कई क्षेत्रों के शासकों के आदर्शों तथा अभिलाषाओ के साथ घनिष्ठता से जुड़ी थी।
  • शासकों के सांस्कृतिक गतिविधियों के बारे में यात्रा वृतांत तथा कई रचनाकारों द्वारा वर्णन मिलता है।

7. विजेताओं ने पूरी स्थित जगन्नाथ के मंदिर पर नियंत्रण प्राप्त करने के प्रयत्न क्यों किए?
उत्तर- विजेताओं ने पूरी स्थित जगन्नाथ मंदिर पर नियंत्रण प्राप्त करने के प्रयत्न इसलिए किए क्योंकि उन्होंने यह महसूस किया कि यदि वे स्थानीय जनता को अपने वश में करना चाहते हैं तो मंदिर पर नियंत्रण करना आवश्यक होगा क्योंकि वह मंदिर तीर्थ यात्रा के केंद्र के रूप में महत्व प्राप्त कर चुका था साथ ही साथ उसका सामाजिक और राजनीतिक मामलों में भी महत्व था। इसलिए जिन्होंने भी उड़ीसा को जीता जैसे- मुगल, मराठी, ईस्ट इंडिया कंपनी आदि सभी ने इस मंदिर पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की।

8. बंगाल में मंदिर क्यों बनवाए गए?
उत्तर- बंगाल में 15वीं सदी से मंदिर बनाने का दौर शुरू हुआ जो 19वीं सदी तक चलता रहा। बंगाल में मंदिर बनाए जाने के कारण निम्नलिखित हैं:-

  • बंगाल में कुछ शक्तिशाली समूह है जो अपने शक्ति तथा भक्ति भाव का प्रदर्शन करने के लिए मंदिर निर्माण करा रहे थे।
  • बंगाल के लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति ज्यों-ज्यों सुधारती गई उन्होंने मंदिर स्मारकों के निर्माण के जरिए अपनी प्रतिष्ठा की घोषणा कर दी।

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